धौंस नहीं सहेंगे चिट्ठों के सिपाही

ब्लॉग्स का ईमानदार स्वर आशाएं जगाता है

Editorial

गर पूर्णतः व्यक्तिगत किस्म के चिट्ठों को छोड़ दिया जाय तो ब्लॉगिंग की शुरुवात से ही इसका एक आकर्षक पहलू रहा है, इसके विद्रोही स्वर तथा व्यवस्था के ऐसे पक्षों का पर्दाफाश करने की काबलियत जिन का, आम तौर पर, मुख्यधारा के मीडिया की नज़र में कौड़ी का भाव रहता है। रंगभेद का सर्मथन करने वाले अमरीकी सिनेटर के सही रंग उजागर करने से लेकर प्रद्युम्न माहेश्वरी के मीडीयाह तक यह बात साबित हुई है कि मामले का एक अलाहदा पक्ष रख कर ब्लॉग खोजी पत्रकारिता को एक नया आयाम प्रदान कर चुके हैं, वह है निर्भीक, बेबाक और निस्वार्थ पक्ष रखने का सार्मथ्य। और जब सामाजिक आंदोलन का प्रतीक माने जाने वाले अधिकांश अखबार भीमकाय कार्पोरेट्स के हाथों अपना ज़मीर बेच कर "एडवरटोरियल" जैसे अशिष्ट शब्द की रचना कर चुके हैं, ब्लॉग्स का यह ईमानदार स्वर आशाएं जगाता है।नज़रिया ब्लॉग अंर्तजाल समाज के अण्णा हजारे और मेधा पाटकर हैं। समाज के अधिकारों की रक्षा के इस नये अस्त्र को तीसरी दुनिया में अंर्तजाल के विहंगम होने तक का भले ही इंतज़ार हो, यह बिलाशक एक इतर सामाजिक ढांचे का रूप अख्तियार कर चुका है जो आने वाले वर्षों मे और मुखर ही होगा।

मेरे इस विश्वास के पीछे कारण हैं। हम सतत देख रहे हैं कि मुख्यधारा के मीडीया के लिए अब ब्लॉग्स को अनदेखा करना असंभव होता जा रहा है। अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान हमने इन के बढ़ते कद को देखा है। जब अफगानिस्तान से पहला ब्लॉग लिखा जाता है तो खुशी होती है कि युद्धोन्माद के अम्ल से मरू बने देश में जनाधिकारों की कोंपलें फूट रही है। ब्लॉग मानवाधिकारों के स्वास्थ्य बताते तापमापक भी बन गए हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि इनके बाहुबल में इज़ाफे से बड़े मीडिया घरानों की चूलें हिल रही हैं। चिट्ठाकारिता के क्षेत्र में जबसे पत्रकारों ने भी कदम रखा है इस से इस माध्यम को न केवल पेशेवर कलेवर मिला है वरन इसके असरदार होने की बात भी पुख्ता हुई है।

