सारांश में इस बार एक महिला लेखिका के प्रथम उपन्यास के अंश प्रकाशित करते हुए हमें हर्ष है। सामयिक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित सुषमा जगमोहन के इस प्रयास “ज़िंदगी ई-मेल” का विगत 28 जुलाई, 2005 को दिल्ली में विमोचन हुआ है। सुषमा पेशे से पत्रकार हैं और उनकी रचनायें हंस, मधुमती व सखी जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। यह उपन्यास अधिकाधिक लोग पढ़ें व सराहें यही हमारी मंगलकामना है।

दी

प को आफिस जाने में थोड़ी देर हो गई। कनाडा से जो पैंट तनु ने भिजवाई थी, उसने सोचा उसी को पहन ले। पहनी, तो लंबी निकली। उसे चेंज करने में वक्त लगा। ब्रेकफास्ट भी नहीं ले पाया। और सड़क पर ट्रैफिक जाम। हुआ क्या पता ही नहीं? गाड़ियां रेंग रही थीं। अब तो इसी चौराहे पर तीन लालबत्ती निकल जाएंगी, उसने सोचा। पसीने से नहा गया था। क्या यार, सुबह-सुबह यह हाल है, इसीलिए तो बस अपने इंडिया में दम घुटता है। पता नहीं कब तक बनेगा यह फ्लाई ओवर भी? कनाडा में होता है ऐसा क्या? क्या सड़कें हैं वहां की, हॉलीवुड की उस ऐक्ट्रेस निकोल किडमैन के गालों की जैसी! क्या सर्राटे से गाड़ी जाती है।

हां, और क्या? अपने ख्याल पर वह धीरे-धीरे मुस्कुरा उठा। हेमामालिनी के गालों जैसी सड़कें तो। हमारे यहां लालू जी के ख्वाबों में ही रह गईं। वाह! क्या सपने दिखाए थे उन दिनों लालूजी ने भी। कहां हैं वे सड़कें! कनाडा की सड़कें उसके जेहन में आ रही थीं। …और उन पर दौड़ती खूबसूरत कारें! क्या मजा आएगा उन्हें चलाने में भी। तनु ने लिखा तो था। आज देर हो जाएगी दफ्तर पहुंचने में। बात नहीं हो पाएगी। अगर ये खूबसूरत दौड़ती कारें उड़ना शुरू कर दें तो? फौरन दफ्तर पहुंच कर बात कर सकता है तनु से।

बेवकूफ ही रहे मियां तुम भी! सोचते भी हो तो गज भर की। किलोमीटर की नहीं सोच सकते? कारें बन गई हैं तो उड़ने वाली कार भी आ ही जाएगी एक दिन। ऐसी कार होती तो ये ई मेल लिखने की नौबत ही क्यों आती। और ये दो-दो देशों के बीच तनु और उसका रोना पीटना क्यों मचा होता? श्री दीप कुमार मिश्रा आराम से हर वीकेंड में पहुंच जाते कनाडा। तब श्रीमती तनुश्री मिश्रा इतनी हाय तौबा क्यों मचा रही होतीं! हर हफ्ते दिखाई दे जातीं हौजखास के अपने मकान में। दोनों बच्चे रोहित और शरद भी हर छुटृटी में दिल्ली में घर आ जाते। बाबा भी खुश रहते। व्हॉट अ सोल्युशन। लेकिन यह तरक्की इतनी देर से क्यों हो रही है?

कहां हो रही है देर, देखो, दीप तुम्हारी गाड़ी तो उड़ने भी लगी। उसे लगा, उस ट्रैफिक जाम के बीच उसकी कार धीरे-धीरे उड़ने लगी। कार की शक्ल भी बदली हुई थी। एकदम गोल। पहिए गायब हो गए। नो गियर, नो स्टियरिंग व्हील। सामने कंप्यूटर स्क्रीन और एक छोटा सा स्पीकर और माइक्रोफोन नजर आ रहा था जिससे वह कंप्यूटर को निर्देश दे सकता था। उसने स्पीकर में कहा, ‘टोरंटो। ‘ और बहुत तेजी से, शायद सॉनिक स्पीड से गाड़ी हवा को चीरने लगी। फिर अचानक उसे आवाज सुनाई दी,’ दीप, आपको कितनी देर लगेगी?’

