आ उठ, चल, बाहर जीवन है..
जीवन विषाद नहीं, सà¥à¤– है
है मन का ये à¤à¥à¤°à¤® जो दà¥à¤– है
मधà¥à¤° सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ से हो आलिंगन-बदà¥à¤§
राह में बैठरोता मूरख है।
इक बिजली के कौंधने से ‘गर
डर कर काà¤à¤ª रहा बदन तर
छोड़ सहानà¥à¤à¥‚ति सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पर
आ उठचल बाहर जीवन है।
चला पथरीली पगडंडी पर से
गà¥à¥›à¤° रही कड़ी धूप सर से
डर न इस परीकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¹à¤° से
छाà¤à¤µ लिये पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾à¤°à¤¤ तरà¥à¤µà¤° है।
दà¥à¤µà¤¾à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤° à¤à¤Ÿà¤• रहा रे पागल
नाव छोटी तेरी, विराट सागर
मांगे जो पानी, मिले लवण जल
हाथ मे कà¥à¤‚ड तेरे, मीठा जल है।
निराशा खडी है देख मà¥à¤à¤¹ बाये
घेरने को ततà¥à¤ªà¤° जो हो उपाय
हैं हर तरफ़ अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¥‹à¤‚ के साये
मगर गà¥à¥žà¤¾ के अनà¥à¤¤à¤¿à¤® दà¥à¤µà¤¾à¤° पर किरन है
आ उठ, चल, बाहर जीवन है।
आ उठ, चल, बाहर जीवन है…
– मानोशी चटरà¥à¤œà¥€
आवारा वसंत
अबकी साल
वसंत यों ही आवारा घूमा
मेरी तरहा
कमरे से बगिया तक
बगिया से चौके में
चौके की खिड़की से
चमकीली नदिया तक
पटरी पटरी
दूर बहà¥à¤¤ शिव की बटिया तक
मेरे ही संग ठोकर ठोकर रकà¥à¤¤ रंगे ढाक के पावों
मौसम à¤à¥€ बंजारा घूमा
मेरी तरहा।
पटरी से परà¥à¤µà¤¤ तक
परà¥à¤µà¤¤ से मंदिर में
अषà¥à¤Ÿà¤à¥à¤œà¤¾ घाटी से
संतों की कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ तक
सीढ़ी पर
खà¥à¤¦à¥‡ हà¥à¤ नामों से मन के मिटे हà¥à¤ नामों तक
धà¥à¤†à¤ धà¥à¤†à¤ आà¤à¤–ों आà¤à¤–ों में
हर à¤à¤• पल रतनारा घूमा
मेरी तरहा।
– पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ वरà¥à¤®à¤¨

