समरà¥à¤¥ कथा लेखिका व उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤•ार, मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ को समकालीन महिला हिंदी लेखन की सà¥à¤ªà¤°à¤¸à¥à¤Ÿà¤¾à¤° कहें तो अतिशà¥à¤¯à¥‹à¤•à¥à¤¤à¤¿ न होगी। 30 नवंबर, 1944 को अलीगढ़ जिले के सिकà¥à¤°à¥à¤°à¤¾ गांव में जनà¥à¤®à¥€ मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ के जीवन का आरंà¤à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤— बà¥à¤‚देलखणà¥à¤¡ में बीता। आरंà¤à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ à¤à¤¾à¤‚सी जिले के खिलà¥à¤²à¥€ गांव में तथा à¤à¤®.à¤.(हिंदी साहितà¥à¤¯) बà¥à¤‚देलखंड कालेज, à¤à¤¾à¤à¤¸à¥€ से किया। मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ की पà¥à¤°à¤®à¥à¤– साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• कृतियों में शामिल हैं सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ दंश, चाक, अलà¥à¤®à¤¾à¤•बूतरी जैसे उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸, कथा संगà¥à¤°à¤¹ चिनà¥à¤¹à¤¾à¤° और ललमनियाà¤, कविता संगà¥à¤°à¤¹- लकीरें। मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ ने लोकगायक ईसà¥à¤°à¥€ की जीवनी पर उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ लिखा है कहैं ईसà¥à¤°à¥€ फाग। उनकी लिकी कहानी “ढैसला” पर टेलीफिलà¥à¤® का à¤à¥€ निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हà¥à¤† है।
शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ को हिंदी अकादमी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ साहितà¥à¤¯ कृति समà¥à¤®à¤¾à¤¨ दिया गया है। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कहानी ‘फ़ैसला’ पर कथा पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•ार मिला तथा ‘बेतवा बहती रही’ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ पर उ.पà¥à¤°. हिंदी संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द समà¥à¤®à¤¾à¤¨ व ‘इदनà¥à¤¨à¤®à¤®’ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ पर शाशà¥à¤µà¤¤à¥€ संसà¥à¤¥à¤¾ बंगलौर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ नंजनागà¥à¤¡à¥ तिरà¥à¤®à¤¾à¤²à¤‚बा पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•ार। वे म.पà¥à¤°. साहितà¥à¤¯ परिषद दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वीरसिंह देव समà¥à¤®à¤¾à¤¨ से à¤à¥€ नवाज़ी जा चà¥à¤•ी हैं।
मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ के उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ में बà¥à¤‚देलखंड अंचल की जीवंत à¤à¤¾à¤‚की मिलती है। उनके कथा साहितà¥à¤¯ में बदलते हà¥à¤¯à¥‡ समय के साथ बदलती हà¥à¤¯à¥€ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के आखà¥à¤¯à¤¾à¤¨ हैं। नारी जो घर से निकलकर अपने सपने देखती है, अपनी नियति खà¥à¤¦ बनाने के लिये उपकà¥à¤°à¤® करती है, सà¥à¤µà¤¾à¤¬à¤²à¤‚बी बनने के लिये जदà¥à¤¦à¥‹à¤œà¤¹à¤¦ करती है।
पिछले दिनों अपनी कथाजगत में सकà¥à¤°à¤¿à¤¯ योगदान के साथ-साथ ही अपने सनसनीखेज बयानों के लिये जाने वाले हंस के संपादक राजेंदà¥à¤° यादव ने हंस के जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ, 2006 के अंक में मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ मरी हà¥à¤¯à¥€ गाय से करने की बात पर साहितà¥à¤¯ जगत में काफी हलचल हà¥à¤¯à¥€à¥¤ हंस में आजकल पà¥à¤°à¤•ाशित हो रहे पà¥à¤°à¤à¤¾ खेतान के à¤à¤• विवाहित डाकà¥à¤Ÿà¤° से संबंधों को लिखे जा रहे आतà¥à¤®à¤•थातà¥à¤®à¤• संसà¥à¤®à¤°à¤£ काफी चरà¥à¤šà¤¾ में हैं।
इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ सब बिंदà¥à¤“ं को लेकर वरिषà¥à¤ कथाकार अमरीक सिंह दीप ने मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ से विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से बातचीत की। निरंतर के पाठकों के लिये खासतौर पर पेश है इस बातचीत के मà¥à¤–à¥à¤¯ अंश।
जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ, 2006 के ‘हंस’ पतà¥à¤°à¤¿à¤•ा के समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤•ीय नियति पहचानो मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ में राजेंदà¥à¤° यादव ने आपको ‘मरी हà¥à¤ˆ गाय’ का लकब देने के बाद आपकी तारीफ़ के पà¥à¤² बांधे हैं। कà¥à¤¯à¤¾ आप उससे सहमत हैं?