उसने इधर-उधर चौंक कर देखा तो पाया कि वह जानी पहचानी सी आवाज तनु की थी। वह कंप्यूटर स्क्रीन पर नजर आ रही थी।

उसने कहा,’ जस्ट इन फिफ्टीन मिनट्स, डार्लिंग।’

पलक झपकते ही मकान छोटे-छोटे खिलौनों में बदलने लगे, फिर गायब हो गए। उसे लगा, बादलों को चीर कर कार उड़ी जा रही है। वह अपनी नई कार को निहार रहा था। वह कंप्यूटर की मदद से कार की खूबियों का निरीक्षण करने लगा। अरे, कमाल की कार है यह तो!

जवाब में कंप्यूटर ने कहा,’ एफरमेटिव, सर।’

उसे पता चला कि जरूरत पड़ने पर माहौल के हिसाब से कार की शेप और रंग भी बदला जा सकता है। कार में तरह-तरह के इंटीरियर भी हैं। जैसे ठंडी हवाओं के झोंकों से महकता समंदर का किनारा। रेगिस्तान में बसे ओएसिस की शीतलता। जैसे बर्फीली पहाड़ियों का इलाका। या बियाबान जंगल। या फिर दूर-दूर तक वादियों में महकते फूलों का नजारा। और न जाने कितने ऑप्शन थे।

उसे भूख का अहसास होने लगा था। तो उसने कंप्यूटर से खाने की जगह के बारे में पूछा। कंप्यूटर ने उसे मेन्यु दिखाया और अलग-अलग तरह के खानों के ऑप्शन दिए। दीप ने जंक फूड का ऑप्शन चूज किया। उस ऑप्शन में गोलगप्पे, छोले भठूरे और कचौड़ी से लेकर पिजा, बर्गर तक सब कुछ उपलब्ध था। उसने बर्गर, फ्राइज और कोक को चूज किया। तो उसमें भी कंप्यूटर ने कई ऑप्शन दे दिए, जिसमें मैक्डीज, विंपीज और निरूला’ज भी थे। उसने सोचा कि कंप्यूटर कुछ ही देर में गाड़ी का रुख मैक्डीज की तरफ कर लेगा, जिसे उसने चूज किया था लेकिन यह क्या! पलक झपकते ही ट्रे सामने आ गई जिसमें खाना सजा हुआ था। पेमेंट के लिए उसे कंप्यूटर स्क्रीन पर अपना क्रेडिट कार्ड नंबर और डालना था। बस वह खाने की ओर अपने हाथ बढ़ाने ही लगा था कि इसी बीच उसे जोर से पीं पीं, पौं पौं पौं की आवाज सुनाई देने लगी।

क्या यहां आसमान में इतनी उंचाई पर भी ट्रैफिक जाम हो गया? यह शोर इसी तरह होता रहा तो वह अभी इस ऊंचाई से एकदम नीचे गिर जाएगा। फिर उसे लगा कि उसकी गाड़ी जमीन पर आ लगी है। पौं-पौं उसे अभी भी सुनाई दे रही थी।

बर्गर की खुश्बू की जगह कचरे की संड़ाध मारता ट्रक उसके पीछे खड़ा था। और टृक ड्राइवर उसे मोटी-मोटी गालियां बकता हुआ गाड़ी बढ़ाने को कह रहा था। उसने देखा ग्रीनलाइट हो चुकी थी। पीछे वाली गाड़ियों से सामूहिक पीं पीं पीं हो रही थी। उसके साथ की गाड़ियों में बैठे लोग हंस रहे थे तो पीछे बाले खुंदक खा रहे थे। उसने झेंप कर आंखें मूंद लीं। फिर मुस्कुराहट आ गई। कम्बख्त सपने भी नहीं देखने देते।

तो 10 की सुबह ट्रैफिक जाम के नाम। श्रीमती तनुश्री मिश्रा से श्री दीप कुमार मिश्रा की बात सुबह नहीं हो पाई। बीच में वक्त मिला तो कंप्यूटर में ई मेल बाक्स में झांका। बेबी की मेल आई हुई थी। लिखा था, आज का दिन भी अच्छा बीता। लेट हो गई थी। समर टाइम की अभी आदत नहीं पड़ी है। 15 कापी चेक कीं। लेकिन पेस्ट्री चौथाई खाई और अब जी ऐसा हो रहा है जैसे एग खाने से होता है। सोचा आपसे बात कर लूं तो ठीक हो जाएगा। सोउंगी, अभी एक घंटे के लिए। आपकी बेबी।

बात करने का वक्त शाम को ही मिल पाया,

16.00,

गुड मॉर्निंग, तनु, अब कैसी तबियत है? पेस्ट्री में एग होता है इसलिए ऐसा हुआ है। आज आने में देर हो गई। दीप।

