वातायनः पुस्तक समीक्षा

बि

ज़ स्टोन ब्लॉगिंग करते हैं। काफी ब्लॉगिंग करते हैं। जवाँ हैं (“ईमेल उम्र में मुझसे बड़ा है, यूँ समझिए कि 1948 में मैं पांचवीं में था, लगाइए हिसाब।”), बॉस्टन के रहने वाले हैं और उनके बिल्ले का नाम ब्रूस है। एक किताब पहले लिख चुके हैं, और “हू लेट द ब्लॉग्स आउट” उनकी दूसरी पुस्तक है। ज़ांगा डॉट कॉम से जुड़े थे तथा संप्रति गूगल में वरिष्‍ठ विशेषज्ञ हैं। दरअसल, बिज़ की पुस्तक में “मैं” शब्द बहुत बार आता है। शायद इसलिये भी पुस्तक का लहज़ा आत्मकथात्मक है। बिज़ का खुद ही मानना है, “यू आर वॉट यू ब्लॉग”।

बिज़ की पुस्तक रोचक है। किसी भी ब्लॉगर के लिये यह प्रेरणादायक साबित हो सकती है। बिज़ नये ब्लॉगरों के लिये उम्दा रोल मॉडल न सही, पर एक सामान्य इन्सान जिसका कोई खास शैक्षणिक आधार न हो, जिसे दो दो पुस्तक लिखने की बढ़िया डील और गूगल में शानदार नौकरी, संक्षेप में कहें तो रोटी कमाने का ज़रिया, ब्लॉग से ही मिला हो तो प्रेरणा न ग्रहण न करने का सवाल ही नहीं उठता।

244 पृष्ठों की “हू लेट द ब्लॉग्स आउट” में कथन शैली हल्की फुल्की बातचीत की है पर कुछ अध्याय संजीदगी भी लिये हैं (यह पुस्तकांश तो आप निरंतर पर पढ़ भी चुके हैं)। शेष के अध्याय “बिज़नेस ब्लॉगिंग” तथा “पॉलिटिक्स एंड प्युपिल्स” काफी अहम लेख हैं। किताब में यत्र तत्र विभिन्न हस्तियों की उक्तियां भी दी गई हैं। किस प्रकार ब्लॉगर स्वयं अपने रिवाज और नियम बना लेते हैं उस पर बिज़ ने लैरीवेल को उद्धत किया है

मुझे पता चला कि जब वे केलिफॉर्निया विश्वविद्यालय बना रहे थे तो उन्होंने पहले साल कोई साइडवॉक (पैदल चालन के लिये पटरी) नहीं बनाई। अगले साल वे वापस आये और घास पर गायों के पदचिह्नों से बनी पगडंडियों को खोजा और वहीं साईडवॉक बना दीं। (पृष्ठ 67)

पुस्तक में गूगल संबंधित विषयों जैसे कि ब्लॉगर, गूगल एडसेंस, गूगल का आन्तरिक ब्लॉग निकाय से लेकर गूगल बॉम्बिंग तक का उल्लेख है। पूछना नहीं चाहिये क्यों? बिज़ ज़ाहिर तौर पर अपनी नौकरी से अभिभूत हैं। पुस्तक में सोशियल बुकमार्किंग जैसे काफी सामयिक विषयों पर भी चर्चा है। पुस्तक का मिज़ाज़ काफी सकारात्मक है इसलिये ब्लॉगिंग की कमियों पर कोई रोशनी नहीं डाली गई है, उदाहरणतः कॉमेन्ट या रेफरर स्पैमिंग की दिक्कतों का उल्लेख नहीं है।

