चिट्ठे ऑनलाइन जगत के विद्रोही स्वर हैं। सुदूर फैले अपने पाठकों में सूचनाओं को छान-फटक कर करीने से परोसने की नई तरक़ीब, इसकी सबसे बड़ी शक्ति तो है ही, इसने मुख्यधारा के मास मीडिया से इतर अपना एक अलग, खास, महत्वपूर्ण स्थान भी बना लिया है। बगैर किसी का आभार उपकार लिए, चिट्ठे अपने विशेष अंदाज़ में अपनी अलग कसौटियों सहित सूचनाओं और उन पर की गई टिप्पणियों का खासा प्रसार कर रहे हैं।
चिट्ठा नेटवर्क का सामर्थ्यवान प्रभाव ही शायद इस बात की वास्तविक वजह हो सकती है जिसके कारण मुख्यधारा के समाचार संगठनों ने भी इस दृग्विषय की तफ्तीश करना प्रारंभ किया है, तथा संभवत: यही चिट्ठों को पत्रकारिता का रूप मानने वाली चर्चा का सबब भी है। चिट्ठाकार नियंत्रण तथा प्रभाव के संदर्भ में भले ही न सोचते हों, परंतु व्यवसायिक मीडिया जरूर यह सोचता है। मास मीडिया की सबसे बड़ी चाह होती है विस्तृत पाठक-श्रोता-दर्शक। विज्ञापनों से प्राप्त राजस्व, जो व्यावसायिक प्रकाशनों या प्रसारणों के लिए जीवन जल होते हैं, पाठक-श्रोता-दर्शक की संख्या पर निर्भर करता है। व्यापार के दृष्टिकोण से विज्ञापकों के लिए दर्शक जुटाना ही विषय-सामग्री का मुख्य कार्य होता है, भले ही माध्यम कागज़ हो या टेलीविज़न।
पत्रकारों — जो समाचारों की रपट देते हैं — को भली प्रकार यह पता रहता है कि अपने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने को उत्सुक व्यापार जगत तथा सत्ता के दलालों पर निर्भर उनके तंत्र में दुरुपयोग की संभावनायें निहित हैं। उनके नैतिक आर्दश की रचना पत्रकारिता के दायित्व के दायरा तय करता और एक स्पष्ट आचार संहिता पेश करता है जिससे समाचारों की ईमानदारी बनी रह सके।
चिट्ठों की, जो अव्यावसायिक लोगों द्वारा सृजित किए जाते हैं, ऐसी कोई संहिता नहीं होती और प्राय: चिट्ठाकारों को व्यक्तिगत रूप से अपने अव्यवसायी स्तर का गुमान रहता है। “हमें किसी फालतू सत्य परीक्षक की दरकार नहीं” यह अवधारणा आम रूप से दिखती है, गोया कि अशुद्धता कोई गुण हो।
मुझे एक मौलिक धारणा प्रस्तावित करने की अनुमती दें: चिट्ठों की सबसे बड़ी ताकत — सेंसर, मध्यस्थता और नियंत्रण रहित इसकी आवाज़ — इसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी भी है। भले ही समाचार स्रोत विज्ञापनदाताओं के प्रति कृतज्ञता रखें तथा रिपोर्टर के लिए भी बेहद ज़रूरी होता हो कि अपने स्रोतों से अच्छे संबंध बनाए रखें ताकि काम चलता रहे; परंतु चुँकि वे भी मूलतः व्यवसाय ही हैं — जहाँ तनख्वाह देनी होती है, विज्ञापकों को प्रसन्न रखना होता है तथा पाठक-श्रोता-दर्शक को आकर्षित कर उन्हें अपने साथ बनाए रखना होता है — व्यावसायिक समाचार संगठनों का निहित स्वार्थ होता है कि वे कतिपय मानकों को संभालें रखें जिससे पाठक उनके प्रकाशनों के खरीददार बने रहें और विज्ञापन दाता उन्हें विज्ञापनों से नवाज़ते रहें। केवल न्यूनतम खर्च तथा कोई महत्वपूर्ण व्यवसायिक लाभ की उम्मीद न होने के कारण चिट्ठों के पास ऐसी कोई प्रेरणादायक चीज़ें नहीं होतीं।
