
रà¥à¤¦à¥‡ से रंगे दाà¤à¤¤ दंतखोदनी से खà¥à¤°à¤šà¤¤à¥‡ हà¥à¤, उपले थापते हà¥à¤ जब धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤®à¤—à¥à¤¨ हो जाती थी सईदन बी, तो ममतà¥à¤µ, सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ की सà¥à¤°à¤à¤¿ लिठउस गà¥à¤²à¤¦à¤¸à¥à¤¤à¥‡ पर मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ पà¥à¤¯à¤¾à¤° आता। बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ से उसके लगाव का बरसों से साकà¥à¤·à¥€ रहा हूठमैं। यूठलगता है जैसे कल की ही बात हो। सईदन अपने शौहर के साथ हमीरपà¥à¤° आई थी। जमूना किनारे बसे इस नगर में आते ही रम गई थी वह, कामकाजी लोग तो वैसे à¤à¥€ दिलों में जलà¥à¤¦à¥€ पैठबना लिया करते हैं। किसी के यहाठकोई जलसा हो, कोई बीमार हो, बोलने से पहले ही सईदन मदद का हाथ बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ हाज़िर। शौहर à¤à¥€ बड़ा चिकना सा मिला था उसे, सौमà¥à¤¯ और नपातà¥à¤²à¤¾ कहने वाला। जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° इशारों से ही काम चला लिया करता था वो। बà¥à¤ˆà¤—िरी से निबटकर दोपहर घर में निवाला लेने आता तो काम की थकान और बचे काम की चिंता मà¥à¤à¤¹ पर जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ताला ही जड़ देते उसके। चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª वो अंगोछा उतारता तो सईदन लपक कर कà¥à¤à¤ का पानी à¤à¤°à¤¾ लोटा उलट देती उसकी अंजà¥à¤²à¥€ में। पीà¥à¤¾ लगा कर à¤à¤Ÿà¤ªà¤Ÿ खाना परोसती और खà¥à¤¦ पसर जाती बगल में पालथी मार कर। बà¥à¤ˆ के बिसà¥à¤®à¤¿à¤²à¥à¤²à¤¾ करते ही खà¥à¤²à¤¨à¤¾ शà¥à¤°à¥ हो जातीं पिटारे की परतें। दिन तक की तमाम खबरें मियां जी बड़े अचà¥à¤›à¥‡ दिल से सà¥à¤¨à¤¤à¥‡à¥¤ वह कà¤à¥€ तो बस मà¥à¤¸à¥à¤•रा देता और कà¤à¥€ कà¤à¥€ चबाना रोक कर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ देकर सà¥à¤¨à¤¤à¤¾à¥¤ खिड़की के सीखचों से मà¥à¤à¥‡ साफ दिखता था कि बंदा अà¤à¤¿à¤à¥à¤¤ है अपनी बीवी से।
निकाह के दो बरस बाद सईदन के घर खà¥à¤¶à¥€ की ख़बर आयी थी। गाà¤à¤µ वाले à¤à¥€ खूब लाड़ दिखाते उससे। मटके सा पेट लिये सईदन घà¥à¤®à¤¨à¥‡ फिरने से बाज़ नहीं आती। काम से लौटकर शौहर बस चिरौरी ही करता रहता, “अरे बेगम, पल à¤à¤° बैठके सांस à¤à¥€ तो ले लिया कर कà¤à¥€à¥¤ या अलà¥à¤²à¤¾à¤¹, इस औरत के तलà¥à¤µà¥‹à¤‚ में तो जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ चकà¥à¤•े जड़े हैं, अब कैसे समà¤à¤¾à¤¯à¥‡ इसे”, यूठफ़िकà¥à¤° जता कर वो थकाहारा खाट पर निढाल हो जाता और सईदन…वो तो मन ही मन खà¥à¤¶ हो रहती अपने अज़ीज़ बेज़à¥à¤¬à¤¾à¤¨ कबूतर को गà¥à¤Ÿà¤°à¤—ूठकरते देख। सिगड़ी के पास उकड़ूठहोने में उसकी जान निकल जाती पर उस दिन वो खाना और à¤à¥€ दिल से पकाती।
