
चपन में गà¥à¤°à¥ जी के डंडे की मार खाने के डर से गणित का पहाड़ा याद करने वाले लोगों को डंडे की महतà¥à¤¤à¤¾ तब उतनी पता नहीं चली होगी, जितनी जिंदगी की जदà¥à¤¦à¥‹à¤œà¤¹à¤¦ के दौरान अब पता चलती है। पर, ये डंडे जरा अदृशà¥à¤¯ क़िसà¥à¤® के होते हैं। अचà¥à¤›à¥‡ अचà¥à¤›à¥‹à¤‚ की हवा निकालने में सकà¥à¤·à¤® होते हैं ये, उनके पैरों तले की ज़मीन खिसका सकते हैं, उनको अपनी औक़ात और नानी तक याद दिला सकते हैं। इन अदृशà¥à¤¯ डंडों में शामिल हो सकते हैं कà¥à¤› इस पà¥à¤°à¤•ार के डंडे – नौकरशाहों के लिठहियरऑरà¥à¤•ी में उनके ऊपर के अफ़सरों का डंडा, नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ का डंडा, सीबीआई का डंडा और किसी जाà¤à¤š कमेटी का डंडा इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿…
दरअसल, ये अदृशà¥à¤¯ डंडे तो पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठसे ही वज़ूद में थे परनà¥à¤¤à¥ उनकी सà¥à¤§ अब तक किसी ने न ली थी। अचानक किसी को किसी ने याद दिलाया कि अरे! उसके पास जो अधिकार रूपी डंडा है, उसमें तो बहà¥à¤¤ शकà¥à¤¤à¤¿ है. बस, फिर कà¥à¤¯à¤¾ था। डंडे की मार चलने लगी। जैसे कि, नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ को चेतना आई कि किसी ख़बर को à¤à¥€ संजà¥à¤žà¤¾à¤¨ लेकर उसे जनहित याचिका माना जाकर उपदà¥à¤°à¤µà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, उतà¥à¤ªà¤¾à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर डंडे बरसाठजा सकते हैं। à¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° में संदिगà¥à¤§ रूप से लिपà¥à¤¤ अफ़सरों, नेताओं, मंतà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को सीबीआई का डंडा जब तब पड़ता रहता है। पर यह जà¥à¤¦à¤¾ बाद होती है डंडे का रà¥à¤–़ किस ओर होता है। उदाहरण के लिà¤, विपकà¥à¤·à¥€ कहते हैं कि सरकार में बैठे लोगों की ओर इसका रà¥à¤–़ कमजोर होता है और विपकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की तरफ़ इसका रूख कठोर होता है। सीबीआई का डंडा पकà¥à¤· विपकà¥à¤· दोनों को ही बचाव का पहाड़ा पढ़ने को मजबूर करती है।
à¤à¤• डंडा होता है चà¥à¤¨à¤¾à¤µ आयà¥à¤•à¥à¤¤ का। राजनीतिक पारà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾à¤ और ख़ासकर बूथ कैपà¥à¤šà¤° करने वाले लोग इसके डंडे से ख़ासे घबराते हैं। यूà¤, कà¥à¤² जमा à¤à¤•ाध पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ लोगों को छोड़ दें तो इस डंडे का आà¤à¤¾à¤° आम जनता मानती है कि वह बिना किसी à¤à¤¯ के वोट तो दे सकती है और उसके घर की बाहरी दीवार किसी अपराधी क़िसà¥à¤® के नेता के दानव सरीखे चेहरे के चà¥à¤¨à¤¾à¤µà¥€ पोसà¥à¤Ÿà¤° से तो पà¥à¤¤ नहीं पाता। चà¥à¤¨à¤¾à¤µ आयोग डंडे के डर (आचार संहिता का उलà¥à¤²à¤‚घन) से पिछली मरà¥à¤¤à¤¬à¤¾ अचà¥à¤›à¥‡-अचà¥à¤›à¥‡ फ़ील गà¥à¤¡ फ़ैकà¥à¤Ÿà¤°à¥‹à¤‚ को सफ़ेद कपड़े से ढंकना पड़ गया था।
