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ब 2.0 अंतर्जाल का उभरता हुआ संभावी स्वरूप है, ऐसा रूप जहाँ प्रयोक्ता की तूती बोलती है। क्योंकि यह है ही ऐसे जालस्थलों का तानाबाना जहाँ काफी तादात में मसौदा यूसर जेनरेटेड यानि प्रयोक्ताओं के द्वारा ही उत्पादित है। जाहिर है जहाँ प्रयोक्ताओं पर निर्भरता है वहाँ उनकी लॉगिन की जानकारी, उनकी पसंद, यानि उनकी तमाम जानकारियाँ सहेज कर रखनी पड़ती हैं। हर प्रयोक्ता की अपनी पहचान है और अपनी जानकारियाँ। जालस्थल और प्रयोक्ता दोनों के लिये ही जटिलतायें बढ़ती जाती हैं। न जाने कितने ही जालस्थल हैं और हर एक आपका लॉगिन चाहता है। और आपकी सरदर्दी है हर जालस्थल का यूसरनेम और पासवर्ड की जोड़ी को याद रखना। डिलिशियस, वर्डप्रेस, डिग्ग, ब्लॉगर, जितनी आपकी पसंद के जालस्थल उतने ही लॉगइन, उतनी ही चकल्लस।

सन 2005 में संभवतः इसी सरदर्दी से मुक्ति का उपाय सोचते हुये लाईवजर्नल के संस्थापक ब्रेड फिट्जपैट्रिक ने सृजन किया “ओपन आईडी ” का। ओपन आईडी प्रणाली के सहलेखक है वेरीसाईन के डेविड रिचर्डसन, जैनरेन के जोश होयट और स्किप के डिक हार्डी। ओपन आईडी एक डिस्ट्रिब्युटेड आइडेन्टिटी मेनेजमेंट सिसटम यानी विकेंद्रित पहचान प्रबंधन प्रणाली है। इसे डीसेन्ट्रलाईस्ड सिंगल साइन आन प्लेटफार्म भी कहा जा सकता है।

ओपन आईडी से आसान होंगी राहें

सिंगल साईन आन प्रणाली का फायदा यह है कि एक जगह लॉगिन करने के बाद प्रयोक्ता को अनुमति और अधिकार के मुताबिक विभिन्न अनुप्रयोगों के प्रयोग की सुविधा दी जा सकती है, वह भी बिना लॉगिन जानकारी दुबारा मांगे। उदाहरणार्थ गूगल में लॉगिन के पश्चात आप गूगल के तमाम अनुप्रयोगों जैसे जीमेल, कैंलेंडर, स्प्रेडशीट, रीडर, ब्लॉगर, आरकुट इत्यादि को दुबारा लॉगिन किये बगैर प्रयोग कर सकते हैं। इसी तरह याहू पर लॉगिन करने के बाद आप डिलिशीयस, याहू मेल या जियोसीटिज़ के जाल अनुप्रयोग दुबारा लॉगिन किये बिना इस्तेमाल करते हैं। इसका कारण सिर्फ यही है कि प्रयोक्ताओं की जानकारी हर अनुप्रयोग के लिये अलग अलग जमा करने की बजाय एक ही स्थान पर संजो कर रखी जा सकती है और प्रयोक्ता को भी बार बार रजिस्टर या लॉगिन करने का दबाव नहीं रहता। अंतर्जाल पर तो प्रयोक्ता समय की कमी और स्पैमिंग जैसे खतरों के कारण रजिस्टर करने से यथासंभव बचने का प्रयास करते हैं।

ओपन आईडी का मंतव्य है कि आपको हर दूसरी साईट पर लॉगिन करने के लिये वहाँ रजिस्टर करना या अपना खाता बनाने की दरकार न हो।

