
वकà¥à¤¤ की सूई को जरा पीछे की ओर मोड़ा जाà¤, बहà¥à¤®à¤‚जिली फà¥à¤²à¥ˆà¤Ÿà¥à¤¸ के वकà¥à¤¤ से पहले सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° मकानों के वकà¥à¤¤ में, या फिर उससे à¤à¥€ पहले जब मकान अपने दिल में बड़ा सा आंगन बसाठहà¥à¤† करते थे यूठकहे तो आंगन ही मकानों का दिल होते, वे ही धड़कते। आंगन ही सà¥à¤° होते, वे ही सरगम। चाहे कितने कमरे हों, सारा घर आंगन में ही चहचहाया करता आंगन में बरà¥à¤¤à¤¨-कपड़े धà¥à¤²à¤¤à¥‡, आंगन में ही पापड़-बड़ियाठसूखते, आंगन में घर की बहà¥-बेटियाठचूड़ियाठछमकातीं, नई नवेली की पैंजनियाठछनछनातीं। यहीं पर गरà¥à¤®à¥€ की रातों में चारपाइयाठबिछतीं, इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ चारपाइयों में न जाने कितनी कहानियाठजनम लेतीं। सरà¥à¤¦à¥€ की दोपहरी आà¤à¤š à¤à¥€ इसी आंगन में दी जाती। आà¤à¤—न में ही पड़ोसियों से गपà¥à¤ªà¤¬à¤¾à¤œà¥€ होती, बचà¥à¤šà¥‡ खेलते। यही नहीं, हर तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° की पदचाप à¤à¥€ यहीं सà¥à¤¨à¥€ जाती।
अब होली आती तो आंगन में न जाने कब से ही पापड़ बड़ियाठसूखने लगतीं। नई कोरी धोतियों को टेसॠके रंग में रंग कर अबरक छिड़क सà¥à¤–ाया जाता। फिर पनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¹ दिन पहले से गोबर की सिकरियाठतैयार की जातीं…गोल-गोल चपटी बीच में छेद वालीं उन सबको रसà¥à¤¸à¥€ में पà¥à¤°à¥‹ कर मालाà¤à¤ बनाईं जातीं, फिर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ खूब सà¥à¤–ाया जाता। पूरे पनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¹ दिन पहले से ही होली का चौक पà¥à¤°à¤¨à¤¾ शà¥à¤°à¥ हो जाता। होली का चौक कोई à¤à¤¸à¤¾ वैसा तो होता नहीं, बकायदा अबीर गà¥à¤²à¤¾à¤² से पूरा जाता, बड़ी करछà¥à¤² को रख चà¥à¤Ÿà¤•ी से दबा à¤à¤• समान आकृति तैयार होती। हर रोज चौक का आकार बढ़ता जाता यानी कि पहले दिन पाà¤à¤š करछà¥à¤² का चौक, तो दूसरे दिन सात का, फिर नौ का… बस इसी तरह रंगबिरंगा चौक आंगन को घेरता जाता। अंततः इतना बड़ा बन जाता कि मनों लकड़ियों पर होलिका दहन की तैयारी की जा सके। इसी मौके पर तो पूरा कà¥à¤¨à¤¬à¤¾ जà¥à¤Ÿà¤¤à¤¾, इतना बड़ा कि आंगन खिलखिला उठता।
होली का समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ रंगों से तो था पर बड़े मधà¥à¤° रंगों से…दो चार दिन पहले से पकवान बनना शà¥à¤°à¥ हो जाते, गà¥à¤à¤¿à¤¯à¤¾, पापड़, मीठे गà¥à¤¡à¤¼ के सेव, नमकपारे, काà¤à¤œà¥€ के बड़े…न जाने कितनी – कितनी मिठाइयाà¤à¥¤ होली से à¤à¤¨ पहले पीली दपदपाती धोती पहन माईं होली पूजन के लिठखड़ी होतीं तो कितनी सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° लगा करतीं थीं। रंग à¤à¥€ तो टेसॠके ही खेले जाते…टेसॠमें पà¥à¤°à¥€à¤¤ जो होती है। फिर होलिका पूजन होता, पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ जी को आना पड़ता। खास तौर से दहन का कारà¥à¤¯ घर के पà¥à¤°à¥à¤· करते, किंतॠऔरतें होली की परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ करती सà¥à¤¹à¤¾à¤— की à¤à¥€à¤– मांगतीं। होलिका मैयà¥à¤¯à¤¾ से कà¥à¤à¤µà¤¾à¤°à¥€ होलिका कà¥à¤¯à¤¾ पाती होगी सà¥à¤¹à¤¾à¤— दान…लेकिन महिलाओं के दिल में à¤à¤¯ तो à¤à¤° ही जाता, बिनबà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥€ होलिका का शाप न लगे…वे परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ करतीं, जलती आग पर जल छिड़कतीं, मीठे से पूजन करतीं, “हे होलिका मैयà¥à¤¯à¤¾, रकà¥à¤·à¤¾ करना!”
