तरà¥à¤£ पूछते हैं कि रात के बाद सबेरा होता है या सबेरे के पहले रात?
यार, पहला सवाल पूछा वो à¤à¥€ निठलà¥à¤²à¤¾! यह तो मà¥à¤°à¥à¤—ी पहले या अंडे वाली बात हà¥à¤ˆà¥¤ à¤à¤• घर में à¤à¤• मेहमान कà¥à¤› जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ दिन टिक गया। घर के बचà¥à¤šà¥‡ ने कहा, “अंकलजी,आप इतने अचà¥à¤›à¥‡ हैं। कà¥à¤¯à¤¾ आप फिर नहीं आयेंगे?” मेहमान बोला, “कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं आयेंगे बेटा? जरूर आयेंगे। तà¥à¤® à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ सोचते हो कि मैं नहीं आऊंगा।” बचà¥à¤šà¤¾ बोला, “आप आयेंगे तो तब जब आप जायेंगे”। तो यही हाल रात-सबेरे का है। à¤à¤• का आना दूसरे के जाने से जà¥à¤¡à¤¼à¤¾ है। आप किसको पहले देखना चाहते हैं यह आप पर है। वैसे मैं तो यही मानता हूं कि हर रात के बाद सबेरा आता है। किसी à¤à¥€ सबेरे तक पहà¥à¤‚च कर रात के बारे में सोचना समय बरबाद करना है।

जितेनà¥à¤¦à¥à¤° पूछते हैं आजकल हसीनों में शरà¥à¤®à¥‹à¤¹à¤¯à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं है? वो शरमाना, वो लजाना कहाठगायब हो गया है?
किन हसीनाओं से मिल रहे हो आजकल मियाà¤? कà¥à¤¯à¤¾ वे तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ कहने पर à¤à¥€ बà¥à¤²à¤¾à¤— लिखने को तैयार नहीं हैं जो तà¥à¤®à¤•ो वे बेशरà¥à¤®, बेहया लग रही हैं? वैसे हर ज़माने में खूबसूरती और इज़हारे मà¥à¤¹à¤¬à¥à¤¬à¤¤ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ अलग होते है। आज के ‘डेटिंग’ के जमाने में तà¥à¤® शरà¥à¤® खोज रहे हो। बड़े बेशरà¥à¤® हो! यह तो कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ ही है कि ‘फà¥à¤²à¤¡à¤²à¤¾à¤‡à¤Ÿ’ के जमाने में लालटेन की या ‘लेटेसà¥à¤Ÿ’ लैपटाप में 5.25″ की फà¥à¤²à¤¾à¤ªà¥€ डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µ खोजी जाये या इस ‘नेटयà¥à¤—’ में संदेशों के लिये कबूतरों का इंतजार किया जाये। याद है, पहले कà¤à¥€ किसी की तिरछी नजर जिदगी à¤à¤° कà¥à¤› यूठधंसी रहती थी-
तिरछी नजर का तीर है मà¥à¤¶à¥à¤•िल से निकलेगा,
गर दिल से निकलेगा तो दिल के साथ निकलेगा।
अब जमाना बदल रहा है। महिलायें अब नैन à¤à¥à¤•ा के नहीं, मिला के बात करने लगी हैं। मामला बराबरी का है। à¤à¤¸à¥‡ में लजाने, शरà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥‡, हाय दैया कहकर लाल हो जाने वाली हसीनाओं की खोज करना समय चकà¥à¤° को पीछे करना है। फिर à¤à¥€ अगर हà¥à¤¡à¤¼à¤• रहा हो जी किसी नाज-नखरे, शरà¥à¤®à¥‹-हया से लथपथ हसीना से दीदार का, तो हिंदी फिलà¥à¤®à¥‹à¤‚ के हीरो की तरह चले जाओ किसी सà¥à¤¦à¥‚र गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ अंचल में छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ बिताने। शायद मिल जायें। पर पतà¥à¤¨à¥€ से पूछ लेना। कहीं à¤à¤¸à¤¾ न हो कि बाथरूम की जगह पूरा घर साफ करना पड़ जाये, हर रोज़।
देवाशीष का सवाल है, पूजा के समय à¤à¤—वान को पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ व à¤à¥‹à¤— चढ़ाया जाता है, यह जानते हà¥à¤¯à¥‡ à¤à¥€ कि अंतत: खाना इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ को ही है। आखिर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚?
