
गालिब छà¥à¤Ÿà¥€ शराब, पर अब à¤à¥€ कà¤à¥€ कà¤à¥€
पीता हूठरोज़े-अबà¥à¤°à¥‹-शबे-माहताब में
15 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² 1997, बैसाखी का परà¥à¤µà¥¤ पिछले चालीस बरसों से बैसाखी मनाता आ रहा था। वैसे तो हर शब बैसाखी की शब होती थी, मगर तेरह अपà¥à¤°à¥ˆà¤² को कà¥à¤› जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ही हो जाती थी। दोपहर को बीयर अथवा जिन और शाम को मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ के बीच का दौर। मसà¥à¤¤à¥€ में कà¤à¥€ कà¤à¤¾à¤° à¤à¤¾à¤à¤—ड़ा à¤à¥€ हो जाता और अनà¥à¤¤ में किसी पà¤à¤œà¤¾à¤¬à¥€ ढाबे में à¤à¥‹à¤œà¤¨, डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤°à¥‹à¤‚ के बीच। जेब ने इजाज़त दी तो किसी पाà¤à¤š सितारा होटल में सरसों का साग और मकई की रोटी। इस रोज़ दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के यहाठà¤à¥€ दावतें कम न हà¥à¤ˆ होंगी और ममता ने à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤‚जन पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¿à¤•ा पà¥à¤•र छोले à¤à¤Ÿà¥‚रे कम न बनाये होंगे।
मगर आज की शाम, १९९ॠकी बैसाखी की शाम कà¥à¤› अलग थी। सूरज ढलते ही सागरो मीना मेरे सामने हाज़िर थे। आज दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ का हà¥à¤œà¥‚म à¤à¥€ नहीं था – सब निमंतà¥à¤°à¤£ टाल गया और खà¥à¤¦ à¤à¥€ किसी को आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ नहीं किया। पिछले साल इलाहाबाद से दस पंदà¥à¤°à¤¹ किलोमीटर दूर इलाहाबाद रीवा मारà¥à¤— पर बाबा के ढाबे में महफ़िल सजी थी और रात दो बजे घर लौटे थे। आज महौल मे अजीब तरह की दहशत और मनहूसियत थी। जाम बनाने के बजाय मैं मà¥à¤à¤¹ में थरà¥à¤®à¤¾à¤®à¥€à¤Ÿà¤° लगाता हूà¤à¥¤ धड़कते दिल से तापमान देखता हूठवही ९९.३। यह à¤à¥€ à¤à¤²à¤¾ कोई बà¥à¤–ार हà¥à¤†à¥¤ à¤à¤• शरà¥à¤®à¤¨à¤¾à¤• बà¥à¤–ार। न कम होता है न बà¥à¤¤à¤¾ है। बदन में अजीब तरह की टूटन है। यह शरीर का सà¥à¤¥à¤¾à¤ˆ à¤à¤¾à¤µ हो गया है, चौबीसों घà¤à¤Ÿà¥† यही आलम रहता है। à¤à¥‚ख कब की मर चà¥à¤•ी है, मगर पीने को जी मचलता है। पीने से तनहाई दूर होती है, मनहूसियत से पिंड छूटता है, रगों में जैसे नया खून दौड़ने लगता है। शरीर की टूटन गायब हो जाती है और नस नस में सà¥à¥žà¥‚रà¥à¤¤à¤¿ आ जाती है। à¤à¤• लमà¥à¤¬à¥‡ अरसे से मैंने ज़िंदगी का हर दिन शाम के इंतज़ार में गà¥à¥›à¤¾à¤°à¤¾ है, à¤à¥‹à¤œà¤¨ के इंतज़ार में नहीं। अपनी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ के लिये मैंने à¤à¤• मà¥à¤¹à¤¾à¤µà¤°à¤¾ à¤à¥€ गॠलिया था – शराबी दो