होलिका दहन के बाद गà¥à¤²à¤¾à¤² तो छिड़का जाता किंतॠरंगों की फà¥à¤¹à¤¾à¤° के लिठअगले दिन धà¥à¤²à¤‚डी का इंतजार किया जाता। धà¥à¤²à¤‚डी के दिन आंगन का कà¥à¤¯à¤¾ कहना, कहीं लाल रंग तो कहीं पीला, कही हरा तो कहीं नीला… पूरा आंगन दपदपाने लगता, रंगो का कोलाज आंगन से उतर कर मन में घर बना लेता।
आà¤à¤—न? पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¨ कथाओं के नायक .. परी कथाओं की परियाठ.. बस वैसा ही लà¥à¤ªà¥à¤¤ होता शबà¥à¤¦… आà¤à¤—न…आà¤à¤—न बीते दिनों की बातें बन गया… आà¤à¤—न ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ उसकी गोबरी चमचमाहट पर बिखरीं गोकà¥à¤² की आकृतियाà¤, à¤à¤¾à¤ˆ दूज के à¤à¤¾à¤ˆ बहन की गाथाà¤à¤…बाती दीवट के चावल से मंडे माà¤à¤¡à¤¨à¥‡…होली का अबीर…गà¥à¤²à¤¾à¤² से दमकता चौक… सिकरियाअहोली दहन…और न जाने कà¥à¤¯à¤¾-कà¥à¤¯à¤¾à¥¤ न जाने कà¥à¤¯à¥‹à¤‚, उसके साथ उलà¥à¤²à¤¾à¤¸ à¤à¥€ पथरा गया…रस सीठा हो गया…
माई की मोड़ी न जाने कब बड़ी हो गई। बेटी से बहॠऔर बहॠसे माà¤à¥¤ लमà¥à¤¬à¤¾ सफर है, पर पार हो गया। उसके साथ ही बढ़ती गई उसकी बेटियाठà¤à¥€ बड़ी कोशिश की उसने कि आà¤à¤—न की छटा पूजा की कोठरी में चली आà¤, दीवाली के दीवट, नरक चतà¥à¤°à¥à¤¥à¥€ का दीवला, करवा चौथ की कथा à¤à¥€à¤¤ से उतरी तो छपी तसà¥à¤µà¥€à¤° पर रà¥à¤•ी और वहाठसे à¤à¥€ उतरी तो बस कहानी में ही रह गई। फिर न जाने कैसे बेटियाठकरवा चौथ का इंतजार करने लगीं, गà¥à¤²à¤—à¥à¤²à¥‡-पूरी के लिà¤, दीठकी कथा के लिà¤, दीवाली को सजाने लगीं। पूजा होती घर के सामने छोटी रंगोली में, घी के पाà¤à¤š दीयों में, दीवार पर सजी कतार पर…राखी को सजाने लगी…पापà¥à¤ªà¤¾ की कलाई पर… माठकी चूड़ियों पर…
तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° का रंग बदला, सà¥à¤µà¤¾à¤¦ à¤à¥€…पर महक नहीं। खास तौर पर बेटियों के लिà¤à¥¤ बेटियों की छनकाहट ने मालूम ही नहीं पड़ने दिया कि हर à¤à¤¾à¤µ के रूप रंग कैसे बदलते हैं? पूरे मोहलà¥à¤²à¥‡ में केवल अपने घर में दीठजलते देख आà¤à¤–ें à¤à¤° आती…हर दीवाली की साà¤à¤ को à¤à¤• उदास चिड़िया आ कर कंधे पर बैठजाती। लेकिन बेटियों ने तो यही गंध पाई है बचपन से इसलिठउनकी खिलखिलाहट मà¥à¤°à¤à¤¾à¤¤à¥€ नहीं।
फिर à¤à¥€ यह कोशिश रही कि तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° के दिन किसी न किसी मेहमान को घर पर बà¥à¤²à¤¾ लिया जाà¤à¥¤ थोड़ी सी à¤à¥€à¤¡à¤¼-à¤à¤¾à¤¡à¤¼ रहे, जरा सी रौनक बिखर जाठऔर इस सà¥à¤¦à¥‚र पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ में à¤à¥€ बकायदा होली-दीवाली मनती रही, तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° खिसकते रहे। पचà¥à¤šà¥€à¤¸ बरस बीत गà¤, बड़ी बेटी शादी के बाद ससà¥à¤°à¤¾à¤² चली गई, छोटी इंजीनियरिंग के लिठहोसà¥à¤Ÿà¤² में। अब बचे हैं हम दो… हमारे दो से जà¥à¤¦à¤¾ होने के गम में पिघल-पिघल कर जमते से।
होली आई है… अकेली होली… हम दोनों अकेले हैं। चौबीस-पचà¥à¤šà¥€à¤¸ बरस पहले इस अकेलेपन के लिठकितना तरसते थे दोनों, कितना थक जाते थे गृहसà¥à¤¥à¥€ के à¤à¤¾à¤° से। लेकिन नहीं, यह अकेलापन नहीं। यहाठतो सनà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤¾ गरज-गरज कर बह रहा है। कितना शोर है इस सनà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¥‡ में, कितनी थकावट है इस अकेलेपन में। यà¥à¤µà¤¾à¤“ं के लिठअकेलापन आननà¥à¤¦ है तो पà¥à¤°à¥Œà¤¢à¤¼à¥‹à¤‚ के लिठसंगीत रहित शोक।
गà¥à¤à¤¿à¤¯à¤¾ बनानी है? किसके लिअबचà¥à¤šà¤¿à¤¯à¤¾à¤ तो हैं नहीं…यहाठकोई मेहमान आता नहीं…पड़ोसी à¤à¤¾à¤à¤•ते à¤à¥€ नहीं…महानगरीय संसà¥à¤•ृति वाला नगर है यह, बिना फोन किठकोई किसी के घर नहीं आता। कोई दूसरी मिठाई? किसके लिà¤?
