आशीष का सवाल है कि “बाप बड़ा न à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ सबसे बड़ा रà¥à¤ªà¥ˆà¤¯à¤¾” कहावत का चलन कब से शà¥à¤°à¥ हà¥à¤†?
रà¥à¤ªà¤¯à¥‡-पैसे के बारे में सारे सवाल के जवाब तो à¤à¥ˆà¤¯à¥‡ कारà¥à¤² मारà¥à¤•à¥à¤¸ ही बता पायेंगे तà¥à¤®à¤•ो, या फिर पà¥à¥‹à¤‚ “दास कैपिटल”। पर जितना अपन को पता है उससे यही बता सकते हैं कि जब से दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को पता चला होगा कि बाप-à¤à¤¾à¤ˆ के बिना तो काम चल सकता है लेकिन रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ के बिना नहीं, तà¤à¥€ से यह मà¥à¤¹à¤¾à¤µà¤°à¤¾ चलन में आ गया होगा। वैसे à¤à¥€ बिना पैसे का बाप गधा समान माना जाता है जबकि पैसे वाले गधे को à¤à¥€ लोग बाप बनाने के लिये लपकते हैं। पैसा होगा तो कोई गधा à¤à¥€ बाप बनने की सारी पà¥à¤°à¤•ियाओं को बाईपास कर दे, जबकि पैसा न होने पर बाप बनने की सारी पà¥à¤°à¤•ियाओं को पूरा करने के बाद à¤à¥€ लोग गधे बने रहते हैं। अगर यह सच न होता तो लोग अपने बाप-à¤à¤¾à¤ˆ को छोड़कर पैसा कमाने के लिये अपने घर से दूर गधों की तरह कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ खटते?
आलोक समठनहीं पा रहे कि बंगलौर में नारियल की चटनी में इतनी मिरà¥à¤šà¥€ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ डालते हैं?
हà¥à¤† कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ à¤à¤¾à¤ˆ कि नारियल ने à¤à¤• बार सोचा कि हम इतने लोगों की जीविका चलाते हैं देखें लोग हमारे बारे में कà¥à¤¯à¤¾ सोचते हैं। उसने à¤à¤• मारà¥à¤•ेट सरà¥à¤µà¥‡ कराया अपनी छवि के बारेमें जानने के लिये। जो रपट आई वो चौंकाने वाली थी। हर बà¥à¤°à¥‡ और कठोर आदमी के लोग कहते, “उसका वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ नारियल की तरह उपर से कठोर लेकिन अंदर से मà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤® है।” हर लगà¥à¤¯à¥‡-à¤à¤—à¥à¤¯à¥‡ को लोग कहते वह नारियल की तरह है। फिर कà¥à¤¯à¤¾ था, गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ आ गया नारियल को। उसने मिरà¥à¤šà¥€ के साथ गठबंधन कर लिया। यह सोचकर कि जहां नारियल पाया जाता है वहां मिरà¥à¤šà¥€ à¤à¥€ बहà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¤¤ में पायी जाती है। सो यह नारियल-मिरà¥à¤š गठबंधन à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ की संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं को देखते हà¥à¤¯à¥‡ बनाया गया है। अब बंगलौर चà¥à¤à¤•ि राजधानी है सो इस गठबंधन का असर सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ वहीं दिखता है। अब गठबंधन के टिकाउपन का पता तो अपन को कà¥à¤¯à¤¾ उपरवाले को à¤à¥€ नहीं।
à¤à¥‚ठसफेद होता है, लेकिन फिर à¤à¥‚ठे का मà¥à¤à¤¹ काला कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ होता है?