याहू, गूगल जैसे बड़े जालस्थल यह सुविधा अपने समूह की साईटों तक ही सीमित रखते हैं। ओपन आईडी इसी किस्म की प्रणाली है जिससे अंतर्जाल पर विभिन्न जालस्थलों का उपयोग इसी तरह किया जा सकेगा। ओपन आईडी प्रणाली में व्यक्ति की पहचान यूज़रनेम/पासवर्ड यानी प्रयोक्तानाम/कूटशब्द के बजाय किसी यू.आर.एल (जैसे की आपके ब्लॉग का पता) या एक्स.आर.आई से होता है। बस चाहिये कोई ओपन आईडी प्रोटोकॉल समझने वाला आइडेन्टिटी प्रोवाइडर या प्रदाता। ओपन आईडी का मंतव्य है कि आपको हर दूसरी साईट पर लॉगिन करने के लिये वहाँ रजिस्टर करना या अपना खाता बनाने की दरकार न हो। यदि वह जालस्थल ओपन आईडी समर्थित है। ओपन आईडी की ज़बान में ऐसे जालस्थल को रिलायिंग पार्टी कहते हैं। तो आप अपनी ओपन आईडी पहचान के द्वारा वहाँ बिना पंजीकृत हुये लॉगिन कर सकते हैं।

ओपन आईडी (या फिर विनडोस कार्डस्पेस ) के मूल में जो अवधारणा है उसे आईडेन्टिटी 2.0 या डिजिटल आईडेन्टिटी कहा जाता है। ओपन आईडी का दूसरा अवतार जिस चढ़ते सूरज की रौशनी में पनप रहा है आईडेन्टिटी 2.0 उसी बढ़त का हिस्सा है। इसका उद्देश्य यही है कि अंतर्जाल पर अपनी पहचान सिद्ध करने का तरीक़ा असल ज़िन्दगी से मिलता जुलता हो, यानि कि जिस तरह से आप अपनी ड्राइविंग लाईसेंस या वोटर आईडी कार्ड का इस्तमाल करते हैं, ठीक वैसे ही जाल पर भी अपना परिचय सिद्ध कर सकें।

कैसे काम करता है ओपन आईडी?

तो आखिर ये ओपन आईडी है क्या। अब तक आपको अंदाजा तो हो ही गया होगा कि ये हर साईट पर अलग अलग प्रयोक्तानाम और पासवर्ड के प्रयोग से जुदा प्रणाली है। आईडेन्टिटी 2.0 का मूलमंत्र ही है, “एक प्रयोक्ता, एक पहचान”। ओपन आईडी के मामले में यह पहचान होती है एक यू.आर.एल या जालस्थल का पता (ओपन आईडी संस्करण 2 में एक्स.आर.आई भी)। आपको अपना कूटशब्द, ईमेल पता या कोई दूसरी जानकारी देने की दरकार नहीं। जालस्थल आपके बारे में और जानकारी की माँग रख सकते हैं पर आप वही जानकारी दें जिसे स्वयं आप जाहिर करना चाहतें हैं।

Imageओपन आईडी ला प्रयोग करने वाले जालस्थल पूर्णतः ओपन आईडी पर आधारित लॉगिन प्रणाली लागू करते हैं या फिर परंपरागत लॉगिन विधि और ओपन आईडी से लॉगिन दोनों की सुविधा देते हैं। ओपन आईडी पर आधारित लॉगिन विधि के फार्म में आप देखेंगे कि केवल एक ही फील्ड या खाने की ज़रूरत होगी जिसमें आप अपनी सार्वजनिक डिजीटल पहचान यानि आपकी ओपन आईडी भरेंगे, जालस्थल ऐसे फार्म की आसान पहचान के लिये ओपन आईडी का प्रचलित चिन्ह दर्शा सकते हैं (संलग्न चित्र देखें)।