एक मेल रोहित का, हाय डैड, आज का दिन अच्छा गया। मुझे मेरा पहला चेक मिला। मगर वो सिर्फ एक दिन का था। 18 डॉलर। मैं आजकल घर में रात का खाना कम खाता हूं। ऐसा तब ही होता है, जब मैं जॉब पर जाता हूं। क्योंकि वहां पर बहुत खाता हूं। लव यु डैड। रोहित।

16.10,

बेटा रोहित, एक दिन की पे कहां की है। 18 डॉलर एक दिन के तो बहुत कम हैं। ये पैसे कितनी देर के काम के हैं। थक भी जाते होंगे। यार, अपना ध्यान रखो। कहीं पढ़ाई सफर न करे। शरद और अपना ध्यान रखना। तुम दोनों की बहुत याद आती है। हर बार, हमेशा, हर जगह। मैंने तकिए के पास तुम दोनों की स्कूल वाली फोटो टांगी है। रोज सोते समय तुम दोनों को देख कर दिल बहला लेता हूं। क्या तुम्हें याद नहीं आती? ममा का ध्यान रखना। और उनकी बात मानना। ये तुम्हारा दोस्त केविन कैसा है, वहीं का है या इंडियन है? बेटा मौका मिले तो खेलने जरूर जाया करो। खास तौर पर लंबे होने वाले गेम। अब तुम्हारी हाइट बढ़ी कि नहीं। बहुत दिन हो गए तुम्हें देखे। कभी-कभी ऐसा लगता है कि शरद तुम से लंबा हो रहा है फोटो देख कर। ओके टेक केयर। तुम दोनों को जल्दी देखने की आस में आंख लगाई। तुम दोनों का पापा।

16.59,

तनु को, काम से, जून में भले ही महीना भर रह जाऊं। लेकिन मैं सोचता हूं, वहां कितने दिन रहूंगा? फिर वापस आना पड़ेगा। क्या ऐसे ही आना-जाना चलता रहेगा? फोन पर क्या कह रही थीं, नौकरी छोड़ दूं। फिर हमेशा के लिए साथ होंगे। क्या बात करती हो? मुझे डर है, काम नहीं मिला या कम पैसे वाला काम मिला तो बचे-खुचे पैसे भी खत्म हो जाएंगे। दीप।

11 अप्रैल, आते ही उसने छोटी सी मेल भेजी, आज सिरदर्द हो रहा है। कल दिन में ऑफिस में तो कढ़ी राइस खा लिया था। और रात को पार्टी में चिकन राइस खाया। शायद इसीलिए सिरदर्द हो रहा है। दीप।

मेल बाक्स उसने दोपहर को ही खोला। तनु की कई मेल पहुंची हुई थीं, एक रोहित की। उसने तनु की मेल पढ़नी शुरू की।

हाय दीप, गुड मॉर्निंग, अब सिरदर्द कैसा है? आज का दिन बहुत धांसू रहा। दिन में करीब 50 कापियां जांचीं। नींद आ रही हैं। मुझे यहां सैटरडे तक जाना है। इस महीने के चौथे वीक तक मेरे एकाउंट में 720 डॉलर आ जाएंगे। कट कटा कर 700 डॉलर। मई में इसी काम का ट्रेवलिंग अलाउंस मिलेगा। तुम पैसे की चिंता मत करो। किराया तो निकाल ही लूंगी। अगले वीक अगर ये जॉब नहीं हुई तो आस पास के स्कूल और बोर्र्ड में जाउंगी। काम मिलना मुश्किल है। शरद रोहित से लंबा नहीं है। दोनों खुश है। रोहित की आज भी 5 से 11 तक डयूटी है। मैंने भी कुछ बनाया है कल और आज शाम के लिए। लव यु एंड मिस यु।

-और हां, एक बात तो तुम्हें बताना भूल ही गई। वो तुम्हारे रघुबीर सिंघानिया ने जो गेस्ट रिकमेंड किया था, वह तो बड़ा ओवर स्मार्ट निकला। अंजु ने बताया।

दूसरा मैसेज रोहित का। हाय डैड, गुड मॉर्निंग, हाऊ आर यु। मैं ठीक हूं अभी मैक्डॉनल्ड से लौटा। आज मेरी ट्रेनिंग का आखिरी दिन था। अगली बार से मुझे सब कुछ अपने आप करना पड़ेगा। आज मैं शरद के लिए चिकन बर्गर लेकर आया। उसे अच्छा लगा। घर में सब लोग ठीक हैं ना?? चाचा, बाबा, लूसी एंड मालती दीदी को प्यार बोलना। आपको पता नहीं है कि मेरे को 15 आवर्स के 100 डॉलर मिलेंगे। इस वीक मैंने अपने 15 घंटे पूरे कर लिए हैं। आगे और लिखता हूं। अब मॉम भी मेरे साथ हैं। लव यु। रोहित।

