रे लेख का शीरà¥à¤·à¤• ज़रा कठोर है। थोड़ा अकà¥à¤–ड़ à¤à¥€à¥¤ इसका मंतवà¥à¤¯ यह है कि कà¥à¤² मिलाकर हमारी शिकà¥à¤·à¤¾ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• à¤à¤¾à¤°à¤¤ की ज़रूरत मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• ढली नहीं है और यह कि जो शिकà¥à¤·à¤¾ हम दे रहें हैं वह काफी हद तक करà¥à¤®à¤•ाणà¥à¤¡à¥€ और यथारà¥à¤¥ से परे है।
हमारे जैसी विशाल और विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€ के लिये ये शायद à¤à¤• और गैर जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ सामानà¥à¤¯à¥€à¤•रण लगे। मैं इस तथà¥à¤¯ से वाकिफ हूठकि हम कà¥à¤› असाधारण लोगों की à¤à¥€ रचना करते हैं पर मेरा विचार है कि पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€ चाहे कैसी à¤à¥€ हो कà¥à¤› असाधारण लोग तो यूठà¤à¥€ तैयार हो ही जाते हैं, ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° किसी औपचारिक तंतà¥à¤° के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— के बिना। 95 करोड़ के देश में हम कड़ी और कषà¥à¤Ÿà¤•र छंटाई के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¥€ कà¥à¤› हजार लोगों को ही चà¥à¤¨ पाते हैं। इंजीनियरिंग के पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£ के उपरांत इनमें से à¤à¤¾à¤°à¥€ संखà¥à¤¯à¤¾ में लोग विदेश चले जाते हैं और वहाठसफलता à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करते हैं। यह तथà¥à¤¯ यही साबित करता है कि हमारी कà¥à¤› संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं में हर किसी को नषà¥à¤Ÿ करने में हम पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ सफल नही हो सके।
सारà¥à¤µà¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ देने से तो हम कोसों दूर हैं। हम मौजूदा शालाओं जैसी ढेरों और शालायें खोल à¤à¥€ दें तो यह हालात खास बदलने नही वाले बशरà¥à¤¤à¥‡ हम साथ साथ हमारी शिकà¥à¤·à¤£ और जà¥à¤žà¤¾à¤¨ तंतà¥à¤° तथा शाला के अपने पास पड़ोस से संबंधों में पà¥à¤°à¤¬à¤² बदलाव लायें। इसके कारणों की चरà¥à¤šà¤¾ निमà¥à¤¨à¤²à¤¿à¤–ित है।
ककà¥à¤·à¤¾ 1 में दाखिल होने वाले 50 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ बचà¥à¤šà¥‡ ककà¥à¤·à¤¾ 5 तक और 25 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ बचà¥à¤šà¥‡ ककà¥à¤·à¤¾ 8 तक आते आते सà¥à¤•ूल छोड़ देते हैं। केवल 5 से 10 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ ही हाई सà¥à¤•ूल पास करते हैं और बमà¥à¤¶à¥à¤•िल 1 या 2 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ बारहवीं पास कर पाते हैं। हायर सेकेंडरी परीकà¥à¤·à¤¾ में बैठने वाले 100 छातà¥à¤°à¥‹à¤‚ में से हर साल 50 से à¤à¥€ कम पास होते हैं। यही साल दर साल चलता रहता है।
जब à¤à¥€ हम इन आंकड़ों को देखते हैं, अपने शिकà¥à¤·à¥‹à¤‚ पर दोषारोपण करने और सà¥à¤•ूलों में सेवाओं की खराब सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿, माता पिता की उदासीनता, खराब पाठà¥à¤¯ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•ों वगैरा वगैरा को कोसने लगते हैं। छातà¥à¤°à¥‹à¤‚ के लिये अनिवारà¥à¤¯ हो गया है कि अचà¥à¤›à¥‡ अंक पाने के लिये वे महंगे टà¥à¤¯à¥‚शन व कोचिंग ककà¥à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ जायें। आपके माता पिता का मालदार और शिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ होना काम आता है। अगर वे अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ बोल सके तो कà¥à¤¯à¤¾ कहनें।
मेरी यही धारणा है कि ये सà¤à¥€ à¤à¤• गहरी गलती के लकà¥à¤·à¤£ हैं। 3 वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ मानव संसाधन मंतà¥à¤°à¤¾à¤²à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ गठित à¤à¤• कमेटी ने à¤à¤• रपट दाखिल की थी जिसका शीरà¥à¤·à¤• था “लरà¥à¤¨à¤¿à¤‚ग विदाउट बरà¥à¤¡à¤¨” यानि “बिना बोठकी पà¥à¤¾à¤ˆ”। इस कमेटी का अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· मैं था। मंतà¥à¤°à¥€ जी चरà¥à¤šà¤¾ में रहे à¤à¤• मसले, सà¥à¤•ूल बैगों के बढते वजन, से चिंतित थे।