वही चीज़ें जो व्यावसायिक समाचार निर्गमों की विश्वसनीयता से समझौता प्रतीत हों, वह किसी स्तर की पत्रकारिता के मापदण्डों के लिए प्रेरणादायक होती हैं। और वही चीज़ें जो चिट्ठों को वैकल्पिक समाचार स्रोत के रूप में इतना महत्वपूर्ण बनाती है, यानि पर्यवेक्षकों की कमी तथा तमाम नतीजों से मुक्ति, उनकी ईमानदारी तथा उनके मूल्यों से समझौता भी कर सकती हैं। इस बात के पूरे चिन्ह दृष्टव्य हैं कि जैसे-जैसे इनकी संख्या में वृद्धि होगी और माध्यम के बारे में जागरूकता फैलेगी चिट्ठे और ज़्यादा असर छोड़ेंगे। यह सही नहीं है, जैसा कि कुछ लोग दावा करते हैं कि, जाल (नेटवर्क) ग़लत जानकारियों को फैलाता रहेगा या फिर कि आम जानकारी में सत्य हमेशा ही छन कर बाहर आएगा। अफवाहें तेज़ी से फैलती हैं चूँकि लोगों को उन्हें फैलाने में आनंद आता है। वास्तविक दुनिया हो या ऑनलाइन, भूल-सुधार विरले ही ध्यान आर्कषित करते हैं, उनमें वो मज़ा जो नहीं होता।
चिट्ठों की दुनिया में नीतिशास्त्र की लगभग कोई चर्चा नहीं है: स्वतन्त्र व्यक्ति को यह बताया जाना कि उन्हें क्या करना चाहिए, खासा नागवार गुजरता है। परंतु मैं छ: नियम प्रस्तावित करूँगी जो मेरे विचार में हर प्रकार के ऑनलाइन प्रकाशकों के लिए नैतिक आचरण स्थापित करता है1। मुझे उम्मीद है कि चिट्ठा समुदाय यहाँ बताए गए नियमों पर गंभीरतापूर्वक विचार करेगा; आने वाले समय में, और अनुभवों के साथ हो सकता है समुदाय नए नियमों को शामिल करने या फिर हमारे मानकों की संहिता बनाने की ज़रूरत महसूस करे। कम से कम मैं यह तो आशा रखती हूँ कि ये सिद्धान्त हमारी जिम्मेदारियों तथा हमारे समग्र व्यवहार के समाज पर प्रभाव के बारे में परिचर्चा की प्रेरणा देंगे।
पत्रकारिता आचार संहिता का उद्देश्य होता है कि समाचार रपटों में सत्य और परिशुद्धता कायम रहे। तुलनात्मक रूप से, यहाँ पर दिया गया प्रत्येक सुझाव चिट्ठाकारी के हर पहलू में पारदर्शिता -- जो चिट्ठों के विलक्षण गुणों तथा उसकी सबसे बड़ी शक्तियों में से एक है — लाएगा। यह उम्मीद करना अवास्तविक होगा कि प्रत्येक चिट्ठाकार संसार की अपक्षपाती छवि सामने रखे, परंतु यह अपेक्षा रखना बहुत ही विवेकी है कि वे अपने स्रोत, पूर्वाग्रह तथा व्यवहार के बारे में स्पष्टता बनाए रखें।
मेरे बेहतर प्रयासों के बावजूद उन चिट्ठाकारों जो अपनी इस खोज में लगे हैं कि उन्हें पत्रकार माना जाना चाहिए को इन नियमों के पालन की अधिक आवश्यकता है। हो सकता है कि समाचार संस्थाएँ किसी दिन किसी चिट्ठे (या किसी चिट्ठा-प्रविष्टि) को विश्वस्त स्रोत के रूप में इंगित करें, परंतु यह तभी होगा जब चिट्ठे समग्र रूप से यह प्रर्दशित करने में सक्षम होंगे कि उनकी जानकारियों के संग्रहण और वितरण में ईमानदारी है तथा उनके ऑनलाइन व्यवहार में अनुरूपता है।
कोई भी चिट्ठाकार जो अपने लिए एक व्यवसायिक पत्रकार की सुविधाएँ और सुरक्षाएँ की उम्मीद रखता है उसे इन सिद्धातों से भी आगे जाना होगा। अधिकारों के साथ उत्तरदायित्व भी जुड़े हैं; अंतत: व्यक्तिगत व्यवसायिकता और मानक आचार संहिताओं का सावधानी पूर्वक अनुसरण ही समाज और क़ानून के सामने उसका स्तर बना पाएगा। शेष सभी के लिए, मुझे विश्वास है, कि निम्न मानक यथेष्ट होंगे:
