Webaroo

क अनुमान के अनुसार इंटरनेट पर 20 अरब जालपृष्ठ हैं जिनका कुल सम्मिलित आकार लगभग 10 लाख जी.बी. है। इसे खंगालना आसान नहीं और सर्च इंजन, निर्देशिकायें और न जाने किन किन और माध्यमों से हम इसकी थाह पाने में जुटे रहते हैं। जाहिर है कि यह खोज आनलाईन रहकर ही करना संभव है।

वेबारू एक विंडोज़ एप्लीकेशन है जो आपको किसी भी वेब ब्राउजर पर ऑफलाइन खोज तथा ब्राउज़ करने की सुविधा देता है।

ताज़ातरीन इंटरनेट स्टार्टअप वेबारू ने एक ऐसा अनोखा मुफ्त उत्पाद प्रस्तुत किया है जो विशिष्ट अल्गोरिद्म यानि समीकरण का प्रयोग कर इस 10 लाख गीगाबाइट डाटा को महज़ 40 गीगाबाइट में कंप्रेस यानि संपीडित कर विषयवार टुकड़ों में विविध वेब पैकों की रचना करता है जिन्हें पर्सनल कम्प्यूटरों के हार्डडिस्क, पीडीए और स्मार्टफ़ोनों में संचित करना संभव होगा। इन वेब पैकों में संपीडित जानकारी में से इंटरनेट की तमाम सामग्री तीव्र गति से, ऑफलाइन रहते हुए ढूंढी जा सकती है। समय-समय पर इस डाटा को अपडेट यानि अद्यतित भी किया जा सकता है। वेबारू की इन वेब पैकों को विविध मीडिया, जैसे कि सीडी रॉम, मेमोरी स्टिक, बाहरी हार्डडिस्क इत्यादि के जरिए भी वितरित किए जाने की योजनाएँ हैं।

अनंत सीमाओं के भारतीय नेटप्रेन्योर राकेश माथुर

वेबारू की स्थापना की है सफल एंटरप्रेन्योर तथा प्रोग्रामर राकेश माथुर ने, जिनके पहले के तीन स्टार्टअप भी काफी सफल रहे थे। कई वर्ष पूर्व “जंगली कॉर्प” (जिसे बाद में अमेज़ॉन ने खरीदा) की सफलता के दौरान कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सी.ई.ओ.) राकेश ने एक मार्केटिंग स्टंट में स्त्रियों वाली पोशाक पहन कर बहुत ध्यान आकर्षित किया। इसे “सफलता हेतु क्रॉस-ड्रेसिंग” का नाम दिया गया, और 1998 के बेहतरीन जनसंपर्क अभियान के रूप में पहचाना गया।

राकेश माथुर: क्रॉसड्रेसिंग फ़ॉर सक्सेसनिरंतर ने राकेश से पूछा कि “क्रॉसड्रेसिंग फ़ॉर सक्सेस” अभियान का विचार उन्हें कैसे आया तो राकेश का कहना था, “अगर नतीजों के साथ जीने को तैयार हों तो एन्टरप्रेन्योर्स को सफलता प्राप्ति के लिये हर संभव काम करने को तैयार रहना होगा ही। इस स्टंट के जरिए जंगली को काफी शोहरत मिली और देखिये मुझे 8 सालों बाद भी क्रासड्रेसिंग के बारे में पूछा जा रहा है! मैंने उस परिधान को जंगली कम्पेरिज़न शॉपिंग इंजिन का इस्तेमाल कर तकरीबन $150 डालर में खरीदा था और उससे पब्लिक रिलेशन का अब तक का सर्वश्रेष्ठ परिणाम मिला।” वाकई एक ड्रेस से कार्पोरेट सफलता का यह एक विशिष्ट उदाहरण होगा!