तरह के होते हैं : à¤à¤• खाते पीते और दूसरे पीते पीते। मैं खाता पीता नहीं पीता पीता शखà¥à¤¸ था। मगर ज़िंदगी की हकीकत को जà¥à¤®à¤²à¥‹à¤‚ की गोद में नहीं सà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ जा सकता। वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤•ता जà¥à¤®à¤²à¥‹à¤‚ से कहीं अधिक वज़नदार होती है। मेरे जà¥à¤®à¤²à¥‡ à¤à¤¾à¤°à¥€ होते जा रहे थे और वज़न हलà¥à¤•ा। छह फ़ीट का शरीर छपà¥à¤ªà¤¨ किलो में सिमट कर रह गया था। इसकी जानकारी à¤à¥€ आज सà¥à¤¬à¤¹ ही मिली थी। दिन में डाकà¥à¤Ÿà¤° ने पूछा था – पहले कितना वज़न था ? मैं दिमाग पर ज़ोर डालकर सोचता हूà¤, कà¥à¤› याद नहीं आता। यकायक मà¥à¤à¥‡ à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ होता है, मैंने दसियों बरस से अपना वज़न नहीं लिया, कà¤à¥€ ज़रूरत ही महसूस न हà¥à¤ˆ थी। डॉकà¥à¤Ÿà¤° की जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ से यह बात मेरी समठमें आ रही थी कि छह फ़à¥à¤Ÿà¥‡ शरीर के लिये छपà¥à¤ªà¤¨ किलो काफ़ी शरà¥à¤®à¤¨à¤¾à¤• वज़न है। जब कà¤à¥€ कोई दोसà¥à¤¤ मेरे दà¥à¤¬à¤²à¥‡ होते जा रहे बदन की ओर इशारा करता तो मैं टके सा जवाब जड़ देता – बà¥à¥à¤¾à¤ªà¤¾ आ रहा है।
मैं à¤à¤• लमà¥à¤¬à¥‡ अरà¥à¤¸à¥‡ से बीमार नहीं पड़ा था। यह कहना à¤à¥€ गलत न होगा कि मैं बीमार पड़ना à¤à¥‚ल चà¥à¤•ा था। याद नहीं पड़ रहा था कि कà¤à¥€ सरदरà¥à¤¦ की दवा à¤à¥€ ली हो। मेरे तमाम रोगों का निदान दारू थी दवा नहीं। कà¤à¥€ खाट नहीं पकड़ी नहीं थी, वकà¥à¤¤ ज़रूरत दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की तीमारदारी अवशà¥à¤¯ की थी। मगर इधर जाने कैसे दिन आ गये थे, जो मà¥à¤à¥‡ देखते मेरे सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ पर टिपà¥à¤ªà¤£à¥€ अवशà¥à¤¯ कर देता। दोसà¥à¤¤ अहबाब यह à¤à¥€ बता रहे थे कि मेरे हाथ काà¤à¤ªà¤¨à¥‡ लगे हैं। होमà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¥ˆà¤¥à¥€ की किताब पà¥à¤•र मैं जैलसीमीयम खाने लगा। अपने डॉकà¥à¤Ÿà¤° मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ के हà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥à¤·à¥‡à¤ª से मैं आजिज आ रहा था। डॉकà¥à¤Ÿà¤° नरेनà¥à¤¦à¥à¤° खोपरजी और डॉकà¥à¤Ÿà¤° अà¤à¤¿à¤²à¤¾à¤·à¤¾ चतà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦à¥€ जब à¤à¥€ मिलते कà¥à¤²à¤¿à¤¨à¤¿à¤• पर आने को कहते। मैं हà¤à¤¸à¤•र उनकी बात टाल जाता। वे लोग मेरा अलà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¾ साउंड करना चाहते थे और इस बात से बहà¥à¤¤ चिंतित हो जाते कि मैं à¤à¥‹à¤œà¤¨ में