अब देखिठकि मरी गाय à¤à¥€ कहा और तारीफ़ के पà¥à¤² à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बांधे हैं। तारीफ़ सच है या यह दूसरी बात सच है यह तो आप लोग समà¤à¥‡à¤‚ कि ये कà¥à¤¯à¤¾ है। बहरहाल जो मैंने लिखा है या जिन विषयों को लेकर मैंने लिखा है उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ विषयों के मदà¥à¤¦à¥‡à¤¨à¤œà¤¼à¤° रखा है और सिरà¥à¤« यह कहा है। तारीफ़ लग रही है आप लोगों को लेकिन उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सिरà¥à¤« यह कहा है कि यह (मेरा लेखन) अलग है। अलग था, आया नहीं था अà¤à¥€ तक। जो चीज नयी आयी होती है वह नयी लगती ही है। और लगता है नया शोध है, नयी खोज है और नये तरह का साहितà¥à¤¯ आ रहा है। जब और लोग पढ़ते हैं तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ तारीफ़ लगती है। वरना तो तारीफ़ इसमें कà¥à¤› à¤à¥€ नहीं है। à¤à¤• तरह की नयी बात आती है तो यही उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा है। और तो कà¥à¤› नहीं। मà¥à¤à¥‡ तो à¤à¤¸à¤¾ ही लगा बाकी…।
तो आप सहमत नहीं हैं इस बात से?
किस तरह मेरी तारीफ़ की है? अरे नहीं। जो मैंने किया है, लिखा है वही लिखा है उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने। à¤à¤• बात मà¥à¤à¥‡ अचà¥à¤›à¥€ लगी जो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कही, ” तà¥à¤® सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ को गांव लाई। गांव की
सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ और सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के गांव में फरà¥à¤• है।” उनका यह कहना मà¥à¤à¥‡ ठीक लगा कि ये à¤à¤• नई बात हà¥à¤ˆà¥¤ कà¥à¤¯à¤¾ वाकई ही मैंने à¤à¤¸à¤¾ किया है! यूं तो लोग तरह-तरह के कमेंणà¥à¤Ÿ देते हैं, अपनी समà¤à¤¦à¤¾à¤°à¥€ से देते हैं, सहमति-असहमति पà¥à¤°à¤•ट करते हैं। उससे मà¥à¤à¥‡ खास वो नहीं है। जैसे उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सिरà¥à¤« कहा (लिखा) था -“तà¥à¤® नाराज हो?” मैंने कहा था - मनोहर शà¥à¤¯à¤¾à¤® जोशी के लिये आपने इस तरह कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ लिखा?
मैंतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€à¤œà¥€, आपने अपने उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ में वही सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ दिखाई है, वही गांव है जो 35-40 साल पहले का गांव था। कà¥à¤¯à¤¾ अब आपके अगले उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ में गांव की वह सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ आ रही है जिसमें बहà¥à¤¤ से बदलाव हो चà¥à¤•े हैं?
आपने जो कहा है वह कहां? 30-40 साल पहले तो सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ बाहर ही नहीं निकलती थी। सारंग जो साहस दिखाती है, मंदा जैसी लड़की कोई नहीं हो सकती जो कà¥à¤‚वारी रह जाये और गांव, समाज के लिये पूरा जीवन बलिदान कर दे। जिसमें इतना विकà¥à¤·à¥‹à¤ à¤à¥€ है और साहस à¤à¥€à¥¤ तो यह तो 35-40 साल पहले की सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ तो बिलà¥à¤•à¥à¤² नहीं है।
नहीं, मेरा कहना यह था कि अब जो गांव की बहà¥à¤¤ सी महिलायें सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ सीट या महिला सीट होने के चलते आगे तो आ गईं हैं, à¤à¤²à¥‡ ही वे पिछड़ी हà¥à¤ˆà¤‚ थी लेकिन दो चार महीने में वे à¤à¥€ ‘सिसà¥à¤Ÿà¤®’ में रवां हो जाती हैं और वे à¤à¥€ आधà¥à¤¨à¤¿à¤•ता का वही रूप पकड़ लेती हैं। आप अपने उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ में इस सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ को लेकर लिखने के बारे में कà¥à¤› सोचती हैं?
