दानव नाचन पूछते हैं आजकल के बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ मे बचपना कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नज़र नही आता?
जब हमने अपने बचà¥à¤šà¥‡ से पूछा कि तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ बचपन कहां है तो वह बोला, “कà¥à¤¯à¤¾ बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ जैसी बात करते हैं?” मैंने कहा, “मैं सच में पूछ रहा हूं”। वह बोला,”हमारा बचपन तो आपने छीन लिया”। मैं बड़ा नाराज हà¥à¤†,”मज़ाक मत करो! सच बताओ, मà¥à¤à¥‡ लिखना है। तो वह बोला, “आप पता नहीं किस जमाने की बात करते हो? बहà¥à¤¤ दिन हà¥à¤¯à¥‡ नया नियम चालू हà¥à¤¯à¥‡à¥¤ अब बचपन आता है पचपन के बाद। हम लोग अब बहà¥à¤¤ समà¤à¤¦à¤¾à¤° हो गये हैं। बचपन का समय बहà¥à¤¤ कीमती होता है। बहà¥à¤¤ किफायत से खरà¥à¤š किया जाता है यह। जब हम पकà¥à¤•ी तरह समà¤à¤¦à¤¾à¤°, परिपकà¥à¤µ हो जायेंगे तब जमकर à¤à¥‹à¤²à¥€ à¤à¤¾à¤²à¥€ बातें करेंगे। अà¤à¥€ तो आप ही पीछे पड़े रहते हो समà¤à¤¦à¤¾à¤°à¥€ से, सारा दिन पढ़ने लिखने के लिये कहते रहते हो। समय कहां से लायें हम बचपना करने के लिये!”
दरअसल à¤à¥ˆà¤¯à¥‡ बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ का बचपन वाकई हम बड़ों ने चà¥à¤°à¤¾ लिया है। कà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤° जब अपनी कृति गà¥à¤¤à¤¾ है तो उसे नरà¥à¤® माटी दरकार होती है, शैशव सी मृदà¥à¤¤à¤¾ ली हà¥à¤ˆ माटी, जिसे समय की चाक पर फिराते हà¥à¤¯à¥‡ आसà¥à¤¤à¥‡ आसà¥à¤¤à¥‡ मनà¤à¤¾à¤µà¤¨ रूप में गà¥à¤¾ जा सके, जिसे सारा संसार सराहे और मूलà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¨ माने। इसे फिर जीवन की धूप दिखा कर मजबूत बनाया जाता है ताकि बोठसह सके, संघरà¥à¤· कर सके। आजकल के पालक अपनी कृति जलà¥à¤¦à¥€ से जलà¥à¤¦à¥€ तपाना चाहते हैं, à¤à¤¾à¤° सहने की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ बोठलाद देते हैं उन पर। बेचारी माटी बचपने की नमी बहà¥à¤¤ जलà¥à¤¦à¥€ ही खो देती है, असमय और लगातार होती बेहतर बनने की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—िता में। अपने अरमान बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ से पूरा कराने की होड़ में पालक बचपन के दौर से रूबरू ही नहीं होना चाहते, फिर जब बचà¥à¤šà¥‡ सयानेपन की जबां बोलने लगते हैं तो माता पिता पछताते हैं कि जिन कोंपलों को कà¥à¤šà¤² आगे बà¥à¥‡ वे खिलते तो कितना अचà¥à¤›à¤¾ होता!
जीतेनà¥à¤¦à¥à¤° कि वà¥à¤¯à¤¥à¤¾ है, जब साथी कहें बà¥à¤²à¥‰à¤— लिख, दिल कहे कूद जा मैदान में और दिमाग कहे रूक जा तो कà¥à¤¯à¤¾ करना चाहिये?