रà¥à¤šà¤¿ नहीं लेता। मैं महीनों डॉकà¥à¤Ÿà¤° मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ के मशवरों को नज़र अंदाज़ करता रहा। उन लोगों ने नया नया डॉपà¥à¤²à¤° अलà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤¾à¤‰à¤‚ड खरीदा था, मेरी à¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ में ये विचार आता कि ये लोग अपने पचीस तीस लाख के “डॉपà¥à¤²à¤°” का रौब गालिब करना चाहते हैं। बाहर के तमाम डॉकà¥à¤Ÿà¤° मेरे हमपà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¾ और हमनिवाला थे। मगर कितने बà¥à¤°à¥‡ दिन आ गये थे कि जो à¤à¥€ डॉकà¥à¤Ÿà¤° मिलता अपने कà¥à¤²à¥€à¤¨à¤¿à¤• में आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ करता। जो पैथोलोजिसà¥à¤Ÿ था वह लैब में बà¥à¤²à¤¾ रहा था और जो नरà¥à¤¸à¤¿à¤‚ग होम का मालिक था, वह चेकप के लिये बà¥à¤²à¤¾ रहा था। डॉकà¥à¤Ÿà¤°à¥‹à¤‚ से मेरा तकरार बरसों तक चलता रहा। लà¥à¤•ाछिपी के इस खेल में मैंने महारथ हासिल कर ली थी। डॉकà¥à¤Ÿà¤° मितà¥à¤° आते तो मैं उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी माठके मà¥à¤†à¤‡à¤¨à¥‡ में लगा देता। माठका रकà¥à¤¤à¤šà¤¾à¤ª लिया जाता तो वह निहाल हो जातीं कि बेटा उनका कितना खà¥à¤¯à¤¾à¤² कर रहा है। बगैर मेरी माठकी खैरियत जाने कोई डॉकà¥à¤Ÿà¤° मितà¥à¤° मेरे कमरे की सीढियाठनहीं चॠसकता था। कà¥à¤¯à¤¾ मज़ाल कि मेरा कोई à¤à¥€ मितà¥à¤° उनका हालचाल लिये बगैर सीढियाठचॠजाय ; वह जिलाधिकारी हो या पà¥à¤²à¤¿à¤¸ अधीकà¥à¤·à¤• अथवा आयà¥à¤•à¥à¤¤à¥¤ माठदिनà¤à¤° हिनà¥à¤¦à¥€ में गीता और रामायण पढ़तीं मगर हिनà¥à¤¦à¥€ बोल न पाती। वह टूटी फ़ूटी पंजाबी मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ हिनà¥à¤¦à¥€ में ही संवाद सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ कर लेतीं। धीरे धीरे मेरे हमपà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¾ हमनिवाला दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ का दायरा इतना वसीह हो गया था कि उसमें वकील à¤à¥€ थे और जज à¤à¥€à¥¤ पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨à¤¿à¤• अधिकारी थे तो उदà¥à¤§à¤®à¥€ à¤à¥€, पà¥à¤°à¥‹à¥žà¥‡à¤¸à¤° थे तो छातà¥à¤° à¤à¥€à¥¤ ये सब दिन ढले के बाद के दोसà¥à¤¤ थे। कहा जा सकता है कि पीने पिलाने वाले दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ का à¤à¤• अचà¥à¤›à¤¾ खासा कà¥à¤¨à¤¬à¤¾ बन गया था। शाम को किसी न किसी मितà¥à¤° का डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° वाहन लेकर हाज़िर रहता अथवा हमारे ही घर के बाहर वाहनों का ताà¤à¤¤à¤¾ लग जाता। सब दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ से घरेलू रिशà¥à¤¤à¥‡ कायम हो चà¥à¤•े थे। सà¥à¤à¤¾à¤· कà¥à¤®à¤¾à¤° इलाहाबाद के आयà¥à¤•à¥à¤¤ थे जो इस कà¥à¤¨à¤¬à¥‡ को गिरोह के नाम से पà¥à¤•ारते थे। आज à¤à¥€ फ़ोन करेंगे तो पूछेंगे गिरोह का कà¥à¤¯à¤¾ हालचाल है।