आईडेन्टिटी 2.0 का मूलमंत्र ही है, “एक प्रयोक्ता, एक पहचान”।

अपनी ओपन आईडी भर कर फार्म सब्मिट करने पर रिलायिंग पार्टी यानि यह जालस्थल (आसानी के लिये हम इसे कखग कहकर पुकारते हैं) जिस पर आप लॉगिन करना चाह रहे हैं आपकी पहचान के वैधिकरण हेतु आपको आइडेन्टिटी प्रोवाइडर के जालस्थल पर भेज देती है। यदि आप इस जालस्थल पर लॉग्ड इन नहीं है तो आपको लॉगिन करने के लिये कहा जायेगा। लॉगिन के पश्चात आप से पूछा जायेगा कि क्या आप “कखग” पर इस सार्वजनिक डिजीटल पहचान का प्रयोग करना पसंद करेंगे। इस समय आप यह तय कर सकेंगे कि “यह विश्ववास” कितने दिन रहे, यानि आप यह तय कर सकेंगे कि बिना दुबारा यह प्रक्रिया दोहराये कितने दिनों तक आप “कखग” पर सीधे जा सकेंगे और कौन सी जानकारी “कखग” को दी जा सकती है (मसलन कोई सोशीयल बुकमार्किंग साईट आपसे ईमेल आईडी के अलावा कोई आपका नाम भी जानना चाह सकती है)। आइडेन्टिटी प्रोवाइडर आपका यह “ट्रस्ट प्रोफाईल” सुरक्षित रखेंगे और ज़रुरत पड़ने पर इस्तेमाल करेंगे। वेरीसाईन जैसे आइडेन्टिटी प्रोवाइडर यह सुविधा देते हैं कि ज़रुरत के अनुसार आप अलग अलग जालस्थलों के लिये अलग ट्रस्ट प्रोफाईल बना कर रख सकें और विभिन्न अपनी ओपन समर्थित जालस्थलों पर अपनी आवाजाही का रिकार्ड भी देख सकें।

एक बार वैधिकरण हो गया तो आइडेन्टिटी प्रोवाइडर आपको वापस “कखग” पर भेज देता है जहाँ आप किसी साधारण पंजीकृत प्रयोक्ता की भांति लॉगिन हो गये होंगे। यदि वैधीकरण असफल रहा तो “कखग” जालस्थल आप को यह सूचना दे देगा।

यह पूरी प्रक्रिया अगले चित्र में विस्तार से समझायी गयी है।

How Open ID works

ओपन आईडी का उपयोग

ओपन आईडी का प्रयोग करना शुरु करने के लिये आपको सबसे पहले तो अपना खाता खोलना होगा। आप यहाँ वर्णित किसी भी ऐसे आइडेन्टिटी प्रोवाइडर के यहाँ पंजीकृत हो सकते हैं। यह किसी आम जालस्थल पर पंजीकरण जैसा ही है जहाँ आपका एक प्रयोक्ता नाम, जो साधारणतः आपका ओपन आईडी ही होगा, और पासवर्ड होता है।

वेरीसाईन लैब जैसे कुछ स्थल आपको अपनी पहचान के लिये अपना चित्र भी अपलोड करने को कहते हैं, जिसका लाभ यह है कि अन्य जालस्थलों से जब आपको आइडेन्टिटी प्रोवाइडर के जालस्थल पर वैधिकरण हेतु भेजा जाये तो आप यह पहचान कर सकें कि वेरीसाईन ही है न कि उस का रुप धर कर आपको बेवकूफ बनाने वाला कोई फिशिंग जालस्थल।

एक बार आपका ओपन आईडी मिल जाये तो बस आप ऐसे किसी भी जालस्थल पर लॉगिन कर सकेंगे जहाँ ओपन आईडी को समर्थन दिया जाता हो। अधिकांशतः ऐसे जालस्थल की पहचान ओपन आईडी के चिन्ह से लगाया जा सकता है।

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आइडेन्टिटी प्रोवाइडर ही एक मात्र जालस्थल है जहाँ आपको परंपरागत रूप से लॉगिन करना है, शेष अन्य ओपन आईडी समर्थित जालस्थलों पर आप इसी डिजीटल पहचान से सीधे लॉगिन कर सकते हैं।

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हर बार पंजीकरण का कोई झंझट नहीं!