और एक भारतीय नेटप्रेन्योर होना क्या मायने रखता है राकेश के लिये? उनका जवाब था, “इंटरनेट एंटरप्रेन्योर्स अब हर क्षेत्र में दिखाई देते हैं, और यह वैश्विक परिदृश्य से अपेक्षित भी है। मैं भारत में वेबारू का विकास करते हुये रोमांचित हूँ। यदि एस्तोनिया एक स्काईप बना सकता है तो…भारत की सीमाएँ वास्तव में अनंत हैं।” हम भी सहमत हैं राकेश!

वेबारू दरअसल एक तरह का विंडोज़ एप्लीकेशन यानि अनुप्रयोग है जो आपको किसी भी वेब ब्राउजर पर ऑफलाइन खोज तथा ब्राउज़ करने की सुविधा देता है। परंतु यह सुविधा आपको या तो विशेष तौर पर तैयार किए गए वेब पैक के जरिए (जिसे कम्प्यूटर हार्डडिस्क पर पहले से भंडारित किया जाता है) या निर्दिष्ट जाल स्थलों के वेबारू द्वारा पहले से डाउनलोड किए हुए व आपके कम्प्यूटर के हार्डडिस्क पर भंडारित किए गए पृष्ठों में ही मिलती है।

वेबारू अनुप्रयोग का बीटा संस्करण तकरीबन 5 मे.बा. का डाउनलोड है। इसके विविध विषयों पर केंद्रित सैकड़ों मेगाबाइट के वेब पैकों को पृथक रूप से डाउनलोड करना होगा, जैसे कि स्वास्थ्य संबंधी वेब पैक 186 मे.बा. का है, विकिपीडिया का समग्र डाटा 8 जी.बी. वेब पैक में समाया हुआ है और मुम्बई का वेब पैक 26 मे.बा. का है। यह एक मुफ्त उत्पाद है, तो कमाई का ज़रिया बनेंगे सन्दर्भ आधारित यानि कंटेस्टचुअल विज्ञापन होंगे जो ढूंढे गए तथा ब्राउज़ किए गए पृष्ठों में अंतर्निहित होंगे। वेबारू को बनाने वाली अभियांत्रिकी टोली में अधिकांशतः भारतीय हैं।

लेखक ने पाया कि मुम्बई वेब पैक प्रयोग करने पर मुम्बई शहर से संबंधित तमाम चित्रमय जानकारियाँ ऑफलाइन ही उपलब्ध हो जाती हैं। हाँ, बहुत सी अतिरिक्त जानकारियाँ उपलब्ध नहीं हो पातीं पर उनके लिए वेबारू आपको ऑनलाइन ढूंढने का विकल्प प्रदान करता है। अभिव्यक्ति तथा छींटें और बौछारें की सामग्रियों को वेबारू के जरिए ऑफलाइन डाउनलोड कर सामग्रियों की खोज करने की कोशिश की गई तो यह औजार जाल कड़ियों के सिर्फ एक कड़ी भीतर तक जाकर ही सामग्रियों को डाउनलोड कर सका। लिहाजा दोनों ही जाल स्थलों में प्रारंभ के 70-80 पृष्ठ ही डाउनलोड हो पाए। इस लिहाज से यह निर्दिष्ट जाल स्थलों की सामग्रियों को ऑफलाइन ढूंढने में प्रायः असमर्थ ही रहा। वेबारू अगर किसी जालस्थल का संपूर्ण वेब पैक तैयार करे तो संभवतः उसमें ऐसी समस्या न आए। इसी तरह, उपयोक्ता द्वारा स्वयं का या सामाजिक वेब पैक तैयार करने का विकल्प भी नहीं है। वेबारू ने निरंतर को बताया कि ऐसी मांग पहले भी आई है और वे इस पर विचार कर रहे हैं। सामग्री से जुड़े कॉपीराईट के मसले भी जुड़े हैं और यह स्पष्ट नहीं कि वेबारू ऐसी सामग्री कैसे पेश कर पायेगा।