इसके जवाब जानने के लिठइतिहास की à¤à¤°à¥‹à¤–े से बाहर à¤à¤¾à¤‚कना जरूरी है। पहले लोग जब à¤à¥‚ठबोलते थे तो उसकी सजा तय थी – कौवे से कटवाना। इधर आपने à¤à¥‚ठबोला उधर कौवा काट गया। इसीलिये यह गाना à¤à¥€ चल निकला – à¤à¥‚ठबोले कौवा काटे, काले कौवे से डरियो। कौवे बड़ी ईमानदारी से यह काम करते थे। इधर किसी ने à¤à¥‚ठबोला नहीं कि उधर कौवे ने आकर काट लिया। बस यहीं से लफड़ा हो गया। कौवे की कारà¥à¤¯ समरà¥à¤ªà¤£à¤¤à¤¾ देखकर उसे ढेर सारे काम सौंप दिये गये। किसी अतिथि के आने की सूचना देना हो मà¥à¤‚डेर पर कौवा बोले, किसी अपशकà¥à¤¨ की सूचना देनी हो तो कौवे की डà¥à¤¯à¥‚टी, मतलब काम बेहद बढ़ गया। इधर आबादी बढ़ी तो लाज़मी है à¤à¥‚ठà¤à¥€ बढ़ा। उधर कौवे कम हो गये। आदमियों ने à¤à¤²à¥‡ न अपनाया हो पर कौओं ने परिवार नियोजन पर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दिया। तो कौओं की संखà¥à¤¯à¤¾ काम के मà¥à¤•ाबले बहà¥à¤¤ कम हो गयी। à¤à¥‚ठे लोगों को काटने का काम पिछड़ता चला गया।
कà¥à¤› तकनीकी समसà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ à¤à¥€ रहीं। लोग à¤à¥‚ठबोलकर इनà¥à¤¤à¤œà¤¾à¤° करते कि कौवा आये काट जाये लेकिन कौवे आते नहीं। कहते, “सौ-पचास à¤à¥‚ठहो जायें तब बताना। à¤à¤• साथ काट दूंगा आकर।” आधा à¤à¥‚ठतो यà¥à¤§à¤¿à¤·à¥à¤ िर जैसे लोग बोल गये लेकिन कौवा आधा काटे कैसे? उधर नेता लोग देश सेवा के नाम पर काटे जाने के खिलाफ अदालती ‘सà¥à¤Ÿà¥‡’ ले आये। इन सब समसà¥à¤¯à¤¾à¤“ं के चलते यह तय किया कि à¤à¥‚ठबोलने पर काटने का ‘सिसà¥à¤Ÿà¤®’ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ है कà¥à¤› नया किया जाये। तो फिर यह तय हà¥à¤† कि ‘कलर कोडीफिकेशन’ की तरà¥à¤œ पर जो à¤à¥‚ठबोले उसका मà¥à¤‚ह रंग दिया जाये जैसे किसी गà¥à¤£à¤¤à¤¾ निरीकà¥à¤·à¤£ अनà¥à¤à¤¾à¤— में निरीकà¥à¤·à¤£ करने के बाद वसà¥à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤‚ रंग दी जाती हैं। अब जैसा कि आप जानते और मानते है कि à¤à¥‚ठसफेद होता है तो यह तय किया गया कि à¤à¥‚ठबोलने वाले का मà¥à¤‚ह काला कर दिया जाये ताकि ‘कलर कनà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‰à¤¸à¥à¤Ÿ’ के कारण à¤à¥‚ठदूर से दिख जाये। इसीलिये à¤à¥‚ठे का मà¥à¤à¤¹ काला होता है। कैसे सवाल हैं यार संपादक जी, जवाब देने के चकà¥à¤•र में सौ à¤à¥‚ठहमें à¤à¥€ बोलने पड़ गये।
आलोक फिर पूछते हैं कि विदेश से वापस आ के हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को अपने रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ और दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के अलावा सब लोग बदतमीज़ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ लगते हैं?
सवाल कà¥à¤› गड़बड़ लग रहा है, आलोक महाशय! होता दरअसल यह है कि जब कोई पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸à¥€ विदेश से घर आता है तो वह देखता है कि कौन उसके लिये रहने का बढ़िया इनà¥à¤¤à¤œà¤¾à¤® करता है, मà¥à¤«à¥à¤¤ की गाड़ी, मय डà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤µà¤° (कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ के रासà¥à¤¤à¥‡ और गीयर वाली गाड़ी चलाना वह à¤à¥‚ल चà¥à¤•ा है) जà¥à¤Ÿà¤¾ सके, पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ के हर खरà¥à¤šà¥‡ को छोटा-मोटा समà¤à¤•र उसे à¤à¥à¤—त सके। à¤à¤¸à¥‡ लोगों को ही वह अपना दोसà¥à¤¤ तथा रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤° समà¤à¤¤à¤¾ है। इसके उलट जो बिना किसी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ की औकात के उसके आसपास किसी आशा में मंडराते रहते हैं उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वह बदतमीज समà¤à¤¤à¤¾ है। वैसे इस बारे में मेरा छोटा लड़का कहता है कि जो जैसा होता वह दूसरों के बारे में वैसा ही सोचता है। पर यह सवाल काहे पूछ रहे हो आलोक à¤à¤¾à¤ˆ, आपको तो वापस आये काफी दिन हो गये!