देखिये, मेरी à¤à¤• कहानी है- ‘फैसला” और चार-छह उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ à¤à¥€ यही कहते हैं कि वो घर से निकलकर पंचायत तक आ गई। परà¥à¤šà¤¾ à¤à¤°à¤¨à¥‡ खà¥à¤¦ गई। वह समठरही है कि जब तक इस पंचायत में हसà¥à¤¤à¤•à¥à¤·à¥‡à¤ª नहीं होगा तब तक पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ और ये सब मिलकर उसे à¤à¤¸à¥‡ ही धचके देते रहेंगे जो उसे तबाह करते रहेंगे। कहानी ‘फैसला’ में यही है कि जो पतियों के दबाव हैं वे बरकरार रहेंगे गांव में। अà¤à¥€ à¤à¥€ नहीं बदला है- पिता के दबाव, पति के दबाव, à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ के दबाव, रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ के दबाव- तो वे तो बराबर बने हैं वहां पर अà¤à¥€ à¤à¥€à¥¤ फैसला की बासà¥à¤®à¤¤à¥€ कहती है-” जो आप कह रहे हैं वह नहीं। जो मैं सोच रही हूं वो…। जो मैं सोच रही हूं जो मेरा फैसला है वो।” उसमें à¤à¥€ वो पति के खिलाफ वोट देती है।
आप पहली महिला लेखिका हैं जिसने गांव की सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ की वà¥à¤¯à¤¥à¤¾ को पूरी गहराई से जाना, समà¤à¤¾ और वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ किया है। आपके उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ ‘इदनà¥à¤¨à¤®à¤®à¥’, ‘चाक’, ‘अलà¥à¤®à¤¾ कबूतरी’ में गांव की सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ जितनी पà¥à¤°à¤—तिशीला चितà¥à¤°à¤¿à¤¤ हà¥à¤¯à¥€ हैं कà¥à¤¯à¤¾ आज गांव समाज की सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ वासà¥à¤¤à¤µ में इतनी बदल चà¥à¤•ी हैं?
देखिये, पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦ ने कहा है कि साहितà¥à¤¯ समाज के आगे चलने वाली मशाल है। तो कहीं तो हैं à¤à¤¸à¥€ सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚। इसमें कहीं मà¥à¤à¥‡ ‘विशफà¥à¤² थिंकिंग’ नहीं दिखानी पड़ी कि à¤à¤¸à¤¾ होना चाहिये à¤à¤¸à¤¾ होगा…।
कितने पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ होंगी à¤à¤¸à¥€ सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚?
