मन कहे
लेखकः निरंतर पत्रिका दल | November 4th, 2006
मन कहे
समस्या पूर्ति की नई समस्या पर आपका स्वागत है। इस चित्र और दिये शीर्षक पर ध्यान दीजिये और रच डालिए एक छोटी सी कविता। कविता ज्यादा बड़ी न हो तो अच्छा, चार लाईना हो तो उत्तम, हाइकू हो तो क्या कहनें! शीर्षक मुख्यतः भाव के लिए है, पर आप इसे कविता में प्रयोग कर सकते हैं। यदि आपकी रचना निरंतर संपादक मंडल को पसंद आ गई तो आप का नाम अगले अंक में विजेता कर रूप में प्रकाशित होगा। अपनी प्रविष्टि टिप्पणी के माध्यम से ही दें, ईमेल द्वारा भेजी प्रविष्टि मान्य नहीं होगी।
प्रतियोगिता के नियम:
- कविता इस पोस्ट पर अपने टिप्पणी (कमेंट) के रूप में ही प्रेषित करें। ईमेल या निरंतर रचना भेजने के फॉर्म द्वारा प्रविष्टि स्वीकार्य नहीं होगी।
- रचना मौलिक व पूर्व अप्रकाशित होनी चाहिए।
- एक प्रेषक से एक ही प्रविष्टि स्वीकार्य होगी।
- संपादक मंडल का निर्णय साधारण अथवा विवाद की स्थिति में अंतिम व सर्वमान्य होगा।
- संपादक मंडल व उनके परिवार के सदस्य इस प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकते।
- रचना भेजने की अंतिम तिथि हैः 25 नवंबर 2006
पिछली प्रतियोगिता के परिणाम:
अगस्त 2006 की समस्या पूर्ति में अनेकों प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं। सभी का धन्यवाद!
सभी प्रविष्टियाँ बहुत अच्छी थीं पर संपादक मंडल ने बहुमत से "नितिन बागला " की प्रविष्टि को सर्वश्रेष्ठ माना। नितिन को हमारी हार्दिक बधाई!
जब थी जरूरत, तब ना बरसा,
अब देखो पानी ही पानी!
क्या मुझसे कोई बैर है?ईश्वर
क्यूँ करते एसी बेईमानी?
कहाँ से इतना जल है आया,
मेरे मन को कितना भाया,
रोक लूँ इसको हाथ बढाकर,
हो न जाए ये कंही जाया।
मन कहे इतना ना बरसो,
भूखे रहना ना पडे कल परसों।
खेती काटने का वक्त है आया,
डूब जाये ना सारी सरसों।
mat barso itna aaj
maana bahut gehri hai pyaas
par jo saara ras barsa jaoge
kaise pura hoga madhumaas
prayas achcha hai
बारिश मे भीग रहा था वो गरीब।
जिसे मिली थी एक झोपडी अजीब।
वाह रे भगवान् वा तू भी हे अजीब।
किसी को मिलती ज़िन्दगी कोई हे बन जाता फकीर