फिर तनु का मैसेज,

दीप, तुम्हें सिरदर्द रोटी ना खाने की वजह से है। ध्यान रखा करो कि राइस कितना भी खाओ, एक चपाती जरूर ले लो। हम दोनों को ही यह प्रॉब्लम हैं। यहां सुबह के साढ़े तीन हो रहे हैं। तुम हैरान तो जरूर हो रहे होगे कि आजकल मैं ज्यादा मेल क्यों नहीं कर पा रही हूं? बच्चे सो रहे हैं। 50 कापियां चेक करते करते इतनी थक गई थी कि आखें कब बंद हो गईं, पता ही नहीं चला। अब भी सिरदर्द हो तो निमोलिड खालो।

16.30,

उसने लिखा, मैंने घर पर ही गोली खाली थी। मैं समझ सकता हूं। मेरे बगैर तुम्हें ज्यादा काम करना पड़ रहा हैं कोई बात नहीं, जब ठीक लगे, तब मेल कर देना। तुम साढ़े तीन बजे ही कैसे उठ गईं? तबियत तो ठीक है? हां, तुम क्या कह रही थीं रघुबीर के गेस्ट के बारे में? कैसे ओवर स्मार्ट है? तुम तो कह रही थीं कि अंजु को उस दिन बुरा लगा था। तुम उनकी पार्टी में नहीं गई थीं। बात नहीं कर रहे वे लोग। फिर कब बात हुई? समझ नहीं आया कुछ? तुम्हारा दीप।

तनु का एक और मैसेज, इस समय सुबह के चार बजे हैं। पहला खत लिखते-लिखते झपकी आ गई। सॉरी। कोई झगड़ थोड़े ही हुआ था। अंजु भी मेरी ही तरह नौकरी करना चाहती है। इसके लिए उसे अपना रिज्यूमे फिर से बनाना था। वह मेरे साथ कुछ वक्त बिताना चाहती थी। उसने कहा था कि मैं उसके घर पहुंच जाऊं। हम साथ खाना खाएंगे। वह बीमार भी थी। मेरे साथ ही कुक करना चाहती थी। मेहमान से अपसेट थी, डिप्रेस भी। नहीं चाहती थी मेहमान साथ खाए। इसीलिए उसने प्रोग्राम बदला और हमारे घर आ गई। वहां हमने साथ खाना खाया। दीप, जब से घड़ी आगे बढ़ी है, टाइम गड़बड़ा गया है। पता है आठ बजे तक दिन रहता है। अंजु बोल रही थी कि नौ बजे तक साफ उजाला रहता है। क्योंकि पोल के पास है…

17.00

तनु, तुमने यह नहीं बताया कि वो लोग अपने मेहमान के बारे में क्या कह रहे थे? क्या कभी मेरे बारे में वो लोग पूछते हैं? दीप

जब जाती हूं तो अंजु मनीष दोनों पूछते हैं। बोलते हैं कि समझ नहीं आता कि जब रहना यहीं है तो छोड़ क्यों नहीं आते नौकरी। वो लोग भी तुम्हें उसी तरह मिस करते हैं, जिस तरह हम लोग करते हैं। और तुम्हारे लौटने का इंतजार कर रहे हैं। मेहमान की बहुत बुराई की। मैंने कहा, गलती रघुबीर की है, जो भेजा। वो आदमी डाइवोर्सी है। शायद दूसरी शादी कर चुका है। पर पेपर्स में डिक्लेयर नहीं किया था सेकंड वाइफ को। अब बच्चा वापस भेजेगा दूसरी बीबी के पास। दूसरी शादी डिक्लेयर करेगा। फिर बुलाने में डेढ़ साल लगेगा। वह तो अब सोच रही है कि कोई नया गेस्ट मिले तो इसे भगा दे। मैं तो दीप जी, इसी पचड़े के मारे कोई पेइंग गेस्ट रखती ही नहीं। आपके आने के बाद देखेंगे। मैं कम में गुजारा कर लूंगी। तनु।

17.34,

चलो, अच्छा लगा कि वो लोग मुझे याद करते हैं। तुम जैसा कहो, वैसा ही कर लेता हूं। तुम अच्छी सी नौकरी तलाश लो। मैं अगले ही दिन का टिकट कटवा कर तुम लोगों के पास आ जाउंगा। मेरा कैसे मन लग रहा है, ये मैं ही जानता हूं। एक-एक दिन काटना भारी पड़ रहा है। आज तुम्हें नहीं जाना काम पर। दीप।