EG-Series: मई 2005

मुक्त बाज़ार के महात्मा कब आयेंगे?

राजनैतिक आज़ादी की अभिजात संकल्पना को गाँधीजी ने सरल रूप देकर जन आंदोलन बनाया और देश को आजादी दिलाई। नितिन पई मानते हैं कि एक शताब्दी पश्चात भारत को आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये हमें महात्मा गाँधी की दुबारा ज़रुरत है।

क्या आप टैगिंग करते हैं?

टैगिंग जानकारी की जमावट और लोगों को जोड़ने का एक नया क्राँतिकारी माध्यम है जो अराजकता से व्यवस्था की सृष्टि कर मानवीय भावनाओं का प्रतीक भी बन चला है। देबाशीष चक्रवर्ती के आलेख द्वारा प्रवेश कीजिये कीवर्ड के साम्राज्य में और अंदाज़ा लगाईये टैगिंग के भविष्य का।

आखिर ब्लॉग किस चिड़िया का नाम है?

जब सेंकड़ों मस्तिष्क साथ काम करें तो जेम्स सुरोविकी के शब्दों में, "भीड़ चतुर हो जाती है"। गोया, इंसान को इंसान से मिलाने का जो काम धर्म को करना था वो टैग कर रहे हैं। निरंतर के संपादकीय में पढ़िये देबाशीष चक्रवर्ती और अतुल अरोरा का नज़रिया।

याहू 360: एक अच्छा प्रयास

संपादकजी स्तंभ में पढ़िये निरंतर के संपादक को लिखे पाठकों के पत्र।

आई.आई.टी से देश का कोई फायदा नहीं

दुनिया के जिस किसी भी मंच पर महात्मा गांधी की बात होती तो उनकी जीवनी "पहला गिरमिटिया" की बात जरूर होती है। पढ़िये "पहला गिरमिटिया" के रचयिता, साहित्यकार, गिरिराज किशोर से अनूप शुक्ला की बातचीत।