गाà¤à¤µ मे कोई मदरसा नहीं था। जो चंद मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® बचà¥à¤šà¥‡ थे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने ही धर पर पà¥à¤¾ देते थे वहीदà¥à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨ साहब। बड़े ही आज़ाद खà¥à¤¯à¤¾à¤² इंसान थे। जब कà¤à¥€ राह में टकराते तो बी के चà¥à¤¨à¥à¤¨à¥€ से à¥à¤‚के सर पर हथेलियां à¤à¤° दà¥à¤†à¤¯à¥‡à¤‚ रखकर समà¤à¤¾à¤ˆà¤¶ करते, “देख बेटी, तेरे पास तो मौका है। यकीनन तू इसे गंवाना मत। आने वाले बचà¥à¤šà¥‡ को सिरà¥à¤« टोपी लगाकर अजान देने लायक मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ मत बनाये रखना, बलà¥à¤•ि उसे à¤à¤• ज़हीन इंसान à¤à¥€ बनाना, à¤à¤• नफ़ासत पसंद वतनपरसà¥à¤¤ हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€, जो मà¥à¤²à¥à¤• की तरकà¥à¤•ी में हिसà¥à¤¸à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ कर सके।” सईदन को इन à¤à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤°à¤•म लबà¥à¤œà¤¼à¥‹à¤‚ को बड़ी बड़ी आà¤à¤–ों के साथ आतà¥à¤®à¤¸à¤¾à¤¤ करने की कोशिश देखकर मà¥à¤à¥‡ बरबस ही हंसी आ जाती।
बेचारी सईदन, उसे कà¥à¤¯à¤¾ पता था कि आने वाले लमà¥à¤¹à¥‡ अपने दामन में कà¥à¤¯à¤¾ दरà¥à¤¦à¤¨à¤¾à¤• हकीकत समेटे थे। उस दिन सईदन à¤à¤•ाà¤à¤• गश खाकर गिर पड़ी, माथे पर चोट à¤à¥€ आयी। गाà¤à¤µ के हकीम ने बेबसी ज़ाहिर कर दी। बचà¥à¤šà¤¾ मरा ही पैदा हà¥à¤†, तिस पर सईदन फिर कà¤à¥€ ममतà¥à¤µ का आà¤à¥‚षण पहनने के लायक न रही। सईदन पर बहà¥à¤¤ बà¥à¤°à¥€ बीती। कà¥à¤› दिनों तलक तो वह सरफिरों की तरह बोलती रहती, जब तब उसकी आà¤à¤–ें बेतरतीब हो जातीं और होश गà¥à¤² हो जाते। शौहर को बस इसी बात का ढेरों सà¥à¤•ून था कि बेगम बच तो गयी। यह à¤à¥€ समठन पाता नादान कि कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ सईदन घंटों अपने हाथों सिठउस छोटे छोटे कपड़ों को à¤à¤•टक देखती रहती है और कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ अजनà¥à¤®à¥‡ बचà¥à¤šà¥‡ का सोच कà¤à¥€ उलजलूल बकती तो कà¤à¥€ फफक पड़ती है।
समय के गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ ज़खà¥à¤®à¥‹à¤‚ पर à¤à¥€ पैबंद लगे। सईदन थोड़ा संà¤à¤²à¥€ पर उसकी तबियत में वह पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ रौनक फिर कà¤à¥€ न लौट सकी। साहू जी सईदन के पड़ोसी थे, अपने काम से काम रखने वाले, पाà¤à¤š लोगों के परिवार के मà¥à¤–िया। जैसे उनकी तरह के लोग हà¥à¤† करते हैं, साहू जी बस अपने करीबी पड़ोसियों से ही जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ घà¥à¤²à¤¤à¥‡à¤®à¤¿à¤²à¤¤à¥‡ थे, बाकी गाà¤à¤µ में तो बस राम राम पर ही बात खतà¥à¤® हो जाती। जैसे वो सीधे सजà¥à¤œà¤¨ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ उनकी पतà¥à¤¨à¥€ उसकी ठीक उलट। मà¥à¤¹à¤²à¥à¤²à¥‡ की तमाम मंथराओं से उसकी खूब पटती। साहूजी का बेटा गिरीश अà¤à¥€ शाहर में पà¥à¤¤à¤¾ था, बहॠसरला और बेटी लता à¤à¥€ थे कà¥à¤Ÿà¥à¤®à¥à¤¬ में। नई नवेली दà¥à¤²à¥à¤¹à¤¨, जो गाà¤à¤µ की ही पाठशाला में आठवीं में थी, के मोहपाश में बंधा गिरीश अकà¥à¤¸à¤° घर आता रहता था। लता अà¤à¥€ गाà¤à¤µ की ही पाठशाला में आठवीं में थी।