à¤à¤¸à¥€ सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ निखालिश हों यह नहीं। इनमें कà¥à¤› न कà¥à¤› यथारà¥à¤¥ मिला हà¥à¤† है और कà¥à¤› कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾à¥¤ अनà¥à¤ªà¤¾à¤¤, जरूर उसका फरà¥à¤• हो सकता है। कहीं कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾, कहीं यथारà¥à¤¥ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¥¤ और वो जो सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ है जो à¤à¤• हिमà¥à¤®à¤¤ है, हौसला है, जो खà¥à¤¦ को वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करने की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ आ रही है सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में। इतना मैं दिखा à¤à¥€ रही हूं लेकिन कहीं-कहीं जहां मà¥à¤à¥‡ कमजोर लगता है, वहां मैं अपनी विशफà¥à¤² थिंकिंग से, आकांकà¥à¤·à¤¾ से अपने सपने को सच करती हूं।
आपकी आतà¥à¤®à¤•था, ‘कसà¥à¤¤à¥‚री कà¥à¤‚डल बसै’ में वैसी बेबाकी नहीं है जैसी अà¤à¥€ पà¥à¤°à¤à¤¾ खेतान की आतà¥à¤®à¤•था, से अननà¥à¤¯à¤¾ तक में हैं।
मà¥à¤à¥‡ नहीं मालूम। मैंने पढा़ à¤à¥€ नहीं अà¤à¥€à¥¤ थोड़ा पढा़ है, जितना हंस में छà¥à¤ªà¤¾ है। देखिये मेरा और उनका ( पà¥à¤°à¤à¤¾ खेतान का) परिवेश बिलà¥à¤•à¥à¤² अलग है। जिन परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने मà¥à¤à¥‡ बनाया जाहिर है उनà¥à¤¹à¥€ परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ नहीं बनाया। उनका बचपन देखिये और मेरा बचपन देखिये। बहà¥à¤¤ अनà¥à¤¤à¤° दिखाई देगा आपको। मैं à¤à¤• गांव की लड़की, जहां सड़क à¤à¥€ नहीं, कोई सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ नहीं, कोई सà¥à¤•ूल नहीं।… और वो à¤à¤• मारवाड़ी परिवार और वह à¤à¥€ अचà¥à¤›à¥‡-खासे धनाढà¥à¤¯à¥¤ उसमें पली-बà¥à¥€à¤‚ वे, तो उसमें फरà¥à¤• तो होगा ही।
और आप जिसे बेबाकी मानते हैं उसका मà¥à¤à¥‡ नहीं मालूम। जो मैंने पà¥à¤¾ है वो उनका इसलिये है कि डाकटर से जो संबंध हैं, उसमें बेबाकपना दिखाती हैं, वो उस समय का है जब वे काफ़ी ‘मैचà¥à¤¯à¥‹à¤°’ हो चà¥à¤•ीं थीं। मेरा उस जमाने का है जब मैं बहà¥à¤¤ कचà¥à¤šà¥€ अवसà¥à¤¥à¤¾ में, ‘सà¥à¤•ूल गोइंग’ लड़की थी। उनके अनà¥à¤¦à¤° बहà¥à¤¤ समà¤à¤¦à¤¾à¤°à¥€ à¤à¥€ है। मेरे अनà¥à¤¦à¤° समà¤à¤¦à¤¾à¤°à¥€ à¤à¥€ नहीं है। तो उसे आप बेबाकी में रखिये। मेरे को चाहे आप नादानी में रखिये-यह आपके ऊपर है।
हिंदी साहितà¥à¤¯ के समकालीन सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ लेखन से कà¥à¤¯à¤¾ आप संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ हैं?
अà¤à¥€ संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ होने की बात ही नहीं है। अà¤à¥€ वो चीजें आरी नहीं हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आना है। à¤à¤• और बात है कि अà¤à¥€ सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ दो ‘गà¥à¤°à¥à¤ªà¥à¤¸’ में बंटीं हैं। à¤à¤• तो वे जो सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ विमरà¥à¤¶ को खारिज कर रही हैं। दूसरी सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ विमरà¥à¤¶ को महतà¥à¤µ दे रहीं हैं। अà¤à¥€ तो यह à¤à¥€ मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾ चल रहा है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ विमरà¥à¤¶ यहां बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ नहीं है। सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के ऊपर सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ ने लिखा है लेकिन सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ विमरà¥à¤¶ कà¥à¤¯à¤¾ है इस पर बात नहीं हà¥à¤ˆà¥¤ अà¤à¥€ तो पूरा सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ विमरà¥à¤¶à¥ कà¥à¤¯à¤¾ होता है इसी की परिà¤à¤¾à¤·à¤¾ नहीं पता सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को औरॠराजेंदà¥à¤°à¥ यादव ने जो हंस के समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤•ीय में लिखा है उसमें बहà¥à¤¤ कà¥à¤› समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ है। हालांकि वे पà¥à¤°à¥à¤· हैं लेकिन मेरे खà¥à¤¯à¤¾à¤² में सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ लेखन से ही लेकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने निचोड़ निकाला है।
à¤à¤• समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ परिवार की महिला होते हà¥à¤¯à¥‡ à¤à¥€ कैसे आप बà¥à¤‚देलखंड के गांव की निमà¥à¤¨à¤µà¤°à¥à¤—ीय सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ की समसà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ व पीड़ाओं को इतनी गहराई से समठऔर वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ कर लेती हैं?
