Month: July 2008

मैं बोरिशाइल्ला : भीड़ से अलग

बांग्लादेश की मुक्ति-गाथा पर केंद्रित "मैं बोरिशाइल्ला" महुआ माजी का पहला उपन्यास है जो चर्चित भी हुआ और सम्मानित भी। रवि कहते हैं  कि थोड़ा बोझिल होने के बावजूद यह अलग सा उपन्यास अपने प्रामाणिक विवरण के कारण बांग्ला जनजीवन को जानने समझने वाले और इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों को दिलचस्प लगेगा।

सफल-असफल बनने की सत्य तथाकथा

रवि रतलामी सफ़ल बनना चाहते थे, महान बनना चाहते थे। और खोजते खोजते उनका हाथ वो नुस्ख़ा लग ही गया जिससे वे महान ही नहीं, महानतम बन गये। तो देर किस बात की? आप भी बन जाइये उन के अनुयायी।

कितना बोलती हो सुनन्दा!

वातायन के काव्य प्रभाग में पढ़िये युवा कवि गौरव सोलंकी की कविता।

देख तमासा

समस्या पूर्ति निरंतर का ऐसा स्तंभ है जहाँ आप अपनी रचनात्मकता परख सकते हैं। स्तंभ में दिये चित्र व शीर्षक के आधार पर रच डालिये कोई कविता, छंद या हाईकू। सर्वश्रेष्ठ रचना को मिलेगा आकर्षक पुरस्कार।