अपने जालपते को अपनी ओपन आईडी कैसे बनायें

यदि आपका अपना जालस्थल है जिसके पृष्ठ आप बदल सकते हैं तो आप इस जालस्थल के पते तो अपनी ओपन आईडी के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। कैसे कर सकते हैं यह जानने के पहले आपके मन में शर्तिया यह सवाल ज़रूर उठा होगा कि इससे क्या लाभ होगा। ओपन आईडी का पता तो पंजीकृत होने पर आइडेन्टिटी प्रोवाइडर हमें देता ही है। पर यकीन मानिये अपने जालपते को अपनी ओपन आईडी बनाने में फायदा है। पहला लाभ तो यह कि अगर किसी कारणवश यह आइडेन्टिटी प्रोवाइडर अपनी सेवायें बंद कर देता है, या आप स्वयं ही ऐसे किसी सेवा प्रदाता से अलग होना चाहते हैं तो यह बड़ा आसान होगा, बस आपको अपने जालस्थल में एक जगह परिवर्तन करना होगा, आपकी ओपन आईडी वही की वही रहेगी। दूसरा यह कि आप विभिन्न आइडेन्टिटी प्रोवाइडर जालस्थलों के द्वारा दी गई आइडेन्टिटी का इस्तेमाल कर सकते हैं अपने खुद के पते के साथ, हर किसी की ओपन आईडी याद रखने की दरकार नहीं।

यह करना बड़ा ही आसान है। उदाहरण के लिये आपका ओपन आईडी खाता http://yourname.myopenid.com/ है पर आप अपना जालस्थल पता http://yourname.com/ का प्रयोग करना चाहते हैं। बस अपने जालस्थल, जिसका पता आप अपनी ओपन आईडी के रूप में प्रयोग करना चाहते हैं, के मुखपृष्ठ (मसलन index.html) में <HEAD></HEAD> के मध्य निम्नलिखित चस्पा कर दें।

<link rel="openid.server" xhref="http://youropenidserver.com/serverurl"/>

<link rel="openid.delegate" xhref="http://yoururl.youropenidserver.com"/>

<meta http-equiv="X-XRDS-Location" content="http://yoururl.youropenidserver.com/xrds"/>

ओपन आईडी सर्वर आपके आइडेन्टिटी प्रोवाइडर का ही पता है। जो लिंक टैग हैं वे ओपन आईडी 1.x के लिये काम आते है जबकि मेटा टैग उभरते हुये ओपन आईडी 2.0 के लिये। ये दोनों रहें तो आपका काम आसान हो जायेगा।

उज्जवल भविष्य की अपेक्षा

ओपन आईडी का आहिस्ता आहिस्ता नामचीन जालस्थलों पर प्रचलन बढ़ता जा रहा है, टेक्नोराती, विकीपीडिया, सिक्सअपार्ट (जिन्होंने लाईवजर्नल का अधिग्रहण भी किया), वेरिसाईन जैसे अनेकों भारीभरकम कंपनियों का वरदहस्त इस पर है। व्यवसायिक पहलू ही शायद ओपन आईडी की बढ़त का प्रमुख कारक है। आर. एस.एस की तरह लोगों को ओपन आईडी की हथेली में बिज़नेस के अवसर की रेखायें स्पष्ट दिख रही हैं। फिलहाल ओपन आईडी गिनती के जालस्थलों पर ही इस्तमाल हो रहा है। जूमर एकमात्र ऐसी साईट है पूर्णतः ओपन आईडी का प्रयोग होता है, Gro.ps और विकीट्रैवल जैसे कुछ रूढ़ीवादी जालस्थल ओपन आईडी और पारंपरिक लॉगिन विधी दोनों का ही विकल्प प्रदान करते हैं। ओपन आईडी के 2.0 वर्ज़न के आने के बाद उम्मीद है कि कई जालस्थल इस प्रणाली को अपनाने हेतु प्रेरित होंगे।