अरे कà¥à¤¯à¤¾ कहते हो। बà¥à¤²à¥‰à¤—िंग के विचार तो बबà¥à¤† टà¥à¤¯à¥‚ब से निकले पेसà¥à¤Ÿ और बिजली के बिल जैसा है, à¤à¤• बार निकला तो वापसी इंपॉसिबल! वैसे इस बात पर इतानी माथा पचà¥à¤šà¥€ à¤à¥€ कà¥à¤¯à¤¾ करना, खास तौर पर यह जानते हà¥à¤¯à¥‡ कि à¤à¤²à¥‡ चार लाईना लिखना आपको है, à¤à¥‡à¤²à¤¨à¤¾ तो पाठक को है। तो बंधà¥à¤µà¤°, हम तो यही चाहेंगे कि दिल की बातें नज़रअंदाज न की जायें कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि दिमाग की तो वैसे à¤à¥€ आप खास सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ न होंगे, जब कोई सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° लड़की नज़रों के रडार के रेंज में हो और होम मिनिसà¥à¤Ÿà¤°à¥€ हो साथ तब à¤à¥€ दिमाग मना करे है, à¤à¤ˆà¤¯à¥‡ बाज आओ, पर आप सà¥à¤¨à¥‹ हो कà¥à¤¯à¤¾? वैसे à¤à¥€ बà¥à¤²à¥‰à¤—रों की बीवीयाठबà¥à¤²à¥‰à¤— को सौतन मानती हैं तो (अलà¥à¤¤à¤¾à¤« राजा माफ करेंगे) गà¥à¤ªà¤šà¥à¤ª इशà¥à¤• लड़ाने का मज़ा लीजिये, बिना सोचे बà¥à¤²à¥‰à¤— लेखन का मज़ा लीजिये। वैसे अगर वाकई दिमाग की राह पर à¤à¥‚सà¥à¤–लन हो गया हो और सृजनातà¥à¤®à¤•ता के शहर में करà¥à¤«à¥à¤¯à¥‚ लगा हो तो अपनी कॉलेज की पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ नोटबà¥à¤• निकाल कर बेख़ौफ़ दाग दें दरà¥à¤œà¤¨à¥‹ बार मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ को सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¥€ और बीसीयों बार पतà¥à¤°à¤¿à¤•ाओं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लौटाई गयीं अपनी तà¥à¤•ारांत सà¥à¤µà¤°à¤šà¤¿à¤¤ कविताà¤à¤à¥¤ हिनà¥à¤¦à¥€ के बà¥à¤²à¥‰à¤—मंडल में आजकल इनका फैशन à¤à¥€ सर चà¥à¤•र बोल रहा है। हींग लगे न फिटकरी, रंग à¤à¥€ चोखा।
शैल का जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ है कि हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ फिलà¥à¤®à¥‹à¤‚ में इतने गाने कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ होते हैं?
हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ फिलà¥à¤®à¥‹à¤‚ का तो à¤à¤¸à¤¾ है शैल à¤à¤‡à¤¯à¤¾ कि फिलà¥à¤® में कोई कहानी न हो तो à¤à¤• बार काम चल सकता है। पर बिना गाने के कोई फिलà¥à¤® à¤à¤• कदम नहीं चल सकती। कारण बहà¥à¤¤ हैं पर सबसे मà¥à¤–à¥à¤¯ है कि हम लोग हर à¤à¤• हर का खà¥à¤¯à¤¾à¤² रखने की पवितà¥à¤° आदत से नतà¥à¤¥à¥€ रहते हैं। सिनेमा चाहे अंतरिकà¥à¤· की कहानी लेकर बने उसमें हीरो-हीरोइन रखने ही पड़ेंगे। तो à¤à¤• यà¥à¤—ल गीत तो होगा ही। फिर हीरो-हीरोइन हमेशा तो साथ रह नहीं सकते तो à¤à¤• विरह गीत तो गाना ही पड़ेगा हीरो को (याद आ रही है टाइप)। फिर हीरोइन कैसे नहीं याद करेगी हीरो को !वह à¤à¥€ गायेगी (मेरे पिया गये रंगून टाइप का) गाना। फिर जो कहीं कोई तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° पड़ गया तो उसको à¤à¥€ कृतारà¥à¤¥ करना पड़ेगा। कहीं पारिवारिक सिनेमा हà¥à¤† तो पूरा परिवार मिलकर à¤à¤• खà¥à¤¶à¥€ का तथा à¤à¤• गम का गाना तो गायेगा ही। पारà¥à¤Ÿà¥€ अगर कोई हà¥à¤ˆ तो कितनी फीकी लगेगी बिना गाने के! अब à¤à¤—वान को न याद किया तो शायद सिनेमा चौपट हो जाये सो à¤à¤• à¤à¤œà¤¨ à¤à¥€ लाजिमी है।