साहूजी सईदन के शौहर से बड़े पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ रहते थे, उसकी मृदà¥à¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤à¤¾ और तमीज़ की पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा करते नही अघाते थे। गिरीश à¤à¥€ उसे पसंद करता था। साहà¥à¤œà¥€ का घर समà¤à¥‹ सईदन का दूसरा ठिकाना था, घंटों रमी रहती वह वहाठऔर साहूआइन उससे काम निकलवाती रहती। à¤à¥‹à¤²à¥€ बी बतियाने की धà¥à¤¨ में न जाने कितनी मजूरी कर जाती वहाà¤à¥¤ जब सरला के पैर à¤à¤¾à¤°à¥€ हà¥à¤ तो सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ खà¥à¤¶à¥€ सईदन को ही हà¥à¤ˆà¥¤ डेॠसाल से सूनी कोख का शà¥à¤°à¤¾à¤ª सहती वह पलों के बोठढोती रही, शà¥à¤°à¤µà¤£ के जनà¥à¤® के इंतजार में। शà¥à¤°à¤µà¤£ के सहारे वह फिर जी उठी। जैसे रेत की परतों में दफन नमी को तरसते किसी बीज को कà¥à¤¹à¤¾à¤° में जिंदगी के चिहà¥à¤¨ दिखें हों, वैसे ही सईदन ने अनजाने ही अपने सूनेपन को इस पराठबचà¥à¤šà¥‡ से दूर करना चाहा। सरला à¤à¤¸à¥€ माठथी जिसे अपने खून को पà¥à¤šà¤•ारते वकà¥à¤¤ à¤à¥€ अपनी बिंदी, साड़ी की सलवटों और जूड़े की बनावट का जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ खà¥à¤¯à¤¾à¤² रहता था। शà¥à¤°à¤µà¤£ अगर पà¥à¤¯à¤¾à¤° से अपनी ननà¥à¤¹à¥€ अंगà¥à¤²à¤¿à¤¯à¤¾à¤ अपनी माठके चेहरे पर फेर देता तो सरला नथ टेड़ी हो जाने के डर से लगà¤à¤— चीख उठती, बचà¥à¤šà¥‡ के गंदे पोथड़े देखते ही उसे उबकाई सी आने लगती। à¤à¤¸à¥‡ में सईदन का उसकी जगह ले लेना कà¥à¤¯à¤¾ हैरत की बात थी। आया की तरह, सईदन शà¥à¤°à¤µà¤¨ की देखà¤à¤¾à¤² में जà¥à¤Ÿà¥€ रहती और सरला सजती, संवरती और खà¥à¤¶ हो रहती। पाठशाला से लौटकर लता बिगड़ती, “माà¤, माà¤..ओफà¥à¤«à¥‹à¤¹! à¤à¤¾à¤à¥€ कहाठहो तà¥à¤®..à¤à¤¾à¤à¥€! अरे कोई है? मà¥à¤à¥‡ à¤à¥‚ख लगी है।” उधर शोर सà¥à¤¨ पड़ोस से शà¥à¤°à¤µà¤£ को गोद में लिठउसकी धरà¥à¤®à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ बाहर आती, “अरी लता! इधर आ पिदà¥à¤¦à¥€, आपा तो मंदिर जाने का कह कर निकली हैं, दो अà¥à¤¾à¤ˆ घंटे पहले। तू इधर ही गà¥à¤¢ चिवà¥à¤¾ खा ले।
“अरे वाह, मेरा छोता à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ यहाठहै” लता शà¥à¤°à¤µà¤£ को पà¥à¤šà¤•ारती फिर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ आने पर सहसा बोल उठती, “देखो à¤à¤¾à¤à¥€ को, कैसे महारानी रोज बरोज तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ बबà¥à¤¬à¥‚ को थमा जाती है। लाट साहब कहीं की। आने दो à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ को, à¤à¤• की चार न लगाई तो मेरा नाम à¤à¥€ लता नही। तà¥à¤® सीधे मना कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नही करती बी, दिन à¤à¤° अपना चूलà¥à¤¹à¤¾â€ चौका à¤à¥€ संà¤à¤¾à¤²à¥‹ और इस छà¥à¤Ÿà¤•ू को लेकर à¤à¥€ खपो।”
