हà¥à¤† माजी का उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ “मैं बोरिशाइलà¥à¤²à¤¾” बांगà¥à¤²à¤¾à¤¦à¥‡à¤¶ की मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿-गाथा पर केंदà¥à¤°à¤¿à¤¤ है। महà¥à¤† माजी ने इस उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ को कई वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के शोध उपरांत लिखा है और पà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• इतिहास लिखा है। यह उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ बहà¥à¤¤ ही कम समय में खासा चरà¥à¤šà¤¿à¤¤ हà¥à¤† है और इस कृति को समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ à¤à¥€ किया गया है। इस उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ के अजीब से नाम के बारे में सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿà¥€à¤•रण देती हà¥à¤ˆ महà¥à¤†, उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ के अपने पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤•थन में कहती हैं –
“…जिस तरह बिहार के लोगों को बिहारी तथा à¤à¤¾à¤°à¤¤ के लोगों को à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ कहा जाता है, उसी पà¥à¤°à¤•ार बोरिशाल के लोगों को यहाठकी आंचलिक à¤à¤¾à¤·à¤¾ में बोरिशाइलà¥à¤²à¤¾ कहा जाता है। उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ का मà¥à¤–à¥à¤¯ पातà¥à¤° केषà¥à¤Ÿà¥‹, बोरिशाल का है। इसीलिठवह कह सकता है – मैं बोरिशाइलà¥à¤²à¤¾à¥¤â€
जैसा कि उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ के दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ शीरà¥à¤·à¤• पृषà¥à¤ पर अंकित है – यह उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ बांगà¥à¤²à¤¾à¤¦à¥‡à¤¶ के अà¤à¥à¤¯à¥à¤¦à¤¯ की महागाथा है। 1948 से लेकर 1971 तक के à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚, पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ हà¥à¤•ूमत दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बांगà¥à¤²à¤¾à¤¦à¥‡à¤¶à¥€ जनता पर किठअतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की घटनाओं तथा मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¨à¥€ के संघरà¥à¤· गाथाओं को महà¥à¤† माजी ने इस उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ के कथा सूतà¥à¤° में पिरोया है। à¤à¤• बानगी देखें –
“…इसी तरह à¤à¤• बार मैं सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¤¾à¤ खरीदने बाजार गया। à¤à¤• सबà¥à¤œà¥€à¤µà¤¾à¤²à¤¾ शिमला मिरà¥à¤š, जिसे वहां के लोग बोमà¥à¤¬à¤¾à¤‡à¤¯à¤¾ लौंका कहा करते थे, बेच रहा था। मà¥à¤à¥‡ देखकर सबà¥à¤œà¥€à¤µà¤¾à¤²à¥‡ ने जोर से आवाज दी, “बोमà¥à¤¬à¤¾à¤‡à¤¯à¤¾ लौंका ले जाइठबाबू।” बाज़ार में घूमते à¤à¤• सैनिक के कानों तक जैसे ही बोमà¥à¤¬à¤¾à¤‡à¤¯à¤¾ यानी बमà¥à¤¬à¤‡à¤¯à¤¾ शबà¥à¤¦ पहà¥à¤à¤šà¤¾, उसने सबà¥à¤œà¥€ वाले की पीठपर à¤à¤• à¤à¤°à¤ªà¥‚र बेंत मारी और चिलà¥à¤²à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ कहा, “इंडिया से मिरà¥à¤š मंगाता है? यहां पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ में पैदा नहीं कर सकता?”