बिज़ की किताब में कई बढ़िया किस्से भी शुमार हैं। जैसे कि डेबी स्वेनसन नामक एक महिला द्वारा केसी नाम की काल्पनिक कैंसर मरीज़ पर बनाया ब्लॉग जिसका पर्दाफाश समूह ब्लॉग मेटाफिल्टर ने तब किया जब अच्छी खासी ठीक हो रही बताई जा रही केसी की सहसा मौत की घोषणा डेबी ने उसके ब्लॉग में की। इसके अलावा ट्रेफिक जीव‍विज्ञान की संकल्पना और ब्लॉगरों का चीटिंयों के साथ तुलना भी बड़ी रोचक है। गौर फरमायें-

जिस तरह से चीटिंयो ने भोजन की खोज की और इसे घर तक लाने के लिये स्वसंगठन किया वैसा ही ब्लॉगरों के व्यवहार का मूलभूत तरीका है। यह सब फीडबैक परिपथ और कुछ साधारण नियमों पर आधारित है। बिल्ले के भोजन की जगह ब्लॉगर अंर्तजाल पर समाचार लेखों और रोचक जालपृष्ठों की खाक छानते फिरते हैं। जब किसी ब्लॉगर को कुछ रोचक मिलता है तो वह उसे लिंक करती हैं। यहाँ ये हाईपरलिंक (कड़ी) फीरोमोन संकेतों की पगडंडी हैं। जब कोई अन्य ब्लॉगर इस कड़ी को क्लिक करता है और स्वयं से लिंक करता है तो ये पगडंडी सुदृढ़ होती जाती है। (पृष्ठ 204)

सही भी तो है, जैसा कि बिज़ कहते हैं, “कड़ियां ब्लॉगमंडल की मुद्रा है।”

यह पुस्तक नये ब्लॉगरों के लिये तो संभवतः उपयुक्त नहीं क्योंकि इसे कदम-दर-कदम गाइड किताब की शैली में नहीं लिखा गया है। पुस्तक अन्तर्जाल के शुरुआती दिनों से ब्लॉगिंग के प्रखर होने के सफरनामे पर केंद्रित है, ऐसे में अचानक ही “अपना ब्लॉग कैसे बनायें” नुमा लेख प्रवाह में व्यवधान ही डालते हैं। तिस पर गूगल विज्ञापन अपने ब्लॉग्स पर डालने की चर्चा मय जावास्क्रिप्ट कोड अगर किसी आनलाईन लेख में दिये हो तो बात ज्यादा जमती है। HTML के प्रयोग वाला लेख भी शुरुआती किताब के लिये ज्यादा उपयुक्त होता। हालांकि भारत का किताब में इक्का दुक्का बार ज़िक्र है पर यह पुस्तक मूलतः गैर एशियाई पाठकों को अधिक जंचेगी (अब हमें क्या पता कि TiVo क्या बला है?)। मेल्कम ग्लैडवेल की पुस्तक “टिप्पिंग प्वाइंट” का ज़िक्र अब तमाम जगह इतना हो चुका है कि लगता है विवेचक हर दृग्विषय का संबंध इससे जोड़ेंगे, ब्लॉगिंग से इसका साम्य कई जगह विश्लेषित किया जा चुका है।

कुल मिलाकर “हू लेट द ब्लॉग्स आउट” मज़ेदार किताब है, एक ही बैठक में पढ़ लेने लायक और ब्लॉगिंग की दुनिया में कुछ दिन बिता चुके नौसिखियों और निपुण चिट्ठाकारों के लिये बेहद काम की। ब्लॉग पर आवक कैसे बढ़ायें, ब्लॉगिंग से पैसा कैसे कमायें, ब्लॉग की वजह से नौकरी कैसे न गवायें जैसे कई काम के टिप हैं पुस्तक में। मौका मिले तो ज़रूर पढ़ें और लायें अपनी ब्लॉगिंग में निखार!

बिज़ की पुस्तक “हू लेट द ब्लॉग्स आउट” के लेख “व्हाइ वुड ऍनीवन वांट टू ब्लॉग” का हिन्दी रूपान्तर आप यहाँ पढ़ सकते हैं