आज बैसाखी का दिन था और बैसाखी की महफ़िल उसूलन हमारे यहाठही जमनी चाहिये थी। मगर सà¥à¤¬à¤¹ सà¥à¤¬à¤¹ ममता, मनà¥à¤¨à¥‚ और विपिन तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी (जगत à¤à¤¾à¤¨à¤œà¤¾ ) घेरघार कर मà¥à¤à¥‡ डॉ.निगम के यहाठले जाने में सफ़ल हो गये थे। दिन à¤à¤° टेसà¥à¤Ÿ होते रहे थे। खून की जाà¤à¤š हà¥à¤ˆ, अलà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤¾à¤‰à¤‚ड हà¥à¤†, à¤à¤•à¥à¤¸à¤°à¥‡ हà¥à¤†, गरà¥à¥› यह कि जितने à¤à¥€ टेसà¥à¤Ÿ संà¤à¤µ हो सकते थे, सब करा लिये गये। रिपोरà¥à¤Ÿ वही थी, जिसका खतरा था, यानि लिवर (यकृत) बॠगया था। दिमागी तौर पर मैं इस खबर के लिये तैयार था, कोई खास सदमा नहीं लगा।
“आप कब से पी रहे हैं ?” डॉकà¥à¤Ÿà¤° ने तमाम कागज़ात देखने के बाद पूछा।
“यही कोई चालीस बरस से ?” मैंने डॉकà¥à¤Ÿà¤° को बताया, “पिछले बीस बरस से तो लगà¤à¤— नियमित रूप से।”
“रो़ज़ कितने पेग लेते हैं ?”
मैंने कà¤à¥€ इस पर गौर नहीं किया था। इतना ज़रूर याद है कि à¤à¤• बोतल शà¥à¤°à¥ में चार पाà¤à¤š दिन में खाली होती थी, बाद में दोतीन दिन में इधर दो à¤à¤• दिन में। कम पीने में यकीन नहीं था। कोशिश यही थी कि à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में और अचà¥à¤›à¥€ बà¥à¤°à¤¾à¤‚ड नसीब हो। शराब के मामले में मैं किसी का मोहताज नहीं रहना चाहता था, न कà¤à¥€ रहा। इसके लिये मैं कितना à¤à¥€ शà¥à¤°à¤® कर सकता था। à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में रोटी नहीं अचà¥à¤›à¥€ शराब की चिंता थी।
“आप जीना चाहते हैं तो अपनी आदतें बदलनी होंगी।” डॉकà¥à¤Ÿà¤° ने दो टूक शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में आगाह किया,”ज़िंदगी या मौत में से आपको à¤à¤• का चà¥à¤¨à¤¾à¤µ करना होगा।”
डॉकà¥à¤Ÿà¤° की बात सà¥à¤¨à¤•र मà¥à¤à¥‡ हà¤à¤¸à¥€ आ गई। मूरà¥à¤– से मूरà¥à¤– आदमी à¤à¥€ ज़िंदगी या मौत में से ज़िंदगी का चà¥à¤¨à¤¾à¤µ करेगा।
“आप हà¤à¤¸ रहे हैं, जबकि मौत आपके सर मंडरा रही है।” डॉकà¥à¤Ÿà¤° को मेरी मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤¹à¤Ÿ बहà¥à¤¤ नागावार गà¥à¥›à¤°à¥€à¥¤
“सॉरी डॉकà¥à¤Ÿà¤° ! मैं अपनी बेबसी पर हà¤à¤¸ रहा था। मैंने कà¤à¥€ सोचा à¤à¥€ नहीं था कि यह दिन à¤à¥€ देखना पड़ेगा।”
