तमाम विश्व के हर क्षेत्र के स्वयंसेवी सम्पादकों के बल पर मात्र कुछ ही वर्षों में विकिपीडिया आज कहीं पर भी, किसी भी फ़ॉर्मेट में उपलब्ध एनसाइक्लोपीडिया में सबसे बड़ा, सबसे वृहद एनसाइक्लोपीडिया बन चुका है। कुछेक गिनती के उदाहरणों को छोड़ दें तो इसकी सामग्री की वैधता पर कहीं कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगा। इसी की तर्ज पर एक नया प्रकल्प प्रारंभ किया जाने वाला है विकिलीक्स

विकिलीक्स में हर किस्म के, बिना सेंसर किए, ऐसे गोपनीय दस्तावेज़ शामिल किये जा सकेंगे जिन्हें सरकारें और संगठन अपने फ़ायदे के लिए आम जन की पहुँच से दूर रखती है।

Wikileaksविकिलीक्स तकनीक में तो भले ही विकिपीडिया के समान है – विकि आधारित तंत्र पर कोई भी उपयोक्ता इसमें अपनी सामग्री डाल सकेगा, परंतु इसकी सामग्री पूरी तरह अलग किस्म की होगी। इसमें हर किस्म के, बिना सेंसर किए, ऐसे गोपनीय दस्तावेज़ शामिल किये जा सकेंगे जिन्हें सरकारें और संगठन अपने फ़ायदे के लिए आम जन की पहुँच से दूर रखती हैं। यही विकिलीक्स का मूल सिद्धान्त है।

विकिलीक्स में कोई भी उपयोक्ता ऐसे दस्तावेज़ों को मुहैया करवा सकता है। विकिपीडिया के विपरीत जहाँ उपयोक्ताओं के आईपी पते दर्ज किए जाते हैं, विकिलीक्स में क्रिप्टोग्रॉफ़िक तकनॉलाजी के जरिए इसके उपयोक्ताओं के पूरी तरह अनाम व अचिह्नित बने रहने की पूरी गारंटी दी जा रही है। जाहिर है, बहुत से दस्तावेज़ जिन्हें आम जनता तक पहुँचना चाहिए, परंतु गोपनीयता कानूनों, दंड और कानूनी कार्यवाही के भय से दबे और छुपे रह जाते हैं निश्चित रूप से आम पाठक तक प्रचुरता में पहुंचेंगे।

विकिलीक्स को अभी आम जन के लिए प्रारंभ नहीं किया गया है, मगर इसकी भावी लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि सिर्फ इसकी सूचना मात्र से ही इसे 12 लाख गोपनीय दस्तावेज़ विभिन्न स्रोतों से उपलब्ध कराए जा चुके हैं।

ऐसी आशंका भी निर्मूल नहीं कि विकिलीक्स का इस्तेमाल ग़लत कार्यों के लिए भी हो सकता है। राजनीतिक दल, संगठन व व्यक्ति एक दूसरे की पोल खोलने व ब्लेकमेल करने के अस्त्र के रूप में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। गोपनीय दस्तावेज़ों की असलियत पर प्रश्न चिह्न भी बना रहेगा। पर सचाई यह है विकिपीडिया की विश्वसनीयता पर भी शुरूआती दिनों में प्रश्नचिह्न लगाए जाते रहे थे। गोपनीय दस्तावेज़ों के विकिलीक्स पर उपलब्ध होते ही इसकी सत्यता तथा इसकी आलोचना-प्रत्यालोचना संगठनों व सरकारों द्वारा तो की ही जा सकेगी, मतभिन्नता रखने वाले विभिन्न समूहों द्वारा भी इनका विश्लेषण खुलेआम किया जा सकेगा ऐसे में इस तरह के प्रयोग की बातें बेमानी ही होंगी – ऐसा विकिलीक्स का मानना है।

विकिलीक्स का शुभारंभ फरवरी या मार्च 2007 को प्रस्तावित है। देखते हैं इंटरनेट पर सैद्धांतिक अवज्ञा की यह गांधीगिरी क्या गुल खिलाती है!