1. सिर्फ उसी चीज़ को वास्तविकता के रूप में प्रकाशित करें जिस की सचाई पर आपको विश्वास हो।
यदि आपका कथन अनुमान है तो ऐसा स्पष्ट करें। यदि आपके पास ऐसे कारण हैं जिससे आपको विश्वास हो कि कुछ ग़लत है तो या इसे पोस्ट ही न करें या अपने कारणों को दर्ज करें। यदि आप कोई दावा कर रहे हैं तो नेक इरादे से करें; इसे तभी सत्य घोषित करें जब आपकी पूर्ण जानकारी में ऐसा हो।
2. यदि संदर्भित सामग्री ऑनलाइन मौजूद हो तो उसकी कड़ी भी दें।
संदर्भित वस्तुओं की कड़ी देने से पाठकों को इस बात की सुविधा मिलती है कि वे आपके कथन की परिशुद्धता तथा परिज्ञान को जाँच सकें। सामग्रियों का संदर्भ देना परंतु कुछ चुनी हुई कड़ियाँ ही देना जिससे आप सहमत होते हैं जोड़ तोड़ करने जैसा होगा। ऑनलाइन पाठकों को, जहाँ तक संभव हो, संपूर्ण सत्य पाने का हक है — अंर्तजाल के ऐसे इस्तेमाल से, पाठकों को सूचनाओं का निष्क्रिय नहीं, वरन् सूचना का सक्रिय ग्राहक बनने की शक्ति प्रदान करता है। यही नहीं, स्रोत सामग्रियों की कड़ियाँ देना ही वह ज़रिया है जिससे हम जानकारियों तथा ज्ञान का एक विशाल, नई और एकीकृत नेटवर्क बना रहे हैं।
किन्हीं विरले अवसरों पर जब लेखक संदर्भ देना तो चाहता है, परंतु नैतिकता के नाते ट्रैफिक को उन जालस्थलों पर जाने नहीं देना चाहता (उदाहरण के लिए, कोई द्वेष भरा जालस्थल) तो उसे उस जालस्थल का नाम या पता (यू.आर.एल) टंकित करना चाहिए (परंतु लिंक नहीं) तथा अपने इस निर्णय के कारणों का भी खुलासा करना चाहिए। इससे प्रेरित पाठकों को वह आवश्यक जानकारी मिल जाएगी जो जालस्थल को खोजने के लिए उन्हें ज़रूरत है ताकि वे स्वयं अपना निर्णय ले सकें। ऐसी व्यूह रचना लेखक को अपनी पारदर्शिता (और इस प्रकार उसकी ईमानदारी) बनाए रखने की अनुमती तो देता ही है, साथ ही ऐसे प्रयोजनों को समर्थन को अस्वीकृत भी करता है जिसे वह घृणित मानें।
3. गलत जानकारियों को सार्वजनिक रूप से सुधारें।
यदि आप को पता चलता है कि आपने किसी ऐसी सामग्री की कड़ी दी है जो कि सही नहीं है तो इसे नोट करें तथा ज़्यादा सही रपट की कड़ी दें। यदि आपका स्वयं का कोई कथन गलत सिद्ध हो जाता है तो अपने गलत कथन तथा सत्य की टीप लिखें। आदर्श परिस्थिति में ऐसे सुधार आपके ताज़ातरीन चिट्ठों में, मूल प्रविष्टि में जोड़े गए टीप के रूप में प्रकाशित होने चाहिएँ। (यह याद रखें कि चिट्ठा प्रविष्टियों को जब एक बार पोस्ट कर दिया जाता हैं, खोज इंजिन उन्हें याद रख लेते हैं तथा चिट्ठे में मौजूद असत्यता को फैलाते रहते हैं भले ही आप कुछ दिनों बाद जानकारी सुधार देते हैं।) यदि आप अपनी पिछली प्रविष्टियों में कोई सुधार नहीं करना चाहते हैं तो कम से कम बाद की प्रविष्टियों में टीप अवश्य डालें।
चिट्ठों में सुधार का एक बहुत ही सुस्पष्ट तरीका बोइंग बोइंग चिट्ठे के अंशदाताओं में से एक, कोरी डॉक्टोरोव अपनाते हैं। वे अपनी लिखी हुई गलतियों को मिटाने के बजाए, वहीं पर काट देते हैं तथा सही जानकारी वहीं पर आगे जोड़ देते हैं। पाठक एक झलक में ही देख लेता है कि बिल कोरी ने पहले क्या लिखा था और यह कि उन्होंने प्रविष्टि को ऐसी जानकारी से अपडेट किया है जो उन्हें ज्यादा सही लगता है। (एच.टी.एम.एल में इसे ऐसे करें: पाठक एक झलक में ही देख लेता है कि <strike>बिल</strike> कोरी ने पहले क्या लिखा था और यह कि उन्होंने प्रविष्टि को ऐसी जानकारी से अपडेट किया है जो उन्हें ज्यादा सही लगता है।)
