
शान की à¤à¤¯à¤¾à¤¨à¤•ता बढ़ गई थी। हालाà¤à¤•ि समय बहà¥à¤¤ नहीं हà¥à¤† था। दिसमà¥à¤¬à¤° की कडा़के की सरà¥à¤¦à¥€ और ऊपर से आज सà¥à¤¬à¤¹ से पानी बरस रहा था। जाड़ा गरम कपड़ों को चीर कर मांस से होता हà¥à¤† हडà¥à¤¡à¥€ तक पहà¥à¤à¤š रहा था। महानगर के पà¥à¤°à¤¦à¥‚षण का गà¥à¤°à¤¾à¤« लगातार बढ़ता जा रहा था और तमाम दिन बारिश होने के बावजूद कोहरे का घनतà¥à¤µ इतना जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ था कि बहà¥à¤¤ पास की वसà¥à¤¤à¥ à¤à¥€ मातà¥à¤° परछाई नज़र आ रही थी।
“सà¥à¤¸à¤¾à¤²à¥‡ को à¤à¥€ आज ही मरना था…और अंतिम कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ à¤à¥€ सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ के बाद…”, पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¨à¥à¤¤ ने खीà¤à¤•र कहा।
“हां यार! देखो à¤à¤²à¤¾ अचà¥à¤›à¤¾ खासा था और अचानक…। ठंड लग गई होगी ससà¥à¤°à¥‡ को…। वैसे à¤à¥€ वह धरती पर बोठही था…। मोकà¥à¤· मिल गया उसे …। लेकिन पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¨à¥à¤¤ à¤à¤¾à¤ˆ आपकी बात सही है कि मरा बहà¥à¤¤ वाहियात समय है।” लडà¥à¤¡à¤¨ ने पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¨à¥à¤¤ की तरफ देखा और फिसà¥à¤¸ से हंस दिया। वह खामोश सा सबकी सà¥à¤¨ रहा था। पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¨à¥à¤¤, लडà¥à¤¡à¤¨, करमकांडी चिरकà¥à¤Ÿ मिसिर, तेजपाल, विषà¥à¤Ÿ …और वह सà¥à¤µà¤¯à¤‚…। à¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤˜à¤¾à¤Ÿ के à¤à¤• टीन शेड के नीचे खड़े थे। à¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤˜à¤¾à¤Ÿ में इस समय à¤à¥€ तीन-चार मà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡ जल रहे थे। ठंड से दांत बजाते मौसम में à¤à¤• चिता ही थी जिसे वे सब घेरे हà¥à¤¯à¥‡ ठंड से बचने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ कर रहे थे। चिता अपने समापन पर थी फिर à¤à¥€ सबको गरम किये थी।
सबसे ताजà¥à¤œà¥à¤¬ की बात यह थी कि चिरकà¥à¤Ÿ मिसिर जैसा करà¥à¤®à¤•ांडी बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ à¤à¥€ ठंड के आगे बेबस सा चिता की आग से अपने को गरमा रहा था। लडà¥à¤¡à¤¨ बोला à¤à¥€ था,”अरे मिसिरजी, पाप ओढ़ रहे हो…। हम लोग तो ठहरे पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ पापी, à¤à¤• पाप और सही…। पर तà¥à¤® चिता से देह छà¥à¤† रहे हो ..। घोर नरक…।”
मिसिरजी खिसियाये से बोले,”ससà¥à¤° ना तपबे तो आज हमरौ नकà¥à¤† संघे मोकà¥à¤· हà¥à¤ˆ जाई।” और सब खिलखिलाकर हंस पड़े।
नकà¥à¤† यानि नकà¥à¤•ू चौधरी। नकà¥à¤•ू मामा। रघà¥à¤µà¥€à¤° चौधरी का à¤à¤•मातà¥à¤° साला। चौधराइन के मायके का à¤à¤• मातà¥à¤° रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥¤
रघà¥à¤µà¥€à¤° चौधरी लेबर कालोनी के दूसरी गली के पहले बà¥à¤²à¤¾à¤• में दो मकानों के मालिक हैं। छह मकानों का बà¥à¤²à¤¾à¤• है। तीन कà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤Ÿà¤° नीचे, तीन ऊपर। चौधरी जी का कà¥à¤µà¤¾à¤Ÿà¤° कोने का है तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बà¥à¤²à¤¾à¤•ों के बीच की जगह à¤à¥€ अपने अधिकार कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में ले रखी है। जहाठà¤à¤• बड़ा सा टिन का छपà¥à¤ªà¤° है और उसमें दो जरà¥à¤¸à¥€ गायें जà¥à¤—ाली करती मिल जायेंगी। शांति नगर लेबर कालोनी। कà¤à¥€ इस महानगर में रहने वाले मजदूरों के लिये बनायी गयी होगी। परनà¥à¤¤à¥ अब ये कà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤Ÿà¤° किसी à¤à¥€ मजदूर की औकात के बाहर की चीज है। आज à¤à¤• कà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤Ÿà¤° की कीमत दस-पंदà¥à¤°à¤¹ लाख है।
रघà¥à¤µà¥€à¤° चौधरी पचास के चपेटे के सिंगल हडà¥à¤¡à¥€ यानि इकहरे बदन के पंचफà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ आदमी हैं। बातों को शहद में डà¥à¤¬à¤¾à¤•र बोलते हैं। सांवले रंग पर आदरà¥à¤¶à¤µà¤¾à¤¦ की ओढ़नी (तमà¥à¤¬à¥‚ कहना जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सही होगा) ताने, देश की दà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¤¾ का रोना रोते कहीं à¤à¥€ मिल जायेंगे। चौधरी साहब सरकारी महकमे में बड़े बाबू थे, बहà¥à¤®à¥à¤–ी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ के धनी, टà¥à¤°à¥‡à¤¡ यूनियन की दà¥à¤•ान à¤à¥€ चलाते थे। विà¤à¤¾à¤— के ठीक-ठाक नेताओं में उनकी गिनती थी। शांति नगर हायर सेकेंडरी बालिका विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के पà¥à¤°à¤¬à¤‚ध समिति में à¤à¥€ उनका दांत धंसा था। संयà¥à¤•à¥à¤¤ मंतà¥à¤°à¥€ सरीखे पद के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ पर कबà¥à¤œà¤¾ करने की रणनीति बनाने में वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ थे। अकà¥à¤¸à¤° इस वितà¥à¤¤ विहीन विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• उनकी जरà¥à¤¸à¥€ गायों की सेवाटहल में दिखाई पड़ते।
लेकिन हमें रघà¥à¤µà¥€à¤° चौधरी के वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ से कà¥à¤› à¤à¥€ लेना देना नहीं है। इस कहानी का पातà¥à¤° तो नकà¥à¤•ू चौधरी हैं। नकà¥à¤•ू चौधरी थे à¤à¥€ और नहीं à¤à¥€…। दरअसल नकà¥à¤•ू चौधरी रघà¥à¤µà¥€à¤° चौधरी के साले थे। रघà¥à¤µà¥€à¤° चौधरी को दहेज में कà¥à¤¯à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ मिला था यह तो आज तारीख में कोई नहीं जानता, परनà¥à¤¤à¥ नकà¥à¤•ू चौधरी जरूर आये थे साथ में। आगे चलकर नकà¥à¤•ू चौधरी, ‘नकà¥à¤•ू मामा’ के नाम से जाने गये।
नकà¥à¤•ू मामा की बहन यानि रघà¥à¤µà¥€à¤° चौधरी की अरà¥à¤§à¤¾à¤‚गिनी चौधरी साहब से तीन इंच लमà¥à¤¬à¥€ ही होंगी। दोहरा बदन, मैदे के माफिक गोरा रंग और तीखे नैन नकà¥à¤¶à¥¤ हर चीज में चौधरी साहब से इकà¥à¤•ीस। पैंतीस-अड़तीस बसंत पार करते-करते चौधराइन ने तीन बेटियों के बाद चौथी सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ के रूप में à¤à¤• बेटा à¤à¥€ पैदा कर ही दिया था। इसके बावजूद उनकी जवानी अà¤à¥€ à¤à¥€ कसी-कसी थी। चौधराइन हमेशा तरोताजा लगती। शायद यही कारण था कि रघà¥à¤µà¥€à¤° चौधरी ने नकà¥à¤•ू मामा जैसा वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ à¤à¥‡à¤² लिया था।