“आप यकायक पीना छोड़ नहीं पायेंगे। इतने बरसों बाद कोई à¤à¥€ नहीं छोड़ सकता। शाम को à¤à¤•ाध, हद से हद दो पेग ले सकते हैं। डॉकà¥à¤Ÿà¤° साहब ने बताया कि “विदडà¥à¤°à¤¾à¤…ल सिमà¥à¤ªà¤Ÿà¤®à¥à¤¸” ( मदिरापान न करने से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होने वाले लकà¥à¤·à¤£) à¤à¥‡à¤² न पाउà¤à¤—ा।
इस वकà¥à¤¤ मेरे सामने नयी बोतल रखी थी और कानों में डॉकà¥à¤Ÿà¤° निगम के शबà¥à¤¦ कौंध रहे थे। मà¥à¤à¥‡ जलियाà¤à¤µà¤¾à¤²à¤¾ बाग की खूनी बैसाखी याद आ रही थी। लग रहा था कि रासà¥à¤¤à¥‡ बनà¥à¤¦ हैं सब, कूचा ठकातिल के सिवा। चालीस बरस पहले मैंने अपना वतन छोड़ दिया था और à¤à¤• यही बैसाखी का दिन होता था जो वतन की याद ताज़ा कर जाता था।
बचपन में ननिहाल में देखी बैसाखी की “छिंज” याद आ जाती। चारों तरफ़ उतà¥à¤¸à¤µ का महौल, à¤à¤¾à¤‚गड़ा और नगाड़े। मसà¥à¤¤à¥€ के इस आलम में कà¤à¥€ कà¤à¤¾à¤° खूनी फ़साद हो जाते,रंजिश में खून तक हो जाते। हम सब लोग हवेली की छत से सारा दृशà¥à¤¯ देखते। नीचे उतरने की मनाही थी। अकà¥à¤¸à¤° मामा लोग आà¤à¤– तरेरते हà¥à¤¯à¥‡ छत पर आ जाते और माठऔर मौसी तथा मामियों को à¤à¥€ मà¥à¤‚डेर से हट जाने के लिये कहते। बैसाखी पर जैसे पूरे पंजाब का खून खौल उठता था। जालंधर, हिसार, दिलà¥à¤²à¥€,मà¥à¤‚बई और इलाहाबाद में मैंने बचपन की à¤à¤¸à¥€ ही अनेक यादों को सहेज कर रखा हà¥à¤† था। आज थरà¥à¤®à¤¾à¤®à¥€à¤Ÿà¤° मà¥à¤à¥‡ चिà¥à¤¾ रहा था। गिलास, बोतल और बरà¥à¥ž की बकट मेरे सामने जैसे मà¥à¤°à¥à¤¦à¤¾ पड़ी थीं।
मैंने सिगरेट सà¥à¤²à¤—ाया और à¤à¤• à¤à¤Ÿà¤•े से बोतल की सील तोड़ दी।
“आखिर कितना पियोगे रवीनà¥à¤¦à¥à¤° कालिय?” सहसा मेरे à¤à¥€à¤¤à¤° से आवाज़ उठी।
“बस यही à¤à¤• या दो पेग”। मैंने मन ही मन डॉकà¥à¤Ÿà¤° की बात दोहराई।
“तà¥à¤® अपने को धोखा दे रहे हो।” मैं अपने आप से बातचीत करने लगा।,” शराब के मामले में तà¥à¤® निहायत लालची इंसान हो। दूसरे से तीसरे पेग तक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ में तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ देर न लगेगी। धीरे धीरे वही सिलसिला फ़िर शà¥à¤°à¥ हो जायेगा।”
मैंने गिलास में बरà¥à¥ž के दो टà¥à¤•ड़े डाल दिये, जबकि बरà¥à¥ž मदिरा ढालने के बाद डाला करता था। बरà¥à¥ž के टà¥à¤•ड़े देर तक गिलास में पिघलते रहे। बोतल छूने की हिमà¥à¤®à¤¤ नहीं जà¥à¤Ÿà¤¾ पा रहा था। à¤à¥€à¤¤à¤° à¤à¤• वैरागà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤µ उठरहा था। वैरागà¥à¤¯, नि:सारता और दहशत का मिला जà¥à¤²à¤¾ à¤à¤¾à¤µà¥¤ कà¥à¤› वैसा आà¤à¤¾à¤¸ à¤à¥€ हो रहा था जो à¤à¤°à¤ªà¥‡à¤Ÿ खाने के बाद à¤à¥‹à¤œà¤¨ को देख कर होता है। à¤à¤• तृपà¥à¤¤à¤¿ का à¤à¥€ à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ हà¥à¤†à¥¤ कà¥à¤·à¤£ à¤à¤° के लिये लगा कि अब तक जम कर पी चà¥à¤•ा हूठपंजाबी में जिसे छक कर पीना कहते हैं। आज तक कà¤à¥€ तिशना लब न रहा था। आखिर यह पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ कब बà¥à¤à¥‡à¤—ी ? जी à¤à¤° चà¥à¤•ा है, फ़कत à¤à¤• लालच शेष है।
