दिवंगत पतà¥à¤°à¤•ार, कवियतà¥à¤°à¥€ व लेखिका सà¥à¤®à¤¨ सरीन को निरंतर की शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚जलि
लंबी बीमारी ने पतà¥à¤°à¤•ार, गीतकार, कवियतà¥à¤°à¥€ और लेखिका सà¥à¤®à¤¨ सरीन के शरीर को जरà¥à¤œà¤° तो पहले ही कर दिया था शायद उस दिन मन ने à¤à¥€ हथियार डाल दिया होगा। अपने घरौंदे के गिरà¥à¤¦ रहना चाहà¥à¤¤à¥€ थीं उस दिन, तà¤à¥€ तो पति की बांह पकड़ दफà¥à¤¤à¤° जाने से रोक लिया। उनके पति यानी नवà¤à¤¾à¤°à¤¤ टाइमà¥à¤¸ में वरिषà¥à¤ पतà¥à¤°à¤•ार कैलाश सेंगर के मन में अपनी सà¥à¤®à¤¨ को लेकर की विदाई की शंका तो हà¥à¤ˆ मगर वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ उनका पà¥à¤¯à¤¾à¤° इस शंका को वहम मानने पर उतारू था।
अगली सà¥à¤¬à¤¹ यानी 1 अगसà¥à¤¤, 2006 को वहम के लिठकोई जगह नहीं बची, शंका हकीकत बन चà¥à¤•ी थी। à¤à¤• सोनचिरैया हम सब से विदा हो चली थी।
किसी के चले जाने के बाद उसकी शखà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¤ पीछे छूट गये लोगों की यादों से बनती है। लेखक ने à¤à¥€ उनकी शखà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¤ जाननी चाही…उनके अपनों की यादों को खंगाला…जो चली गईं वो सिरà¥à¤« काया थी…और इन यादों से जो निकलीं वो आज हमारे बीच सà¥à¤®à¤¨ सरीन हैं।
वरिषà¥à¤ पतà¥à¤°à¤•ार और ‘धरà¥à¤®à¤¯à¥à¤—’ पतà¥à¤°à¤¿à¤•ा में सà¥à¤®à¤¨à¤œà¥€ के सहयोगी रहे अà¤à¤¿à¤²à¤¾à¤· अवसà¥à¤¥à¥€ से जब उनकी सà¥à¤®à¤¨ सरीन के बारे में पूछा तो उनसे पहली मà¥à¤²à¤¾à¤•ात का दृशà¥à¤¯ अà¤à¤¿à¤²à¤¾à¤·à¤œà¥€ के आंखों के सामने था जस का तस उà¤à¤° आया। अà¤à¤¿à¤²à¤¾à¤· अवसà¥à¤¥à¥€ के शबà¥à¤¦, "धरà¥à¤®à¤¯à¥à¤— में मेरा पहला दिन था, बगल की कà¥à¤°à¥à¤¸à¥€ पर मिडी पहिने आकरà¥à¤·à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ वाली पतली दà¥à¤¬à¤²à¥€-सी à¤à¤• लड़की बैठी थी। अनजान शहर मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ में नये-नये आये मà¥à¤ ठेठकनपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ में तब इतनी हिमà¥à¤®à¤¤ कहां थी कि à¤à¤• शहरी लड़की से बातचीत शà¥à¤°à¥‚ कर पाता। à¤à¥‹à¤œà¤¨ के समय खà¥à¤¦ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ही पहल की और मेरे लिठ‘तà¥à¤®’ शबà¥à¤¦ का इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² किया। औपचारिक संबोधनों के थपेड़ों के बीच यह ‘तà¥à¤®’ नरम बयार-सी लगी।"
इस ‘तà¥à¤®’ शबà¥à¤¦ की बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦ पर अà¤à¤¿à¤²à¤¾à¤·à¤œà¥€ से उनका सहयोगी, दोसà¥à¤¤ और à¤à¤¾à¤ˆ जैसे रिशà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की इमारत खड़ी हà¥à¤ˆà¥¤