आग लगने पर ही पानी à¤à¤°à¤¨à¥‡ की याद कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ आती है?
जब हमने यह पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ ठेलà¥à¤¹à¤¾ से पूछा तो पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ किया गया, “आग लगने पर पानी की याद नहीं आयेगी तो कà¥à¤¯à¤¾ आग की याद आयेगी?”। हमें लगता है कि इसका जवाब à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•ृति के गरà¥à¤ में छिपा है। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•ृति में संगà¥à¤°à¤¹ की पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ मानी गई है। à¤à¤—वान से आदमी केवल इतना मांगता है जितने में वो परिवार सहित खा ले और कोई अतिथि आ जाये तो उसको निपटा ले।
साईं इतना दीजिये जामें कà¥à¤Ÿà¥à¤® समाय,
मैं à¤à¥€ à¤à¥‚खा न रहूठसाधॠन à¤à¥‚खा जाय।
अब आग लगने के पहले पानी का इनà¥à¤¤à¤œà¤¾à¤® करना मतलब संगà¥à¤°à¤¹ की पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿à¥¤ संसà¥à¤•ृति की अवमानना, संसाधनों का दà¥à¤°à¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤—। पता चला कि आप पानी का इनà¥à¤¤à¤œà¤¾à¤® किये बैठे हो और आग है कि लग के ही नहीं दे रही। सारा इनà¥à¤¤à¤œà¤¾à¤® बेकार हो गया न! इसीलिये सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ तरीका यही यही है कि जब आग लगे तà¤à¥€ पानी का इनà¥à¤¤à¤œà¤¾à¤® किया जाये। फिर à¤à¥€ अगर किसी को बà¥à¤°à¤¾ लगता है इस दशा पर तो उसके लिये चà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ à¤à¤° पानी काफी है जो कि किसी à¤à¥€ ‘बिसलरी’ की बोतल में आ जायेगा। इसके अलावा ठेलà¥à¤¹à¤¾ समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ के लोग इसलिये à¤à¥€ पहले से पानी का कोई इनà¥à¤¤à¤œà¤¾à¤® नहीं रखते कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उनको à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾ होता है कि जब à¤à¥€ आग लगेगी वो राग मलà¥à¤¹à¤¾à¤° गाकर पानी बरसवा लेंगे-आग लगी हमरी à¤à¥‹à¤ªà¤¡à¤¼à¤¿à¤¯à¤¾ में हम गायें मलà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥¤
फ़ौलादी सिंह पे हिनà¥à¤¦à¥€ पिकà¥à¤šà¤° कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं बन रही है?
वनà¥à¤¸ अपान अ टाइम हम छातà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में छातà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¾à¤¸ में टेलीविजन देख रहे थे, चितà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤° चल रहा था। कोई हीरोईन टाइप की महिला डानà¥à¤¸à¤°à¤¤ थी। किसी ने सवाल उछाला, “ये कौन हीरोईन है?” हमारे à¤à¤• दोसà¥à¤¤ ने मासूमियत से जवाब दिया, “पता नहीं यार, आजकल मैं हीरोईनों के टच में नहीं हूà¤à¥¤” तो à¤à¥ˆà¤¯à¤¾, हम à¤à¥€ आजकल फौलादी सिंह के टच में नहीं हैं। इसलिये फौलादी सिंह के बारे में जानने के लिये हम अपनी सà¥à¤ªà¥à¤¤à¥à¤° की शरण में गये। उसने बताया कि फौलादी सिंह के बारे में अà¤à¥€ तक हालीवà¥à¤¡ में कोई पिकà¥à¤šà¤° नहीं बनी। अब जब हालीवà¥à¤¡ में नहीं बनी तो बालीवà¥à¤¡ में कैसे बनेगी! अगर सही में हिंदी में पिकà¥à¤šà¤° बनवाना है फौलादी सिंह पर तो पहले अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ में कोई ऊलजलूल पिकà¥à¤šà¤° बनावायी जाये उसपर उसके बाद हिंदी में उसकी नकल की जाये। सीधे-सीधे हिंदी में फौलादी सिंह पर पिकà¥à¤šà¤° बनाना तो हिंदी फिलà¥à¤® निरà¥à¤®à¤¾à¤£ पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ का सरासर उलà¥à¤²à¤‚घन होगा।
जीतेनà¥à¤¦à¥à¤° का सवाल है कि तोगडिया जी हमेशा गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ मे कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ रहते है?
