![कृषि आधार का बढ़ता भार](https://i0.wp.com/www.nirantar.org/images/stories/0708/cover-small-coverstory.jpg?resize=100%2C100) |
कृषि आधार का बढ़ता भार
हर विकसित देश ने कालांतर में ग्राम-केन्द्रित, कृषि-केन्द्रित व्यवस्था से शहर-केन्द्रित, गैर-कृषि केन्द्रित व्यवस्था की ओर अन्तरण किया है। अतानु दे और रुबन अब्राहम मानते हैं कि भारत के पास विकल्प है कि वह 6 लाख छोटे गाँवों की बजाय 600 सुनियोजित, चमचमाते नए शहरों के निर्माण पर विचार करे। जबकि कृषक चिट्ठाकार अशोक पाण्डेय मानते हैं कि ऐसा कदम बाज़ार की ताकत के सामने गाँवों की आत्मनिर्भरता के घुटने टेक देने के समान होगा।
|
|
|
|
|
![व्यतीत](https://i0.wp.com/www.nirantar.org/images/stories/0708/cover-small-story.jpg?resize=100%2C100) |
व्यतीत
संस्कृतियों, लिबासों और भाषाओं के कॉकटेल कलकत्ता में नीता के सामने श्यामल है, उसका वर्तमान। श्यामल पहली बार आया है यहाँ, पर नीता का व्यतीत अतीत उसे साल रहा है। वह कलकत्ता को भूल जाना चाहती है। वातायन में पढ़िये 1963 में मनोरमा पत्रिका में प्रकाशित वीणा सिन्हा की स्त्री के अंतर्दंद्व पर लिखी कहानी जो आज भी सामयिक लगती है।
|
|
|
|
|
![अमृता इमरोज़: रूहानी रिश्तों की बयानी](https://i0.wp.com/www.nirantar.org/images/stories/0708/cover-small-amritaimroz.jpg?resize=100%2C100) |
अमृता इमरोज़: रूहानी रिश्तों की बयानी
उमा त्रिलोक ने अपनी किताब में इमरोज़ और अमृता की रूहानी मोहब्बत के जज़्बे को तो खूबसूरती से अभिव्यक्त किया ही है, साथ ही अमृता प्रीतम के जीवन के आखिरी लम्हों को भी अपनी कलम से बख़ूबी बटोरा है। पढ़िये पुस्तक अमृता इमरोज़ की रविशंकर श्रीवास्तव व रंजना भाटिया द्वारा समीक्षायें।
|
|
|
|
|
![मैं बोरिशाइल्ला : भीड़ से अलग](https://i0.wp.com/www.nirantar.org/images/stories/0708/cover-small-mahua.jpg?resize=100%2C100) |
मैं बोरिशाइल्ला : भीड़ से अलग
बांग्लादेश की मुक्ति-गाथा पर केंद्रित “मैं बोरिशाइल्ला” महुआ माजी का पहला उपन्यास है जो चर्चित भी हुआ और सम्मानित भी। रवि कहते हैं कि थोड़ा बोझिल होने के बावजूद यह अलग सा उपन्यास अपने प्रामाणिक विवरण के कारण बांग्ला जनजीवन को जानने समझने वाले और इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों को दिलचस्प लगेगा।
|
|
|
|
|
![सफल-असफल बनने की सत्य तथाकथा](https://i0.wp.com/www.nirantar.org/images/stories/0708/cover-small-vyangya.jpg?resize=100%2C100) |
सफल-असफल बनने की सत्य तथाकथा
रवि रतलामी सफ़ल बनना चाहते थे, महान बनना चाहते थे। और खोजते खोजते उनका हाथ वो नुस्ख़ा लग ही गया जिससे वे महान ही नहीं, महानतम बन गये। तो देर किस बात की? आप भी बन जाइये उन के अनुयायी। |
|
|
|
|
|
|
![देख तमासा](https://i0.wp.com/www.nirantar.org/images/stories/0708/cover-small-samasya.jpg?resize=50%2C50) |
देख तमासा
समस्या पूर्ति निरंतर का ऐसा स्तंभ है जहाँ आप अपनी रचनात्मकता परख सकते हैं। स्तंभ में दिये चित्र व शीर्षक के आधार पर रच डालिये कोई कविता, छंद या हाईकू। सर्वश्रेष्ठ रचना को मिलेगा आकर्षक पुरस्कार। |
|
|
|
|