4. प्रत्येक प्रविष्टि को यह मान कर लिखें कि उसे बदला नहीं जा सकेगा; किसी भी प्रविष्टि में भले ही आप कुछ अतिरिक्त जोड़ लें परंतु उसे नए रूप में लिखें या मिटाएँ नहीं।
चिट्ठों को सोच-समझ कर पोस्ट करें। यदि आप प्रत्येक प्रविष्टि पर दृढ़ता पूर्वक अपना प्रयास व्यय करेंगे, तो आप अपनी व्यक्तिगत तथा पेशेवर ईमानदारी को बनाए रख सकेंगे।
प्रविष्टियों में परिवर्तन करना या उन्हें मिटाना जाल की ईमानदारी को नष्ट करता है। अंर्तजाल को इस तरह रुपाकार दिया गया है कि सभी जुड़े रहें; वस्तुत: चिट्ठों की स्थाई कड़ी अन्यों को जुड़ने का आमंत्रण है। कोई भी जो उस दस्तावेज़ पर टिप्पणी करता है या उद्धत करता है, वह उस दस्तावेज़ के अपरिवर्तित स्वरूप पर निर्भर करता है। प्रमुखता से परिशिष्ट जोड़ देना अंर्तजाल पर कहीं भी किसी भी जानकारी को सुधारने का श्रेष्ठ तरीका है। यदि परिशिष्ट जोड़ना प्रायोगिक नहीं है, जैसे कि कोई निबंध जिसमें ढेरों गलतियाँ हों, तो परिवर्तनों की तारीख तथा परिवर्तन की प्रकृति के संक्षिप्त विवरणों सहित टीप देना चाहिए।
यदि आप समझते हैं कि यह कुछ ज़्यादा ही कर्तव्यनिष्ठता है, तो ज़रा उस लेखक की स्थिति पर विचार करें जो एक ऑनलाइन दस्तावेज़ को किसी निश्चित घोषणा के लिए इंगित करता है। यदि यह दस्तावेज़ परिवर्तित हो जाता है या मिटा दिया जाता है — और खासकर यदि परिवर्तनों की टीका नहीं दी जाती है — तो उस लेखक के विचार बेवकुफ़ाना बन जाएंगे। किताबें बदलती नहीं हैं, समाचार पत्रों में प्रकाशित लेख अपरिवर्तनीय होते हैं। कागज पर नए संस्करणों को ऐसे ही बतलाया जाता है।
साझा ज्ञान का जो जाल हम बना रहे हैं वह कभी भी किसी नवीनता से ज्यादा नहीं माने जाएंगे जब तक कि हम अपने प्रकाशनों का स्थायी लेख-प्रमाण तैयार कर इनकी ईमानदारी की सुरक्षा नहीं करते। जाल को लाभ तभी होता है जब ऐसी प्रविष्टियाँ को भी, जो बदलते माहौल में अप्रासंगिक हो जातीं हैं, ऐतिहासिक लेख-प्रमाण मान कर जस का तस छोड़ दिया गया हो। उदाहरणार्थ: एक चिट्ठाकार एक ऑनलाइन आलेख की अशुद्धियों के बारे में शिकायत करता है; लेखक उन अशुद्धियों को सुधार लेता है (तथा उनकी टीप भी दर्ज करता है!); अतः चिट्ठाकार की प्रविष्टि तो अर्थहीन हो गई है — या कि नहीं? प्रविष्टि को मिटा देने से कुछ ऐसा निष्कर्ष निकलता है कि वह घटना बस हुई ही नहीं — जबकि वह घटी है। लेख-प्रमाण ज्यादा शुद्ध होगा और इतिहास की उपयोगिता बेहतर अगर चिट्ठाकार अपनी मूल प्रविष्टि के नीचे यह टीप जोड़ें कि लेखक ने सुधार कर दिए हैं और, चिट्ठाकार के ज्ञान के अनुसार, अब आलेख सही है।
इतिहास को फिर से लिखा जा सकता है, परंतु इसे लौटाया नहीं जा सकता। अंर्तजाल पर शब्दों को बदलना या मिटाना तो संभव है, परंतु संभावना सदैव अच्छी नीति हो यह ज़रूरी नहीं। प्रकाशन से पहले सोच-विचार करें तथा जो भी आप लिखते हैं उस पर कायम रहें। यदि आप बाद में यह निर्णय लेते हैं कि आप किसी विषय पर गलत थे, तो उसकी टीप दर्ज करें और आगे बढ़ें।