इस रपट की अनेक बैठकों तथा सेमिनारों में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• चरà¥à¤šà¤¾ हà¥à¤ˆ है, शिकà¥à¤·à¤¾ पर सेंटà¥à¤°à¤² à¤à¤¡à¤µà¤¾à¤‡à¤œà¤°à¥€ कमेटी ने इस पर चरà¥à¤šà¤¾ के बाबत खास गोषà¥à¤ ी की है। सà¥à¤•ूलों तथा शिकà¥à¤·à¤•ों की संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं ने इस पर चरà¥à¤šà¤¾ और सेमिनार के आयोजन किये। संसद में इसके कारà¥à¤¯à¤¨à¥à¤µà¥à¤¯à¤¨ पर सवाल पूछे गये हैं और à¤à¤¨.सी.आर.टी में इस बाबत à¤à¤• विशेष मॉनीटरिंग पà¥à¤°à¤•ोषà¥à¤Ÿ की à¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की गई। फिर à¤à¥€ शालाओं की कारà¥à¤¯à¤ªà¤¦à¥à¤§à¤¤à¤¿ में कोई सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ बदलाव नही दिखता। जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° बचà¥à¤šà¥‡ अà¤à¥€ à¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¥€ बैग लिये फिरते हैं। पाठà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ में संशोधन नही हà¥à¤, कब कà¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤¾à¤¨à¤¾ है यह निरà¥à¤£à¤¯ लेने के लिये शिकà¥à¤·à¤•ों को अधिक अधिकार नही दिये गये, रटन विदà¥à¤¯à¤¾ पर जोर कम नहीं हà¥à¤†, विषय को समà¤à¤¨à¥‡ पर जोर नहीं है और à¤à¤• छातà¥à¤° के जीवन में अब à¤à¥€ परीकà¥à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚, टेसà¥à¤Ÿ और सà¥à¤ªà¤°à¥à¤§à¤¾à¤“ं का बोलबाला है।
कà¥à¤› लोग ये तरà¥à¤• देंगे कि सीखना हमारे मिज़ाज के ही मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• नहीं, कि हम à¤à¤• निकृषà¥à¤ पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ है और ये कि हम केवल पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£ के ही लायक है, à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£ जिसका पैकेज किसी ने पहले से ही तैयार कर रखा हो। ये à¤à¥€ कहा जा सकता है कि हमारे अधिकांश बचà¥à¤šà¥‡ जड़मति हैं और और उनके रहन सहन का तरीका à¤à¤¸à¥€ चीजों में अरूचि पैदा करता है जो सैदà¥à¤§à¤¾à¤‚तिक (à¤à¤•ेडेमिक) या वैचारिक (कनसेपà¥à¤šà¥à¤¯à¤²) हों। ये à¤à¥€ तरà¥à¤• दिया जा सकता है कि ये सब जानते हà¥à¤¯à¥‡ ही हमारे शिकà¥à¤·à¤• और परीकà¥à¤·à¤£ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ रटन विदà¥à¤¯à¤¾ पर जोर देते हैं।
जैसे ही हम रटन विदà¥à¤¯à¤¾ का विषय की समठसे सामà¥à¤¯ करने लगते हैं हम ये निषà¥à¤•रà¥à¤· निकालने लगते हैं कि शिकà¥à¤·à¤¾ का बचà¥à¤šà¥‡ की वातावरण की खासियत या à¤à¤¸à¥‡ सवाल जवाबों से कोई नाता नहीं है जो बचà¥à¤šà¤¾ सà¥à¤•ूल से बाहर गà¥à¤°à¤¹à¤£ या पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ करता है। बेशक हमारे अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ से à¤à¥€ यही पता चला कि जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° बचà¥à¤šà¥‡ यह मानते हैं कि जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दो तरह के होता है à¤à¤•, जिसका असल ज़िंदगी से वासà¥à¤¤à¤¾ है और दूसरा, जो सà¥à¤•ूल में अरà¥à¤œà¤¿à¤¤ होता है। बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के à¤à¤• बड़े तबके को समà¤à¤¨à¥‡ (कॉमà¥à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¹à¥‡à¤¨à¥à¤¶à¤¨) के बिना सीखना बोठसा लगता है और अगर माता पिता का दबाव ना हो या फिर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ असाधारण शिकà¥à¤·à¤• और घर में पà¥à¤¾à¤ˆ के उतà¥à¤¤à¤® वातावरण का सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ ना हो तो वे सà¥à¤•ूल छोड़ देते हैं।
मà¥à¤à¥‡ कई दफ़ा यह हैरत होती है कि जीवन से शिकà¥à¤·à¤¾ को अलग करने कि यह आदत कहीं हमारा सांसà¥à¤•ृतिक लकà¥à¤·à¤£ तो नहीं जो हमें अपने अतीत से मिला हो। उà¤à¤šà¥€ जाति की शिकà¥à¤·à¤¾ की बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ परंपरा में हम जीवन को अनेक मियादों में बाà¤à¤Ÿà¤¤à¥‡ हैं जिनमें से à¤à¤• वकà¥à¤¤ à¤à¤¸à¤¾ होता है जब हम केवल जà¥à¤žà¤¾à¤¨ अरà¥à¤œà¤¿à¤¤ करते थे और शेष सारा जीवन यà¥à¤µà¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की इसी सीख के सहारे यापन होता था। इसके सापेकà¥à¤· हमारे समाज ने विशà¥à¤µ और अनà¥à¤à¤µ से सीखने के महतà¥à¤µ को पहचाना और इसलिये उसके अधिकांश बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को सà¥à¤•ूल से अलग रखा गया।