ब्लॉग अंर्तजाल समाज के अण्णा हजारे और मेधा पाटकर हैं।

प्रद्युम्न, जो पेशे से स्वयं पत्रकार हैं, नेपथ्य में चल रही मीडिया घरानों के कार्यकलापों का खुलासा करते रहे हैं। मुझे नहीं मालूम इसमें उनका कोई व्यक्तिगत हित शुमार रहा या नहीं, पर जनतंत्र में हमें किसी भी मामले के हर पक्ष को जानने का अधिकार है। इस बड़े अखबार के मामले में यह पक्ष ज़रा काला था। जिन विज्ञापनों को वे संपादकीय पृष्टों का मुलम्मा चढ़ा कर बेचते आ रहे थे उनकी पोल इस चिट्ठे ने खोल दी। ऐसा नहीं कि ये कोई नयी बात थी, इस अखबार के पाठक सालों से इस धीमे जहर का सेवन करते आये हैं। जब मनोरंजन के पृष्ठ पर उनके ही लाइफस्टाईल चैनल की चर्चा हो, जब उनकी उमर्दराज़ खानपान विशेषज्ञा डीनो मोरिया के रेस्तरां की "खास" तारीफ कर रही हों, जब रविवार दर रविवार केवल दीपक चोपड़ा की पुस्तकों की ही समीक्षा छपे और साथ में समूह के पोर्टल से इन्हें खरीदने की कड़ी भी हो, कम शब्दों में – जब समूचा अखबार ही समूह के उत्पाद बेचने का विज्ञापन प्रतीत होने लगे तो शक तो होता ही। प्रद्युम्न ने केवल इस शंका की पुष्टि की। हास्यास्पद बात यह है कि विचार ज़ाहिर करने करने के मौलिक अधिकार पर आपत्ति करने वाले कोई और नहीं वरन समाज का चौथा स्तंभ माने जाने वाली संस्था है।

जब इस मीडिया घराने ने माहेश्वरी के हाथ कानूनी धमकियों के माध्यम से मरोड़ने चाहे तो उन्हें अंदेशा नहीं रहा होगा कि अब तक फकत मीडियाह ब्लॉग और कुछ अन्य चिट्ठों (कड़ी अब निष्क्रिय) की चर्चा तक ही सीमित रहे उनके पापों का घड़ा अब हर पनघट पर फूटेगा। निरंतर की आमुख कथा "मीडिया ही घोंट रहा है ब्लॉग का गला" में मार्क ग्लेसर पेश कर रहे हैं इसी संपूर्ण घटनाक्रम का जायज़ा। सीमित साधनों के चलते मीडियाह ब्लॉग भले ही बंद हो गया हो विचारों की आज़ादी की बयार निरंतर बहती ही रहेगी, इसी अटूट विश्वास के साथ हम मार्क के लेख का हिंदी रूपांतर प्रस्तुत कर रहे हैं। किसी मीडिया समूह विशेष के खिलाफ निरंतर का कोई अजेंडा नहीं, यदि अजेंडा है तो बस सचाई पर किसी भी तरह की धौंसपट्टी की खिलाफत।

बड़े खिलाड़ी के आने से बड़ा हुआ खेल

जेरेमी का याहू 360 डिग्रीज़ ब्लॉगनिरंतर के इसी अंक की हलचल में हमने अंर्तजाल के बड़े खिलाड़ियों में से एक याहू द्वारा चित्रों कि सजाल पर सहेजने की मुफ्त सेवा देने वाले और बेहद अल्पसमय में सबकी पसंदीदा बनी फ्लिकर के अधिग्रहण और साथ ही याहू 360° द्वारा ब्लॉगिंग के अखाड़े में पर्दापण की खबर दी है। छोटी मछलियों को बड़ी मछलियों द्वारा निगलते जाने का यह कोई पहला वाकया नहीं है, पर वाकई यह है एक मह्त्वपूर्ण ख़बर। सिर्फ इसलिए नहीं कि मैदान में पहले से मौजूद गूगल के साथ उनके दो दो हाथ होने का माजरा दर्शनीय होगा बल्कि इसलिए भी कि स्वस्थ मुकाबला हो तो उपभोक्ता को ज्यादा फायदा होने की संभावना है। याहू एक समझदार कंपनी है जो सदा युवा रहने का प्रयास करती रही है, यह कदम भी उनका एक प्रभावी कदम है अपने संस्थान को बदलाव की सच्चाईयों से अद्यतन रखना। पिछले कई वर्षों से एक उत्कृष्ट मुफ्त होस्टिंग सेवा कायम रखने के बाद क्या यह याहू का मोहभंग है पारिवारिक चित्रों के अल्बम और पकवानों की विधियों वाले जड़ एच.टी.एम.एल पृष्टों से? मुझे अब लगता है कि सचाई शायद इसकी ठीक उलट ही है। याहू का सब्सक्राईबर आधार बड़ा तगड़ा है जो उसकी किसी भी नई परियोजना को हाथों हाथ के सकते हैं, अधिक पाठक मतलब विज्ञापनो से अधिक आय। यह समीकरण भले ही उतना सरल न हो फिर भी याहू के कदम से उसकी अपने विभिन्न उत्पादों, जैसे कि विज्ञापन युक्त मुफ्त होस्टिंग जो अब ब्लॉगिंग की भी सुविधा दे, मैसेंजर, ब्रीफकेस, आवाज़, चित्र व चलचित्र अल्बम आदि, की जमावट एक जगह कर उसमें दम भरने की चेष्टा साफ झलकती है।