आजकल तो मलà¥à¤Ÿà¥€à¤¸à¥à¤Ÿà¤¾à¤° फिलà¥à¤®à¥‹à¤‚ को जमाना है। हर सà¥à¤Ÿà¤¾à¤° à¤à¤• यà¥à¤—ल गीत चाहेगा। फिर बहà¥à¤¤ से गाने “बस यूं ही टाइप” के होते हैं। कà¥à¤› नहीं समठमें आया किसी के तो गाना शà¥à¤°à¥ हो गया। जब किसी सीन में लड़ाई-à¤à¤—ड़े की तैयारी जब बहà¥à¤¤ देर तक दिखाई जाती है पर लड़ाई शà¥à¤°à¥ नहीं होती तो मà¥à¤à¥‡ लगता है कि कहीं काम (खेत/दफà¥à¤¤à¤°/सीमा/मैदान) से हारा थका हीरो दोनों पकà¥à¤·à¥‹à¤‚ के बीच में आकर बस गाना गाने ही वाला है जिससे पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ होकर लोग आपस में गले मिलने लगेंगे। इतना सब होने के बावजूद बहà¥à¤¤ लोग “बेगाने” रह जाते हैं। नहीं मिल पाता उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अलग से कोई गाना-साà¤à¥‡ में कोरस गाना पडता है।
तो लबà¥à¤¬à¥‹à¤²à¥à¤†à¤¬ यह कि हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ फिलà¥à¤®à¥‹à¤‚ में हर बात को यथासंà¤à¤µ गाने से घेरने की कोशिश कि जाती है-बिना à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µ के। इस पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ में अगर कà¥à¤› ऊंच-नीच हो जाये तो फिलà¥à¤® का कà¥à¤¯à¤¾ दोष। वैसे à¤à¥€ हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ में शायद अà¤à¥€ à¤à¥€ सिनेमा में घà¥à¤¸à¤¨à¥‡ के पैसे पड़ते हैं। सिनेमा हाल से घर वापस आने का अà¤à¥€ à¤à¥€ कोई टिकट नहीं पड़ता। पानी सर से ऊपर गà¥à¤œà¤°à¤¨à¥‡ पर इस मà¥à¤«à¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ लाठहर कोई बिना à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µ के उठा सकता है।
किसी ने पूछा है कि नेताओं के सà¥à¤µà¤¾à¤—त पोसà¥à¤Ÿà¤° में नाम के आगे “मा.” कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ लिखा रहता है?
जब कà¤à¥€ मा. लिखने की परंपरा शà¥à¤°à¥ हà¥à¤¯à¥€ होगी तो उसका मतलब “माननीय” रहा होगा। अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤, नेताजी मान-समà¥à¤®à¤¾à¤¨ के योगà¥à¤¯ हैं। अब लोग समà¥à¤®à¤¾à¤¨ करें या न करें यह उनकी शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ है। वैसे मा. लिखने के पीछे शायद बचत की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ रही होगी, कि à¤à¤• अकà¥à¤·à¤° लिख के चार का मतलब निकाल लिया। अब जबसे नेताओं के आचरण में समय के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° दूसरे गैर जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ पहलू जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ होंगे तो यह जाकी रही à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ जैसी की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ देते हà¥à¤¯à¥‡ “शà¥à¤²à¥‡à¤·” अलंकार में बदल गया। नेताओं के आचरण के हिसाब से मनचाहा अरà¥à¤¥ तलाश कर सकते हैं लोग। मान लीजिये कि नेताजी का नाम “सेवकराम” (किसी जीवित या मृत नेता से समानता होना सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• है) है । तो मा.सेवकराम के पोसà¥à¤Ÿà¤° के कà¥à¤› मतलब निमà¥à¤¨à¤µà¤¤ हो सकते हैं-
- माननीय सेवकराम
- माटीपà¥à¤¤à¥à¤° सेवकराम
- माबदौलत सेवकराम
- मारिये सेवकराम को
- मान गये सेवकराम
- मानेंगे नहीं सेवकराम
- मारिये (विरोधियों को) – सेवकराम
- मार डालेंगे (ये) सेवकराम (को)
- मारते काहे नहीं – सेवकराम
अब सब कà¥à¤› हमीं बतायेंगे कà¥à¤¯à¤¾ यार! कà¥à¤› आप à¤à¥€ तो जोड़िये अपने उदà¥â€Œà¤—ार!
और जाते जाते…
देवाशीष का सवालः à¤à¥‚ख कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ लगती है?
