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इंटरनेट बुराइयों की जड़ है!

अगर इंटरनेट नहीं होता तो सैकड़ों फ़िशर्स, स्पैमर्स, वायरस लेखक तो भूखे ही मर जाते। हैकरों और क्रैकरों का क्या होता। पॉर्न इंडस्ट्री कहां जाती? पढ़िये रविशंकर श्रीवास्तव की गुगदुगाने वाली रचना!

भारतीय समाज और भ्रष्टाचार

क्या भ्रष्टाचार हम भारतीयों के जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है? क्या हम कभी इससे स्वतंत्र हो पाएँगे? अन्तर्जाल पर किसका वर्चस्व रहेगा गुंडों मवालियों का या उनका जो रचनात्मक कार्य करते हैं, नए रास्ते खोलते हैं? इन दोनों मुद्दों पर पढ़ें निरंतर के जुलाई २००५ अंक की संपादकीय राय.