à¤à¤‡à¤¯à¤¾ जीतेनà¥à¤¦à¤°, हमें पता नहीं कि ये तोगड़िया जी कौन हैं, कà¥à¤¯à¤¾ करते हैं पर जब उनके बारे में सवाल पूछा जा रहा है तो लगता है कि कोई बड़े आदमी ही होंगे-हाकिम-हà¥à¤•à¥à¤•ाम टाइप। जहां तक गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ की बात है तो à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•ृति में गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ बड़ी ‘कूल’ चीज माना जाता रहा है। ससà¥à¤°à¤¾à¤² में दामाद का गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾, सास का बहू पर गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾, अमीर घर की लड़की का ससà¥à¤°à¤¾à¤² वालों पर गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ तो लोग जानते-à¤à¥‹à¤—ते ही हैं। इतिहास में à¤à¥€ परशà¥à¤°à¤¾à¤®, दà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¸à¤¾, शिव शंकर आदि लोग अपने इंसà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ट कोप के कारण पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ रहे हैं। पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ समय में मनमाफिक काम न होने पर गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ करने का रिवाज था। जैसे गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ ने बताया à¤à¥€:
विनय न मानत जलधि जड़, गये तीन दिन बीत,
बोले राम सकोप तब, à¤à¤¯ बिनॠहोय न पà¥à¤°à¥€à¤¤à¥¤
तो रामचनà¥à¤¦à¥à¤° जी ने तीन दिन तक पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ का ‘रूट फालो’ करने के बाद à¤à¥€ काम न होने पर गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ पर ‘सà¥à¤µà¤¿à¤šà¤“वर’ किया। पर अब जमाना बहà¥à¤¤ तेज हो गया है। तीन दिन बहà¥à¤¤ होता है, बड़े लोग तड़ से गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ कर देते हैं। पर अगर गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ का कारण जानना हो तो जैसा शà¥à¤°à¥€à¤²à¤¾à¤² शà¥à¤•à¥à¤² जी बताते हैं-
“इन हाकिम लोगों को पचास तरह की बीमारियां होती हैं। कबà¥à¤œ, गैस, डायबिटीज, दà¥à¤·à¥à¤šà¤¿à¤¨à¥à¤¤à¤¾, नामरà¥à¤¦à¥€, बवासीर आदि। इनका हाजमा दà¥à¤°à¥à¤¸à¥à¤¤ नहीं रहता। चिड़चिड़े हो जाते हैं और ऊलजलूल हरकतें करते हैं। वासà¥à¤¤à¤µ में अपने को कोस रहे होते हैं। तो à¤à¤¸à¥‡ में इनसे डरना नहीं चाहिये और जब ये लोग गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ कर रहे हों तो चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª सोचना चाहिये कि कैसे इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ दिया जाये।”
तो मà¥à¤à¥‡ यही लगता है कि आपके तोगड़ियाजी को कà¥à¤› यही समसà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ होंगी जो शà¥à¤°à¥€à¤²à¤¾à¤² शà¥à¤•à¥à¤²à¤œà¥€ ने बताईं। लोग यह à¤à¥€ कहते हैं कि गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ करने वाले के दिमाग में कोई माईक टाईसनी वायरस घà¥à¤¸ जाता है और गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡à¤² पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ हरसंà¤à¤µ ऊलजलूल हरकतें करता है।
वाजपेयी जी की जबान बार-बार फिसल कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ जाती है?
हर आदमी जिंदगी में कà¤à¥€ न कà¤à¥€ फिसलता जरूर है। यह नियम है। वाजपेयी जी विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ हैं, संयमी हैं। बचपन, जवानी में कà¤à¥€ नहीं फिसले। पर अब बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤—ियत में à¤à¥€ वाजपेयी जी जिंदगी के नियमों का उलà¥à¤²à¤‚घन नहीं करते। लिहाजा फिसलन के सारà¥à¤µà¤à¥Œà¤®à¤¿à¤• सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ का पालन करते हैं। वाजपेयी जी के वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ का सबसे आकरà¥à¤·à¤• पहलू उनकी à¤à¤¾à¤·à¤£ कला है जो कि जबान से संचालित होती है। इसीलिये फिसलन के नियम का पालन करने में वह फिसल जाती होगी। इसलिये आप à¤à¥€ कहीं फिसलना चाहते हो अà¤à¥€ फिसल लो। बाद में मजबूरी की फिसलन में वो मजा कहां!