मेरे लिये यह निरà¥à¤£à¤¯ की घड़ी थी। नीचे मेरी बूà¥à¥€ माठथीं,पचासी वरà¥à¤·à¥€à¤¯à¤¾à¥¤ जब से पिता का देहांत हà¥à¤† था, वह मेरे पास थीं। बड़े à¤à¤¾à¤ˆ कैनेडा में थे और बहन इंगà¥à¤²à¥ˆà¤‚ड में। पिता जीवित थे तो वह उनके साथ दो बार कैनेडा हो आईं थीं। à¤à¤• बार तो दोनों ने माईगà¥à¤°à¥‡à¤¶à¤¨ ही कर लिया था, मन ही नहीं लगा तो लौट आये। दो à¤à¤• बरस पहले à¤à¤¾à¤à¥€ à¤à¤¾à¤ˆ तीसरी बार कैनेडा ले जाना चाहते थे, मगर वय को देखकर वीज़ा न मिला।
मेरे नाना की जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· में गहरी दिलचसà¥à¤ªà¥€ थी। माठके जनà¥à¤® लेते ही उनकी कà¥à¤‚डली देखकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯à¤µà¤¾à¤£à¥€ कर दी थी कि बिटिया लंबी उमà¥à¤° पायेगी और किसी तीरà¥à¤¥à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤²à¥€à¤¨ होगी। हालात जब मà¥à¤à¥‡ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— ले आये और माठसाथ रहने लगीं तो अकà¥à¤¸à¤° नाना की बात याद कर मन को धà¥à¤•धà¥à¤•ी होती। पिछले गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ बरसों से माठमेरे साथ थीं। बहà¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨à¥€ थीं और नाज़à¥à¤•मिजाज़। आतà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤°à¥à¤à¤°à¥¤ ज़रा सी बात से रूठजातीं, बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की तरह। मà¥à¤à¤¸à¥‡ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ उनका संवाद ममता से था। मगर सास बहू का रिशà¥à¤¤à¤¾ ही à¤à¤¸à¤¾ होता है कि सब कà¥à¤› सामानà¥à¤¯ होते हà¥à¤¯à¥‡ à¤à¥€ असामानà¥à¤¯ हो जाता है। मैं दोनों के बीच संतà¥à¤²à¤¨ बनाये रखता। माठको कोई बात खल जाती तो तà¥à¤°à¤‚त सामान बांधने लगतीं, यह तय करके कि अब शेष जीवन हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में बितायेंगी। चलने फ़िरने से मजबूर हो गईं तो मेहरी से कहतीं, मेरे लिये कोई कमरा तलाश दो, अलग रहूà¤à¤—ी, यहां कोई मेरी नहीं सà¥à¤¨à¤¤à¤¾à¥¤ अचानक मà¥à¤à¥‡ लगा कि अगर मैं न रहा तो इस उमà¥à¤° में माठकी बहà¥à¤¤ फ़जीहत हो जायेगी। वह जब तक जीं, अपने अंदाज़ से जीं ; अंतिम दिन à¤à¥€ सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ किया और दान पà¥à¤£à¥à¤¯ करती रहीं, यहाठतक कि डॉकà¥à¤Ÿà¤° का अंतिम बिल à¤à¥€ वह चà¥à¤•ा गयीं, यह à¤à¥€ बता गयीं कि उनके अंतिम संसà¥à¤•ार के लिये पैसा कहाठरखा है। मà¥à¤à¥‡ सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ होने की दà¥à¤†à¤à¤ दे गईं और खà¥à¤¦ चल बसीं।