नकà¥à¤•ू मामा विशेषताओं की खान थे। नकà¥à¤•ू मामा अपनी बहन के विपरीत चार फà¥à¤Ÿ से थोड़ा ही जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सांवले रंग के, नाक से बोलने वाले ढेड़ पसलिया मरगिलà¥à¤²à¥‡ से इंसान थे। à¤à¤• पैर में पकà¥à¤·à¤¾à¤˜à¤¾à¤¤ का असर था इसलिये à¤à¤šà¤•कर चलते थे। दाहिना पैर जिस जोश से आगे फेंकते उस हिसाब से वह पड़ता न था। नकà¥à¤•ू मामा की à¤à¤¾à¤·à¤¾ या तो उनकी बहन समà¤à¤¤à¥€à¤‚ थीं या फिर उनकी तीनों à¤à¤¾à¤‚जियां। नकà¥à¤•ू मामा को उनकी बहन और à¤à¤¾à¤‚जियां दिलोजान से चाहतीं थीं लेकिन मà¥à¤¹à¤²à¥à¤²à¥‡ में यही पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ था कि कहने को तो साला है लेकिन हैसियत नौकरों जैसी à¤à¥€ नहीं।
हो सकता है कि चौधरी के पà¥à¤°à¤à¥à¤¤à¥à¤µ से लोगों को ईरà¥à¤·à¥à¤¯à¤¾ हो और वे à¤à¤¸à¥‡ ही बोलते हों। नकà¥à¤•ू मामा सामानà¥à¤¯à¤¤: कोई काम नहीं करते थे। पर बालिका विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• चौधराइन का कृपा पातà¥à¤° बनने के लिये नकà¥à¤•ू मामा की मकà¥à¤–न पालिश करते रहते और नकà¥à¤•ू मामा निरà¥à¤²à¤¿à¤ªà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤µ से अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•ों की सेवा गà¥à¤°à¤¹à¤£ करते रहते जो कि साधारणतया खाने-पीने की चीजों के रूप में होती।
नकà¥à¤•ू मामा को गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ नहीं आता था। आखिर गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ करें à¤à¥€ तो किस पर! ढाई साल का à¤à¤¾à¤‚जा तक तो अपना गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ पर उतारता और à¤à¤¾à¤‚जे के छोटे-छोटे हाथों के हर थपà¥à¤ªà¤¡à¤¼ के साथ नकà¥à¤•ू मामा की खिलखिलाहट तेज हो जाया करती – “मानों न नउर मानों” (मारो न और मारो)।
“कà¥à¤¯à¤¾ सोच रहे हो?” चिरकà¥à¤Ÿ मिसिर ने उसे चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª बैठा देखकर पूछा। वह चौंका, “कà¥à¤› नहीं पंडितजी बस नकà¥à¤•ू मामा के बारे में…। कà¤à¥€ गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ नहीं आता था उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚।”
“बात तो तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ ठीकै है। बस à¤à¤• बार नकà¥à¤•ू मामा नाराज हà¥à¤¯à¥‡ थे। उनका दबा हà¥à¤† सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ जागा था। सही किसà¥à¤¸à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ था यह कहना मà¥à¤¶à¥à¤•िल है।” चिरकà¥à¤Ÿ मिसिर ने पान मसाला की नई पà¥à¤¡à¤¼à¤¿à¤¯à¤¾ फाड़ी और मà¥à¤‚ह में कूड़े की तरह उड़ेल ली। मसाले को मà¥à¤‚ह के अंदर चारों तरफ जीठसे नचाया और फिर गाल के à¤à¤• तरफ दबाकर तृपà¥à¤¤à¤¿ की डकार ली।
