हिंदी बà¥à¤²à¥‰à¤— जगत की अनेकानेक उपलबà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में से à¤à¤•, तरकश की परिकलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ करने वाले और अपने सीमित तकनीकी जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के बावजूद अपनी परिकलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ को साथियों की मदद से साकार रूप देने वाले, संजय बेंगानी ने बà¥à¤²à¥‰à¤— लेखन इसी वरà¥à¤· जनवरी माह में शà¥à¤°à¥‚ किया जो कि उनका जनà¥à¤®-माह à¤à¥€ है।
सात जनवरी, 1973 को राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के बिदासर कसà¥à¤¬à¥‡ में जनà¥à¤®à¥‡à¤‚ संजय का बचपन राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में ही गà¥à¤œà¤°à¤¾à¥¤ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚à¤à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ à¤à¥€ वहीं पà¥à¤°à¥€ की। बाद में 12 वरà¥à¤· की आयॠमें सूरत शहर आना हà¥à¤†à¥¤ यहीं दसवीं तक की पà¥à¤¾à¤ˆ गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ माधà¥à¤¯à¤® में सरकारी सà¥à¤•ूल से पूरी की। बाद में असम चले गये जहाठहिनà¥à¤¦à¥€ कॉलेज नहीं होने की वजह से अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ में पà¥à¤¾à¤ˆ शà¥à¤°à¥‚ की जो इनके रà¥à¤à¤¾à¤¨ बदलने की वजह से कà¤à¥€ पूरी नहीं हो पाई। तब अधिकतर समय पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•ालय में जो गà¥à¤œà¤°à¤¤à¤¾ था।
दस सवाल
बà¥à¤²à¥‰à¤—लेखन की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ कैसे हà¥à¤¯à¥€?
चिटà¥à¤ ा लिखने की शà¥à¤°à¥‚आत à¤à¤• वरà¥à¤· पहले हà¥à¤ˆ जब ‘रवि कामदार’ ने मà¥à¤à¥‡ ‘à¤à¤• काम की चीज़’ बताते हà¥à¤ कà¥à¤› हिनà¥à¤¦à¥€ चिटà¥à¤ ो के बारे में बताया।
पहला बà¥à¤²à¥‰à¤— कौन सा देखा?
पहला बà¥à¤²à¥‹à¤— कौन सा था यह तो याद नहीं इसलिठकह नहीं सकता, हाठपहले-पहल जो बà¥à¤²à¥‰à¤— पà¥à¥‡ वे ‘मेरा पनà¥à¤¨à¤¾’, नà¥à¤•à¥à¤¤à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¥€, रविरतलामी का चिटà¥à¤ ा, फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ थे। उस समय नई पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की सूचना चिटà¥à¤ ा-विशà¥à¤µ से मिलती या फिर विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ गूगल गà¥à¤°à¥à¤ª से।
नियमित रूप से बà¥à¤²à¥‰à¤— कैसे देखते हैं?
नारद पर दिन à¤à¤° में कई बार चकà¥à¤•र लगा आता हूà¤, अब नारद ही नई पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की सूचना पाने का माधà¥à¤¯à¤® है।
लेखन पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ है? सीधे लिखते हैं मानीटर पर या पहले कागज पर?
सीधे लिखता हूà¤, विचारों का पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ बहता हैं, उंगलियाठउनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ टंकित करती जाती हैं।
सबसे पसंदीदा चिटà¥à¤ े कौनसे हैं?
वैसे तो मैं सारे चिटà¥à¤ े पà¥à¤¤à¤¾ हूठतथा टिपà¥à¤ªà¤£à¥€ à¤à¥€ देने की कोशिश करता हूठपरंतॠजिस दिन निमà¥à¤¨ चिटà¥à¤ ो पर कà¥à¤› नहीं लिखा जाता कà¥à¤› खोया खोया सा लगता हैं- मेरा पनà¥à¤¨à¤¾, उड़नतशà¥à¤¤à¤°à¥€, जो कह न सके, चिंतन, दसà¥à¤¤à¤•, नà¥à¤•à¥à¤¤à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¥€, रविरतलामी का चिटà¥à¤ ा, फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¥¤
कोई चिटà¥à¤ ा खराब à¤à¥€ लगता है?
à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤› याद तो नहीं।
टिपà¥à¤ªà¤£à¥€ न मिलने पर कैसा लगता है?