डंडा यानी à¤à¤¯ के बारे में कवि का यह à¤à¥€ कहना है – à¤à¤¯ बिन पà¥à¤°à¥€à¤¤ न होत गà¥à¤¸à¤¾à¤ˆà¤‚. यानी डंडे के बगैर पà¥à¤°à¥‡à¤®-पà¥à¤¯à¤¾à¤°-लगाव नहीं हो सकता। ईशà¥à¤µà¤° का पाप-पà¥à¤£à¥à¤¯ का डंडा और पà¥à¤°à¤²à¤¯ पर ईशà¥à¤µà¤° के इंसाफ़ के डंडे का à¤à¤¯ न सिरà¥à¤« आदमी को बहà¥à¤¤ सारे पाप करने से रोकता है, बलà¥à¤•ि उसके मन में ईश पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿ à¤à¥€ बनाठरखता है। डंडे के संदरà¥à¤ में यह पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ अवधारणा अब à¤à¥€ उपयà¥à¤•à¥à¤¤ है। पर, होता यह है कि डंडा सही समय पर नहीं चल पाता या उसके चलने का à¤à¤¾à¤¨ नहीं होता जिससे डंडे का à¤à¤¯ लोगों में कम होता जा रहा है और, आजकल लोग डंडों को खरीदने पर तà¥à¤² गठहैं और कहीं कहीं तो वे सफल à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होते हैं।
अपने डंडे का जोर कà¤à¥€-कà¤à¥€ कोई डंडे बाज बिला वजह दिखलाने लगता है। परंतॠà¤à¤• के डंडे के जोर को दूसरे के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दबाया-सà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¾ जाने की कोशिशें à¤à¥€ तो चलती हैं। विधायिका का डंडा जब ऊà¤à¤š नीच चलता है तो नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ का डंडा चलने लगता है और नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के डंडे में जब जोर और निरंकà¥à¤¶à¤¤à¤¾ नजर आने लगती है तो संसद अपना डंडा चलाती है। जब संसद का à¤à¤• पकà¥à¤·à¥€à¤¯ डंडा चलता है तो फिर तà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ जनता का वोट रूपी डंडा उसके सिर पर पड़ता है। à¤à¤• पà¥à¤°à¤•ार से कहा जा सकता है कि जनता का डंडा ही सबसे बड़ा होता है। पर, सामानà¥à¤¯ तौर पर जनता बहà¥à¤¤ सहनशील होती है और डंडा तà¤à¥€ उठाती है जब उसके सिर पर से पानी ऊपर चलने लगता है।
आप कहेंगे कि मैंने जमाने à¤à¤° के डंडे के बारे में बात कर ली। अपने बारे में बताने में कोई शरà¥à¤® आ रही है? तो à¤à¤‡à¤, शरà¥à¤® की कà¥à¤¯à¤¾ बात? इस बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤‚ड में कोई होगा जो अपनी बीवी के डंडे से न डरे? अगर मà¥à¤à¥‡ अपनी बीवी के डंडे का à¤à¤¯ नहीं होता तो मैं रोज सà¥à¤¬à¤¹ दस बजे से पहले बिसà¥à¤¤à¤° नहीं छोड़ता, सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ में à¤à¤•ाध बार ही नहाने की सोचता, अपनी जà¥à¤°à¤¾à¤¬à¥‡à¤‚ महीने दो महीने में धोता, और रात को à¤à¤• बजे से पहले कà¤à¥€ à¤à¥€ घर नहीं पहà¥à¤à¤šà¤¤à¤¾à¥¤ अब आप à¤à¥€ बता ही दीजिठकि आपके ऊपर किसके डंडे का जोर चलता है?