शालेय जीवन का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ शारीरिक शà¥à¤°à¤® के बिना जीवनयापन तथा जीवन की जदà¥à¤¦à¥‹à¤œà¤¹à¤¦ से दूरी बनाये रखना था। यह संà¤à¤µ है कि औपचारिक शिकà¥à¤·à¤¾ की हमारे समाज में निहित यह पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ 19वीं सदी में मैकॉले की शिकà¥à¤·à¤¾ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ से दृॠहà¥à¤ˆ हो जहाठशिकà¥à¤·à¤¾ का उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ जीवन से संलाप नहीं बलà¥à¤•ि à¤à¤¸à¥‡ हà¥à¤¨à¤° सीखना था जिसमें हम दूसरों की बनाई मशीनों में फिट होकर उनको फायदा पहà¥à¤à¤šà¤¾ सकें। चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के अà¤à¤¾à¤µ में हमारी शिकà¥à¤·à¤¾ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ ने शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ ता मापने के à¤à¤¸à¥‡ मापदंडों का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया है जो या तो विदेशों से उधार ली गई हैं या फिर कà¥à¤² पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¾à¤‚कों में आधे से à¤à¥€ कम पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ के आधार पर अंतर करने जैसे बेसिरपैर के पैमाने। ये तो हमारे यà¥à¤µà¤¾à¤“ं के लचीलेपन की दाद देनी होगी कि इनमें से कà¥à¤› के वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ हमेशा के लिये नषà¥à¤Ÿ होने से बच जाते हैं। पर कई à¤à¤¸à¥‡ जिनमें तेज़ अनà¥à¤¬à¥‹à¤§à¤• (परसेपà¥à¤Ÿà¤¿à¤µ) शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ या असाधारण सरà¥à¤œà¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• काबलियते थीं या तो असफल हो जाते हैं या फिर पà¥à¤¾à¤ˆ छोड़ देते हैं।
à¤à¤¾à¤°à¤¤ की पहचान बनाने वाली अधिकांश चीजें à¤à¤¸à¥‡ लोगों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनाई और संजोई गई हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने औपचारिक शिकà¥à¤·à¤¾ तंतà¥à¤° के बाहर से हà¥à¤¨à¤°, संवेदनशीलता व शिलà¥à¤ª कौशल गà¥à¤°à¤¹à¤£ किये। हमारे समाज में ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° हà¥à¤¨à¤° पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— व अवलोकन दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सीखे जाते हैं। मैं यह नहीं कहता कि हमें बस à¤à¤¸à¥‡ ही लोग चाहिये। हमें नई सामगà¥à¤°à¥€, नई तकनीक, कंपà¥à¤¯à¥‚टर तथा सूचना आधार की बिलà¥à¤•à¥à¤² ज़रूरत है। पर मैं इस बात पर ज़ोर देना चाहता हूठकि ज़मीन से जà¥à¥œà¥‡ और हाथों से काम करने वालो लोगों को हमारी औपचारिक शिकà¥à¤·à¤¾ तंतà¥à¤° से दूर रखकर हमने बहà¥à¤¤ बड़ी बेवकूफी की है। हम अपने पाठà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® में बाहर से अरà¥à¤œà¤¿à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨, हà¥à¤¨à¤° और काबलियतों को सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ ही नहीं देते।
कई मौकों पर जब मैनें आयातित तकनीक से पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ नौकरशाहों से ये ज़िकà¥à¤° किया तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤ पर मà¥à¤²à¥à¤• के आधà¥à¤¨à¤¿à¤•ीकरण में बाधा डालने का आरोप जड़ दिया। मैं यही कहूंगा कि हमें शीघà¥à¤° ही हमारी शिकà¥à¤·à¤£ संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं में दी जा रही पृथक और बंजर know why में वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• काम और समाज की परंपराओं से अरà¥à¤œà¤¿à¤¤ know how को मिलाने का यतà¥à¤¨ करना चाहिये। केवल तà¤à¥€ हम उचà¥à¤š योगà¥à¤¯à¤¤à¤¾ वाले आविषà¥à¤•रà¥à¤¤à¤¾à¤“ं, इंजीनियरों तथा वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•ों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कर पायेंगे। और वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• आधà¥à¤¨à¤¿à¤•ीकरण à¤à¥€ à¤à¤¸à¥‡ ही होगा।
तहलका में पूरà¥à¤µ पà¥à¤°à¤•ाशित इस अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ लेख का हिनà¥à¤¦à¥€ अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ किया है देबाशीष चकà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ ने। पूरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤®à¤¤à¤¿ से पà¥à¤°à¤•ाशित। छायाः अकà¥à¤·à¤¯ महाजन