वैसे आजाद नहीं हैं हम

जैसे तà¥à¤® सोच रहे साथी, वैसे आजाद नहीं हैं हम,
जैसे तà¥à¤® सोच रहे साथी, वैसे आजाद नहीं हैं हम।
पिंजरे जैसी इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में, पंछी जैसा ही रहना है,
à¤à¤° पेट मिले दाना-पानी, लेकिन मन ही मन दहना है,
जैसे तà¥à¤® सोच रहे साथी, वैसे संवाद नहीं हैं हम,
जैसे तà¥à¤® सोच रहे साथी, वैसे आजाद नहीं हैं हम।
आगे बढ़नें की कोशिश में, रिशà¥à¤¤à¥‡-नाते सब छूट गये,
तन को जितना गढ़ना चाहा, मन से उतना ही टूट गये,
जैसे तà¥à¤® सोच रहे साथी, वैसे आबाद नहीं हैं हम,
जैसे तà¥à¤® सोच रहे साथी, वैसे आजाद नहीं हैं हम।
पलकों ने लौटाये सपने, आंखे बोली अब मत आना,
आना ही तो सच में आना, आकर फिर लौट नहीं जाना,
जितना तà¥à¤® सोच रहे साथी, उतना बरबाद नहीं हैं हम,
जैसे तà¥à¤® सोच रहे साथी, वैसे आजाद नहीं हैं हम।
आओ à¤à¥€ साथ चलें हम-तà¥à¤®, मिल-जà¥à¤² कर ढूंढें राह नई,
संघरà¥à¤· à¤à¤°à¤¾ पथ है तो कà¥à¤¯à¤¾, है संग हमारे चाह नई
जैसी तà¥à¤® सोच रहे साथी, वैसी फरियाद नहीं हैं हम,
जैसे तà¥à¤® सोच रहे साथी, वैसे आजाद नहीं हैं हम।
वसंत à¤à¥€à¤¡à¤¼ में
| हरी घास पर गदबदी टांगों से कà¥à¤²à¤¾à¤à¤šà¥‡à¤‚ à¤à¤°à¤¤à¤¾ कोयल सा कà¥à¤¹à¥à¤•ता à¤à¤à¤µà¤°à¥‡ सा ठà¥à¤®à¤•ता फूलों के गà¥à¤¬à¥à¤¬à¤¾à¤°à¥‡ हाथों में थामे अचानक गà¥à¤®à¤¸à¥à¤® हो गया वसंत जैसे मौसम की à¤à¥€à¤¡à¤¼ में गà¥à¤® हो गयी हो उसकी माठमौसम à¤à¥€ इतने थे |
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चारों ओर थे चà¥à¤¨à¤¾à¤µ का मौसम आतंकवादियों का मौसम à¤à¥‚कंप का मौसम पहाड़ गिरने का मौसम बाढ़ का मौसम, सूखे का मौसम नेताओ के आने का मौसम बड़े-बड़े शिखर समà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨à¥‹à¤‚ का मौसम गरीबी का मौसम पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•ारों का मौसम नारों का मौसम औज़ारों का मौसम विसà¥à¤«à¥‹à¤Ÿà¥‹à¤‚ का मौसम हथियारों का मौसम वसंत ननà¥à¤¹à¤¾ दो माह का बचà¥à¤šà¤¾ |
| – पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ वरà¥à¤®à¤¨ | ||
जाने अजाने
गीत तो गाये बहà¥à¤¤ जाने अजाने
सà¥â€à¤µà¤° तà¥à¤®à¥â€à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ पास पहà¥à¤‚चे या नहीं, कौन जाने!
उड़ गये कà¥à¤› बोल जो मेरे हवा में, सà¥â€à¤¯à¤¾à¤¤à¥ उनकी कà¥à¤› à¤à¤¨à¤• तà¥à¤® को लगी हो
सà¥â€à¤µà¤ªà¥â€à¤¨ की निशि होलिका में रंग घोले, सà¥â€à¤¯à¤¾à¤¤à¥â€Œ तेरी नींद की चूनर रंगी हो
à¤à¥‡à¤œ दी मैंने तà¥à¤®à¥â€à¤¹à¥‡à¤‚ लिख जà¥â€à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿ पाती,
सांठबाती के समय दीपक जलाने के बहाने।
यह शरद का चांद सपना देखता है, आज किस बिछङी हà¥à¤ˆ मà¥à¤®à¤¤à¤¾à¥› का यों
गà¥à¤®à¥â€à¤¬à¤¦à¥‹à¤‚ में गूंजती पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤§à¥â€à¤µà¤¨à¤¿ उड़ाती, आज हर आवाज़ का उपहास यह कà¥â€à¤¯à¥‹à¤‚ ?
संगमरमर पर चरण ये चांदनी के,
बà¥à¤¨ रहे किस रूप की समà¥â€à¤®à¥‹à¤¹à¤¿à¤¨à¥€ के आज ताने।
छू गà¥à¤²à¤¾à¤¬à¥€ रात का शीतल सà¥à¤–द तन, आज मौसम ने सà¤à¥€ आदत बदल दी
ओस कण से दूब की गीली बरौनी, छोङ कर अब रिमà¤à¤¿à¤®à¥‡à¤‚ किस ओर चल दीं
किस सà¥à¤²à¤—ती पà¥à¤°à¤¾à¤£ धरती पर नयन के,
यह सजलतम मेघ बरबस बन गये हैं अब विराने।
पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ की किरणें कमल लोचनों में, और शशि धà¥à¤‚धला रहा जलते दिये में
रात का जादू गिरा जाता इसी से, à¤à¤• अनâ€à¤œà¤¾à¤¨à¥€ कसक जगती हिये में
टूटते टकरा सपन के गृह – उपगृह,
जब कि आकरà¥à¤·à¤£ हà¥à¤ हैं सौर-मणà¥â€à¤¡à¤² के पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡à¥¤
सà¥â€à¤µà¤° तà¥à¤®à¥â€à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ पास पहà¥à¤‚चे या न पहà¥à¤‚चे कौन जाने!!
–महावीर शरà¥à¤®à¤¾

