बच के रहना
लेखकः निरंतर पत्रिका दल | May 23rd, 2005लिखो कविता, जीतो ईनाम!
नीचे दिए चित्र और दिए गए शीर्षक को ध्यान से देखिए और रच डालिए एक छोटी सी कविता। ज्यादा बड़ी न हो तो अच्छा, चार लाईना हो तो उत्तम, हाइकू हो तो क्या कहनें! शीर्षक मुख्यतः भाव के लिए है, पर आप इसे कविता में प्रयोग कर सकते हैं। यदि आपकी रचना निरंतर संपादक मंडल को पसंद आ गई तो आप जीत सकेंगे रेबेका बल्ड की पुस्तक “द वेबलॉग हैंडबुक” की एक प्रति। कविता इस पोस्ट पर अपने टिप्पणी (कमेंट) के रूप में ही प्रेषित करें।

प्रतियोगिता के नियमः
- रचना मौलिक, अप्रकाशित होनी चाहिए।
- एक प्रेषक से एक ही प्रविष्टि स्वीकार्य होगी।
- संपादक मंडल का निर्णय साधारण अथवा विवाद की स्थिति में अंतिम व सर्वमान्य होगा।
- किसी भी प्रविष्टि की प्राप्ति न होने या न जीतने पर पुस्तक आगामी अंकों में वितरित होगी।
- संपादक मंडल के सदस्य प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकते।
- एक बार पुरस्कृत विजेता को अगले 6 माह तक दुबारा पुरस्कृत नहीं किया जा सकेगा। हालांकि पूर्व विजेताओं के भाग लेने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
- इस अंक से प्रतियोगिता में पुस्तक वितरण का व्यय जितेन्द्र चौधरी ने वहन करने का निश्चय किया है। निरंतर उनका हृदय से आभारी है।
- क्षमा करें, डाक में पुस्तक खो जाने या पुस्तक अप्राप्ति कि जिम्मेवारी निरंतर नहीं ले सकता।
- रचना भेजने की अंतिम तिथि हैः 20 मई, 2005
पिछली प्रतियोगिता के परिणाम
निरंतर के अप्रेल 2005 अंक की समस्या पूर्ति के विजेता सर्वसम्मति से तरुण घोषित किए गए हैं। बधाई तरुण! संपादक मंडल ने प्रेम पियुष की रचना की विशेष सराहना की। राजेश, आशीष व ईस्वामी की रचनायें भी सराहनीय रहीं। सभी प्रतियोगियों का धन्यवाद! आप से भविष्य में भी भागीदारी की अपेक्षा रहेगी। तरूण आप patrikaa at gmail dot com पर पुस्तक प्राप्त करने का अपना भारत का पता सूचित कर देवें।
भाग आदमी भाग
बच के रहना, हरी घास से,
छुपा हुआ है बाघ
भूखा होगा, खा जायेगा,
भाग आदमी भाग।
Submitted by तरूण on Mon, 2005-05-02 23:55.
कहाँ संभव होगा
पहले फोटो हो जाए
फिर भोजन होगा।
इस जंगल में हम दो शेर
यह कहाँ संभव होगा।
Submitted by प्रशान्त सोनी on Mon, 2005-05-02 21:55.
जिंदगी से
जिंदगी से भागकर यंहा आ पहुंचे
पर मुझसे बच कर कहां जाओगे
जिंदगी तो जीत भी सकते थे
पर मौत से कहां जीत पाओगे…
Submitted by सचिन on Mon, 2005-05-02 20:37.
धोखेबाजों
धोखेबाजों से
बच के रहना तू
माटी के पुत्र ।
Submitted by Prem on Tue, 2005-05-03 09:20.
डर कर क्या जीना
जंगल जंगल भटक रहे हो
यूं भी क्या डर कर जीना
भागे जीवन से क्यों कर
मौत से पर बच के रहना
Submitted by SANJEEV on Sat, 2005-05-07 18:41
ख़ुद को सवा
सवा शेर कहलाते हो..
फिर क्यों भागे जाते हो?
Submitted by Anonymous on Mon, 2005-05-09 16:06.
पत्ता खडका
पत्ता खडका चिडिया उड गई
पीछे से कोई छाया डोली
घर के पिछवाडे में कैसे
कब जंगल बढ आया है
घात लगाये बैठा कब से
ये बाघ कहाँ से आया है
Submitted by प्रत्यक्षा on Tue, 2005-05-10 09:54.