असल में दीपजी, लोगों को à¤à¤¸à¤¾ à¤à¥à¤°à¤® है कि मैं à¤à¤• समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ परिवार की महिला हूं। जब मैं महिला हà¥à¤ˆ और उतरती अवसà¥à¤¥à¤¾ की महिला हà¥à¤ˆ तब समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ दिखने लगी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि लड़कियां बड़ी हो गयीं, परिवार à¤à¥€ समरà¥à¤¥ हो गया। उससे पहले तो मैं बहà¥à¤¤ विपनà¥à¤¨ और बहà¥à¤¤ निमà¥à¤¨ मधà¥à¤¯à¤µà¤°à¥à¤— की लड़की थी जिसके पास वो सहारा à¤à¥€ नहीं था जो गांव की लड़कियों के पास होता है। आपने ‘कसà¥à¤¤à¥‚री कà¥à¤‚डल बसै’ में पà¥à¤¾ होगा कि मैं à¤à¤¸à¥€ लड़की थी जिसके पास खाने के लिये रोटी à¤à¥€ नहीं थी, रहने के लिये घर नहीं था, पढ़ने के लिये साधन नहीं थे…।
इसको मैं पलट दूं कि आदमी सारी उमà¥à¤° à¤à¥‚ला जाता है लेकिन बचपन नहीं à¤à¥‚लता। तो बचपन à¤à¤¸à¥€ निशà¥à¤›à¤² चीज है जो अà¤à¥€ तक याद है। बचपन विपनà¥à¤¨à¤¤à¤¾ में गà¥à¤œà¤°à¤¾, संकटों में गà¥à¤œà¤°à¤¾à¥¤ वही सब मेरे साथ था जिसे मैं साहितà¥à¤¯ में ले आई। वही सब आज à¤à¥€ मà¥à¤à¥‡ उनसे जोड़े हà¥à¤¯à¥‡ है। मà¥à¤à¥‡ किसी à¤à¥€ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में, देश के किसी à¤à¥€ इलाके में à¤à¥‡à¤œ दीजिये मैं बहà¥à¤¤ खà¥à¤¶ रहूंगी और वहां जैसे मैंने बचपन काटा वैसे ही लोगों से जà¥à¥œà¤•र फिर कà¥à¤› लिखना चाहूंगी।
इस वकà¥à¤¤ आप कà¥à¤¯à¤¾ लिखा रहीं हैं?
हर लेखक से यह सवाल पूछा जाता है कि वह कà¥à¤¯à¤¾ लिख रहा है! यह तो पकà¥à¤•ा है कि लेखक लिखे बिना नहीं रह सकता। उसके हिसाब से कोई छोटा-बड़ा लेखन नहीं होता है। लेखक जो à¤à¥€ लिखता है पूरी ताकत से लिखता हैं, उनकी किताब à¤à¥€ आ गई है- ‘सà¥à¤¨à¥‹ मालिक सà¥à¤¨à¥‹’।
à¤à¤• जो असंतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ होती है लेखक में कि अà¤à¥€ हमने जो लिखना था वह लिखा नहीं पाया…?
हां…। अब तो मैं इसलिये लिख रही हूं कि आतà¥à¤®à¤•था का दूसरा à¤à¤¾à¤— लिख सकूं।
‘कसà¥à¤¤à¥‚री कà¥à¤‚डल बसै’ का दूसरा à¤à¤¾à¤—?
हां, मेरे लिये वह बहà¥à¤¤ जरूरी है। कà¤à¥€ न कà¤à¥€ लिखूंगी। जो पाठक वरà¥à¤— इतना फैल गया है वह कहता है कि ‘कसà¥à¤¤à¥‚री कà¥à¤£à¥à¤¡à¤² बसै’ के बाद यह बताइये कि आप लेखिका कैसे बनीं? जो लड़की इस तरह की थी वह लेखिका कैसे बन गई? इतने बीहड़ से आकर। और जान लीजिये इसमें मेरी शादी का, मेरे पति का कोई सहयोग नहीं। यह तो मेरे अंदर ही कà¥à¤› होगा उसी से लिखा यह सब। लेखिका कैसे बन गई यह सब बताना है मà¥à¤à¥‡à¥¤
लिखने की यह पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾, यह उतà¥à¤•ट जजà¥à¤¬à¤¾ कहां से आया आप में?
