खो गए ओ घन कहाँ तुम
लेखकः देबाशीष चक्रवर्ती | May 23rd, 2005
सूना जीवन |
दीपा जोशी |
खो गए ओ घन कहाँ तुम
हो कहाँ किस देश में पथरा गई कोमल धरा चिर विरह की सेज में। थी महक जिसमें समाई हो गए जो विरल घन तुम लौट आओ तुम नीरधर |
अभिप्साअरूण कुलकर्णी |
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यह मेरा स्वल्प सा जीवन ले आया है नये उमंग चाहता तो हूँ या कर दूँ सुशोभित अपने ही रंगों से कर दूँ चाहता हूँ हवा के झोंकों पर कभी कभी होता हूँ चिंतित मगर |
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यह भी हो सकता है या बनना पडे फिर चलता है मन में द्वंद्व |