भिव्यक्ति, यानि अपने विचारों का संप्रेषण, मानव की पुरातन चाहत है। इसी चाहत से भाषायें पनपीं। इंसान के लिये यह बहुत जरुरी है कि अपनी बात दुनिया के सामने रखे। कहते हैं कि बातों के धनी बहुत आगे जाते हैं चाहे वह कार्य हो या व्यक्तिगत जिंदगी। बात कहने के बहुत से माध्यम हैं – प्रत्यक्षतः, फोन पर, सिनेमा-चित्रकला-कविता जैसे कला माध्यमों के जरिए, अखबार व रेडियो पर, आदि इत्यादि। आमने सामने या फोन की बात जैसे माध्यमों में बातचीत भले ही थोड़े से लोगों तक ही सीमित रहती हो पर किसी की कही बात पर तुरंत प्रतिक्रिया की जा सकती है। मास कम्यूनिकेशन के माध्यमों की पहुँच तो बहुत लोगों तक होती हैं पर यहाँ किसी की कही बात का जवाब आसानी से तुरंत नहीं दिया जा सकता। अंतर्जाल के आने के बाद समाचारों और विचारों ने दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक प्रकाश की गति से पहुँचना शुरु कर दिया। लोग अंतर्जाल पर अपने निजी जालपृष्ठ बना कर अपने बारे में बताने लगे पर इन्हें अद्यतन रखना टेड़ी खीर थी। तिस पर, प्रतिक्रिया देने का सिलसिला अभी भी ईमेल, गेस्टबुक या फीडबैक फॉर्म जैसे तरीकों तक ही सीमित था। विचारों का प्रकाशन पहले से आसान तो हुआ था पर अभी भी सीमित ही था क्योंकि प्रयोक्ता को कम्पयूटर का ज्ञान होना आवश्यक था।

जब चिट्ठे या ब्लॉग का परिदृश्य में प्रादुर्भाव हुआ तो लोगों के मस्तिष्क के तार ज्यों अंतर्जाल के ज़रिए एक दूसरे से जुड़ गए। अब कुछ भी लिख कर उसका प्रकाशन करना बायें हाथ (या जिस भी हाथ से टायपिंग की जा सकती हो) का खेल था। अंतर्जाल पर ऐसे प्रकाशन तंत्रों का तांता लग गया जिनकी मदद से आपके लिखते ही सारी दुनिया न केवल लेख को पढ़ सकती थी बल्कि अपनी राय भी छोड़ सकती थी। प्रकाशन के इन साधनों, जिन्हें ब्लॉगिंग टूल या सॉफ्टवेयर कहा जाता है, में मुक्त कोड पर आधारित तंत्रांश वर्डप्रेस ने कुछ ही सालों में अपनी एक खास जगह बना ली है। इतने सारे ब्लॉगिंग माध्यमों और मूवेबल टाईप जैसे बड़े खिलाड़ियों के रहते वर्डप्रेस ने अतिशय सफलता कैसे हासिल की यह जानना ज़रूरी था। जो वर्डप्रेस का इस्तेमाल नहीं करते उनके लिये यह जानकारी कभी एक साथ मुहैया नहीं कराई गयी। निरंतर के इस अंक में हमने यही करने का प्रयत्न किया है।

Wordpress Specialनिरंतर का यह अंक वर्डप्रेस विशेषांक है। इस विशेषांक के जरिए हमारा प्रयास है कि हम वर्डप्रेस से संबंधित जानकारी रोचक तरीके से प्रस्तुत करे साथ ही आपको इस उत्पाद की सफलता के नेपथ्य में निहित सामुदायिक प्रयत्नों के पसीने की महक आप तक पहूँचा सके। वर्डप्रेस के विशेषांक में –