“तà¥à¤® कà¥à¤› मत करो.. बेटियाठतो हैं नहीं जो तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मदद कर देतीं, मैं बाजार से लडà¥à¤¡à¥‚ ले आता हूà¤,” पà¥à¤°à¤¦à¥€à¤ª à¤à¥€ काफी निरà¥à¤²à¤¿à¤ªà¥à¤¤ हैं। आखिर पूजा का हवन तो होना ही है। हाà¤, हवन तो होगा…चौक à¤à¥€ पूरा जाà¤à¤—ा…लेकिन बिलà¥à¤•à¥à¤² à¤à¤¸à¥‡ ही जैसे कोई करà¥à¤® निपटाया जा रहा हो…निरà¥à¤²à¤¿à¤ªà¥à¤¤…निरà¥à¤®à¥‹à¤¹…हो कैसे? आंगन तो पूजा की कोठरी के दरवाजे पर कà¥à¤› फà¥à¤Ÿ जमीन समा गया है। होलिका चार इंच के हवन कà¥à¤‚ड में जल जाà¤à¤—ी।
यहाठहोली मनाता ही कौन है? यहाठतो लोगों का इस “मूरà¥à¤–ता” के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ आकà¥à¤°à¥‹à¤¶ है…इसलिठकाम से छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ à¤à¥€ नहीं। पूजा करनी है तो आफीस से आने के बाद ही ठीक है। शाम को हवन किया, à¤à¤—वान पर चà¥à¤Ÿà¤•ी à¤à¤° गà¥à¤²à¤¾à¤² छिड़का, फिर आ कर टीवी के सामने दोनों बैठगठटीवी के परà¥à¤¦à¥‡ पर चितà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤° जैसा ही कोई पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤®.. रंगों से सराबोर चेहरे.. इधर सोफे पर हम दोनों à¤à¤•दम सूखे… सामने तशà¥à¤¤à¤°à¥€ पर रखे सूखते लडà¥à¤¡à¥‚।
यह à¤à¥€ à¤à¤• होली है… à¤à¥‹à¤ªà¤¾à¤² की होली से अलग…बचà¥à¤šà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की होली से à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨… होली ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚… न जाने कितने तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª खिसक जाते हैं कालनिरà¥à¤£à¤¯ रसोईघर की à¤à¥€à¤¤ पर टंगा-टंगा। सब तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ के नाम कान में बà¥à¤¦à¤¬à¥à¤¦à¤¾à¤¤à¤¾ रहता है.. मन मामा के आà¤à¤—न में उस तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° को मना आता है… बस हो गया बचà¥à¤šà¤¿à¤¯à¤¾à¤ जब पास थी तो पूछा करतीं, “माठकà¥à¤¯à¤¾ होता है गणगौर? नागपंचमी किसे कहते हैं? बसनà¥à¤¤ पंचमी का नाम तो सà¥à¤¨à¤¾ है पर होता कà¥à¤¯à¤¾ है उस दिन?” कैसे बताती…होली, दीवाली, करवा चौथ, à¤à¤¾à¤ˆà¤¦à¥Œà¤œ मनाना सिखा दिया, यही कम है कà¥à¤¯à¤¾? हाà¤, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने परिवेश से à¤à¥€ कà¥à¤› तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° सीखे…ओणम…विषॅऔर कà¥à¤°à¤¿à¤¸à¤®à¤¸à¥¤
उस दिन ओणम के पास बिटिया का खत आया।
“माठओणम मनाया जा रहा होगा न! मà¥à¤à¥‡ पायसम की खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ आ रही है।”
मैं तो à¤à¥‚ल ही गई थी कि मेरी खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ और बचà¥à¤šà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ में अनà¥à¤¤à¤° है लेकिन à¤à¤• बात समान है कि उनके पास à¤à¥€ बचपन की मà¥à¤Ÿà¥à¤ ी à¤à¤° यादें हैं.. जगमगते जà¥à¤—नà¥à¤“ठसी।
सामने मेज पर लडà¥à¤¡à¥‚ सूख रहे हैं…रंग में सराबोर है…हम दोनो नहीं …हमारे मन।

