संवादयूनिकोड हिन्दी का प्रयोग करने वाले विरले ही होंगे जिन्होंने वर्डपैड जैसे दिखने वाले मुफ्त यूनिकोड एडिटर तख्ती का प्रयोग न किया हो या इसका नाम न सुना हो। संभवतः यह जाल पर सर्वाधिक प्रचलित हिन्दी यूनिकोड पाठ संपादक (एडिटर) है। पर इस सरल एडीटर को बनाने वाले हेमंत शर्मा को शायद ही ज्यादा लोग जानते हों। हनुमान जी के परम भक्त हेमंत उन्हीं का नाम आगे रखते हैं।

हेमंत की जन्म स्थली है देहरादून। 1990 में आईआईटी दिल्ली से कंप्यूटर साईंस व ईंजीनियरिंग में बी.टेक करने के पश्चात 1998 तक भारत, नार्वे तथा अर्जेंटीना में फील्ड ईंजीनियर के रूप में कार्यरत रहे। 2001 से थॉमसन फाईनेंशियल, न्यूयॉर्क में सॉफ्वेयर ईंजीनियर के रूप में कार्यरत हैं। ज्यादातर डॉट नेट व C++ पर कार्य करते हैं। हेमंत हिन्दी, अंग्रेज़ी के साथ साथ स्पैनिश भी बोल लेते हैं। दौड़ना, पढ़ना, कारपेंट्री, ध्यान और आर्थिक व राजनैतिक विषयों पर बहस करना इनको पसंद हैं। प्रस्तुत है हेमंत की निरंतर से बातचीत के अंशः

आप बजरंग बली के बड़े भक्त प्रतीत होते हैं। तख्ती के जालस्थल का (पुराना) पता http://geocities.com/hanu_man_ji भी उनके नाम पर है और जालस्थल पर भी उनका ज़िक्र है। इस बात पर कुछ प्रकाश डालना चाहेंगे?

भक्त तो हम हैं लेकिन बहुत छोटे। दरअसल जालस्थल शुरु करते समय कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या नाम रखुँ। नाम कुछ हंसमुख सा होना चाहिए था। तख्ती के पीछे विचार भी ऐसा ही था, हल्का फुल्का – जिससे कुछ फायदा हो जनता को और गाड़ी आगे बढ़े हिन्दी की। वैसे मेरी ध्यान योग में रुचि है और बुद्ध धर्म की “ज़ेन” शाखा में खास दिलचस्पी भी है।

तख्ती बनाने का विचार आपको कैसे आया?

Hemant Sharmaहिन्दी में लिखने के प्रोग्राम तो बहुत पहले से मिलते हैं। लेकिन एक प्रोग्राम का फॉरमैट (प्रारूप) दूसरे में काम नहीं करता था। ये सबसे बड़ा कारण था कि हिन्दी में कंप्यूटर पर काम नहीं होता था। आप किसी को डॉक्यूमेंट या ईमेल भेजेंगे तो वह उसे पढ़ नहीं सकता जब तक उसके पास वही प्रोग्राम न हो। तिस पर ये प्रोग्राम ज्यादातर मुफ्त नहीं होते हैं। जिस तरह से ASCII से अंग्रेजी के गाड़ी आगे बढ़ी थी, मुझे लगा कि ISCII से हो सकता है कि काम बन जाए। लेकिन ISCII के प्रोग्राम (CDAC से) भी मुफ्त नहीं हैं।