याहू का सब्सक्राईबर आधार बड़ा तगड़ा है जो उसकी किसी भी नई परियोजना को हाथों हाथ के सकते हैं, अधिक पाठक मतलब विज्ञापनो से अधिक आय।

हमारे देश में ही क्या दुनिया भर में ब्लॉगिंग करने वाले विभिन्न वर्ग हैं जो अलग अलग कारणों से कीबोर्ड का प्रयोग करते हैं। पर ज्यादातर इसे बड़े गंभीर भाव से लेते हैं। ब्लॉग के माध्यम से हमारी सबसे बातचीत भी होती रहती है। हालिया कमेन्ट स्पैम डकैतों ने यह भी जता दिया कि इस वार्तालाप में अनजाने लोग जबरिया शामिल भी हो सकते हैं। ऐसे कई कारणों से लोगों का चिट्ठाकारी, या कहें तो आनलाईन व्यवहार के दौरान ही, अपनी पहचान छुपा कर रखना ज़रूरी हो गया। मेरे जैसे लोग जो शुरु से यह चोला न ओढ़ सके वह भी कई दफा इस एनॉनीमिटि को तरसते हैं। अगर आप के पास यह सुविधा हो कि आप अपने चिट्ठे, बोलते चिट्ठों, चित्र या विडियो के बारे में यह तय कर सकें कि फलां सभी देख सुन सकेंगे और फलां केवल मेरे मित्र और परिवार के सदस्य और फलां केवल मेरी गर्लफ्रेंड तो कितना ही अच्छा हो। है न! याहू 360° शायद ऐसे वार्तालाप, जिसे विशेषज्ञ "येट अनदर सोशीयल नेटवर्किंग" पुकारते हैं, को आसान बना दे। याहू 360° की झलक देखें तो पहली नज़र में ये सामाजिक तालमेल का स्वाद ही ज्यादा मिलता है, लगता है ज्यों माई याहू पर आर्कुट और मैसेंजर चस्पा कर दिए गए हों, ब्लॉगिंग का इस समीकरण में छोटा सा अस्तित्व है। मुझे लगता है कि गंभीर ब्लॉगर इस से बिचकेंगे। बहरहाल, आने वाले दिन ही बतायेंगे कि ऊँट किस करवट बैठेगा। फिलहाल तो यह सुविधा गूगल मेल की भांति गिने चुने लोगों को नसीब होगी जो यह कड़ी आगे बढ़ायेंगे। तो कुछ हफ्ते तैयार रहें "मुझे याहू 360° का निमंत्रण मिला" या "मेरी याहू 360° की समीक्षा" नुमा चिट्ठे पढ़ने के लिए।

आपका मित्र

देबाशीष चक्रवर्ती

साथ ही पढ़ें पत्र संपादक के नाम। आप भी हमें patrikaa at gmail dot com पर पत्र भेज कर अपनी राय दर्ज करा सकते हैं।

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एक प्रतिक्रिया
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  1. जबरदस्त संपादकीय और जबरदस्त पत्रिका. किसी भी प्रिंट मीडिया की पत्रिका से गुणवत्ता में बराबर का होड़ लेने की काबिलियत युक्त.

    बधाई!
    Submitted by Anonymous on Mon, 2005-04-04 07:09.

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