लोग à¤à¤•दम से कह देते हैं कि मेरी पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ यह है, वह है। यह गलत है। वो पूरा सोच नहीं पाते। à¤à¤•दम से कह देते हैं, उतावली में। पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ à¤à¤• नहीं होती। पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ à¤à¤• à¤à¥€ नहीं होती, à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¥€ नहीं होतीं। पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ तो थोड़ी-थोड़ी जाने कहां-कहां से मिलती है और वह à¤à¤• जजà¥à¤¬à¤¾ बन जाती है।
आपने अपनी लेखन शà¥à¤°à¥‚ किया है सरिता वगैरह से और उसके बाद से à¤à¤•दम इतना परिपकà¥à¤µ लेखन! यह कैसे हà¥à¤†?
असल में पहले तो मà¥à¤à¥‡ यह à¤à¥€ नहीं पता था कि जो मैं लिखूंगी वह छप à¤à¥€ जायेगा, जैसा कि हर लेखक को लगता है। मैं बार-बार कहती हूं कि मेरी बड़ी बेटी है, उसने कहा कà¥à¤› लिखो। तà¥à¤® हमारे लिये लिखतीं थीं तो कà¥à¤› इनाम-विनाम मिल जाते थे। अपने नाम से लिखो। तो मैंने उससे यह कहा था कि बेटा मेरा नाम कà¥à¤¯à¤¾ है? मैं तो नाम à¤à¥€ à¤à¥‚ल गई। मैं तो मिसेज शरà¥à¤®à¤¾ हूं। डाकà¥à¤Ÿà¤° आर.सी.शरà¥à¤®à¤¾ की वाइफ। इसके सिवा मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤› याद नहीं। तो उस वकà¥à¤¤ मैं इस अवसà¥à¤¥à¤¾ में थी। बचà¥à¤šà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के कहने से मैंने कहानी लिखी। मà¥à¤à¥‡ नहीं पता था कि वह छपेगी à¤à¥€ या नहीं। वह छपी à¤à¥€ नहीं। पढती à¤à¥€ थी लेकिन पढने की à¤à¤• और विडमà¥à¤¬à¤¨à¤¾ मेरे साथ थी कि जब मैं किसी की कहानी पढ़ती थी, मान लो मैं धरà¥à¤®à¤¯à¥à¤— या सापà¥à¤¤à¤¾à¤¹à¤¿à¤• हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ में किसी की कहानी पढ़ रही हूं, उसके समानानà¥à¤¤à¤° मेरे मन में कोई कहानी चलने लगती थी। मैं इससे इतनी परेशान हो जाती थी कि पढ़ना छोड़ देती थी और अपनी मन की कहानी कहने लगती थी। इस तरह दूसरे की कहानी को à¤à¥€ à¤à¤• पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ कह सकते हैं। मैं उस समय इस अवसà¥à¤¥à¤¾ में थी कि यह जानते हà¥à¤¯à¥‡ à¤à¥€ कि यह कहानी छपेगी नहीं मैंने कहानी लिखी। कहानी छपी नहीं लेकिन मैंने हिमà¥à¤®à¤¤ नहीं हारी। जैसा कि नये लेखक करते हैं कि à¤à¤• बार कहानी नहीं छपी तो निराश हो जाते हैं कि हम फिर कà¤à¥€ नहीं लिखेंगे। मैंने सोच लिया था कि बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ ने कहा है तो अब मैं यह नहीं करूंगी कि नहीं छपी तो नहीं लिखूंगी।
फिर मैंने लिखी कहानी। वह नहीं छपी तो फिर लिखी। फिर-फिर लिखी। à¤à¤• कहानी ‘सापà¥à¤¤à¤¾à¤¹à¤¿à¤• हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨’ में छप गई। जब à¤à¤• बार छप गई तो लिखना शà¥à¤°à¥‚ हो गया। यह à¤à¥€ बहà¥à¤¤ जरूरी है किसी लेखक के लिये उसका à¤à¤•बार छप जाना।
अब आप कैसा महसूस करती हैं? à¤à¤• नामी डाकà¥à¤Ÿà¤° की पतà¥à¤¨à¥€ और à¤à¤• पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित लेखिका हैं, इन दोनों के साथ आप कैसा महसूस करती हैं?