“हां तो मैं कह रहा था à¤à¤• दिन हो गये नकà¥à¤•ू मामा नाराज। अब नाराजगी की बात तो थी ही। शांति नगर हायर सेकेंडरी सà¥à¤•ूल बालिका विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में वारà¥à¤·à¤¿à¤• महोतà¥à¤¸à¤µ चल रहा था। कोई वेदांती महाराज आये थे। चार दिन से तीनों समय वेदों पर पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ चल रहा था। वेदानà¥à¤¤à¥€ महाराज के à¤à¥‹à¤œà¤¨ की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ चौधरी साहब के घर पर थी। अब वेदानà¥à¤¤à¥€ महाराज और नकà¥à¤•ू मामा साथ-साथ à¤à¥‹à¤œà¤¨ करते थे। à¤à¤• तरफ महाराजजी घी चपोड़-चपोड़ कर रोटी खीर के साथ सपड़-सपड़ उड़ा रहे थे और बगल में बैठे नकà¥à¤•ू मामा मटà¥à¤ े के लिये à¤à¥€ तरसे मंहगे। ऊ का कहते हैं घर के लरिका खà¥à¤–री चाटें अउर समधियाने के चाटें राब। बस नकà¥à¤•ू मामा के दिल में लग गई बात। वेदानà¥à¤¤à¥€ महाराज को विदाई वाले दिन अकेले à¤à¥‹à¤œà¤¨ करना पड़ा। नकà¥à¤•ू मामा अपना à¤à¤• मातà¥à¤° चीकट सा à¤à¥‹à¤²à¤¾ उठाये और फà¥à¤°à¥à¤° हो गये। अब घर में खोजाई शà¥à¤°à¥‚। विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• उनकी खोज में लगाये गये। à¤à¤• घड़ी रात को आधा किलोमीटर दूर à¤à¤• मंदिर में लेटे मिले। रघवीर चौधरी ने लाख समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ लेकिन नकà¥à¤•ू मामा टस से मस नहीं हà¥à¤¯à¥‡à¥¤ अंत में चौधराइन के आंसू काम आये। चौधराइन जार-जार रोईं और वे बहन के आंसू न à¤à¥‡à¤² पाये। नकà¥à¤•ू मामा लौट आये घर।” चिरकà¥à¤Ÿ मिसिर ने मà¥à¤‚ह में à¤à¤° आये पीक को खाली किया।
तब तक विषà¥à¤Ÿ ने बातों का सूतà¥à¤° अपनी तरफ खींच लिया। “नकà¥à¤•ू मामा की उमà¥à¤° बाइस -तेइस की हो गई थी। अरे à¤à¤¾à¤ˆ चौधरी की बड़ी बेटी हमारी बिटिया की उमर की है। पंदà¥à¤°à¤¹ बरस की। उससे डेढ़ बरस पहले बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ हà¥à¤† था चौधरीजी का और शादी के समय नकà¥à¤•ू मामा थे सात-आठसाल के। यानि नकà¥à¤•ू मामा तेइस से पचीस के बीच रहे होंगें।” विषà¥à¤Ÿ ने à¤à¤• बार सबकी तरफ देखा और किसी को बोलता न पाकर अपनी गणना पर सबकी मौन सà¥à¤µà¥€à¤•ृति मान ली।
“यार देखने में तो वह चौधरी की बड़ी बिटिया के बराबर का ही लगता था”, लडà¥à¤¡à¤¨ ने गला खखारा।
“कà¥à¤¯à¤¾ बात करते हो यार! वह चौधरी की बिटिया का लदà¥à¤¦à¥‚ था। दिन à¤à¤° लादे घूमता था।” विषà¥à¤Ÿ ने सिर हिलाते हà¥à¤¯à¥‡ कहा।
चिता की आग अब मदà¥à¤¦à¤¿à¤® पड़ने लगी थी। ठंड से अंगà¥à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का खून à¤à¤• बारगी जमने लगा था। विषà¥à¤Ÿ ने बिना लाग-लपेट के कहा, “पास में ही ठेका है, चलो मार लिया जाये।”
“राम-राम! शà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤¨ में à¤à¥€ à¤à¥‹à¤—”, मिसिर ने कान पर हाथ रख लिया। “अबे चà¥à¤ª पंडित की दà¥à¤®à¥¤ मà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡ की चिता ताप रहे हो लेकिन सोमरस को à¤à¥‹à¤— की वसà¥à¤¤à¥ बताते हो” विषà¥à¤Ÿ गà¥à¤°à¥à¤°à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤ लडà¥à¤¡à¤¨ à¤à¤¸à¥‡ मामले में हमेशा की तरह कनà¥à¤«à¥à¤¯à¥‚जà¥à¤¡ था। बोला, ” यार, वो देखो सामने वाली चिता में आग ठीक है”। दस पंदà¥à¤°à¤¹ लोग उस चिता के पास खडे़ थे। “यार वहां जाना ठीक नहीं है।” वह अपने को रोक न सका। “वे सà¥à¤•ूल कमेटी के लोग हैं। यहां à¤à¥€ बकवास ही कर रहे होंगे – आदरà¥à¤¶à¤µà¤¾à¤¦ की चासनी में लपेट कर। चलना है तो चलो और मà¥à¤‚ह बंदकर à¤à¥‡à¤²à¥‹ सामाजिक उतà¥à¤¥à¤¾à¤¨ व à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ समाज में निरंतर पतन की वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¨ मालायें।”