गिलास में बरà¥à¥ž के टà¥à¤•ड़े पिघलकर पानी हो गये थे। मà¥à¤à¥‡ अचानक माठपर बहà¥à¤¤ पà¥à¤¯à¤¾à¤° उमड़ा। मैं गिलास और बोतल का जैसे तिरसà¥à¤•ार करते हà¥à¤¯à¥‡ सीढियाठउतर गया। माठलेटी थीं। वह à¤à¤®.à¤à¤¸.सà¥à¤¬à¥à¤¬à¤²à¤•à¥à¤·à¥à¤®à¥€ के सà¥à¤µà¤° में विषà¥à¤£à¥ सहसà¥à¤°à¥à¤¨à¤¾à¤® का पाठसà¥à¤¨à¤¤à¥‡ सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ सो जातीं। कमरे में बहà¥à¤¤ धीमे सà¥à¤µà¤° में विषà¥à¤£à¥à¤¸à¤¹à¤¸à¥à¤°à¥à¤¨à¤¾à¤® का पाठगूà¤à¤œ रहा था और माठआà¤à¤–ें बंद किये बिसà¥à¤¤à¤° पर लेटी थीं। मैंने उनकी गोद में बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की तरह सिर रख दिया। वह मेरे माथे पर हाथ फ़ेरने लगीं, फ़िर डरते डरते बोलीं, “किसी à¤à¥€ चीज़ की अति बà¥à¤°à¥€ होती है।” मैं माठकी बात समठरहा था कि किस चीज़ की अति बà¥à¤°à¥€ होती है। न उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया न मैंने पूछा। मदà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤¨ तो दूर, मैंने माठके सामने कà¤à¥€ सिगरेट तक न पी थी। किसी ने सच ही कहा है कि माठसे पेट नहीं छिपाया जा सकता। मैं माठकी बात का मरà¥à¤® समठरहा था, मगर समठकर à¤à¥€ शाà¤à¤¤ था। आज तक मैंने किसी को à¤à¥€ अपने जीवन में हसà¥à¤¤à¤•à¥à¤·à¥‡à¤ª करने की छूट नहीं दी थी, मगर माठआज यह छूट ले रही थीं,और मैं शाà¤à¤¤ था। आज मेरा दिमाग सही काम कर रहा था, वरना अब तक मैं à¤à¥œà¤• गया होता। मà¥à¤à¥‡ लग रहा था, माठठीक ही तो कह रहीं हैं। कितने वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से मैं अपने को छलते आ रहा हूà¤à¥¤ माठकी गोद में लेटे लेटे मैं अपने से सवाल जवाब करने लगा, और कितना पियोगे रवीनà¥à¤¦à¥à¤° कालिया? यह रोज़ की मयगà¥à¤¸à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤• तमाशा बन कर रह गई है, इसका कोई अंत नही है। अब तक तà¥à¤® इसे पी रहे थे, अब यह तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ पी रही है।
माठà¤à¤•दम खामोश थीं। वह अतà¥à¤¯à¤‚त सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ से मेरे माथे, मेरे गरà¥à¤® माथे को सहला रही थीं। मà¥à¤à¥‡ लग रहा था जैसे ज़िंदगी मौत को सहला रही है। (कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ)

