
बूà¤à¤¦à¥‡à¤‚ मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¾à¤•ाश में विचरण करती हà¥à¤ˆà¤‚ पà¥à¤·à¥à¤ª पाà¤à¤–à¥à¤°à¥€ पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ थीं। पवन ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देखा और पहली बूà¤à¤¦ से निवेदन किया कि वह उसे वारिधि तक पहà¥à¤à¤šà¤¾ सकती है। बूà¤à¤¦ ने कà¥à¤› सोचा और à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ कवि की ये पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ उसे याद आ गईं, वह बोली-
"जैहै बनि बिगरि न वारिधता वारिधि की
बूà¤à¤¦à¤¤à¤¾ विलैहै बूà¤à¤¦ विवस विचारी की…।"
उसने सागर में विलय की अनिचà¥à¤›à¤¾ विनमà¥à¤°à¤¤à¤¾ से पà¥à¤°à¤•ट कर अपने सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨à¥€ होने का बोध करा दिया।
पवन ने दूसरी बूà¤à¤¦ से वही अनà¥à¤°à¥‹à¤§ किया। यह à¤à¥€ कहा कि समà¥à¤¦à¥à¤° ने ही उससे à¤à¤¸à¤¾ करने के लिये कहा है। पवन का अनà¥à¤°à¥‹à¤§ सà¥à¤¨ दूसरी बूà¤à¤¦ का à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ जाग उठा और उसने à¤à¥€ à¤à¤• आधà¥à¤¨à¤¿à¤• कवि की पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का सहारा लेकर अपने मन की बात कह डाली-
"कह देना ! समनà¥à¤¦à¤° से, हम ओस के मोती हैं
दरिया की तरह तà¥à¤à¤¸à¥‡, मिलने नहीं आà¤à¤à¤—ें ।"
पवन बेचारा दूसरी बूà¤à¤¦ का यह उतà¥à¤¤à¤¾à¤° सà¥à¤¨à¤•र हकà¥à¤•ा-बकà¥à¤•ा रह गया।
इस पूरे दासà¥à¤¤à¤¾à¤¨ को à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¥€ में छिपा à¤à¤• जà¥à¤—à¥à¤¨à¥‚ बड़े धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से सà¥à¤¨ रहा था। वह सोचने लगा, "कितनी सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¨à¥€ हैं दोनों बूà¤à¤¦à¥‡à¤‚…मगर समà¥à¤¦à¥à¤° में न मिलने की बात दोनों ने कितने अलग-अलग ढà¤à¤— से कही है। à¤à¤• में विनमà¥à¤°à¤¤à¤¾ है और दूसरी में अहंकार…दोनों सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨à¥€ हैं फिर à¤à¥€ दोनों में इतना अनà¥à¤¤à¤° आखिर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚?…कà¥à¤¯à¤¾ अवसà¥à¤¥à¤¾ का अनà¥à¤¤à¤° है…? परिवेश का अनà¥à¤¤à¤° है…? संसà¥à¤•ृति का अनà¥à¤¤à¤° है…? पीढ़ी अनà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤² है…? या कà¥à¤› और कारण है…?"
जà¥à¤—à¥à¤¨à¥‚ बेचारा देर तक यही सोचता रह गया।

