पंकज बेंगानीपंकज बेंगाणी उर्फ मास्साब के बारे में जब कुछ कहने की बात आती है तो अनायास यही मुंह से यही निकलता है बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभान अल्लाह।

अभी हाल ही में अपने ब्लॉग जगत में प्रवेश की सालगिरह मनाने वाले पंकज बेंगानी का जन्म 25 नवम्बर 1978 को राजस्थान के बिदासर कस्बे में हुआ। 5 साल वहीं रहे और रेत में खेलते हुए दिन गुजारे। फिर पिताजी सब को लेकर सूरत आ गए। सब यानि माँ, संजय और पंकज। एक साल बाद छोटी बहन का जन्म हुआ।

दस सवाल

ब्लॉगलेखन की शुरुआत कैसे हुयी?
ब्लोग लिखना रवि कामदार की प्रेरणा का फल है। मै तो कुछ जानता ही नही था। उसीने समझाया और बताया।

पहला ब्लॉग कौन सा देखा?
पहला ब्लॉग जीतूजी का मेरा पन्ना देखा, फिर भैया का जोगलिखी।

नियमित रूप से ब्लॉग कैसे देखते हैं?
ब्लोग नारद से देखता हुँ, अंग्रेजी के लिए देशी पंडित और इंटेटब्लोग भी देखता हुँ।

लेखन प्रक्रिया क्या है? सीधे लिखते हैं मानीटर पर या पहले कागज पर?
सीधा मोनिटर पर। कागज की जरूरत क्या है?

सबसे पसंदीदा चिट्ठे कौनसे हैं?
पसन्दिदा चिट्ठे हैं उडनतस्तरी, मेरा पन्ना, जो कह ना सके, फुरसतिया, योर्स ट्रुली, और न्यूजमेन।

कोई चिट्ठा खराब भी लगता है?
नापसन्द चिट्ठे भी हैं पर नाम नही बता सकता।

टिप्पणी न मिलने पर कैसा लगता है?
पहले बुरा लगता था जब टिप्पणी नही मिलती थी। अब बुरा नही लगता, क्योंकि शायद अब मुझे लोग जानने लग गए हैं।

अपनी सबसे अच्छी पोस्ट कौन सी लगती है?
मुझे अपनी सबसे अच्छी पोस्ट एक चिट्ठी स्पाईडरमेन के नाम और मुर्गीबाई की समाधी लगती है

सबसे खराब?
सबसे खराब पोस्ट भगवान भी बिकते हैं" लगती है।

चिट्ठा लेखन के अलावा और नेट का किस तरह उपयोग करते हैं?
सारा दिन नेट पर ही होता हुँ, क्लाइंटो से बात, ब्लॉगरों से बात, सेवा का काम, मेवा का काम, ई-पेपर पढना, डिजायनें खंगालना, स्रोत जुगाडना ,लडकीयों के वोलपेपर सेव करना (देखिए मैं इमानदार हुँ) बस चलता ही रहता है।

पंकज ने अपनी पढाई गुजराती माध्यम में शुरू की। पाँचवी तक गुजराती में पढे़, फिर पिताजी शहर से थोडा दूर एक हिन्दी भाषी क्षेत्र में रहने आ गए तो फिर हिन्दी विद्यालय में दाखिला लिया और दसवीं तक हिन्दी माध्यम में पढा़ई की। दसवीं के बाद असम चले गये, मामाजी के पास। सूदुर पहाडी क्षेत्र सिलचर में। वहाँ अंग्रेज़ी माध्यम की कालेज में दाखिला लिया। कैरियर-वैरियर क्या होता है यह तो पता ही नही था। पारिवारिक रूप से व्यापारिक होनें के नाते इन्हें तो यही सिखाया जाता था कि बस पढाई खत्म करो और धन्धे में लग जाओ।

पर पंकज का मन कभी परिवार के परम्परागत व्यवसाय में नही था, ना तो पिताजी के कपडों के व्यवसाय में ना ही मामाजी के चाय के व्यवसाय में। अपनी रुचि रुझान तथा पढ़ाई और नौकरी के बारे में पंकज बताते हैं

बचपन से फिल्मों और मीडिया क्षेत्र के प्रति अकल्पनीय रूझान था। मैं समझता हुँ मेरे अन्दर एक नैसर्गिक सोच थी ही विज्ञापन और मीडिया क्षेत्र की। उस दौर में मैं जिस तरह के समाचार चैनलों की कल्पना किया करता था वो आज वास्तव में है। मै फिल्म देखकर उसके हर पहलू पर किसी विशेषज्ञ की भाँति टिप्पणी कर सकता था। मुझे पता होता था कि कैमरा एंगल क्या होगा, स्क्रिप्ट में कहाँ तकलीफ है या एडिटिंग कैसे
ुई। लोग पूछते थे कहाँ से सीखा? मैं कहता था कहीं से नहीं सब देख देख कर सीखा। फिर पढाई बीच में ही छोडकर अहमदाबाद आ गया। भैया पहले ही आ चुके थे। पढाई छोड देने का दुःख पहले भी नही था, आज भी नही है क्योंकि कॉमर्स की पढाई मुझे बकवास लगती थी, रूचि ही नहीं थी।

