विकास तय करने का भी अधिकार मिले: मेधा पाटकर
August 1, 2005 |
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नर्मदा घाटी के लोगों की अगुवाई करने वाली मेधा पाटकर ने एक वृहद, अहिंसक सामाजिक आंदोलन का रूप देकर समाज के समक्ष सरदार सरोवर बाँध के डूब क्षेत्र के विस्थापितों की पीड़ा को उजागर किया। मेधा तेज़तर्रार, साहसी और सहनशील आंदोलनकारी रही हैं। प्रस्तुत है मेधा से देबाशीष चक्रवर्ती की टेलिफोन पर हुई बातचीत के अंश।
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आस्था की तुष्टि से संतोष मिलता है
May 23, 2005 |
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रात के बाद सबेरा होता है या सबेरे के पहले रात? आजकल हसीनों में शर्मोहया क्यों नहीं है? पूजा के समय भगवान को प्रसाद व भोग चढ़ाया जाता है, यह जानते हुये भी कि अंतत: खाना इन्सान को ही है। आखिर क्यों? ऐसे ही टेड़े सवालों के मेड़े जवाब दे रहे हैं हाजिर जवाब फुरसतिया!
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मोबाइल फ़ोन तेरे कितने रूप?
May 29, 2007 |
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मोबाइल फ़ोन डिजिटल कैमरा, एमपी3 प्लेयर, एफ़एम रेडियो के पर्याय तो थे ही। अब आप इसका इस्तेमाल क्रेडिट कार्ड के विकल्प के रूप में भी कर सकते हैं। रवि रतलामी बता रहे हैं दो इसी तरह की सेवाओं के बारे में, पहला एसएमएस आधारित पे-मेट तथा दूसरा मोबाइल एप्लीकेशन आधारित एम-चेक।
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कोई भला चिट्ठा क्यों लिखना चाहेगा?
April 9, 2005 |
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चिट्ठाकारी आसान है और नियमित चिट्ठा लेखकों को पुस्तक प्रकाशन के अनुबंध या स्वतंत्र लेखन कार्य द्वारा अर्थलाभ मिलना भी कोई असंभव काम नहीं है। सारांश में पढ़ें बिज़ स्टोन की पुस्तक "हू लेट द ब्लॉग्स आउट" से एक चुने हुये लेख "वाई वुड एनीवन वाँट टू ब्लॉग?" का रमण कौल द्वारा किया हिन्दी रूपांतर।
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बलॉगिंग विथ परपस
March 29, 2005 |
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जिह्वा ने जब अपना प्रसिद्ध चिट्ठा बंद किया तो उनकी उकताहट छुपती न थी। क्या चिट्ठाकार मूलतः अपने मेट्रिक्स में कैद आत्ममुग्ध अंर्तमुखी लेखक ही हैं बस? क्या वे समाज के सत्य से रूबरू ही नहीं होना चाहते? नज़रिया स्तंभ में पढ़िये संपादक की कलम से निरंतर का परिचय और चिट्ठा जगत पर नुक्ता चीनी के साथ पाईए परिचय आमुख कथा का।
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विज्ञापन एजेन्सी में एक दिन
कैसे काम करती हैं गोरेपन की क्रीम से कॉन्डोम तक की प्रचार सामग्री तैयार करतीं विज्ञापन कंपनियाँ, बता रहे हैं पेशेवर कापीराईटर व चिट्ठाकार चंद्रचूदन गोपालाकृष्णन.
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लोग साथ आते गए, कारवां बनता गया
May 23, 2005 |
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हिन्दी में शायद यह पहली पत्रिका होगी जहां संपादक एक देश में, निदेशक दूसरे देश में और टाइपिस्ट तीसरे देश में हों; जब एक की दुनिया में दिन हो और दूसरे की दुनिया में रात। अंर्तजाल पर हिन्दी भाषा की अत्यंत लोकप्रिय साहित्यिक पत्रिका "अभिव्यक्ति" तथा "अनुभूति" की रोचक व मर्मस्पर्शी यात्रा कथा बयां कर रही हैं पूर्णिमा वर्मन।
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नेताजी का ऐतिहासिक भाषण
May 29, 2007 |
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1857 में हुई आज़ादी की पहली लड़ाई की 150वीं वर्षगाँठ इस वर्ष देश भर में मनाई जा रही है। इस मौके पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिए गए एक दुर्लभ भाषण को हम पहली बार हिन्दी में पेश कर रहे हैं। यह भाषण नेताजी ने सम्राट-कवि बहादुरशाह ज़फ़र की मज़ार पर हुए आज़ाद हिन्द फौज की आनुष्ठनिक कवायद और जलसे में 11 जुलाई, 1944 को दिया था। हिन्दी अनुवाद व प्रस्तुतिः अफ़लातून।
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बोलबाला मीडिया रिच चिट्ठों का
April 9, 2005 |
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याहू 360° का आगमन, याहू द्वारा फ्लिकर के अधिग्रहण की अफ़वाहें, पत्रकार प्रद्युम्न माहेश्वरी के प्रसिद्ध ब्लॉग मीडियाह पर टाईम्स आफ इंडिया ने लगवाया ताला और आस्कर अवार्ड्स ने भी बनाया अपना ब्लॉग। ये, और ढेर सारी और खबरें। हमारे स्तंभ हलचल में पढ़िए माह के दौरान घटित ब्लॉगजगत से संबंधित खबरें तड़के के साथ।
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सुक्खी जैसा कोई नही
April 8, 2005 |
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जितेन्द्र के बचपन के दोस्त
सुक्खी बहुत ही सही आइटम हैं। उनकी जिन्दगी में लगातार ऐसी घटनायें होती रहती हैं जो दूसरों के लिये हास-परिहास का विषय बन जाती है। हास परिहास में पढ़िए सुने अनसुने लतीफ़े और रजनीश कपूर की नई कार्टून श्रृंखला "ये जो हैं जिंदगी"।
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