ISCII के पीछे सरकार ने काफी राजनैतिक गलतियाँ भी की हैं। अगर आप अपनी भाषा को बचाना चाहते हैं तो आप को अपने देश में बिकने वाले कंप्युटर/आपरेटिंग सिस्टम के टेन्डर क्लॉज़ में यह साफ लिख देना चाहिए कि आप की भाषा का सपोर्ट हो। धीरे धीरे क्रिटिकल मॉस बन जाएगा विषय-वस्तु का। फिर पता चला कि आने वाले समय में युनिकोड की चलेगी। मैंने काफी ढूंढा कि कोई युनीकोड देवनागरी के टेस्ट पृष्ठ मिलें और एडिटर्स मिल जाएं। उस समय विन्डोज़ 2000 में हिन्दी सर्पोट आ गया था। मैने कुछ लिखने की कोशिश करी उसके कुंजीपटल में मगर वह तो बहुत मुश्किल लगा मुझे। इसलिए मैंने एक एडिटर लिखने कि सोची जिससे टायपिंग कि परेशानियाँ दूर हों। इससे तख्ती का पहला टेस्ट वर्ज़न निकला। उससे मैंने यूज़नेट पर परीक्षण किया (UTF-8 प्रारूप में)।

तख्ती की exe का आकार इतना छोटा कैसे रख पाये आप? क्या डाउनलोड आसान बनाना इसके पीछे उद्देश्य रहा?

तख्ती C++ में लिखी थी, शायद इसलिए आकार छोटा हो। मुझे विन्डोज़ प्रोग्रामिंग के बारे में कुछ पता नहीं था तो मैंने सोचा कि इस तरह से कुछ विन्डोज़ के बारे में सीख लिया जाए। तख्ती का पुराना वर्ज़न एम.एस.डी.एन के एक उदाहरण को लेकर विन 32 में लिखा था लेकिन उसमें बहुत बग्स मिले। इसलिए उसके बाद MFC का सैम्पल ले कर तख्ती का गत वर्ज़न लिखा। तख्ती को Win ME पर चलाने में बहुत मुश्किल हुई क्योंकि उस समय भारत में ज्यादातर लोग Win ME का इस्तेमाल करते थे इसलिए काफी काम कर के मैंने उसे Win ME वगैरह पर चला दिया, लेकिन फिर भी कई शिकायतें हैं।

तख्ती का असली काम यूनिस्क्राईब डी.एल.एल करता है। बाकी काम MFC की डी.एल.एल करती हैं शायद इसलिए छोटा साईज़ संभव हो पाया। जिस समय तख्ती लिखी गई थी उस समय अन्तर्जाल पर बड़े डाउनलोड वाकई बड़ी परेशानी पैदा करते थे।

IME, जो कि INSCRIPT कुंजीपटल का प्रयोग करता है, की तुलना में कई लोगों को, खास तौर पर गैर तकनीकी लोगों को, तख्ती अधिक सुविधाजनक लगती है। आपका क्या मानना है?

तख्ती का उद्देश्य टायपिंग आसान करना था। मैंने ऐसा कुंजीपटल बनाने की कोशिश की जो कि क्वेर्टी जानने वालों के लिए आसान हो।

तख्ती का पहला उद्देश्य मेरी अपनी टायपिंग आसान करना था। इसका कुंजीपटल बनाने में काफी समय लगा। मुझे क्वेर्टी पर टायपिंग आती है। कभी हिन्दी में ईमेल या वेब पेज लिखता हूँ उसके लिए नया कुंजीपटल सीखना मेरे लिए बहुत अधिक मुश्किल है। इसलिए मैंने ऐसा कुंजीपटल बनाने की कोशिश की जो कि क्वेर्टी जानने वालों के लिए आसान हो।

क्या आप स्वयं तख्ती का प्रयोग करते हैं?

जी हाँ। जब भी मैं हिन्दी में लिखता हुँ, तख्ती का ही प्रयोग करता हूँ। छोटे मोटे काम के लिए तख्ती लिखी थी, उसके लिए ठीक है। तख्ती को आप हिन्दी नोटपैड मान सकते हैं।

तख्ती पर आगामी दिनों में और क्या फीचर्स जुड़ने वाले हैं?