अहमदाबाद आकर मैंने अपनी रूचि का काम किया। अरेना मल्टीमीडिया में दाखिला लिया। मैं पहली ब्रांच के पहले विद्यार्थियों में था। अपने 2 साल के कोर्स में मै सिर्फ 6 महीने ही विद्यार्थी की भाँति पढा। फिर मुझे वहीं शिक्षक के रूप में नौकरी मिल गई। नतीजा यह हुआ की आगे की पढाई खुद ही करनी पडी। मैने अरेना में 3 साल नौकरी की। शिक्षक से सेंटर हेड जैसे शीर्ष पद पर पहुँचा। मैं पूरे भारत की अरेना की सभी शाखाओं में सबसे कम उम्र का हेड था। लेकिन थोडे समय के लिए ही, क्योंकि अन्दरुनी राजनीति से तंग आकर मैने नौकरी छोड दी।

वो मेरी जिन्दगी का सबसे कठिन पल था। मुझे 7000 रूपये मिलते थे। हमारा साइबर कैफे बन्द हो चुका था। कमाने का कोई जरिया नही था। छवि तो शुरू ही हुई थी और कोई ग्राहक नही था। मैने सिर्फ एक बार भैया से पूछा, नौकरी छोड दूं? और उन्होंने कहा, छोड दो!

अपने भैया संजय बेंगानी, सरदार पटेल और नरेंद्र मोदी को अपना आदर्श मानने वाले पंकज मानते हैं कि भैया के विचारों का उन पर गहरा असर हुआ है। भैया का असर पंकज पर कुछ इस कदर था कि वे

असम में उनके हिन्दी के लिए आन्दोलन के साथ बडे हुए और हिन्दी के प्रति प्रेम भी जागा। भैया ने ही किताबें पढने का शौक डाला। भैया की वजह से ही भगवान के प्रति सोच भी बदली। मैं कट्टर प्रभु भक्त था, रात को सोने से पहले हनुमान चालीसा बिना भूले पढता था।

लेकिन अपने भैया को अपना आदर्श मानने वाले पंकज कुछ मामलों में उनके अंधभक्त नहीं हैं। जहां भैया ने समाज का सामना करते हुये प्रेमविवाह किया वहीं पंकज ने मां द्वारा पसंद की हुयी पत्नी का वरण किया और जैसा कि वे खुद कहते हैं

भैया को पहले प्रेम हुआ था फिर विवाह किया, मेरा पहले विवाह हुआ फिर प्रेम प्रकरण चल रहा है।

भैया संजय के जल्द गुस्सा आने-जाने वाले स्वभाव के विपरीत पंकज शांत स्वभाव के हैं और सरफिरे ग्राहकों से निपटने का काम वही करते हैं। भैया जहां एक ही ब्लॉग में सब कुछ लिखते हैं वहीं पंकज के कई ब्लॉग हैं जिसमें वे यदा-कदा लिखते रहते हैं और चित्र विज्ञापन पोस्ट करते रहते हैं।

संजय बेंगानी अपने छोटे भाई के बारे में बताते हैं

मुझ से उलट पंकज शांत स्वभाव वाला हैं, वाद्ययंत्र बजा सकता हैं, गला भी ठीक-ठाक है, पर रेखाचित्र नहीं बना पाता।

समूह ब्लॉग तरकश की शुरुआत के बारे में जानकारी देते हुये पंकज बताते हैं

तरकश का विचार भैया का था। मेरे मित्र रवि कामदार की प्रेरणा से हमनें ब्लॉग की दुनिया में प्रवेश किया। मैंने अपना अंग्रेजी ब्लॉग और भैया ने हिन्दी ब्लॉग शुरू किया। फिर भैया ने सोचा क्यों न एक यूनीक पहचान बनाई जाए और इस तरह हमने तरकश डॉट कॉम शुरू किया। मैं, भैया और रवि ने तरकश पर अपने अपने ब्लॉग लिखने शुरू किए। फिर हमने इसे नए रूप में लाने के बारे में सोचा। पर प्रोग्रामिंग का अति अल्प ज्ञान राह में रोडा था। पर ई-स्वामी की प्रेरणा से मैंने "जूमला" सिखना शुरू किया। फिर देबूदा, ई-स्वामी, विशाल पाहुजा जैसे दिग्गजों की मदद और एक अदम्य संकल्प के साथ तरकश को बना ही दिया। हिन्दी ब्लॉग जगत के कुछ और नामी गिरामी हस्तियों को भी तरकश के साथ जोडने का बीडा उठाया और समीरलाल, सागर नाहर, निधि और शुएब अब तरकश के लिए भी लिख रहे हैं और कई और जुडने वाले हैं। आगे की कई योजनाएँ हैं। हिन्दी ब्लॉग जगत मे हमारा सक्रिय योगदान जारी रहेगा। इसके अलावा तरकश के जैसा अंग्र
ेजी संस्करण भी तैयार किया जा रहा है। तरकश में भी और कई अन्य विभाग आएंगे।

हिंदी, अंग्रेज़ी, गुजराती और मारवाड़ी बोल सकने वाले पंकज को फिल्में व विज्ञापन देखने का, किताबें पढने का और पर्यटन का बहुत शौक है। इनका लक्ष्य छवि को भारत की अग्रणी डिजाइन कम्पनी बनाना और तरकश को एक अग्रणी हिन्दी संजाल बनाना है। हो सका तो फिल्म निर्देशन करना चाहेंगे।

निरंतर की टीम की कामना है कि पंकज अपने भैया को आदर्श मानते हुये, अपनी पत्नी के साथ प्रेम-प्रकरण में नित नये आयाम छूयें और तरकश तथा अपनी मीडिया कम्पनी छवि की शानदार सफलता के साथ फिल्म निर्देशन करें तथा इसके साथ-साथ अपने ब्लॉग में नियमित लेखन करते रहें।