हे मानव! आम धारणा है कि शरीर à¤à¤• मशीन की तरह काम करता है। इसे चलाने के लिये ऊरà¥à¤œà¤¾ चाहिये। à¤à¥‚ख इसीलिये लगती है ताकि जहां ऊरà¥à¤œà¤¾ खतम हो नयी ऊरà¥à¤œà¤¾ à¤à¥‹à¤œà¤¨ के रूप में दी जाये। à¤à¥‚ख का चलन कैसे शà¥à¤°à¥ हà¥à¤† यह जानने के लिये हमने दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के पहले जोड़े, आदम-हवà¥à¤µà¤¾ से पूछा। पता चला कि कहानी कà¥à¤› दूसरी है।
आदम-हवà¥à¤µà¤¾ आपस में मिलते थे यह तो तीसी ककà¥à¤·à¤¾ का बालक à¤à¥€ जानता होगा। बहरहाल, सूतà¥à¤°à¥‹à¤‚ की खबर है कि वे लटपटा गये थे। कà¥à¤›-कà¥à¤› होने लगा था दोनों को। फिर इलू-इलू à¤à¥€ हà¥à¤†à¥¤ वहां के राजा (या ज़मींदार या मंतà¥à¤°à¥€, अरे कूछ à¤à¥€ मान लो à¤à¤¾à¤ˆ! कहानी मे विधà¥à¤¨ न डालो!) को बड़ा नागवार गà¥à¤œà¤°à¤¾ यह पà¥à¤°à¥‡à¤® संबंध। उसने साजिश करके सेब के पीछे वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ फल लिखवा दिया जिसे आदम चूमता रहता था हवà¥à¤µà¤¾ के इनà¥à¤¤à¤œà¤¾à¤° में, उसके गाल समà¤à¤•र। à¤à¤• दिन कà¥à¤› जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ देर हो गयी। बेकरारी बढ़ गयी आदम की। बोसा लेते लेते, सेब को हकीकत में हवà¥à¤µà¤¾ का गाल समठकर काट लिया फल को। वहां पहले से ही तैनात राजा के लोगों ने उसे “रंगे होठों” पकड़ लिया तथा निकाल बाहर किया दोनों को जनà¥à¤¨à¤¤ से। तब से पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤µà¤¶ काटने तथा खाने की आदतें विकसित हो गयी तथा à¤à¥‚ख का जनà¥à¤® हà¥à¤†à¥¤
इतना तो जानते होगे नादान कि, à¤à¥‚ख à¤à¥€ दो तरह की होती है। à¤à¤• शरीर की जरूरत के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• दूसरी मन की जरूरत के हिसाब से। शरीर की जरूरतें तो पूरी हो जाती हैं, मन की à¤à¥‚ख कà¤à¥€ नहीं पूरी होती। यहीं से सारा लफड़ा होता है। à¤à¤• सचà¥à¤šà¥€ घटना बताता हूं
à¤à¤• आदमी को खूब खाने की आदत थी। सौ, दो सौ रोटी खा जाता à¤à¤• बार में। à¤à¤• सरà¥à¤•स वाले ने उसे अपने यहां रख लिया। टिकट लगाकर उसे दिखाता लोगों को कि देखो à¤à¤¸à¤¾ आदमी जो बिना डकार लिये खाता रहता है। तीन शो करता। सब के सब, हाउसफà¥à¤²! à¤à¤• दिन पेटू महाशय ने कहा, “मेरा हिसाब कर दो। मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ यहां और काम नहीं कर सकता।” मालिक अचकचा गया, पूछा, “कà¥à¤¯à¤¾ बात है? कà¥à¤¯à¤¾ तनà¥à¤–à¥à¤µà¤¾à¤¹ कम है? सà¥à¤– सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ में कमी है? बताओ तो सही!” वह मासूमियत से बोला, “तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ सरà¥à¤µà¤¿à¤¸ कंडीशन हमें फूटी आà¤à¤–ों पसंद नहीं हैं। दिन à¤à¤° मà¥à¤à¤¸à¥‡ काम कराते रहते हो। सबेरे, दोपहर, शाम तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ शो में ही लगा रहता हूं, मà¥à¤à¥‡ अपना बà¥à¤°à¥‡à¤•फासà¥à¤Ÿ, लंच और डिनर करने का तो टाइम ही नहीं मिलता। à¤à¥‚ख के मारे हालत खराब हो जाती है।”
फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ का अवतार ले कर हर महीने à¤à¤¸à¥‡ ही रोचक सवालों के मज़ेदार जवाब देंगे अनूप शà¥à¤•à¥à¤²à¤¾à¥¤ उनका अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ हिनà¥à¤¦à¥€ चिटà¥à¤ ा “फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾” अगर आपने नहीं पà¥à¤¾ तो आज ही उसका रससà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¨ करें। आप अपने सवाल उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ anupkidak à¤à¤Ÿ gmail डॉट कॉम पर सीधे à¤à¥‡à¤œ सकते हैं, विपतà¥à¤° à¤à¥‡à¤œà¤¤à¥‡ समय धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दें कि subject में “पूछिये फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ से” लिखा हो। इस सà¥à¤¤à¤‚ठपर अपनी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ संपादक को à¤à¥‡à¤œà¤¨à¥‡ का पता है patrikaa à¤à¤Ÿ gmail डॉट कॉम

