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आखिर ब्लॉग किस चिड़िया का नाम है?
जब सेंकड़ों मस्तिष्क साथ काम करें तो जेम्स सुरोविकी के शब्दों में, “भीड़ चतुर हो जाती है”। गोया, इंसान को इंसान से मिलाने का जो काम धर्म को करना था वो टैग कर रहे हैं। निरंतर के संपादकीय में पढ़िये देबाशीष चक्रवर्ती और अतुल अरोरा का नज़रिया। |
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अल्केमिस्ट – आधुनिक परीकथा
जिस किताब की 2 करोड़ से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हों व 55 भाषाओं में अनुवाद हो चुका हो वह किसी भी साहित्य प्रेमी को ललचाएगी ही। बचपन में सुनी परीकथा के नये, सुफ़ियाना संस्करण सी है ब्राजीली लेखक पाओलो कोएलो की पुस्तक अलकेमिस्ट, कह रहे हैं समीक्षक रवि रतलामी। इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद स्व. कमलेश्वर ने किया था।
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लोग साथ आते गए, कारवां बनता गया
हिन्दी में शायद यह पहली पत्रिका होगी जहां संपादक एक देश में, निदेशक दूसरे देश में और टाइपिस्ट तीसरे देश में हों; जब एक की दुनिया में दिन हो और दूसरे की दुनिया में रात। अंर्तजाल पर हिन्दी भाषा की अत्यंत लोकप्रिय साहित्यिक पत्रिका “अभिव्यक्ति” तथा “अनुभूति” की रोचक व मर्मस्पर्शी यात्रा कथा बयां कर रही हैं पूर्णिमा वर्मन।
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वर्डप्रेस की सर्च-इंजनों में हेरफेर
क्या वर्डप्रेस ने सर्च इंजनों में हेरा फेरी की? क्या अमरीकी चिट्ठों को शक की नज़र से देखते हैं? सिक्स अपार्ट और अडोब मिल कर कौन सी खिचड़ी पका रहे हैं? और गूगल ने जीमेल में कौन सी नई तकनीक जोड़ी है? इन सवालों का जवाब पाने के लिये पढ़ें हमारा स्तंभ हलचल जिसमें पेश कर रहे हैं माह की चुनिंदा खबरें। |
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घसीटा या दीप
“उसका नाम दीप था। घसीटा या भूरा नहीं। विकास के नाम पर क्या इतना काफी नहीं? घसीटा से भी ज्यादा घसीटे गए अर्धकिशोर बालक का नाम एकदम साहित्यिक। पर उसे देख मैं यही सोचती, काश इसका नाम घसीटा होता, हो सकता है महादेवी जी की आत्मा जीवन्त हो उठती।” पढ़िये डॉ रति सक्सेना रचित मार्मिक संस्मरण।
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साप्ताहिक अवकाश
खबर थी कि अब गृहिणियों को भी क़ानूनन सप्ताह में एक दिन छुट्टी मिलेगी। पूरे दिन की छुट्टी। पर यह क्या इसे सुनकर गृहिणियाँ तो सोच में पड़ गईं कि खुश हुआ जाए या दुःखी हुआ जाए। पढ़िये रविशंकर श्रीवास्तव की चुटीली रचना। |
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खो गए ओ घन कहाँ तुम
वातायन के काव्य प्रभाग में आस्वादन कीजिये दीपा जोशी की कविता “सूना जीवन” और अरूण कुलकर्णी रचित कविता “अभिप्सा” का। |
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आस्था की तुष्टि से संतोष मिलता है
रात के बाद सबेरा होता है या सबेरे के पहले रात? आजकल हसीनों में शर्मोहया क्यों नहीं है? पूजा के समय भगवान को प्रसाद व भोग चढ़ाया जाता है, यह जानते हुये भी कि अंतत: खाना इन्सान को ही है। आखिर क्यों? ऐसे ही टेड़े सवालों के मेड़े जवाब दे रहे हैं हाजिर जवाब फुरसतिया! |
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बच के रहना
एक चित्र जिस पर आप अपनी कल्पनाशीलता परख सकते हैं और जीत सकते हैं रेबेका ब्लड की पुस्तक “द वेबलॉग हैन्डबुक” की एक प्रति। भाग लीजिये समस्या पूर्ति प्रतियोगिता में। |
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खोज सर्वोत्तम चिट्ठाकार की
क्या “दा-विन्ची कोड” किताब वास्तव में नकल है? एक फ्राँसीसी व्यक्ति ने 25,000 भारतीय गीतों के अधिकार क्यों खरीदे? जर्मनी के एक प्रांत में मेंढ़क गुब्बारों की तरह फूल कर क्यों फूट रहे हैं? आस्वादन कीजिये हुसैन द्वारा संकलित, रमण कौल तथा अतुल अरोरा द्वारा अनुवादित, अंर्तजाल के कोने कोने से चुनी बेहद रोचक कड़ियाँ। |
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ये कश्मीर मुझे दे दे ठाकुर
चिट्ठा चर्चा में पढ़िये अनूप शुक्ल द्वारा उल्लेखनीय चिट्ठों की चर्चा। चिट्ठा जोरदार में पढ़ें विभिन्न चिट्ठों से चुने कुछ मनभावन कथ्य। |
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मई 2005 का कच्चा चिट्ठा
कच्चा चिट्ठा स्तंभ में हर माह परिचय कीजिये नये चिट्ठाकारों से। मई 2005 के कच्चा चिट्ठा में हम आपकी मुलाकात करवा रहे हैं युवा कवि व चिट्ठाकार प्रेमपीयूष और हरदिल अज़ीज़ तकनीकी चिट्ठाकार व लेखक रविशंकर श्रीवास्तव से। |
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मई 2005 का मिक्स मसाला
“आबो हवा” में खबर लीजीये भारतीय भाषाओं के ब्लॉगजगत के बैरोमीटर की और सुनिये ब्लॉगिंग के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं के बढ़ते कदमों कि आहट। “भाषा रचते शब्द” में सीखिये ब्लॉगिंग से संसार से जुड़ कुछ नये शब्दों के बारे में और “उसने कहा” में विभिन्न चिट्ठों से चुने कुछ मनभावन कथ्य और उल्लेखनीय उक्तियाँ जो आप भी अपनी डायरी में सहेज कर रखना चाहेंगे। |
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पहले मुर्गी आयी या अन्डा
जितेन्द्र के बचपन के दोस्त सुक्खी बहुत ही सही आइटम हैं। उनकी जिन्दगी में लगातार ऐसी घटनायें होती रहती हैं जो दूसरों के लिये हास-परिहास का विषय बन जाती है। हास परिहास में पढ़िए सुने अनसुने लतीफ़े और रजनीश कपूर की नई कार्टून श्रृंखला “ये जो हैं जिंदगी“। साथ ही “शेर सवाशेर” में नोश फ़रमायें गुदगुदाते व्यंजल। |
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