और अंततः
हिनà¥à¤¦à¥€ चिटà¥à¤ ाकार फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ से सवाल पूछने मे à¤à¤¿à¤à¤•ते कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ है?
यार जीतेनà¥à¤¦à¤°, तà¥à¤® कहते हो लोग फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ से जवाब पूछने में à¤à¤¿à¤à¤•ते कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हैं? उधर कà¥à¤› à¤à¤¾à¤ˆ लोग तकादा करते हà¥à¤¯à¥‡ पूछते हैं, “फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ को जवाब देने की फà¥à¤°à¤¸à¤¤ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं मिलती?”। कोई कहता है कि बहà¥à¤¤ मेहनत लगती होगी जवाब देने में वहीं à¤à¤¾à¤ˆ लोग कहते हैं कि उतना मजा नहीं आया इस बार। जब मैं सोचता हूठतो हर à¤à¤• के सवाल सही लगते है। बहरहाल सवाल पूछने में à¤à¤¿à¤à¤• के कà¥à¤› कारण जो मà¥à¤à¥‡ लगते हैं वे हैं
- लोग यह मानते हैं कि जो सवाल वो सोच रहे हैं वो टेलीपैथी से फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ तक पहà¥à¤‚च जायेंगे तो बेकार टाइप करने तथा ई-मेल की जहमत कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ उठाई जाये?
- कà¥à¤› लोग यह मानते हैं कि जो सवाल उनके मन में उठरहे हैं उनका जवाब देना फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ के बस की बात नहीं।
- कà¥à¤› संकोची यह मानते हैं कि उनके सवाल पढ़कर लोग हंसेंगे।
- कà¥à¤› लोग कहते हैं कि पहले वाले जवाब तो मिले नहीं, नये सवाल कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पूछें जायें?
- जो इस किसी में शामिल नहीं हैं उनके दिमाग की उतà¥à¤¸à¥à¤•ता, कौतूहल तथा चà¥à¤¹à¤² वाला हिसà¥à¤¸à¤¾ सà¥à¤¨à¥à¤¨ पड़ गया है। उनको किसी डाकà¥à¤Ÿà¤° à¤à¤Ÿà¤•ा की अविलमà¥à¤¬ जरूरत है।
फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ का अवतार ले कर हर महीने à¤à¤¸à¥‡ ही रोचक सवालों के मज़ेदार जवाब देंगे अनूप शà¥à¤•à¥à¤²à¤¾à¥¤ उनका अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ हिनà¥à¤¦à¥€ चिटà¥à¤ ा “फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾” अगर आपने नहीं पà¥à¤¾ तो आज ही उसका रससà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¨ करें। आप अपने सवाल उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ anupkidak à¤à¤Ÿ gmail डॉट कॉम पर सीधे à¤à¥‡à¤œ सकते हैं, विपतà¥à¤° à¤à¥‡à¤œà¤¤à¥‡ समय धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दें कि subject में “पूछिये फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ से” लिखा हो। इस सà¥à¤¤à¤‚ठपर अपनी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ संपादक को à¤à¥‡à¤œà¤¨à¥‡ का पता है patrikaa à¤à¤Ÿ gmail डॉट कॉम

घर, दफà¥à¤¤à¤°, सड़क हर जगह मà¥à¤¸à¥€à¤¬à¤¤à¥‡à¤‚ आतीं हैं, सेंकड़ों सवाल उठखड़े हो जाते हैं। अब सर खà¥à¤œà¤²à¤¾à¤¤à¥‡ खà¥à¤œà¤²à¤¾à¤¤à¥‡ हमारे रडार पर à¤à¤• महारथी की काया दिखी तो उमà¥à¤®à¥€à¤¦ कि किरणें जाग उठीं। अब कोई पपà¥à¤ªà¥‚ फेल न होगा। (पà¥à¤°à¤à¥, अब तक कहाठथे आप?)