मैं यह सुनिश्चित करती हूँ कि मैं ऐसे किसी भी विचार को पोस्ट न करूं जिस पर कायम रहने की चाह न हो, भले ही बाद में उन विचारों से असहमत हो जाऊँ। किसी विषय के बारे में चाहे मैं कितनी भी कूपित या उत्तेजित रहूँ, मैं विचारशील और सधा काम करती हूँ। यदि एकाध दिनों में मेरे विचारों में परिवर्तन होते हैं तो मै बस उन्हें दर्ज कर लेती हूँ। यदि किसी बात पर क्षमा माँगने की आवश्यकता हो, तो वैसा करती हूँ।
यदि आपको बाद में पता चले कि आपने कोई गलत जानकारी पोस्ट कर दी है, तो आप अपने चिट्ठे पर सार्वजनिक रूप से इस बारे में लिखें। गलत लिखी गई प्रविष्टि को मिटा देने से आपके पाठकों द्वारा पहले ही पढ़कर ग्रहण की गई मिथ्या जानकारी को सुधारने का कोई जरिया नहीं होगा। एक अतिरिक्त चरण में मूल प्रविष्टि में सुधार करने से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि भविष्य में गूगल सही जानकारी प्रसारित करेगा।
इस नियम का एकमात्र अपवाद तब है जब आप असावधानीवश अन्य किसी की व्यक्तिगत जानकारी जाहिर कर देते हैं। यदि आपको पता चलता है कि आपने कोई गोपनीयता भंग की है या किसी परिचित का ज़िक्र कर के उसे परेशान किया है, तो यह उचित ही है कि ऐसी अपमानजनक प्रविष्टियों को पूरी तरह मिटा दिया जाए, पर आप यह लिखें कि आपने ऐसा किया है।
5. अपने कंफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट्स को प्रकट करें।
अधिकांश चिट्ठाकार अपने कार्य तथा व्यावसायिक इंटरेस्ट्स के प्रति पारदर्शी होते हैं। यह कम्प्यूटर प्रोग्रामर की निपुणता है कि किसी पत्रिका में नवीनतम आपरेटिंग सिस्टम के गुणों के बारे में प्रकाशित आलेख पर उसके द्वारा दिए गए विश्लेषणों को विशिष्ट महत्ता प्राप्त होती है। चूंकि चिट्ठों के पाठक आस्था के बल पर बनते हैं, यह प्रत्येक चिट्ठाकार का कर्तव्य है कि जब भी उचित हो वह आर्थिक (या अन्य विशेष विरोधों को) इंटरेस्ट्स को जाहिर करे। एक उद्यमी को किसी प्रस्तावित संसदीय बिल या व्यापारिक विलयन के प्रभाव के विषय में खास अन्तर्दृष्टि हो सकती है; यदि उसे किसी घटना के फलस्वरूप किसी प्रकार का सीधा लाभ पहुँचने वाला हो, तो उसे अपनी टिप्पणी में ऐसा लिखना चाहिए। किसी सेवा या उत्पाद से प्रभावित चिट्ठाकार को अपने चिट्ठे में उस सेवा की हर अनुसंशा के साथ यह बात बतानी चाहिए कि उस कंपनी के शेयर उसके पास हैं। यदि किसी चिट्ठाकार को समीक्षा/परीक्षण के लिए कोई सीडी प्राप्त होती है तो उसे यह बताना चाहिए; उसके पाठक स्वयं यह निर्णय ले सकते हैं कि चिट्ठाकार की अनुकूल समीक्षा उसकी रुचि पर आधारित है या फिर मुफ़्त सीडी प्राप्त करते रहने की इच्छा पर।
अपनी महत्वपूर्ण कंफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट्स का तुरंत ज़िक्र करें और फिर जो बताना है वह लिखें; इससे आपके पाठकों के पास आपकी टीका का आकलन करने हेतु सभी आवश्यक जानकारी उपलब्ध होगी।
6. संदेहास्पद, पूर्वाग्रही स्रोतों की टीप दें।