इतनी सहजता से रिशà¥à¤¤à¥‡ बना और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दूर तक निà¤à¤¾ ले जाने की ताकत कहां से पातीं थीं सà¥à¤®à¤¨? यह सवाल मेरे मन था। जिसका जवाब मिला मà¥à¤à¥‡ नवà¤à¤¾à¤°à¤¤ टाइमà¥à¤¸ के लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ कॉलम ‘पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¤¾à¤®à¤¾’ लिखने वाले फिरोज अशरफ साहब के पास। अशरफ तो तकरीबन 25 साल पहले सà¥à¤®à¤¨à¤œà¥€ के पटना से मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ आने को ही à¤à¤• साहसिक कदम मानते हैं। वो बिहारी समाज का हवाला देते हà¥à¤ कहतें है, "जिस समाज में आज à¤à¥€ लड़कियों के लिठमà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ जैसे शहर में आना बड़ी बात है वैसे समाज से आज से 25 साल पहले मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ आना और वह à¤à¥€ हिंदी पतà¥à¤°à¤•ारिता और लेखन के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में काम करने के लिअयकीन मानिये यह किसी कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति से कम नहीं था।" सच à¤à¥€ है, à¤à¤¸à¥€ छोटी-छोटी कà¥à¤°à¤¾à¤‚तियां रिशà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के लशà¥à¤•र के बल पर ही तो की जाती है।
शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ के इस चितेरी को अपने लिठà¤à¤• बड़े कनवास की तलाश हमेशा से रही। बात उन दिनों की है जब सà¥à¤®à¤¨à¤œà¥€ पटना रेडियो के लिठकाम करती थी। शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ की उलटियां करने वाले नेताओं को à¤à¤²à¥‡ वहां के गांधी मैदान की जमीन बड़ी लगती होगी, मगर मासूम शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ की फसल उगाने वाली सà¥à¤®à¤¨à¤œà¥€ की खेती के लिठपटना का पूरा आकाश à¤à¥€ मà¥à¤•à¥à¤•मल जमीन नहीं दे पा रहा था। उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ दिनों वे अपनी रचनाओं के माधà¥à¤¯à¤® से पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित पतà¥à¤°à¤¿à¤•ा ‘माधà¥à¤°à¥€’ के संपादक विनोद तिवारीजी के संपरà¥à¤• में आयीं। विनोदजी उनके à¤à¤• ख़त को याद करते हैं जिसमें उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लिखा था कि वे अपनी रचनाधरà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ के लिठà¤à¤• बड़ा कà¥à¤·à¤¿à¤¤à¤¿à¤œ चाहती है…वो मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ आना चाहती हैं।
मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ में अपने लिठछत का इंतजाम खà¥à¤¦ कर पाने की सूरत में विनोदजी ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ नियमित लिखने के मौके का आशà¥à¤µà¤¾à¤¸à¤¨ दिया। बस फिर कà¥à¤¯à¤¾ था? इस आशà¥à¤µà¤¸à¤¨ की ऊंगली थाम सà¥à¤®à¤¨à¤œà¥€ मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ में थीं। यहां धरà¥à¤®à¤¯à¥à¤—, माधà¥à¤°à¥€ और पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ जैसी पतà¥à¤°à¤¿à¤•ाओं में काम करके उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सबको अपनी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ का लोहà
¤¾ मनवाया। उनकी गीतों के सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ कायल रहे विनोदजी उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤• सहज गीतकार मानते हैं। हालांकि सà¥à¤®à¤¨à¤œà¥€ ने कà¥à¤› फिलà¥à¤®à¥‹à¤‚ के लिठगीतों की रचनाà¤à¤‚ की हैं, मगर विनोदजी को मलाल है कि बॉलीवà¥à¤¡ साहितà¥à¤¯ से जà¥à¥œà¥€ इस गीतकार से काफी कà¥à¤› पाने से वंचित रह गया।
