Nidhiआम तौर पर महिला चिट्ठाकार अपनी कविताओं के लिये ख्याति पाती हैं लेकिन लकीर से हट कर काम करने के चक्कर में निधि ने शुरुआत से गद्य पर हाथ साफ किया। गद्य तक तो ठीक लेकिन इसके भी दो कदम आगे वे ‘चिन्तन’ करने लगीं। लेकिन चिंतन तथा बिंदास बोलता हुआ गद्य लिखने का यह मतलब नहीं कि उन्होंने कवितायें लिखी ही नहीं। लिखीं और खूब लिखी-

पन्नों पे रख के दिल को उनको दिखा दिया,
वो देख के बोले कि गज़ल अच्छी है ।

आम तौर पर लोग कवितायें पढ़कर उदास हो जाते हैं लेकिन निधि अधिकतर कविता ही तब लिखती हैं जब वे उदास होती हैं-

कभी कभी न जाने क्या होता है मुझको,
भरी भीड़ में पाती हूँ,
खुद को एकदम एकाकी।
दम घुटता सा पाती हूँ,
तब मैं खुली हवा में भी।
मिलती है भीगी सी,
पलकों की कोरें,
पाती हूँ अनजान कसक अपने दिल में।

अमित कुलश्रेष्ठ के प्रोत्साहन कम उकसावे पर ज्यादा अपना ‘चिन्तन’ शुरू करने वाली निधि का जन्म 15 नवंबर 1979 में कानपुर में हुआ। आरंभिक शिक्षा नाना जी के पास रह कर बकेवर में तथा फिर आगरा में हुई और उसके पश्चात 1999 में दयालबाग विश्वविद्यालय से एम.एस.सी. में दाखिला लिया। वहीं से भौतिकी तथा कम्प्यूटर में परास्नातक। वर्ष 2000 में आकाशवाणी, आगरा में आकस्मिक संचालक के रूप में चयन। पढ़ाई के साथ साथ ‘युववाणी’ तथा कुछ अन्य कार्यक्रमों का संचालन। इसके बाद 2001 में एक अमेरिकन कंपनी में मेम्बर टेक्निकल स्टाफ़ के पद पर चयनित हो नोएडा आ गयी। वर्ष 2003 में साथ ही कार्यरत साथी अमित श्रीवास्तव से विवाह। शादी के पश्चात पति व ससुराल वालों के प्रोत्साहन से गायन पर भी ध्यान देना शुरू किया।

दस सवाल

ब्लॉग लिखना कैसे शुरू किया?
देखादेखी। जब पता लगा हिंदी मे ब्लॉग लिखा जा सकता है तो प्रेरणा मिली। अंग्रेज़ी में डायरी लिख लिख के पक गये थे। सोचा हिंदी का ब्लॉग आज़माया जाये।

पहला ब्लॉग कौन सा देखा?
वैसे तो परेश मिश्रा का ब्लॉग पर हिंदी में अमित का भानुमती का पिटारा सबसे पहले देखा।

नियमित रूप से ब्लॉग कैसे देखती हैं?
नारद जी की दया है। इसके अलावा कुछ अपने और दूसरों के चिट्ठों पर की गयी टिप्पणी और कड़ियों को फॉलो करके भी देखे हैं।

लेखन प्रक्रिया क्या है? सीधे लिखती हैं कंप्यूटर पर या पहले कागज पर?
सीधे की-बोर्ड पर चालू होते हैं। काग़ज़ पे लिखे ज़माना हुआ। कागज़ कलम सिर्फ़ महीने के राशन की लिस्ट बनाने के काम आता है अब 🙁

सबसे पसंदीदा चिट्ठे कौन हैं?
सभी पर कुछ न कुछ अच्छा है।

कोई चिट्ठा खराब भी लगता है?
चिट्ठा नहीं पर कभी कभी कोई प्रविष्टी खराब लगती है। वह तब जब भाषा असभ्य हो या गलत बातों की पैरवी की गयी हो।

टिप्पणी न मिलने पर कैसा लगता है?
टिप्पणी न मिलने पर लगता है कि कहाँ कमी है यह बताने वाला कोई भी नहीं। अच्छाई सब लिखते हैं।

अपनी सबसे अच्छी पोस्ट कौन सी लगती है?
वैसे तो सब ऐं वैं ही हैं। पर अतीत से जुड़ी पोस्ट पढ कर यादें ताज़ा हो जाती हैं औ साथ ही वह बहुत सच्चाई से लिखीं इसलिये वह मुझे अच्छे लगतीं हैं।

और सबसे खराब?
मैं अपनी हर पोस्ट में कमी निकाल सकती हूँ। सुधार की संभावनाएं तो असीमित हैं।