ऑफ़लाइन ब्राउजर की कल्पना ब्राउज़रों के इतिहास के साथ से ही चली आ रही है। वेबारू इसे नए ढंग से परोसने की कोशिश कर रहा है। वेबारू के दल से बातचीत के बार निरंतर ने यह पाया कि उनका मुख्य ध्यान मोबाईल उपभोक्ताओं पर है और भारत जैसे देशों में, जहाँ अच्छी कनेक्टीविटी के अभाव के कारण उत्पाद चल तो सकता है पर बैंडविड्ट्थ भी बड़ी समस्या है, वे शायद छोटे वेब पैकों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

जो भी हो, यदि वेबारू के जरिए आपके पास सिर्फ एक डीवीडी में विकिपीडिया की संपूर्ण सामग्री उपलब्ध हो जाए, या फिर एक सीडी में संपूर्ण अभिव्यक्ति की सामग्री उपलब्ध हो जाए, तो आपको बिना ऑनलाइन हुए इंटरनेट की सामग्री का इस्तेमाल लायक भंडार प्राप्त तो हो ही जाता है। सौदा बुरा नहीं है!

सर्च अनप्लग्ड

वेबारू का नारा है “सर्च अनप्लग्ड”, यानी खोज बेलगाम। वेबारू से जुड़े कुछ प्रश्नों के उत्तर पाने के लिये निरंतर ने वेबारू की टीम से संपर्क किया। प्रस्तुत हैं साक्षात्कार के कुछ महत्वपूर्ण अंश।

आजकल हम इंटरनेट की बढ़ती पहुँच की बात करते हैं। फिर आप की कंपनी ने ऐसे उत्पाद के बारे में कैसे सोचा जो एक तरफ तो इंटरनेट के घटिया कनेक्शनों से त्रस्त लोगों के लिए बना है, और दूसरी तरफ वेब पैकेट डाउनलोड करने के लिए बढिया बैंडविड्ट्थ की भी उम्मीद रखता है?

इन दोनों निष्कर्षों में कोई विरोधाभास नहीं है कि इंटरनेट का बेतार संपर्क (वायरलैस कनेक्टीविटी), आम तौर पर बेकार होता है, और तारयुक्त संपर्क (वायर्ड कनेक्टीविटी), आम तौर पर बढ़िया। विस्तार से कहें तो, बेतार नेटवर्क न तो सर्व-व्याप्त हैं (कवरेज बहुत सीमित है), न तेज ( 3G भी वेब-खोज के लिए धीमा है) और न ही सस्ता (उदाहरणतः EVDO महीने के अस्सी डॉलर लेता है), और फिलहाल इस में सुधार होने की भी उम्मीद नहीं है। वेबारू का लक्ष्य है मोबाइल यन्त्रों तक वैसा ही बढ़िया वेब अनुभव पहुँचाने की, जिस के हम तारयुक्त यन्त्रों पर आदी हो चुके हैं। इसी तरह के यन्त्रों में आइ-पॉड भी है, जो इंटरनेट से सामग्री कैश यानि इकट्ठा कर बाद में उसे प्रयोग करता है — साफ तौर पर लोग इस तरह की प्रणाली को पसंद करते हैं।

प्रतीत होता है कि आप के उत्पाद का मूलमन्त्र है कंप्रेशन यानि संपीडन। पर गूगल जैसे खोज-इंजन के भीमकाय डाटा को देखा जाए तो यह कितना असरदार होगा?

हमारे उत्पाद का मूलमन्त्र है डाटा का सही चुनाव, न कि कंप्रेशन। हम पूरे विश्वजाल में क्रॉल कर गिने चुने पृष्ठों को चुनते हैं और उन्हें स्थानीय रूप से डाउनलोड करते हैं। औसतन हर 25,000 रेंगे गए पृष्ठों में से एक ही चुना जाता है। वेबारू की तकनीक का निरालापन इस में है कि हमारा चयन अल्गॉरिद्म बेहतरीन सामग्री-घनत्व के लिये बना है, यानी ज्यादा से ज्यादा विषयों तक पहुँचना और न्यूनतम फाइल आकार में सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली सामग्री एकत्रित करना।