बात पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ की चली तो दà¥à¤·à¥à¤¯à¤‚त कà¥à¤®à¤¾à¤° के बाद हिंदी गजल के संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ सबसे बड़े नाम सूरà¥à¤¯à¤à¤¾à¤¨à¥ गà¥à¤ªà¥à¤¤ के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ से हर कोई इतà¥à¤¤à¥‡à¤«à¤¾à¤• रखेगा, "धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ के दौर में धरà¥à¤®à¤¯à¥à¤— में होना ही पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤µà¤¾à¤¨ होने का सरà¥à¤Ÿà¤¿à¤«à¤¿à¤•ेट था।" इसी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ का ही कमाल था कि अपने दौर के दूसरों के मà¥à¤•ाबले उनका लेखन यादगार है। गà¥à¤ªà¥à¤¤ कहते हैं, "सà¥à¤®à¤¨à¤œà¥€ की कविताओं में बौदà¥à¤§à¤¿à¤•ता का बोठनहीं बलà¥à¤•ि सहजता की धारा थी। यही बात पाठकों को उनसे जोड़ती थी।"
आज अगर सà¥à¤®à¤¨à¤œà¥€ होतीं तो गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤œà¥€ की इस पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा का शà¥à¤°à¥‡à¤¯ धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ के चरणों में धर देतीं। कारण…अपनी लेखनी में निखार को वे à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤œà¥€ की शिकà¥à¤·à¤¾ का नतीजा मानती थीं। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤œà¥€ के लिठसà¥à¤®à¤¨ और कैलाश à¤à¥€ बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की तरह थे…डांट, डपट और दà¥à¤²à¤¾à¤° पाते उनके बचà¥à¤šà¥‡à¥¤ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤œà¥€ की पतà¥à¤¨à¥€ और लेखिका पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ इन तीनों के संबंधों को याद करते हà¥à¤ बताती है कि दोनों à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤œà¥€ को बहà¥à¤¤ पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ थे। सिरà¥à¤« दà¥à¤²à¤¾à¤° में ही नहीं इस दमà¥à¤ªà¤¤à¤¿ में तकरार à¤à¥€ हो जाये तो आखरी अदालत à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤œà¥€ की चौखट ही होती थी।
जब खà¥à¤¦ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ से सà¥à¤®à¤¨à¤œà¥€ के बारे में राय जाननी चाही तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दिवंगत को बड़े अनोखे अंदाज में याद किया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा, "जब मैंने पहली बार सà¥à¤®à¤¨ को देखा तो मà¥à¤à¥‡ वो पसंद नहीं आई…उसकी दà¥à¤¬à¤²à¥€-पतली काया खà¥à¤¦ में सिमटी हà¥à¤ˆ लिजलिजी-सी लगी। वह मà¥à¤à¥‡ बेहद कमजोर लगी। लेकिन मैंने जब उसकी रचनाà¤à¤‚ पà¥à¥€ तब मà¥à¤à¥‡ अपनी राय फौरन बदलनी पड़ी। उसके शबà¥à¤¦ ही उसकी ताकत थे। उसकी संवेदनशीलता, सहजता और ताजगी ने हमेशा मà¥à¤à¥‡ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ किया। आज जब उसकी चरà¥à¤šà¤¾ छिड़ती है तो à¤à¤• मीठी याद बनकर जेहन में उतर जाती है।"