जब कोई गंभीर आलेख किसी अत्यंत पूर्वाग्रही या संदेहास्पद स्रोत से आता है तो चिट्ठाकार का उत्तरदायित्व है कि वह उस साइट के स्वरूप की साफ साफ जानकारी दे जहाँ से वह मिला है। सूचनाओं की तलाश में चिट्ठाकारों को कभी-कभी बहुत ही रोचक, भली प्रकार से लिखे आलेख ऐसे जालस्थलों पर मिल जाते हैं जो बहुत ही पूर्वाग्रही संगठनों द्वारा या कट्टर व्यक्तियों द्वारा चलाए जाते हैं। पाठकों को यह जानने का अधिकार है कि एक आलेख जो प्रथम तिमाही में किए गए गर्भपात के चिकित्सकीय दुष्परिणामों को बताता है वह किसी जीवन का पक्षधर (प्रो-लाइफ), चुनाव का पक्षधर (प्रो-चॉइस) या हर तरह के चिकित्सकीय मध्यस्थताओं का विरोध करने वाले जालस्थल से आया है। इसराईली फिलस्तीनी संघर्ष पर विचारपूर्वक किया गया योग पढ़ने के लायक होगा भले ही वह फिलस्तीनी मुक्ति संघटन के किसी सदस्य द्वारा या किसी यहूदी आन्दोलनकारी द्वारा लिखा गया हो — परंतु पाठक को अधिकार है कि उसे स्रोत के बारे में पता चले।
यह मान लेना न्यायोचित है कि चतुर भ्रमणशील पाठक के पास इन स्रोतों के स्वभाव के आकलन के पर्याप्त ज्ञान और प्रेरक कारण हैं; परंतु सभी पाठक ऐसा कर पाने में सक्षम हों ऐसा मानना विवेकपूर्ण नहीं होगा। पाठक, कुछ हद तक, अंर्तजाल पर भ्रमण करने के लिए मार्गदर्शन हेतु चिट्ठों पर निर्भर होते हैं। थोड़े मनचले या अति गंभीर एजेंडे वाले स्रोतों से आलेख प्रस्तुत कर देने में बुराई नहीं है; परंतु ऐसे स्रोतों के स्वभाव के बारे में नहीं बताना अनैतिक होगा चूँकि पाठकों के पास ऐसी जानकारी नहीं होती जिससे कि वे आलेख की योग्यता का मूल्यांकन कर सकें।
यदि आप शंकाग्रस्त हैं कि आपके पाठक इसके सन्दर्भ के आधार पर आलेख को पूरी तरह नकार देंगे तो फिर सोचिए कि आप इसकी कड़ी दे ही क्यों रहे हैं। यदि आलेख की योग्यता के विषय में आपको दृढ़ विश्वास है, तो कारण बताएँ और यह बात आलेख को स्वयं साबित करने दें, लेकिन इसके स्रोत के बारे में स्पस्ट रूप से बताएँ। यदि उन्हें एक बार भी यह पता चल जाए कि आपने आलेख का स्रोत छिपाया है — या स्पष्ट नहीं किया — जिसके सभी तथ्यों के प्रकाश में संभवतः वे अलाहदा मूल्यांकन करते, आपके पाठक हमेशा के लिए आप पर से भरोसा खो देंगे।
1: बिन्दु 1 तथा बिन्दु 5 के लिए मैं डेव विनर की आभारी हूँ स्क्रिप्टिंग न्यूज पर वेबलॉगिंग के संदर्भ में ईमानदारी पर उनकी चर्चा के लिए। हालांकि हमारे विचारों में बहुत ज्यादा भिन्नताएँ हैं, इस विषय में उनकी धारणाएँ मेरे स्वयं के विचारों के लिए पंख प्रदान करती हैं।
रेबेका ब्लड द्वारा लिखित पुस्तक द वेबलॉग हैन्डबुकः प्रेक्टिकल एडवाईस आन क्रियेटिंग एंड मेन्टेनिंग योर ब्लॉग से, स्वत्वाधिकार 2002, सर्वाधिकार सुरक्षित; हिन्दी रुपांतरण रेबेका ब्लड की पुर्वानुमति से प्रकाशित। अनुवादः रविशंकर श्रीवास्तव एवं देबाशीष चक्रवर्ती। प्रस्तुत पुस्तकांश का बिना पुर्वानुमति अंर्तजाल अथवा पुस्तक रूप में पुनः प्रकाशन नहीं किया जा सकता। रेबेका की पुस्तक की प्रति जीतने के लिए इसी अंक में समस्या पूर्ति स्तंभ की प्रतियोगिता में भाग लें।
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