तब तक मिसिरजी चिता की आग को à¤à¤• बार टूटे बांस से हिलाडà¥à¤²à¤¾à¤•र काफी हद तक जिंदा कर चà¥à¤•े थे। आग से चिंगारियां à¤à¤¾à¤‚कने लगी थी। अचानक जैसे विषà¥à¤Ÿ को कà¥à¤› याद आया, “यार, चिरकà¥à¤Ÿ, वो नकà¥à¤•ू मामा का पà¥à¤¯à¤¾à¤° मोहबà¥à¤¬à¤¤ वाला किसà¥à¤¸à¤¾ तो सà¥à¤¨à¤¾ दो।”
मिसिरजी खों-खों करके हंस दिये, “नकà¥à¤•ू मामा की उमर जवानी की दहलीज पर खड़ी होकर दहाड़ें मार-मार कर रो रही थी। लेकिन कोई à¤à¤¸à¤¾ नहीं था जो उनकी जवानी के आंसू पोंछता। शà¥à¤à¤šà¤¿à¤‚तक, अà¤à¤¿à¤µà¤¾à¤µà¤•, रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤° सबकà¥à¤› तो मातà¥à¤° उनकी बहन ही थीं। चौधराइन के लिये नकà¥à¤•ू मामा ही à¤à¤• समसà¥à¤¯à¤¾ थे। फिर शादी बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ की सोचना तो बहà¥à¤¤ दूर की बात थी। गांव से कोई रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤° आया था। बैठे-बैठाले बातों की अनौपचारिकता में नकà¥à¤•ू मामा की शादी की बात चला दी। अब नकà¥à¤•ू मामा का काला चेहरा à¤à¤¸à¤¾ गà¥à¤²à¤¾à¤¬à¥€ हà¥à¤† कि पूछो मत। विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के खिलावन सिंह बैठे थे वहीं पर। उनकी घाघ नजरों ने ताड़ लिया की नकà¥à¤•ू मामा इस समय हवा-हवाई हो रहे हैं। फिर कà¥à¤¯à¤¾ था, यदा-कदा जहां कहीं नकà¥à¤•ू मामा टकराते, वह विवाह का पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग छेड़ देते और नकà¥à¤•ू मामा का नकियाना शà¥à¤°à¥‚ हो जाता। कउन साला समठपाता कि वो कà¥à¤¯à¤¾ बोल रहे हैं। बस आंखों व चेहरे के बनते -उà¤à¤°à¤¤à¥‡ à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ को देखकर ही मजा आ जाता।”
घड़ी सात से थोडा़ आगे सरक गई थी। सामने वाली चिता पर खड़े सà¥à¤•ूल कमेटी के लोग दिखाई नहीं दे रहे थे। लगता था कि अंतिम कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ हो गयी थी। उसने सबका धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दिलाया। विषà¥à¤Ÿ मोटी गाली के साथ चल दिया और बाकी सब उसके साथ चल दिये।
नकà¥à¤•ू मामा की चिता तैयार थी। शायद करà¥à¤®à¤•ांड आरà¥à¤¯ समाजी ढंग से होना था। वेद मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ के साथ अंतिम संसà¥à¤•ार शà¥à¤°à¥‚ हो गया। सबको हवन सामगà¥à¤°à¥€ दे दी गई। मिसिर जी उसके कानों में फà¥à¤¸à¤«à¥à¤¸à¤¾à¤¯à¥‡, “अगर कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ करà¥à¤® में पइसा न खरà¥à¤šà¤¨à¤¾ हो तो आरà¥à¤¯ समाजी विधि सबसे उतà¥à¤¤à¤® है…”। मिसिर जी तारीफ कर रहे थे या बà¥à¤°à¤¾à¤ˆ वह समठन सका।