  • आमुख कथा ज़ीरो बन गया हीरो में पंकज नरुला नज़र डाल रहे हैं वर्डप्रेस के जन्म से लेकर जवानी तक की यात्रा पर। साथ ही पहचानें इसकी क्षमताओं और इसे बनाने वालों की सोच के बारे में।
  • यदि आपके पास अपना जालस्थान या वेबस्पेस उपलब्ध है तो आप अपने ब्लॉग को वर्डप्रेस पर स्थापित कर सकते हैं। निधि में आपके समस्त प्रारंभिक प्रश्‍नों का उत्तर देने का प्रयास कर रहा है रमण कौल के रोचक लेख आईये वर्डप्रेस अपनायें का पहला भाग। वर्डप्रेस को अपने व्यक्तिगत प्रयोग के लिए कैसे लगाएं तथा इसे अपने हिसाब से कैसे ढाले यह इस लेख से जाना जा सकता है।
  • वर्डप्रेस अपने समुदाय के दम पर ही सफलता की चोटी पर चढ़ा है। अनगिनत लोगों का इसके विकास में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष योगदान रहा है। क्या माजरा बनता है जब समुदाय के मुताल्लिक अंतर्जाल पर सेंकड़ों बार मिले दो भारतीय एक दूसरे से पहली बार रूबरू होते हैं। आमुख कथा वर्डप्रेस महानगरीय संस्कृति के सदृश है में पढ़िये वर्डप्रेस के सक्रीय कार्यकर्ता मार्क घोष और कार्थिक शर्मा की पाप नगरी लॉस वेगास में हई बातचीत।
  • वर्डप्रेस की बात हो और इसके २० वर्षीय रचियता मैट मुलनवेग का जिक्र न हो ऐसा तो असम्भव है। संवाद में मैट से निरंतर का विशेष साक्षात्कार अवश्य पढ़ें।
  • किसी भी चिट्ठे को सुंदर बनाते हैं अभिकल्प। इन्हीं अभिकल्पों में से एक प्रसिद्ध अभिकल्प है मांजी जिसको बनाने वाले हैं लेबनान के ख़ालेद अबु अल्फ़ा। आखिर क्या वजह है कि लोग ऐसी परियोजनाओं में समय लगाते हैं। कैसे मीलों दूर बैठे लोग आपसी समन्वय रख पाते हैं। कैसा लगता है इनमें हिस्सेदारी करना। यह सब खालेद के विचारों से जानिए उनके लेख वर्डप्रेसः बेमोल, फिर भी अनमोल में।

निरंतर का यह पहला विशेषांक है। भविष्य में हम थीम आधारित ऐसे ही और विशेषांक संजोने का प्रयास करते रहेंगे। आपको यह अंक कैसा लगा, अपने सुझाव और टिप्पणियों और पत्र के ज़रिए हमें बताना न भूलें।

असाधारण है रियली सिंपल सिंडिकेशन यानि आर.एस.एस

ब्लॉग जब खूब चल पड़े और चारों और इनके चर्चे मशहूर हो गये तो इसी से जुड़ा एक और तंत्र सामने आया। जिस नाम से यह पहले पहल जाना गया वह ही इसका परिचय भी बन गया। यूं तो आर.एस.एस एक तरह का क्षमल प्रारूप है और इसके बाद आर.डी.एफ, एटम यानि अणु जैसे अन्य प्रारूप भी सामने आये हैं पर आर.एस.एस एक तरह से क्षमल फीड का ही पर्याय बन गया है। जिस भी जालस्थल से आर.एस.एस फीड प्रकाशित होती है पाठक ब्लॉगलाईंस जैसे किसी न्यूज़रीडर के द्वारा बिना उस जालस्थल पर जाये उसकी ताज़ा सार्वजनिक प्रकाशित सामग्री, जब भी वह प्रकाशित हो, तब पढ़ सकते हैं। यह बात दीगर है कि जालस्थल के मालिक ही यह तय करते हैं कि फीड में सामग्री की मात्रा कितनी हो और यह कितने अंतराल में अद्यतन रखी जावेगी।

आर.एस.एस अभी विकास के दौर से गुजर रहा है और लोग इसके उन्नत और अनोखे प्रयोग करने के नित नये तरीकें खोजने में लगे हैं।

आज आलम यह है कि ब्लॉग हो या समाचारों की साईट, जिन जालस्थलों की विषय वस्तु नियमित रूप से बदलती रहती है, आर.एस.एस फीड का उनके जालस्थल से चोली दामन का साथ बन गया है। आर.एस.एस कि पृष्ठभूमि में प्रयुक्त हो रही मूल तकनीक, यानि पुश तकनलाजी, कोई नयी बात नहीं है। ९० के दशक में काफी जोरशोर से काम में लाये गये हैं ये। इस बार जो बात अलग है वो यह है कि आर.एस.एस को व्यापक रूप से मान्यता दी गयी और अपनाया गया। तकनीकी तौर पर आर.एस.एस काफी आकर्षित करता रहा है जालस्थल कंपनियों को। यह अनुमान लगाना कठिन नहीं अगर आप याद करें कि विगत माह ही आस्क जीव्ह्स ने आनलाईन न्यूज़रीडर जालस्थल ब्लॉगलाईंस को खरीद लिया था। अब हर बीतता दिन आर.एस.एस के साथ साथ अन्य कई और कार्यों को भी राह दिखाता है। आर.एस.एस फीड है, तो टेक्नोराती, फीडस्टर जैसे आर.एस.एस खोज जैसे जालस्थल भी हैं। फीडडेमन, बलॉगलाईंस, सिंडिक ८ जैसे आर.एस.एस विषयवस्तु को पढ़ने में मदद करने वाले एग्रीगेटर्स या न्यूज़रीडर हैं तो आर.एस.एस फीड को प्रकाशित करने वाले तंत्र भी हैं। देखा जाये तो आर.एस.एस अभी भी विकास के दौर से गुजर रहा है और लोग इसके उन्नत और अनोखे प्रयोग करने के नित नये तरीकें खोजने में लगे हैं। इनमें विज्ञापन एक विशेष क्षेत्र है।