चिट्ठा लेखन के अलावा और नेट का किस तरह उपयोग करती हैं?
किताबें, गाने तथा नये रोचक सॉफ़्टवेयर डाउनलोड करने, तरह तरह की जानकारी ढूढँने के और नयी नयी चीज़ें सीखने के लिये।

अपनी रुचियों के बारे में गिनाते हुये निधि जब शुरु होती हैं तो बात लकीर से हटकर बनी फिल्मों, गायन, लेखन, मिट्टी के पुतले बनाना, अभिनय, रंगोली, पेन्टिंग, नृत्य फ़ोटोग्राफ़ी, खाना बनाना, प्राकृतिक जगहों पर भ्रमण और तकनीकी विषयों के बारे मे जानना-समझते तक जाती है। इनमें काफी कालेज के जमाने के शौक थे जिनके लिये तमाम पुरस्कार भी बटोरे। अभी इस सूची में चिट्ठाकारी, आयुर्वेद आदि-इत्यादि, वगैरह-वगैरह जुड़ते जा रहे हैं। गाने-बजाने का शौक तो बरकरार है। लेकिन पता चला है कि कभी डांस का भी शौक था जो अब अभ्यासाभाव में कभी-कभी मटक लेने तक सिमट गया है।

बचपन में काफी अंतर्मुखी रही निधि कक्षा 10 तक पुस्तकों तक सीमित रहीं। फिर गुरुओं तथा शुभचिंतकों के सराहना और प्रोत्साहन का परिणाम था कि अपनी कलाओं को दूसरों के समक्ष रखने के पहल की। उन्ही दिनों सर्वश्रेष्ठ छात्र और समाज सेवा के लिये मिले पुरुस्कारों ने आत्मविश्वास में और वृद्दि की। इसके बाद कॉलेज के दिनों में कोई क्षेत्र नहीं छोड़ा जहाँ पैर न पसारे हों। पढा़ई के क्षेत्र में निधि कक्षा के सर्वोत्तम विद्यार्थियों में भी रहीं।

जहां तक लेखन का सवाल है तो वो लेखन का माहौल निधि को विरासत में मिला। शुरू के दिनों में ननिहाल में रहीं। पूरा ननिहाल (निधि के नानाजी, प्रख्यात साहित्यकार श्री परिपूर्णानन्द वर्मा के पुत्र तथा प्रख्यात राजनीतिज्ञ एवं साहित्यकार डा.सम्पूर्णानन्द के भतीजे हैं) लेखन से जुड़ा रहा है इसलिये शायद लिखने की क्षमता प्रकृति प्रदत्त है। वर्ष 1991-92 में दो लेख ‘उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान’ की पत्रिका ‘अतएव’ में भी प्रकाशित हुए ।

जीवन के उतार-चढ़ाव के बारे में बताते हुये निधि कहती हैं-

1999 में मेरे एम.एस.सी. में दाखिला लेने के दो माह बाद ही पिताजी का आकस्मिक देहांत हो गया। इसी सदमें से 28 दिन के बाद नानी जी भी चल बसीं। घर से कोई सहयोग न था। मैं और मेरी छोटी बहन किसी तरह माँ और बुरी तरह से बिखरी ज़िन्दगी को सँभालने की कोशिश कर रहे थे। इस समय मेरा कोई मित्र भी मेरे पास न था। इसलिये भावों के अतिरेक को शब्दों में ढालना शुरू कर दिया। मेरी अधिकतर कवितायें मैने इसी समय लिखीं।

लेखन को किसी भी तरह के भाषा-बंधनों में बांधने के बजाय विचारों की अभिव्यक्ति को सर्वोपरि मानने वाली निधि कभी-कभी बेसिर-पैर का हांकने से भी परहेज नहीं करतीं जिसका विचारों से कोई वास्ता नहीं होता:-

आज कहते हो ज़िन्दगी को कम ये कर देगी,
शराब चीज़ बुरी है इसे पिया न करूँ,
खै़रख़्वाह उम्र तो घटती है साँस लेने से,
कल ना कह देना कि साँसे भी मैं लिया ना करूँ ।

लेखन का माहौल निधि को विरासत में मिला। नानाजी, प्रख्यात साहित्यकार श्री परिपूर्णानन्द वर्मा के पुत्र तथा प्रख्यात राजनीतिज्ञ एवं साहित्यकार डा.सम्पूर्णानन्द के भतीजे हैं।

 