आप के उत्पाद द्वारा डाउनलोड की गई सामग्री ऑफलाइन पठन के लिए जिन वेब पैकों में रखी जाएगी, उस के लिए 40 गीगाबाइट की अतिरिक्त जगह दरकार होगी। आप प्रयोक्ता से 1 गिगाबाइट रैम और ब्रॉडबैंड संपर्क की भी उम्मीद कर रहे हैं। यह भारत जैसी बाजा़र में यह कुछ ज़्यादती की बात नहीं हुई? और धनी देशों में किसी को वेबारू की ज़रूरत ही क्या है?

हमारे छोटे वेब पैक 10 मैगाबाइट से शुरू होते हैं, और बड़े से बड़े 40 गीगाबाइट तक हो जाते हैं। हमारे उत्पाद विश्व के विभिन्न भागों में प्रयोग होंगे और विभिन्न प्रकार के यन्त्रों पर। भारत जैसे बाज़ार में प्रयोक्ता हमारे छोटे वेब पैकों का लाभ उठा पाएँगे। धनी देशों में भी लोग वेबारू प्रयोग करते हैं क्योंकि, जैसा कि हमने पहले कहा, बढ़िया बेतार संपर्क की वहाँ भी कमी है।

वेबारू उन पृष्ठों को कैसे देखता है जो डाइनमिक सामग्री होती हैं या स्क्रिप्टों के पीछे छिपे होते हैं? आजकल के जालपृष्ठों में यह सामान्य सी बात है।

वेबारू स्थिर (स्टैटिक) एचटीएमएल पृष्ठों के बढ़िया काम करता है, जाल पर ज्यादातर पृष्ठ ऐसे ही हैं। हम यह भी जानते हैं कि कुछ पृष्ठों के लिए इंटरनेट संपर्क ज़रूरी है, और उन्हें ऑफलाइन नहीं पढ़ा जा सकता। यही बात कई खोज-इजनों पर भी लागू होती है, जो अभी भी कूटशब्दों द्वारा सुरक्षित या अन्य डाइनैमिक सामग्री को नहीं खोज पाते। संक्षेप में, उत्पाद का महत्व इस बात से है कि यह किए गए वादे पूरे करता है या नहीं, और प्रयोक्ताओं के लिए उपयोगी है या नहीं। हमारा विश्वास है कि जितनी सामग्री वेबारू लोगों तक पहुँचाएगा, उस कारण यह बहुत उपयोगी सिद्ध होगा।

मुम्बई के लिए विशेष तौर पर तैयार वेबारू पैक पर ढूंढने के दौरान बहुत बार वेबारू द्वारा सामग्रियों को देखने हेतु ऑन-लाइन देखने की सलाहें दी गई। क्या यह उपयोक्ताओं में खीज पैदा नहीं करेगा जो वेबारू के जरिए इंटरनेट की सामग्री को पूर्णतः ऑफ-लाइन देखने की आशा करते हैं? वेबारू में कितनी ‘गहराई’ या ‘स्तर’ तक डाउनलोड सामग्रियाँ उपलब्ध रहेंगीं?

मोबाइल पर वेब के प्रयोग की बात करें तो ऑफलाइन स्थिति में खोज या ब्राउज़ बिल्कुल ही न कर सकने की स्थिति की तुलना में तो यह काफी बेहतर अनुभव होगा। वेबारू पर उपलब्ध कड़ियों को नीले रंग से दर्शाया जाता है ताकि उपयोक्ता यह जान सके कि जानकारी ऑफलाइन उपलब्ध होगी या नहीं। वेबारू डाउनलोड कितने लेवल या “गहराई” तक करे यह सामग्री पैक पर निर्भर करेगी – जैसे कि विकि जैसे विशिष्ट पैक में आनलाईन होने की ज़रूरत नहीं होगी।

अतिरिक्त सामग्री व सहयोग – देबाशीष चक्रवर्ती व रमण कौल