ओपन आईडी का आहिस्ता आहिस्ता नामचीन जालस्थलों पर प्रचलन बढ़ता जा रहा है।

आईडेन्टिटी की राह बहुत आसान हो ऐसा नहीं है। माइक्रोसॉफ्ट कार्डस्पेस और ओपन आईडी का पहुँचमार्ग अलग अलग है, तो निश्चित रूप से एकसमान मानक आधारित मॉडल की सख़्त जरुरत होगी। आईडेन्टिटी 2.0 के तिलिस्म के प्रभावी होने के लिये प्रयोक्ताओं के मन में अपनी डिजीटल व्यक्तित्व बनाने की इच्छा होना तो ज़रुरी है ही पर उससे अधिक जरूरी है कि सेवा प्रदाता इसे अपनायें क्योंकि उन्हें अपने जालस्थल में बदलाव करने होंगे। कुछ लोगों ने तो 50,000 डॉलर बाउन्टी कार्यक्रम भी शुरु किया है जिसके अतर्गत ओपन आईडी की सुविधा देने वाले पहले दस मुक्त स्रोत अभिकल्पों को 5000 डॉलर का इनाम मिलेगा।

खुल जा सिम सिम

ओपन आईडी का प्रयोग शुरु करने के तुरतफुरत जुगाड़

अरे यह क्या? यह लेख आपने अभी पूरा पढ़ा नहीं और आप को ओपन आईडी का इस्तेमाल करने की तीव्र इच्छा होने लगी? यह तो बड़ी अच्छी बात है। आईये हम आपको ओपन आईडी के राजमार्ग की और जाती पगडंडी की राह बता देते हैं।

 ओपन आईडी द्वारा लॉगिन: यदि आप वर्डप्रेस का इस्तेमाल करते हैं तो आप अपने पाठकों को टिप्पणी करने के लिये ओपन आईडी द्वारा लॉगिन की सुविधा दे सकते हैं। इसके लिये आप वर्डप्रेस ओपन आईडी प्लगईन का प्रयोग करें। यह वर्डप्रेस के नये 2.x संस्करण के साथ काम करता है। इसी काम के लिये एक और प्लगइन यहाँ उपलब्ध है।

अपना ओपन आईडी आईडेंटीफायर: आप अपने ब्लॉग के पते को अपना ओपन आईडी आईडेंटीफायर बना सकते हैं। उदाहरण के लिये लेखक अपने ब्लॉग http://nuktachini.debashish.com का पता अपनी ओपन आईडी पहचान के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। यह काम एक अन्य प्ल्गइन ओपन आईडी डेलिगेट से संभव है। यह प्लगइन सेट किये जाने के पश्चात आपके ब्लॉग के एचटीएमएल में उचित लिन्क व मेटाटैग सम्मिलित कर देता है जिसमे आपके वास्तविक ओपन आईडी सर्वर की जानकारी होती है (मुख्य लेख में भी देखें: “अपने जालपते को अपनी ओपन आईडी कैसे बनायें”)

 टेक्नोराती में क्लेम: आप टेक्नोराती में अपना ब्लॉग क्लेम करने के लिये अपनी ओपन आईडी का प्रयोग कर सकते हैं।

ओपन आईडी जालस्थलों का प्रयोग: आप ओपन आईडी का समर्थन करने वाले जालस्थलों पर ओपन आईडी द्वारा लॉगिन कर उनका प्रयोग कर सकते हैं। ऐसे जालस्थलों की सूची बढ़ रही है और विशेष निर्देशिकाओं में उपलब्ध है। ज़ाहिर है कि आप लॉगिन फार्म पर ओपन आईडी का चिन्ह और विवरण देख कर भी यह पता लगा सकते हैं।