किसी भी जालस्थल की आर.एस.एस फीड होने का मतलब है कि लोग आपकी साईट बिना वहाँ आये पढ़ सकते हैं, भला कौन जालस्थल संचालक ये चाहेगा। इसे रोकने का एक तरीका तो यह हो सकता है कि आप संपूर्ण सामग्री न देकर फीड में कड़ी के साथ केवल सामग्री का सारांश प्रकाशित करें। इससे पाठक को पूरी सामग्री पढ़ने के लिये आपकी साईट पर आना ही पढ़ेगा। समाचार साईटों के लिये ये आला उपाय है जो सिर्फ समाचार शीर्षक ही प्रकाशित करें। हालांकि कालक्रम में यह पाठकों को उबा भी सकता है। दूसरा तरीका यह कि फीड में सामग्री थोड़ी ज्यादा या पूर्णतः रखी जाये पर हर प्रविष्टि के साथ विज्ञापन हों। यह तकनीक अभी इतनी परिष्कृत नहीं हुई है हालांकि गूगल एडसेंस के फीड के मैदान में उतरने के बाद माज़रा ज़रूर बदलेगा (इसी अंक के हलचल में संबंधित समाचार “फीड के लिये गूगल एडसेन्स बनी हकीकत” पढ़ें)। एडसेंस की मूल भावना की तर्ज़ पर ही विज्ञापनों को टेक्स्ट या चित्र के रूप में फीड में प्रकाशित कर दिया जायेगा। तकनीक ये सुनिश्चित करेगी कि विज्ञापन का मसौदा जब पाठक फ़ीड पढ़ रहे हों तभी आनन फानन तैयार हो, बजाय इसके कि जब इसका अभिधारण हो रहा हो। सब्सक्रिप्शन आधारित सामग्री के प्रकाशन के लिये ये नये युग का सूत्रपात करेगा।इसके अलावा भी लोग दिमाग पर ज़ोर लगा रहे हैं। आर.एस.एस फीड किसी भी साइट को बिना वहाँ जाये पढ़ना तो बायें हाथ का खेल बना देता है पर पारस्परिक व्यवहार या बातचीत का तत्व हटा देता है, संवाद दो तरफा नहीं रहता। अक्सर प्रविष्टि के साथ टिप्पणी की कड़ी तो रहती है पर टिप्पणी करनी हो तो अंततः जाना आपको साईट पर पड़ेगा ही। अब लोगों ने फीड में HTML फार्म का समावेश कर संवाद का पुट जोड़ने की कोशिश की है। स्कॉट ने अपनी फीड में यह प्रयोग किया ताकि लोग गुमनाम रहकर भी उनकी किसी भी प्रविष्टि को “टैग” कर सकें। याहू में कार्यरत रस्सेल एक कदम और आगे निकले, हाल ही में अपनी फीड में उन्होंने टिप्पणी करने का नन्हा सा HTML फार्म ही जोड़ दिया।

तकनलाजी के दीवाने आर.एस.एस के और उन्नत प्रयोगों के बारे में भी कयास लगा रहे हैं। जैसे कि इनका ऐसे ऐजेंट के रूप में प्रयोग जो समय समय पर अंतर्जाल से वांछित ताज़ी सामग्री खंगाल कर ला दे। या फिर ऐसे औज़ार के रूप में जिससे आप अपने कैलेंडर, संपर्क पते जैसी जानकारी साझा कर सकें। कल्पना कीजिये कि विभिन्न कंपनियाँ अपने उत्पादों के बारे में नवीनतम जानकारी, मूल्य सूची ईमेल के बजाय फीड से भेजें तो कितनी आसानी हो जाये। या फिर विश्वविद्यालय अपनी पाठ्य सामग्री इस तरह से भेजें। ये बातें बहुत उम्मीदें जगाती हैं। साथ में अनगिनत परेशानियाँ भी जुड़ी हैं, सिक्योरिटी और व्यक्तिगत पसंद संबंधी। क्या फीड को पासवर्ड द्वारा सुरक्षित कर या ईमेल ग्रुप की तरह किसी विशिष्ट समूह लोगों तक ही इसकी पहुँच सुनिश्चित करना मुमकिन है? आजकल के न्यूज़रीडर तो केवल सामग्री को फीड से अभिधारित कर तय प्रारूप में आप दर्शाते हैं। क्या पाठक यह तय कर सकेगा कि फीड में कौन सी जानकारी कितनी आये, कब और किस रूप में आये? क्या वह सामग्री का विश्लेषण कर पायेगा? ऐसे कई अनुत्तरित सवालों का जवाब लोग खोज रहे हैं। और मुझे लगता है कि जवाब जल्द ही आयेंगे?