ग़ज़लें रंगारंग
By रविशंकर श्रीवास्तव | April 9th, 2005 | Category: वातायन | No Comments »
शेरजंग गर्ग द्वारा संकलित व संपादित गज़लें रंगारंग ग़ज़लों के इंद्रधनुषी रंगों में पाठक को सराबोर करने का एक सार्थक प्रयास है, कहना है पुस्तक की समीक्षा कर रहे रवि रतलामी का। »