ब्लॉग से देश नहीं बदलेगाः अतानु डे
March 29, 2005 |
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संवाद, जिसके तहत हर माह आप रूबरू हो सकेंगे चिट्ठा जगत के ही किसी पहचाने नाम से, में इस बार प्रस्तुत है साक्षात्कार इंडीब्लॉगीज़ 2004 में सर्वश्रेष्ट ब्लॉग के पुरस्कार से नवाज़े गए चिट्ठे "दीशा" के रचयिता अतानु डे से।
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टेरापैड: ब्लॉगिंग से आगे की सोच?

टेरापैड कुछ ऐसी सेवाओं व विशेषताओं को आपके लिए लेकर आया है जो आपकी पारंपरिक चिट्ठाकारी की दशा व दिशा को बदल सकता है। जानिये रविशंकर श्रीवास्तव क्या कहते हैं इस नये ब्लॉग प्लैटफॉर्म के बारे में।
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वेबलॉग नीतिशास्त्र
March 29, 2005 | Comments Off on वेबलॉग नीतिशास्त्र

सारांश में पेश करते हैं पुस्तकाँश या पुस्तक समीक्षा। निरंतर के पहले अंक में हमें प्रसन्नता है रेबेका ब्लड की पुस्तक "द वेबलॉग हैन्डबुक" के अंश का हिन्दी रूपांतर प्रस्तुत करते हुए। रेबेका 1996 से अंर्तजाल पर हैं, उनका ब्लॉग रेबेकाज़ पॉकेट खासा प्रसिद्ध है।
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बलॉगिंग विथ परपस
March 29, 2005 |
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जिह्वा ने जब अपना प्रसिद्ध चिट्ठा बंद किया तो उनकी उकताहट छुपती न थी। क्या चिट्ठाकार मूलतः अपने मेट्रिक्स में कैद आत्ममुग्ध अंर्तमुखी लेखक ही हैं बस? क्या वे समाज के सत्य से रूबरू ही नहीं होना चाहते? नज़रिया स्तंभ में पढ़िये संपादक की कलम से निरंतर का परिचय और चिट्ठा जगत पर नुक्ता चीनी के साथ पाईए परिचय आमुख कथा का।
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बुलबुले के घर?
February 9, 2007 |
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क्या भारतीय प्रॉपर्टी बाज़ार की कीमतों में अव्यावाहारिक उछाल बाजार में मांग और पूर्ति के नियमों पर आधारित है, या फिर एक फूलते बुलबुले का हिस्सा है जो जब भी फटे तबाही ही बरपा करेगा? आमुख कथा में जगदीश भाटिया और देबाशीष चक्रवर्ती के खोजी आलेख को पढ़िये और निर्णय लीजिये।
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दिल्ली अभी दूर, पर चलते रहना है ज़रूर
July 1, 2005 |
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संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी हिन्दी सॉफ़्टवेयर उपकरणों और फ़ॉण्ट संग्रह की मुफ़्त सीडी से हिन्दी के प्रयोक्ताओं की आशाओं को पूरी होगी या नहीं यह जानने के लिए विनय जैन ने इन उपकरणों का परीक्षण किया।
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यादों के घरौंदे में एक सोनचिरैया
November 4, 2006 |
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जानीमानी पत्रकार, गीतकार, कवियत्री और लेखिका सुमन सरीन का इस वर्ष अगस्त में देहान्त हुआ। 25 साल पूर्व सुमन का पटना से मुम्बई आना ही एक साहसिक कदम था। वे विज्ञापन जगत और धर्मयुग, माधुरी और प्रिया जैसी पत्रिकाओं से जुड़ीं और अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। निरंतर संपादक शशि सिंह सुमन के सहयोगियों से मिले और सुमन की यादें ताज़ा कीं।
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विशेषज्ञ बिन सब सून
April 9, 2005 |
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जीवन के हर क्षेत्र में विशेषज्ञों की घुसपैठ जारी है। व्यक्ति के जन्म लेने से पहले ही विशेषज्ञों का रोल चालू हो जाता है। कटाक्ष कर रहे हैं रविशंकर श्रीवास्तव।
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