à¤à¤‡à¤¯à¥ˆ, इस बारे में हमने नारदजी से बात की। सवाला कि कितना पहà¥à¤‚चता है पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ à¤à¤—वान के पास? वे बोले, “जितना चढ़ता है उसका यही कोई 15%”। हमारा कौतूहल बà¥à¤¾, पूछ बैठे, “बाकी कहां जाता है?” वे सकà¥à¤šà¤¾à¤•र बोले, “बिचौलिये खा जाते हैं”। हमें बड़ी चिंता हà¥à¤ˆà¥¤ सोचा कि à¤à¤—वान à¤à¥€ कà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤¾à¤°à¤¤ की आम जनता हो गये हैं, जिनके लिये चले पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ का कà¥à¤› अंश ही उन तक पहà¥à¤‚च पाता है, शेष बीच वाले खा जाते हैं। लोगों का यह जानते हà¥à¤¯à¥‡ à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ चà¥à¤¾à¤¨à¤¾, कि खाना उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ को है कà¥à¤› इसी तरह है जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ जनता के कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ के नाम पर नेता-अधिकारी à¤à¤¸à¥€ योजनायें बनाते हैं जिनसे अंतत: सà¥à¤µâ€-कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ ही हो।
यह लोककथा पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ है कि सà¥à¤¦à¤¾à¤®à¤¾ के चावल खाकर कृषà¥à¤£ ने उनको मालामाल कर दिया। हरिशंकर परसाई जी ने “सà¥à¤¦à¤¾à¤®à¤¾ के चावल” में बताया है कि असल में सारा चावल तो दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤ªà¤¾à¤² नोच-खसोट कर खा गये थे। कृषà¥à¤£ के पास सà¥à¤¦à¤¾à¤®à¤¾ खाली हाथ पहà¥à¤‚चे थे। पूरा वाकया सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ पर कृषà¥à¤£ ने इस सच को छà¥à¤ªà¤¾à¤¨à¥‡ के लिये सà¥à¤¦à¤¾à¤®à¤¾ को मालामाल किया था कि सà¥à¤¦à¤¾à¤®à¤¾ उनके दरबार में लूट लिये गये। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा था, “तà¥à¤® नवें आदमी हो जो अपने को सà¥à¤¦à¤¾à¤®à¤¾ बताकर आया है। मैं नहीं जानता कि तà¥à¤® कौन हो? पर यह धन मैं इस अनà¥à¤°à¥‹à¤§ के साथ दे रहा हूं कि मेरे दरबार में जो धांधली फैली है वह बाहर मत कहना। यह à¤à¤• मितà¥à¤° को मेरा उपहार नहीं है। सच को दबाने का सौदा है यह।” बाद में सौदा पट जाने पर “दो मà¥à¤Ÿà¥â€Œà¤ ी चावल- दो लोक” वाली कहानी फैला दी गयी।
वैसे माहाराज, अपने से ताकतवर को पूजने का पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ समय से ही रिवाज रहा है। मानव पहले पà¥à¤°à¤•ृति से रहसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से अनजान था तो शà¥à¤°à¥ में अगà¥à¤¨à¤¿, वायà¥, जल आदि को पूजता रहा। पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ चढ़ाता रहा। ये देवता हमारे बीच के थे। पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ सीधे पहà¥à¤‚च जाता रहा। बाद में मानव की जरूरतें बढ़ीं तो देवता ‘इमà¥à¤ªà¥‹à¤°à¥à¤Ÿ’ किये गये। अवतरित हà¥à¤¯à¥‡ पापनाश के लिये – दà¥à¤·à¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ के संहार के लिये। पूजा-पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ का तरीका वही रहा। सच बात तो यह है कि कहीं कà¥à¤› नहीं पहà¥à¤‚चता। यह तो हमारी रूढ़ सोच है कि यहां के चढ़ाया पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ किसी à¤à¤—वान तक पहà¥à¤‚चता है। यह हमारी आसà¥à¤¥à¤¾ है जिसकी तà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ से हमें संतोष मिलता है। अगर à¤à¤—वान कहीं हैं और पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के पैमाने से à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को सà¥à¤– आवंटित करते हैं तो उनमें और घूस लेकर काम करने वाले अफसर में कà¥à¤¯à¤¾ अंतर है? हालांकि घनघोर आसà¥à¤¤à¤¿à¤• à¤à¥€ मानते कहते हैं कि मà¥à¤–à¥à¤¯ चीज है à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¥¤ कà¥à¤› लोग पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में à¤à¤—वान की सतà¥à¤¤à¤¾ मानते हैं तथा कहते हैं-
जाहिद शराब पीने दे मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ में बैठकर,
या फिर वो जगह बता जहां खà¥à¤¦à¤¾ न हो।
जितेनà¥à¤¦à¥à¤° का à¤à¤• और सवाल: लोग कहते हैं कà¤à¥€ किसी को मà¥à¤•मà¥à¤®à¤² जहां नहीं मिलता। आपका जहां कितना मà¥à¤•मà¥à¤®à¤² है?