“अब चà¥à¤ª à¤à¥€ कर शैतान की आंत।” सईदन चिवड़ा खाती हà¥à¤ˆ लता के सर पर पà¥à¤¯à¤¾à¤° से चपत लगाकर कहती, “बितà¥à¤¤à¥‡ à¤à¤° की लड़की और गज à¤à¤° की जà¥à¤¬à¤¾à¤¨, नाहक शोर मचाती रहती है, लगता है अब तेरा निकाह पà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‡ के दिन आ गà¤!” इधर मन ही मन सईदन विचार करती कि अरे पगली, सरला घूमने ना निकले तो शà¥à¤°à¤µà¤£ को संà¤à¤¾à¤²à¤¨à¥‡ का मौका कैसे नसीब हो और पà¥à¤¯à¤¾à¤° के अतिरेक से विहà¥à¤µà¤² बी शà¥à¤°à¤µà¤£ पर बोसों की बौछार कर देती। सच कहता हूं, मà¥à¤à¥‡ तो लगता था कि यह उधार की कोख नही है। सरवन, जैसे सईदन शà¥à¤°à¤µà¤£ को पà¥à¤•ारती थी, उसका ही बेटा था।
वकà¥à¤¤ परवान चà¥à¤¤à¤¾ गया और शà¥à¤°à¤µà¤£ को यशोदा की तरह चाहती रही सईदन। जब उसका लाड़ला खेलकर, मिटà¥à¤Ÿà¥€â€ धूल से सराबोर होकर आता तो सरला घिन से कहती, “चल दूर हट नालायक! इतनी गंद में ना जाने कहां से लोटकर आ रहा है नीच और अब माठपर बड़ा पà¥à¤¯à¤¾à¤° आ रहा है इसे। मेरे कपड़े गंदे कर दिà¤, गधा कहीं का!” पर जो सईदन पास होती तो à¤à¤Ÿ बचà¥à¤šà¥‡ को गले लगाकर कहती, “मेरा सरवन तो गाà¤à¤µ का गामा उसà¥à¤¤à¤¾à¤¦ है। खूब पटखनी खा आठआप मिटà¥à¤Ÿà¥€ में, चलि॓ठअब बदलिठगंदे कपड़े।” और à¤à¤• पल à¤à¥€ सोचे बगैर उसे गोद मे उठाठबी नलके तक पहà¥à¤à¤š जाती। à¤à¤¸à¥€ बातें और गाà¤à¤µ में चरà¥à¤šà¤¾ का सबब ना बनें? हो ही नही सकता। जब तब मंथरा खबरची की नाई साहूआईन के कान à¤à¤°à¤¤à¥€ पर वह à¤à¥€ कचà¥à¤šà¥€ गोटियाठनही खेली थीं, जब सईदन से इतना काम निकलता हो तो à¤à¤¸à¥€ बतकहियों पर कà¥à¤¯à¤¾ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ देना, यह सोच कर वह मà¥à¤à¤¹ को ताला दिठरखती।
बीते कà¥à¤› सालों में फिज़ा में कà¥à¤› अजीब सा बदलाव महसूस कर रहा था मैं। रिशà¥à¤¤à¥‹à¤‚ में सिकà¥à¥œà¤¨ आ रही थी। पानी जैसे वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• संबंध जमकर बरà¥à¤« जैसे संकà¥à¤šà¤¿à¤¤ होते जा रहे थे। न जाने वह कैसा जहर था जो अमनो‌ चैन की जड़ों में दीमक की तरह पनप रहा था। आदमी और आदमी में शक और नफरत के धूधू जलते दावानल में इंसानियत का नामोनिशान मिटता जा रहा था, जिसके असरात हमीरपà¥à¤° में à¤à¥€ à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ किठजा रहे थे। à¤à¤• रात अफवाह का शैतान तैर आया और खबर फैली की पड़ोसी गाà¤à¤µ में à¤à¤• हिंदू घर तबाह कर डाला गया है। बस फिर कà¥à¤¯à¤¾ था पल à¤à¤° में गाà¤à¤µ के लौंडे इकटà¥à¤ ा हो गà¤à¥¤ उनकी आà¤à¤–ो में उठे तूफान का जायज़ा लेकर मैं सिहर उठा। ये खून वह तो हरà¥à¤—िज़ नहीं था जो उनकी रगों में दौड़ रहा था। (कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ)
कहानी का शेष à¤à¤¾à¤—