निधि का लेखन का अंदाज़ खास है। अपने अनुभवों के बारे में जब बताती हैं तो लगता है कि आखों देखा हाल सुना रही हैं। इनमें शामिल हैं मम्मी की हिदायतें, बड़े वो टाइप पतिदेव, गूगल देवता और आवारा आशिक की उड़ैया से लहालोट नायिका। पतिदेव का वर्णन पढ़ते हुये लगता है कि ये निधि का वो खिलौना है जिसमें वो उसकी अच्छाईयां निहारकर निहाल भी सकें तथा मीनमेख का माइक्रोस्कोप लगाकर यह भी कह सकें बड़े वो टाइप हैं हमारे पतिदेव। यह लेख पढ़ते समय लगता है कि किसी से उलाहना कर रही हों कि हमारे ये हमारे दिल का ख्याल नहीं रखते। तथा फिर हाले-दिल सुनाने को कहने पर कहे कि हाय दिल तो इन्हीं के पास है। संभाल के रखा है।

निधि की नायिकायें भी नायिकाओं टाइप ही हैं। एक हमउम्र दिलफेंक आवारा आशिक को दिल देने की बजाय दो बुजुर्गों (कुमार-मित्तल) की किताब में दिल लगाती हैं। ये नायिकायें खुद तो बिना कुछ किये दिलफेंक मजनुओं से येन-केन-प्रकारेण बचती हैं लेकिन जब खबर सुनती हैं कि किसी कन्या ने किसी मजनूं की उड़ैया कर दी तो दिल बाग-बाग हो जाता है। नायिकाओं को लगता है कि उनका बदला ले लिया गया। निधि जाने पहचाने वाक्य टाइप करने के बजाय अपने खुद के वाक्य गढ़ना भी बखूबी जानती हैं-

  • सामान्यत: कोई भी नारी बिना वजह अपना वक्त और सैंडल ज़ाया नहीं करती।
  • मौसम की तरह कुछ लोग भी चिपचिपे होते हैं।

निधि की अभी तक के अपने अतीत के बारे में ही ज्यादातर लिखा है। इसमें उनके बचपन की यादे हैं, मम्मी के डायलाग और पति से पहली मुलाकात से लेकर पांच सौ के छब्बीस पत्ते उड़ा देने के किस्से हैं तथा कुछ सामयिक घटनाओं पर लेख हैं।

अपने व्यक्तित्व तथा स्वभाव के बारे में निधि खुलासा करती हैं:

अपना खुद का बेहद उलझा हुआ व्यक्तिव मेरे लिये एक पहेली है। और खुद को समझना मेरे ही लिये चुनौती। शायद जीवन में घटी कुछ दु:खद घटनाओं की परीणीति हो ये। अगर कहूँ कि मैं काफ़ी डग्गेमार प्राणी हूँ तो ग़लत नहीं होगा। जब तक धकियाया न जाय कुछ नहीं करती। परंतु ईश्वर की कृपा से हमारे मित्र तथा पति देव बड़े हिम्मती हैं। सब लोगों को लगता है कि हम बहुत कुछ कर सकते हैं सो सब अपनी मर्ज़ी की दिशाओं में हमें ठेलने में लगे हैं। फिलहाल ‘की-बोर्ड’ बजाना सीख रहें है तथा गायन का अभ्यास भी कर रहे हैं। कोशिश कर रहे हैं कि लेखन नियमित करें।*

निधि को पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ नौकरी करना फिलहाल रास नहीं आता। अपनी आगे की योजनाओं के बारे में निधि का कहना है:-

आगे चल के अनाथ बच्चों और बुज़ुर्गों के लिये कुछ करना चाहती हूँ। कुछ भी कर ग़ुज़रने का हौसला तो है पर वो दिशा ढूँढ रही हूँ जहाँ मेरी आत्मा को तृप्ति मिले। बस यूँ समझ लीजिये कि मैं क्या हूँ और क्यूँ हूँ, एक पत्नी, बेटी, बहू के अतिरिक्त मेरी अपनी पहचान क्या है, अपने आप से मेरी क्या अपेक्षायें है तथा परिवार के अतिरिक्त अपने देश की उन्नति में मैं क्या योगदान दे सकती हूँ, इन्ही प्रश्नों का हल तलाश रही हूँ।#

निधि का व्यक्तित्व हरफनमौला सा है। आशा है कि वे अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने के साथ-साथ नियमित लेखन से भी जुड़ी रहेंगी तथा अपनी अतीत की यादें समेटने के साथ-साथ समकालीन विषयों पर अपने हाथ आजमायेंगी। निरंतर परिवार की तरफ से निधि को उनकी पारिवारिक जिम्मेदारियों व भविष्य की योजनाओं को सफलतापूर्वक पूरा करने तथा अनवरत लेखन के लिये मंगलकामनायें।