यार जीतेनà¥à¤¦à¤°, पूरा जहां तो अपन ने देखा नहीं अà¤à¥€ तक, पर यह जानते हैं कि हमें पलà¥à¤²à¤µà¤¿à¤¤ करने के लिये अपनी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं को सà¥à¤¥à¤—ित करने वाले मां-बाप-à¤à¤¾à¤ˆ मिले, हमको अपना मानसपà¥à¤¤à¥à¤° मानने वाले तथा अपने को दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में किसी से à¤à¥€ हीन न समà¤à¤¨à¥‡ का उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ व आतà¥à¤®à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ à¤à¤°à¤¨à¥‡ वाले गà¥à¤°à¥ मिले, अपने से à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ अपना समà¤à¤¨à¥‡ वाले दोसà¥à¤¤ मिले, सारे मतà¤à¥‡à¤¦ और विसंगतियों को अनदेखा करके चाहने वाली पतिगरà¥à¤µà¤¿à¤¤à¤¾ पतà¥à¤¨à¥€ मिली, बेहद पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡-बेà¤à¤¬ बचà¥à¤šà¥‡ मिले, लगà¤à¤— अपनी शरà¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर काम करने लायक परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ मिलीं और अब तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ जैसे सिरफिरे सवाल पूछने वाले दोसà¥à¤¤ मिले। लोग ‘बिग बैंग’ थà¥à¤¯à¥‹à¤°à¥€ के आधार पर कहते हैं कि बà¥à¤°à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤‚ड पà¥à¤°à¤•ाश की गति से फैल रहा है। जब कà¤à¥€ यह पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° रà¥à¤•ेगा ऊरà¥à¤œà¤¾ के चà¥à¤•ने पर तो बà¥à¤°à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤‚ड सोचेगा, यार काश मैं फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ के जहां जितना मà¥à¤•मà¥à¤®à¤² हो पाता। हमारी बात ही शायद कृषà¥à¤£ बिहारी ‘नूर’ ने अपने शेर में कही है-
मैं कतरा सही, मेरा अलग वजूद तो है,
हà¥à¤† करे जो समंदर मेरी तलाश में है।

घर, दफà¥à¤¤à¤°, सड़क हर जगह मà¥à¤¸à¥€à¤¬à¤¤à¥‡à¤‚ आतीं हैं, सेंकड़ों सवाल उठखड़े हो जाते हैं। अब सर खà¥à¤œà¤²à¤¾à¤¤à¥‡ खà¥à¤œà¤²à¤¾à¤¤à¥‡ हमारे रडार पर à¤à¤• महारथी की काया दिखी तो उमà¥à¤®à¥€à¤¦ कि किरणें जाग उठीं। अब कोई पपà¥à¤ªà¥‚ फेल न होगा। (पà¥à¤°à¤à¥, अब तक कहाठथे आप?) à¤à¤•à¥à¤¤à¤—ण! पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ चाहे किसी à¤à¥€ विषय पर हों, साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• हों या हों जीवन के फलसफे पर, सरल हो या कà¥à¤²à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ, नॉटी हो या शिषà¥à¤Ÿ, विषय बादी हों या मवादी, कौमारà¥à¤¯ हो या शादी, पूछ डालिये बेà¤à¤¿à¤à¤•। सारे जवाब यहाठदिये जायेंगे, फà¥à¤°à¤¸à¤¤ से। ससूरा गूगलवा à¤à¤²à¤¾ अब किस काम का, पूछिये फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ से!