टिपà¥à¤ªà¤£à¥€ न मिलने पर लगता हैं या तो कोई पà¥à¤¨à¥‡ आया ही नहीं या फिर जो लिखा हैं वह टिपà¥à¤ªà¤£à¥€ करने लायक था ही नहीं। टिपà¥à¤ªà¤£à¥€ न करने से अचà¥à¤›à¤¾ हैं आप आलोचना ही कर जाते, पता तो चले कà¥à¤¯à¤¾ गलत लिखा था। आप खाना बनाते समय नमक डालना à¤à¥‚ल जाà¤à¤‚ तब तारिफ तो कोई करेगा नहीं, पर कोई नमक मांगे ही नहीं तो खराब तो लगेगा ही न।
अपनी सबसे अचà¥à¤›à¥€ पोसà¥à¤Ÿ कौन सी लगती है?
à¤à¤• à¤à¥€ पोसà¥à¤Ÿ à¤à¤¸à¥€ नहीं जिसने पूरी संतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ दी हो. लेकिन ‘à¤à¤¾à¤°à¤¤ का बाप कौन’ मेरे विचारो की सही अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ थी।
सबसे खराब?
कई हैं, जिन पर à¤à¤• à¤à¥€ टिपà¥à¤ªà¤£à¥€ नहीं मिली।
चिटà¥à¤ ा लेखन के अलावा और नेट का किस तरह उपयोग करते हैं?
अपने कà¥à¤²à¤¾à¤‡à¤‚टà¥à¤¸ से समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• में रहने के लिà¤, अपने वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ के लिठजानकारियाठखंगालने के लिà¤, गपशप के लिà¤, ताजे समाचारों के लिà¤à¥¤ दरअसल नेट बिना के जीवन की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ नहीं कर सकता, हरदम आन-लाइन रहता हूà¤à¥¤
पà¥à¤°à¤–र राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¦à¥€ और हठधरà¥à¤®à¥€ संजय अपने शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤à¥€ दिन याद करते हà¥à¤¯à¥‡ लिखते है
अपनी किशोरावसà¥à¤¥à¤¾ में हम कोई बङी कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति करने के फिराक में रहते थे। कà¥à¤°à¥à¤¤à¤¾-पायजामा हमारा डà¥à¤°à¥‡à¤¸ कोड हà¥à¤† करता था और अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ बोलने वाले को हम देशदà¥à¤°à¥‹à¤¹à¥€ से कम नहीं समà¤à¤¤à¥‡ थे।
कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति की फिराक में रहने के परिणाम से ही जो सोच बनी वह यह थी
जीवन के २०वें वरà¥à¤· में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते-करते लगने लगा था कि दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को हम ही बदल कर रख देगें और इस काल में समानानà¥à¤¤à¤° सिनेमा देखना खास पसंद करते थे।
लेकिन इसके साथ ही जीवन से जà¥à¥œà¥€ सचà¥à¤šà¤¾à¤‡à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¥€ रहीं होंगी इसीलिये कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति के सपनों के साथ-साथ जीविका के बारे में à¤à¥€ सोच बनी और पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ à¤à¥€ हà¥à¤¯à¥‡
इसी दौरान वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯à¤¿à¤• गति-विधियों में हिसà¥à¤¸à¤¾ लेने लगा था। यह टà¥à¤°à¥‡à¤¨à¤¿à¤‚ग जैसा होता हैं। मेरा जनà¥à¤® वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¥€ समाज में हà¥à¤† हैं इसलिठकैरियर का पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ कà¤à¥€ सामने नहीं आया। अपना वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ करना हैं à¤à¤¸à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ से ही दिमाग में बैठा हà¥à¤† था। इसी सिलसिले में गà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¾à¤Ÿà¥€, सिलचर, जोधपà¥à¤°, सूरत होता हà¥à¤† वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में अहमदाबाद में हूठजहाठहम दोनो à¤à¤¾à¤ˆ अपनी मीडिया कमà¥à¤ªà¤¨à¥€ चला रहे हैं।
संजय अपने कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी विचारों को सामाजिक जीवन में à¤à¤²à¥‡ अमली जामा न पहना पायें हों लेकिन वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त जीवन में इसकी à¤à¤°à¤ªà¤¾à¤ˆ करने से नहीं चूके और 23 वरà¥à¤· की आयॠमें निधि के साथ पà¥à¤°à¥‡à¤® विवाह किया। पà¥à¤°à¥‡à¤® विवाह तो तब संसà¥à¤•ार के विरूदà¥à¤§ माना जाता था। लेकिन इनकी शादी पà¥à¤°à¥‡à¤® विवाह थी, वो à¤à¥€ अंततः सà¤à¥€ की मरà¥à¤œà¤¼à¥€ पा कर ही समà¥à¤à¤µ हो सकी। यह पà¥à¤°à¥‡à¤® की ही कोमल à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ रहीं होंगी जिसने संजय के कवि रूप को à¤à¥€ परवान चà¥à¤¾à¤¯à¤¾ और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लिखा