समरà¥à¤¥ उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿

महà¥à¤† माजी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बांगà¥â€à¤²à¤¾à¤¦à¥‡à¤¶ के मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ संगà¥à¤°à¤¾à¤® की पृषà¥â€à¤ à¤à¥‚मि पर 2006 में लिखा “मैं बोरिशाइलà¥à¤²à¤¾”, उनका पहला ही उपनà¥â€à¤¯à¤¾à¤¸ है पर इससे उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने साहितà¥à¤¯ संसार में समरà¥à¤¥ रूप से अपनी उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ दरà¥à¤œ की। महà¥à¤† समाजशासà¥â€à¤¤à¥à¤° में पीà¤à¤šà¤¡à¥€ हैं। उनकी लिखी अनेक कहानियां विà¤à¤¿à¤¨à¥â€à¤¨ पतà¥à¤° पतà¥à¤°à¤¿à¤•ाओं में पà¥à¤°à¤•ाशित हो चà¥à¤•ी हैं। “मैं बोरिशाइलà¥â€à¤²à¤¾” को पाठकों और समीकà¥à¤·à¤•ों की काफी पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा मिलने के बाद इसके अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ और बांगà¥à¤²à¤¾ में अनिवादित किये जाने की खबरें हैं। महà¥à¤† को 2007 में इस उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ के लिये अंतरà¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ इंदॠशरà¥à¤®à¤¾ कथा समà¥à¤®à¤¾à¤¨ से à¤à¥€ समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ किया गया।
… अयूबशाही शासनकाल में à¤à¤¾à¤°à¤¤ की मà¥à¤¹à¤° लगी हà¥à¤ˆ कोई à¤à¥€ चीज रखना जà¥à¤°à¥à¤® माना जाता था। सैनिक घर-घर की तलाशी लेते थे। à¤à¤• दिन जब हमारे घर में सेना के जवान à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सामानों की जांच करने घà¥à¤¸ आठतब मेरी मां को उनके अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤° के डर से à¤à¤¾à¤°à¤¤ से मंगाई गई अपनी सिनà¥à¤¦à¥‚र की डिबिया को, यह जानते हà¥à¤ à¤à¥€ कि सà¥à¤¹à¤¾à¤—न के लिठसिनà¥à¤¦à¥‚र पानी में फेंकना अपशगà¥à¤¨ होता है, मजबूरन उठाकर खिड़की से बाहर फेंकना पड़ा था…इस बीच अयूब खान ने यह फरमान जारी कर दिया था कि पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ के हर घर में उनकी तसà¥à¤µà¥€à¤° टाà¤à¤—ना अनिवारà¥à¤¯ है। जांच के दौरान जिनके घर में उनकी तसà¥à¤µà¥€à¤° टंगी हà¥à¤ˆ नहीं मिलती थी, कड़ी सज़ा दी जाती…†(पृ 141-142)
जैसा कि ऊपर दिठउदà¥à¤§à¤°à¤£ में सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है, उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ की à¤à¤¾à¤·à¤¾ अतà¥à¤¯à¤‚त साधारण है, और समूचे उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ में कहीं à¤à¥€ कोई à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤ˆ शिलà¥à¤ª नमूदार नहीं होता। कथन में पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ नहीं है, और उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ घटना-पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ होते हà¥à¤ à¤à¥€ आमतौर पर बोà¤à¤¿à¤²-सा बना रहता है। इसके कई खणà¥à¤¡ घोर अपठनीय ही बने रहते हैं।
कà¥à¤² मिलाकर उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ पाठक को लगातार बांधे रखने में अकà¥à¤·à¤® ही रहता है। जाहिर है उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ के ताने-बाने को और कसावदार बà¥à¤¨à¤¾ जा सकता था। दरअसल लेखिका ने मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ संगà¥à¤°à¤¾à¤® के दिनों में पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ सैनिकों तथा उरà¥à¤¦à¥‚à¤à¤¾à¤·à¥€ नागरिकों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बांगà¥à¤²à¤¾à¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर किठगठअतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ तथा मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¨à¥€ के कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• विवरण देने के लोठमें उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ को बिखरा सा दिया है। घटना पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ कथानक में ससà¥à¤ªà¥‡à¤‚स का सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ अà¤à¤¾à¤µ à¤à¥€ आगे पढ़ने में जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ बनाठरखने में मदद नहीं करता।
जो à¤à¥€ हो, 400 पृषà¥à¤ ों की यह किताब बांगà¥à¤²à¤¾ जन जीवन को निकट से जानने समà¤à¤¨à¥‡ वाले, बांगà¥à¤²à¤¾à¤¦à¥‡à¤¶ के इतिहास में रà¥à¤šà¤¿ रखने वाले उतà¥à¤¸à¥à¤• लोगों के लिठनिःसंदेह दिलचसà¥à¤ª रहेगी। और, आम हिनà¥à¤¦à¥€ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ की तरà¥à¤œ पर यह मातà¥à¤° विचारों व कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ की निपट-बयानी नहीं है। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह पारिवारिक, गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ जन-जीवन या दलित-विमरà¥à¤¶ जैसी कहानी नहीं है संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ इसीलिठयह à¤à¥€à¤¡à¤¼ से अलग à¤à¥€ है। पाठक अगर हिनà¥à¤¦à¥€ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ में अगर कà¥à¤› नया सा पढ़ना चाहते हैं तो मैं बोरिशाइलà¥à¤²à¤¾ अवशà¥à¤¯ पढ़ें।



