जब बड़े इंसानों ने धर्म की परिकल्पना की होगी तो शायद पावन उद्देश्य रहा होगा, मेरा कुनबा, एक ख्याल लोग, मेरा समूह साथ रहे तो रोजी रोटी अच्छी कटेगी। फिर लोगों ने धर्म से प्यार हटा कर स्वार्थ जोड़ दिया और परिदृश्य बदल गया। पढ़ें देबाशीष की कहानी का दूसरा और अन्तिम भाग। »
संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी हिन्दी सॉफ़्टवेयर उपकरणों और फ़ॉण्ट संग्रह की मुफ़्त सीडी से हिन्दी के प्रयोक्ताओं की आशाओं को पूरी होगी या नहीं यह जानने के लिए विनय जैन ने इन उपकरणों का परीक्षण किया। »
फॉयरफॉक्स की विशेषताओं को अपने सरल अंदाज में बताता पंकज नरुला की फॉयरफॉक्स श्रृंख्ला का यह तीसरा व अंतिम लेख है। इस अंक में आप पढ़ेगें कि कैसे गूगल सरीखे ज्यादा जाने जाए वाले सजालो के लिए शक्तिसर्च कैसे बनाएं। »
गोरेपन की क्रीम बेतहाशा बिकती है. स्वास्थ्य पर इसके विपरीत प्रभावों तथा विज्ञापनों को शानदार पति व करियर का जरिया बताने पर आपत्ति उठती रही है. चारूकेसी तफ्तीश कर रही हैं गोरेपन के उत्पादों के काले पक्ष की. »
कैसे काम करती हैं गोरेपन की क्रीम से कॉन्डोम तक की प्रचार सामग्री तैयार करतीं विज्ञापन कंपनियाँ, बता रहे हैं पेशेवर कापीराईटर व चिट्ठाकार चंद्रचूदन गोपालाकृष्णन. »
स्कूल ड्रेस, किताबें, कॉपियाँ, बस्ते, ट्यूशन की चिंता में हैरान होता पालक हो या अवर्षा, अति वर्षा, सूखा, या बाढ़ की चिंता में घुलता किसान। जुलाई का महीना हर किसी को डराता है यह चुटकी ले रहे हैं व्यंग्यकार रवि रतलामी। »
अँग्रेज़ी से सीधा-सपाट अनूदित पर उबाऊ नहीं। पढ़ें अरिंदम चौधरी की मूल अंग्रेजी पुस्तक "काउंट योर चिकंस बिफोर दे हैच" के प्रणीता सिंह द्वारा किये हिन्दी अनुवाद "खुदी को कर बुलंद इतना" की रविशंकर श्रीवास्तव द्वारा समीक्षा। »
बंगलौर में नारियल की चटनी में इतनी मिर्ची क्यों डालते हैं? तोगडिया जी हमेशा गुस्से मे क्यों रहते है? आग लगने पर ही पानी भरने की याद क्यों आती है? जब ये सवाल पूछे गये हैं फुरसतिया से तो भई जवाब भी मजेदार ही होंगे, फुरसतिया स्टाईल. »
डाक्टर की सलाह पर मिर्जा की बेगम ने छुट्टन को हुक्म सुनाया कि अब साहब को सिर्फ सलाद खिलाया जायेगा। पर मिर्जा जी तो हैरीसन फोर्ड की नाई इस रैबिट फूड को न खाने की जिद कर चुके थे। पढ़िये अतुल अरोरा का लिखा प्रहसन। »