सà¥à¤®à¤¨ सरीन की बात की जाय और विजà¥à¤žà¤¾à¤ªà¤¨ जगत में उनके काम की चरà¥à¤šà¤¾ न हो तो बात अधà¥à¤°à¥€ लगती है। जी हां, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ‘तà¥à¤°à¤¿à¤•ाया गà¥à¤°à¥‡’ नामक विजà¥à¤žà¤¾à¤ªà¤¨ à¤à¤œà¥‡à¤‚सी, जिसे इन दिनों ‘गà¥à¤°à¥‡ वरà¥à¤²à¥à¤¡à¤µà¤¾à¤‡à¤¡’ के नाम से जाना जाता है, को अपना खासा समय दिया है। वहां लैंगà¥à¤µà¥‡à¤œ डिपारà¥à¤Ÿà¤®à¥‡à¤‚ट में उनके बॉस रहे सà¥à¤œà¥‰à¤¯ सेन के पास बताने को बहà¥à¤¤ कà¥à¤› है। सà¥à¤œà¥‰à¤¯ याद करते हैं कि à¤à¤¾à¤·à¤¾ पर अधिकार रखने वाली सà¥à¤®à¤¨à¤œà¥€ के लिठविजà¥à¤žà¤¾à¤ªà¤¨ जगत à¤à¤• नयी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ थी। लेकिन जितनी जलà¥à¤¦à¥€ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इस काम की बारीकियां सीखीं उसकी मिसाल सà¥à¤œà¥‰à¤¯ आज à¤à¥€ दूसरों को देते हैं। वे बताते हैं कि ‘जॉनसन à¤à¤‚ड जॉनसन’ बà¥à¤°à¤¾à¤‚ड के बेहद संवेदनशील समà¤à¥‡ जाने वाले विजà¥à¤žà¤¾à¤ªà¤¨à¥‹à¤‚ के लिठउनकी लाइनें à¤à¤•दम से दिल को छू जाती थीं। सà¥à¤œà¥‰à¤¯ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤• बेहतर टीम पà¥à¤²à¥‡à¤¯à¤° के रूप में देखते हैं जो न सिरà¥à¤« खà¥à¤¦ अचà¥à¤›à¤¾ काम करती थीं बलà¥à¤•ि दूसरों के अचà¥à¤›à¥‡ काम को à¤à¥€ खà¥à¤² कर सराहती थीं।
उनकी कॉपी सिरà¥à¤« विजà¥à¤žà¤¾à¤ªà¤¨ को ही जानदार नहीं बनाती थीं बलà¥à¤•ि साथ काम करने कनिषà¥à¤ सहयोगियों के लिठपà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ à¤à¥€ थीं। उनकी हौसला अफज़ाई उनके कई कनिषà¥à¤ सहयोगियों के जेहन में आज à¤à¥€ ताज़ा हैं। इन दिनों रेडियो के लिठकाम करने वाली रितॠà¤à¤²à¥à¤²à¤¾ à¤à¥€ उनमें से à¤à¤• हैं। रितॠने ‘पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾’ में उनके साथ काम किया था। सीखने-सिखाने का दौर à¤à¤¸à¤¾ चला कि रितॠके लिठसà¥à¤®à¤¨ ‘सà¥à¤®à¤¨ दीदी’ हो गई।
सहेलियों में रूमा सेनगà¥à¤ªà¥à¤¤ को जाते-जाते अपनी सà¥à¤®à¤¨ से à¤à¤• शिकायत रह गई कि आखरी दिनों में उसने मिलने का बेहद कम मौका दिया। लंबी बीमारी की वजह से कà¥à¤› न कर पाने की वजह से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बेहद मायà¥à¤¸à¥€ थी। किसी से मिलनà
¥‡ की तो जो जैसे इचà¥à¤›à¤¾ ही उनके à¤à¥€à¤¤à¤° खतà¥à¤® हो गई थी। कà¤à¥€ कà¤à¤¾à¤° कà¥à¤› अपनों से फोन पर बात कर मन हलà¥à¤•ा करने की कोशिश करती। à¤à¤¸à¥‡ ही फोन कॉलà¥à¤¸ वे बड़े à¤à¤¾à¤ˆ समान नवà¤à¤¾à¤°à¤¤ टाइमà¥à¤¸ के संपादक शचीनà¥à¤¦à¥à¤° तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¤¾à¤ ी को à¤à¥€ करतीं। कहां तो शचीनà¥à¤¦à¥à¤° ने सोचा था कि इन फोन कॉलà¥à¤¸ का सिलसिला फिर से मिलने-मिलाने में तबà¥à¤¦à¥€à¤² होगा…मगर हà¥à¤† वही जो à¤à¤—वान को मंजूर था।
आज सà¥à¤®à¤¨à¤œà¥€ अपनों की यादों में सिमटकर रह गईं हैं। उनके असमय चले जाने से ग़मगीन उनके चाहने वालों को सà¥à¤®à¤¨à¤œà¥€ के लिठबड़े à¤à¤¾à¤ˆ समान रहे ‘कावà¥à¤¯à¤¾’ पतà¥à¤°à¤¿à¤•ा के संपादक हसà¥à¤¤à¥€à¤®à¤² हसà¥à¤¤à¥€ की ये बातें शायद कà¥à¤› संतोष दें, "जरूरी नहीं की सà¥à¤®à¤¨ बगिया में लंबे समय तक रहे, अहम ये है सà¥à¤®à¤¨ का वजूद जब तक रहा उसने खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ ही बिखेरी।"