Takhtiतख्ती पर अब कोई काम नही होगा। तख्ती लिखने पर मैंने सोचा था कि यूज़नेट पर हिन्दी में लिखना आसान होगा और लोग धीरे धीरे हिन्दी का प्रयोग करेंगे यूज़नेट पर। ऐसा हुआ नहीं। सम्पर्क के लिए हिन्दी का प्रयोग असफल ही रहा है। मेरे विचार में भारत की सरकार ने हिन्दी को बढ़ावा तो दिया, लेकिन मामला नारेबाजी तक ही सीमित रह गया। असली इस्तेमाल कंप्यूटर पर था और अस्सी और नब्बे के दशक में उनका ध्यान भारतीय भाषाओं को कम्प्यूटर पर लाने पर था ही नहीं। अब भी नहीं है। वैसे भी तख्ती एक “टेक्नोलॉजी डेमोन्सट्रेटर” थी। मैं दिखाना चाहता था कि युनिकोड का इस्तेमाल करके आप मानक टेक्सट फाईल और संदेश बना सकते हैं जो कोई भी अपने कंप्यूटर पर आराम से पढ़ सकता है, बस यूनिकोड सपोर्ट होना चाहिए। इस उद्देश्य में मैं सफल रहा हूँ। समय के साथ और बेहतर प्रोग्राम आएँगे, और आने ही चाहिएँ।

क्या कभी तख्ती पर कोई शुल्क लगाने का विचार आया?

जी नहीं, तख्ती मुफ्त रहेगी।

क्या तख्ती अन्य भारतीय भाषाओं के साथ इस्तेमाल कि जा सकती है?

हाँ जब तख्ती लिखी थी तब यह सोचा था कि दूसरी भाषाओं के लिए इसमें बदलाव किया जा सकेगा। लेकिन मेरे पास कोई दूसरा फॉन्ट उपलब्ध था नहीं इसलिए टेस्टिंग नहीं हो पाई। एक भाई ने कोशिश की थी लेकिन उनका मत था कि तख्ती में कोई बग है जिसके कारण वह केवल अपनी डिफॉल्ट मैप फाईल (hindi.map) ही पढ़ती है। तो मैंने सुझाव दिया कि आप इस फाइल को ही क्यों न बदल लेते। दुर्भाग्यवश उसके बाद उनसे कोई जवाब नहीं मिला।

क्या आप को अन्य कोई युनिकोड संपादन तंत्र पसंद या नापसंद हैं?

मैंने केवल माईक्रोसॉफ्ट के हिन्दी इन्पुट कुंजीपटल का प्रयोग किया है। मैंने पाया कि उसका प्रयोग करना लगभग असंभव है और उसका कुंजीपटल खाका भी सरलता से उपलब्ध नहीं जिससे सीखना और भी कठिन हो जाता है।

अंर्तजाल पर हिन्दी के प्रयोग की अवस्था आपको कैसी लगती है? हिन्दी ब्लॉगिंग पर आपके क्या विचार हैं?

हिन्दी के प्रयोग में सुधार हो रहा है, लेकिन शायद काफी देर हो गयी है। युवा वर्ग का अंग्रेज़ी की ओर ही झुकाव है और इसमें उनका कोई दोष भी नहीं, भारत में ढंग की नौकरी पाने में हिन्दी कोई मदद नहीं करती। युवाओं के लिए अंग्रेज़ी जानना अनिवार्य हो गया है। दुर्भाग्य की बात यह है कि उन्हें यह लगता है कि नौकरी पाने और अंग्रेज़ी सीखने के लिए हिन्दी को भूलना या उसकी अवहेलना करना जरूरी है। यह होना नहीं चाहिए और यह उन्हें यह समझना होगा। सरसरी तौर पर, भारत में साहित्य, और खास तौर पर हिन्दी साहित्य, की दुर्गति हो रही है। अगर हिन्दी प्रयोक्ताओं की संख्या खासी हो तो यह समस्या काफी हद तक सुधर सकती है। हिन्दी ब्लॉगिंग का प्रचलन बढ़ रहा है और यह बढ़िया संकेत है। पर जब तक हिन्दी लेखकों और पाठकों की संख्या क्रिटिकल मास नहीं छूती स्थिति खतरनाक ही बनी रहेगी।