चिता घी, हवन सामगà¥à¤°à¥€ के सहारे धà¥à¤‚धà¥à¤µà¤¾à¤•र सà¥à¤²à¤— उठी और देखते-देखते नकà¥à¤•ू मामा सà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¾ हो गये। वह और उसकी चौकड़ी सीढ़ी से नीचे उतरने लगी। बरसात का चिपचिपापन चारो तरफ फैला था। हां आसमान अब जरूर साफ लग रहा था।
उसके सà¥à¤•ूटर के पीछे विषà¥à¤Ÿ बैठगया, “गà¥à¤°à¥‚ घर चलोगे या …”, वह गंà¤à¥€à¤° था, “ठहाके की तरफ..”। वे दोनों ही खिलखिला दिये।
मन के अंदर अà¤à¥€ à¤à¥€ मरघट वाली उदासी सहमी हà¥à¤ˆ सी बैठी थी। à¤à¤• अजीब से वैरागà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤µ उà¤à¤°à¤¨à¥‡ लगा था। शराब जब दिमाग पर कबà¥à¤œà¤¾ करने लगी तो वैरागà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤µ और तीखा हो गया। वह विषà¥à¤Ÿ की तरफ देखकर बोला, “साला आदमी à¤à¥€ कà¥à¤¯à¤¾ चीज है। à¤à¤¸à¥‡ जीता है जैसे कà¤à¥€ मरना ही नहीं है और फिर à¤à¤¸à¥‡ मर जाता है जैसे कà¤à¥€ जिया ही नहीं था।”
विषà¥à¤Ÿ ने नशे में बोà¤à¤¿à¤² आंखों को कस कर मूंदा। उसने à¤à¥€ आंखें बंद कर लीं। शांति नगर लेबर कालोनी में दूसरी गली के पास वाली पà¥à¤²à¤¿à¤¯à¤¾ पर बैठा वह काला सा लड़का जिसका दाहिना पैर पकà¥à¤·à¤¾à¤˜à¤¾à¤¤ से ठीक से उठनहीं पाता था, जो नाक से असà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ शबà¥à¤¦ उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤¤à¤¾ था और जो कà¥à¤² जमा बाइस-तेइस साल की उमर का होने के बावजूद पूरे मोहलà¥à¤²à¥‡ à¤à¤° का मामा था, अब नहीं दिखेगा!
घर पहà¥à¤‚चा तो दस बज गये थे। à¤à¤• डर था उसके मन में। पतà¥à¤¨à¥€ अà¤à¥€ नहाने के लिये कहेगी। यह सोचते ही वह कांप उठा। जाड़े ने à¤à¥€ कसम खा ली थी इस शहर में रिकारà¥à¤¡ बनाने की। कोहरे में अपना हाथ तक दिखना बंद हो गया था। अब बस यही इचà¥à¤›à¤¾ थी कि पतà¥à¤¨à¥€ अपने करà¥à¤®à¤•ांडों को à¤à¤¿à¤²à¤¾à¤¯à¥‡ बिना गरम बिसà¥à¤¤à¤° में घà¥à¤¸ जाने दे। परनà¥à¤¤à¥ दिन में कम से कम दो बार पूजा करने वाली पतà¥à¤¨à¥€ से यह उमà¥à¤®à¥€à¤¦…। वह कालबेल पर हाथ रखते ही ठंड के मारे कांपने लगा।
दरवाजे के कालबेल पर हाथ रखते ही पतà¥à¤¨à¥€ ने दरवाजा खोल दिया था। गेट खà¥à¤²à¤¨à¥‡ और सà¥à¤•ूटर रखने की आवाज ने उसके आने की सूचना दे दी थी पतà¥à¤¨à¥€ को। “कà¥à¤¯à¤¾ करना है?”, उसने पतà¥à¤¨à¥€ की तरफ देखकर बोलना चाहा। “अरे जलà¥à¤¦à¥€ अंदर आ जाइये नहीं तो कमरा ठंडा हो जायेगा।” पतà¥à¤¨à¥€ की आवाज पर उसे विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ नहीं हà¥à¤†à¥¤
उसने कपड़े उतारे। गाउन पहना और गरम रजाई के अंदर हो गया। पतà¥à¤¨à¥€ अपने घरेलू कामों में लग गई। वह आंखे बंद किये आज दिन à¤à¤° की आपाधापी के बारे में सोच रहा था। चिरकà¥à¤Ÿ मिसिर का चिता की आग को उलट-पà¥à¤²à¤Ÿ कर हाथ व शरीर गरम करना, शà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤¨ में चिता जलने के बाद विषà¥à¤Ÿ के साथ ठेके पर दारू पीना और अब पतà¥à¤¨à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अपने सारे करà¥à¤®à¤•ांड की बात à¤à¥‚लकर अनायास बिना नहाये रजाई में घà¥à¤¸à¤¨à¥‡ की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ दे देना। लगता है कि आज मोकà¥à¤· की दà¥à¤•ान बंद है। वह अपनी सोच पर मà¥à¤¸à¥à¤•रा उठा।