महक उठी फिज़ा कि गà¥à¤²à¤¶à¤¨ खिल उठे, हर फूल, हर कली में तà¥à¤® हो तà¥à¤® ही तà¥à¤® हो।
अपने पà¥à¤°à¥‡à¤® विवाह की परेशानियों की चरà¥à¤šà¤¾ करते हà¥à¤¯à¥‡ संजय ने अपने बचà¥à¤šà¥‡ को दी जाने वाली छूट की घोषणा अà¤à¥€ से कर दी है
मैं अपने बचà¥à¤šà¥‡ को ‘लिव इन रिलेशनशिप’ तक ही छूट देना चाहूà¤à¤—ा।
नौ वरà¥à¤· की उमà¥à¤° का पà¥à¤¤à¥à¤° उतà¥à¤•रà¥à¤· फिलहाल अपने पिता दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उसको à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में मिलने वाली छूट से बेखबर पढा़ई-लिखाई और कमà¥à¤ªà¥à¤¯à¥‚टर गेम में मसà¥à¤¤ रहता है और आजकल अपना बà¥à¤²à¥‰à¤— à¤à¥€ शà¥à¤°à¥‚ कर दिया है, नाम है मेरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¥¤
अपने चिटà¥à¤ ा लेखन की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ की कहानी बताते हà¥à¤¯à¥‡ कहते है
चिटà¥à¤ ा लिखने की शà¥à¤°à¥‚आत à¤à¤• वरà¥à¤· पहले हà¥à¤ˆ जब ‘रवि कामदार’ ने मà¥à¤à¥‡ ‘à¤à¤• काम की चीज़’ बताते हà¥à¤ कà¥à¤› हिनà¥à¤¦à¥€ चिटà¥à¤ ो के बारे में बताया। लिखने-पà¥à¤¨à¥‡ में à¤à¤¾à¤°à¥€ रूचि थी पर वरà¥à¤¤à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की इतनी à¤à¥‚लें होती रही हैं की कà¤à¥€ कà¥à¤› छपने के लिठनहीं à¤à¥‡à¤œà¤¾à¥¤ पर चिटà¥à¤ ा तो “अपना मैदान हैं और अपने घोड़े हैं”। फिर सà¤à¥€ चिटà¥à¤ ाकार बनà¥à¤§à¥ लिखते रहने के लिठउकसाते à¤à¥€ रहे,तो लिखना जारी रहा।
संजय की सोच उनके लेखन में साफ à¤à¤²à¤•ती है। उनके सबसे अधिक चिटà¥à¤ े राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤°à¤‚ग शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ के हैं। साफगोई पसंद संजय का सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ है कि इनको गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ बहà¥à¤¤ जलà¥à¤¦à¥€ आता हैं, हालांकि उतनी ही जलà¥à¤¦à¥€ शांत à¤à¥€ हो जाता हैं। सोच से नासà¥à¤¤à¤¿à¤•, विचारधारा से दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤ªà¤‚थी संजय को कà¥à¤¤à¤°à¥à¤• बिलà¥à¤•à¥à¤² पसंद नहीं है। लिखना-पà¥à¤¨à¤¾, रेखाचितà¥à¤° बनाना पसनà¥à¤¦ करने वाले संजय को अपने बेसà¥à¤°à¥‡ गले और नाच-गा नहीं सकने का मलाल हैं।
हर काम के लिये सरकार का मà¥à¤‚ह ताकने को गलत मानने वाले संजय का मत है कि लोकतंतà¥à¤° शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ शासन वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ हैं। हमें विचारों को अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करने की सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ हैं और सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ है कल के सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¥‡ सपनों को देखने की। कल के à¤à¤¾à¤°à¤¤ को रचने में हमारी à¤à¥‚मिका à¤à¥€ हैं। जो हमें लोकतंतà¥à¤° से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ˆ हैं। इस लिठहमें गरà¥à¤µ हैं अपने लोकतंतà¥à¤° पर । फिलहाल संजय अपने अनà¥à¤œ पंकज के साथ छवि नामक मीडिया कंपनी चलाते हैं। छवि डिजायन और कà¥à¤°à¤¿à¤à¤Ÿà¥€à¤µ कमà¥à¤ªà¤¨à¥€ है। इसमें बेंगानी बंधॠबà¥à¤°à¤¾à¤‚ड डिजायन करते हैं यानि कमà¥à¤ªà¤¨à¥€ का लोगो से लेकर सबकà¥à¤›, वेब डिजायन करते हैं,विजà¥à¤žà¤¾à¤ªà¤¨ डिजायन करते हैं, कोरà¥à¤ªà¥‹à¤°à¥‡à¤Ÿ पà¥à¤°à¤œà¤‚टेशन बनाते हैं।
निरंतर की तरफ़ से संजय को उनके निरंतर लेखन के लिये और तरकश तथा मीडिया कंपनी में लगातार उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ के लिये शà¥à¤à¤•ामनायें।
