मैं ऐसा क्यों हूँ?
लेखकः निरंतर पत्रिका दल | March 29th, 2005
चित्र प्रेषकः जीतेन्द्र, संकल्पनः रवि
चित्र शीर्षकः मैं ऐसा क्यों हूँ?
प्रतियोगिता के नियमः
- रचना मौलिक, अप्रकाशित होनी चाहिए।
- एक प्रेषक से एक ही प्रविष्टि स्वीकार्य होगी।
- संपादक मंडल का निर्णय साधारण अथवा विवाद की स्थिति में अंतिम व सर्वमान्य होगा।
- किसी भी प्रविष्टि की प्राप्ति न होने या न जीतने पर पुस्तक आगामी अंकों में वितरित होगी।
- संपादक मंडल के सदस्य प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकते।
- प्रतियोगिता में केवल पुस्तक प्रदान की जा रही है, वितरण की जिम्मेवारी निरंतर फिलहाल लेने में असमर्थ है। अतः विजेता को जीती पुस्तक प्राप्त करने के लिए अपना पता लिखा एवं पर्याप्त डाक टिकट लगा लिफाफा संपादक को भेजना होगा। विजेता को उसके निवास स्थान के आधार पर डाक टिकट का मूल्य तथा पुस्तक मंगाने का पता निरंतर यथासमय सूचित करेगा।
- क्षमा करें, डाक में पुस्तक खो जाने या पुस्तक अप्राप्ति कि जिम्मेवारी निरंतर नहीं ले सकता।
- रचना भेजने की अंतिम तिथि हैः 20 मार्च, 2005
हाथ अगर भारी होते,
तो क्या हाथी कहलाता ?
रंग अगर जो गोरा होता,
क्या गौरैया कहलाता ?
जिसको जैसा रचा सृष्टि ने,
वह वैसा बन पाया।
फिर यह जिज्ञासा क्यों उभरी मन में, ओ भाई !
कि ,’ मैं ऐसा क्यों हूँ ?’
– राजेश कुमार सिंह Submitted on Mon, 2005-03-14 05:33
शिशु की तरह निरीह
पर स्त्री की तरह मूक।
मैं ऐसा क्यों हूँ?
सच्चे नेता सी दूरदृष्टि
पर नेतृत्वमद से दूर।
मैं ऐसा क्यों हूँ?
(Submitted by Anonymous on Mon, 2005-03-14 14:26.)
तू तो प्रेरणा है, उनके लिये जो हार मान लेते हैं,
एक जीवंत अनुकरणीय है, जिजीविषा की,
एक उदाहरण है, प्रकृति से सांमजस्य की
तुमने मनुष्यों की तरह प्रकृति को नष्ट नहीं किया
अपने को ढाला, पर कुछ भी भ्रष्ट नहीं किया