मेरा सपना था कि यूज़नेट पर हिन्दी में बातचीत बढ़े पर भारत में यूज़नेट उतना प्रचलित नहीं है सो मुझे आशानुरुप परिणाम नहीं मिले। यहाँ पर याहू ग्रुप्स ज्यादा नामचीन है जो न तो मानक नयाचार है और न ही युनीकोड को मान्यता देता है। ऐसी कई मुश्किलें हैं। मुझे लगता है कि अंततः शालाओं को यह जोर देना शुरु करना होगा कि छात्र कंप्यूटर पर भी हिन्दी टंकण करना सीखें। इससे नयी पीढ़ी कंप्यूटर पर हिन्दी के प्रयोग करने की अभ्यस्त होगी। अब जब माईक्रोसॉफ्ट युनिकोड हिन्दी इस्तेमाल के तरीके मुहैया करा चुका है ऐसा नहीं करने का कोई बहाना नहीं होना चाहिए।

पाठकों की रूचि बढ़ाने के लिए ब्लॉगिंग शायद सबसे सही तरीका नहीं है। ब्लॉगिंग किसी व्यक्ति विशेष का एक तरफा संवाद है, दो तरफा संवाद सबसे बेहतर होता है और यूज़नेट इसके लिए सर्वोत्तम है।

पर पाठकों की रूचि बढ़ाने के लिए ब्लॉगिंग शायद सबसे सही तरीका नहीं है। ब्लॉगिंग किसी व्यक्ति विशेष का एक तरफा संवाद है, दो तरफा संवाद सबसे बेहतर होता है और यूज़नेट इसके लिए सर्वोत्तम है। चूँकि भारत में यह प्रचलन में नहीं है, हिन्दी युनिकोड पर चलने वाले फोरम की दरकार है। इसके अलावा जागरण जैसे कई हिन्दी आनलाइन अखबार निजी स्वामित्व वाले फॉन्ट का प्रयोग करते आ रहे हैं जिससे मामला और पेचीदा हो जाता है। बी.बी.सी हिन्दी जैसे युनिकोड इस्तेमाल करने वाले जालस्थल न केवल अच्छे हैं बल्कि ज्यादा मशहूर भी हैं।

क्या कभी अपना ब्लॉग शुरु करने का भी इरादा है?

हाँ किसी दिन अपना ब्लॉग शुरू कर सकता हूँ। पर मेरे पास पर्याप्त समय नहीं रहता। मैं तख्ती को एक सफल प्रदर्शन मानता हूँ जिसने यह स्थापित किया कि आगे का रास्ता युनिकोड ही है। मैं अपना समय कंप्युटर पर हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने में करना चाहुँगा। पहले मैं सरकार और सी.बी.एस.ई जैसी संस्थाओं को विपत्र लिखा करता था, मुझे कुछ जवाब भी मिले जैसे उत्तर प्रदेश सरकार से। यह काफी अच्छा था। पर काफी काम शेष है, खासकर शालाओं में जहाँ हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देना सबसे ज़रूरी है।

निरंतर के पाठकों के लिए कोई संदेश?

यही कि हिन्दी का प्रसार करें। विभिन्न फोरम पर लोगों को हिन्दी के प्रयोग ले लिए प्रोत्साहित करें। हमारा प्रयास होना चाहिए कि संख्या क्रिटिकल मॉस तक पहूँचे, फिर यह निकाय अपना रख रखाव खुद कर लेगा।

इस साक्षात्कार के प्रकाशन के कुछ समय उपरांत ही अप्रेल 2005 में हेमंत ने भी अपना हिन्दी ब्लॉग शुरु कर दिया, जिसका नाम है योग ब्लॉग