देखिये डाकà¥à¤Ÿà¤° की पतà¥à¤¨à¥€ तो मैंने कà¤à¥€ महसूस ही नहीं किया। ठीक है कि मैं शादी करके आई थी। अà¤à¥€ मैंने अपनी पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ चिटà¥à¤ ियां निकालकर पà¥à¥€à¤‚ तो मेरी à¤à¤• चिटà¥à¤ ी, बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ चिटà¥à¤ ी, जब मैं बीस वरà¥à¤· की थी और मेरी शादी के शà¥à¤°à¥‚-शà¥à¤°à¥‚ के दिन रहे होंगे, उसमें मैंने à¤à¤• वाकà¥à¤¯ अपने पति को लिखा था-“मैंने तो साथी-सखा ढूंढा था तà¥à¤® तो मालिक हो गये।” तो मà¥à¤à¥‡ à¤à¤•दम से लगा कि ये कीटाणॠकब से रेंग रहे थे मेरे मन में, कब से कà¥à¤²à¤¬à¥à¤²à¤¾ रहे थे जो मैंने à¤à¤¸à¤¾ लिखा!
तो सच तो यह है कि पतà¥à¤¨à¥€ कà¤à¥€ माना ही नहीं मैंने खà¥à¤¦ को। यह मेरे पति का दà¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ समठलीजिये कि मैने पतà¥à¤¨à¥€ की तरह कà¤à¥€ उनकी सेवा नहीं की जैसी दूसरी औरतें करती हैं कि कहीं जा रहे हैं तो अटैची लगा दी, नहाने जा रहे हैं तो कपड़े रख देतीं हैं, उनके कपड़े पà¥à¤°à¥‡à¤¸ करतीं हैं -यह कà¤à¥€ नहीं किया। और पति ने कà¤à¥€ इस बात की शिकायत नहीं की। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमेशा अपना काम कर लिया। मैंने कà¤à¥€ नहीं पूछा कि तà¥à¤® कब आओगे तो लोगों को इससे बहà¥à¤¤ शिकायत होती है कि वो जाते हैं तो तà¥à¤® तो पूछ लेतीं कि कब वापस आओगे? पर उनके जाने पर मैं खà¥à¤¦ को सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° महसूस करती। मैं सोचती कि अब मैं अपने मन का कà¥à¤› करूंगी। कà¥à¤› अपने मन का करूंगी, कà¥à¤› गज़ल सà¥à¤¨à¥‚ंगी।
जैसे पेपरवेट उठगया। अब मैं उडूंगी?
हां, इस तरह उडूंगी चाहे घर में ही उडूं। हालांकि पति सोचते थे कि ये कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं मानती। वो मà¥à¤à¥‡ उदाहरण à¤à¥€ देते दूसरी सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के। मैं कहती थी कि पता नहीं, मैंने तà¥à¤®à¤¸à¥‡ शादी इसलिये नहीं की। हालांकि मेरा पà¥à¤°à¥‡à¤® विवाह नहीं हà¥à¤† था, अरेंजà¥à¤¡ मैरिज थी लेकिन अरेंजà¥à¤¡ मैरिज à¤à¥€ मेरी मरà¥à¤œà¥€ से हà¥à¤ˆ थी। मैं कहती कि मैं तà¥à¤®à¤•ो पति मानकर नहीं आई थी मैंने तो सोचा था कोई साथी मिलेगा। तो यह समà¤à¥‡ लीजिये कि मैंने पारंपरिक रूप में पतà¥à¤¨à¥€ कà¤à¥€ नहीं माना अपने-आपको। हां, लेखिका à¤à¥€ नहीं माना अपने आपको। कोई कहता है लेखिका तो मैं सकà¥à¤šà¤¾ जाती हूं,संकोच होता है कि मैं कहां लेखिका। जो था मेरे पास…तो ठीक है लिखती हूं। जो रचनाओं में, बहस में, विवादों में आया है वह मेरे लेखन का, साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾ में कà¥à¤¯à¤¾ कहते हैं, अवदान रहेगा।
