Category: वातायन
आ उठ, चल, बाहर जीवन है
वातायन है निरंतर का साहितà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•ोषà¥à¤ यानि साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ का à¤à¤°à¥‹à¤–ा। इस अंक में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ है मानोशी चटरà¥à¤œà¥€ की कविता "आ उठ, चल, बाहर जीवन है" और पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ वरà¥à¤®à¤¨ की कविता "आवारा वसंत"।
आज रात तीन चाà¤à¤¦ खिले हैं!
वातायन है निरंतर का साहितà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•ोषà¥à¤ यानि कि बà¥à¤²à¥‰à¤—जगत के बाशिंदो कि साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ का à¤à¤°à¥‹à¤–ा। इस अंक में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ है रविशंकर शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¤à¤µ की लघà¥à¤•था "पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¥", अतà¥à¤² अरोरा की हासà¥à¤¯ कविता "तीन चाà¤à¤¦" और देबाशीष चकà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ की कविता "महानगर"।
