जीतेंद्र कह रहे हैं कि एड्स से बचने का सबसे आसान उपाय बताइए और एड़्स से बचाव के विज्ञापन का कोई सही आइडिया दीजिए।

Poochiye Fursatiya seएड्स से बचने के लिये पहले जान लें कि एड्स होता क्या है? यह सभी को पता है कि एड्स से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। अप्राकृतिक खुराफातें एड्स होने का मुख्य कारण हैं। खुराफातें बोले तो अप्राकृतिक यौन संबंध, एड्स रोगी से संक्रमण आदि एड्स से बचने के लिये जरूरी है कि खुराफात रहित जीवन जियें। अपने शरीर को अपना समझें, धर्मशाला समझने से बचें। दूसरा मुफीद उपाय यह है कि आप निरंतर “निरंतर” पत्रिका का पारायण करते रहें। इसमें शारीरिक एड्स से बचाव के उपाय तो बताये ही गये हैं। साथ ही साथ हर अंक की उत्कृष्ट सामग्री आपको मानसिक एड्स (दीवालियापन) से बचने में सहायक होगी। एड्स से बचाव के उपाय के रूप में कुछ नारे हो सकते है-

  1. तुम हमें खुराफातें दो, हम तुम्हें एड्स देंगे।
  2. अप्राकृतिक यौन संबंध बनायें, एड्स का उपहार पायें।
  3. जीवन साथी से संबंध, एड्स की दुकान बंद।

पाकिस्तान परमाणु बमों की संख्या बढा रहा है, हिन्दुस्तान क्या करे?

कल को पाकिस्तान न रहा तो हम किसके भरोसे जियेंगे? मियां अमरीका को भी दिल का दौरा पड़ जायेगा। कहां मिलेगा उनको इतना अच्छा स्टेपनी देश!

पाकिस्तान की डिलीवरी रात में हुई है। इसीलिये वह निशाचरों की तरह हरकतें पटकता है। पर पाकिस्तान के लोग हमारे देशवासियों की तरह ही सीधे-साधे हैं।

दरअसल पाकिस्तान का होना हमारे लिये बहुत लाभदायक है। अब तक हम अपने देश में हो रही हर अव्यवस्था के लिये पाकिस्तान को दोष देकर सस्ते में छूट जाते हैं। कहीं दंगा हुआ, पाकिस्तान का हाथ है। नकली नोट मिले, सीमा पार से आये, विस्फोट हुआ- पाकिस्तान ने कराया। गनीमत है कि अपने नलों में पानी न आने की बात में अब तक हम विदेशी हाथ की बात नहीं सोच पाये हैं। गरज यह है कि हमें अपने देश में कोई भी होने वाली किसी भी अव्यवस्था के लिये पाकिस्तान का मुंह ताकना पड़ता है।

Bomb guna zero kitna? गोया कि पाकिस्तान न हो हम कहीं मुँह दिखाने लायक न रहें। बडे़-बडे़ घोटाले, भ्रष्टाचार के उफनाते नाले, देश को दो पैसों में बेचने वाले फिर किस भरोसे पनपेंगे? पाकिस्तान न हों तो सैकडों वीररस के कवियों की दुकान बंद हो जाये। फनफनाती जवानी वाले युवा जो पाकिस्तान को फूंक देने की सनसनाती सलाह देते हैं उनके सामने अभिव्यक्ति का संकट पैदा हो जाये। मैं तो यह सोचकर कांप जाता हूँ कि अगर कल को पाकिस्तान न रहा तो हम किसके भरोसे जियेंगे? हमारी तो हमारी, पाकिस्तान को कुछ हो गया तो मियां अमरीका को भी दिल का दौरा पड़ जायेगा। कहां मिलेगा उनको इतना अच्छा स्टेपनी देश!

जहां तक पाकिस्तान के परमाणु बम बनाते जाने की बात है तो भइये उसका जन्म ही घृणा की राजनीति से हुआ है। सो वो तो यह करेगा ही। जवाब में हमें जो करना है वह हमारे देश की सरकार करेगी। लेकिन बिना मांगी हमारी सलाह तो यह है कि शून्य के अविष्कारक देश होने के नाते जितने भी बम पाकिस्तान बनाये सबको शून्य से गुणा कर दो। परिणाम जीरो बटा सन्नाटा हो जायेगा।

सागर चन्द नाहर का सवाल है कि भारत की आजादी को साठ वर्ष होने को हैं, परन्तु आज भी भारतीय पुरूष स्त्रियों के गुलाम क्यों है?

सागरजी अपने सच को सारे भारत के मर्दों पर थोपना ठीक नहीं। आप अपनी कहानी को सारे भारत के मर्दों की कहानी मानकर बड़ी नाइंसाफी कर रहे हैं। एक मर्द के अपनी पत्नी की गुलामी के आंकड़े सारे मर्दों के आंकड़े मानना कुछ ऐसा ही है जैसे किसी बुद्धिमान, खूबसूरत महिला को देखकर यह निष्कर्ष निकालना कि सारी महिलायें बुद्धिमान होती हैं, सारी महिलायें खूबसूरत होती हैं, सारी बुद्धिमान महिलायें खूबसूरत होती हैं या फिर यह कि सारी खूबसूरत महिलायें खूबसूरत होती हैं। सच इन सबसे अलग हो सकता है। इसी तरह औरत-मर्द लोग गुलामी के बजाय बराबरी का रिश्ता भी कायम करने को हुड़क सकते हैं।

आलोक हैरान हैं कि भारत सरकार ने एक लैप्टॉप प्रति बच्चा वाली योजना नामञ्ज़ूर क्यों कर दी?

 

भारत तो है ही एक नाराप्रधान देश। एक नारा दिया, देश का नाड़ा साल-दो साल उसी से कसा रहता है।

भारत तो है ही एक नाराप्रधान देश। एक नारा दिया, देश का नाड़ा साल-दो साल उसी से कसा रहता है। नेताजी ने कहा, ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’। लोगों ने ऐन आजादी के पहले दूसरों का खून बहाकर नेताजी की मांग पूरी कर दी। नेहरू जी बोले, ‘आराम हराम है’। लोगों ने कहा, ‘आराम में बड़ी आराम है’। इंदिरा जी बोलीं- ‘गरीबी हटाओ’। नौकरशाह बोले- ‘गरीब हटाओ-गरीबी रेखा नीचे लाओ’। नेता बोला -‘भ्रष्टाचार मिटाओ’। दूसरा बोला,’ हमें भी खाने दो, तुम भी खाओ’। अब तो जनता नारों से इतना ऊब चुकी है कि नेता कहता है, ‘सरकार हटाओ’ तो जनता कहती है- ‘भेजा मत खाओ, पांच साल बाद आओ’।

तो भइये, प्रति बच्चा एक लैपटाप की योजना भी कुछ ऐसी ही थी। जब पता चला कि हर बच्चे को एक लैपटाप मिलेगा तो लोगों ने कहा हम और बच्चे पैदा करेंगे। इधर बच्चा पैदा करेंगे, उधर लैपटाप मिलेगा। इधर मिलेगा उधर बेंच लेंगे। दस हजार का लैपटाप पांच में तो निकल ही जायेगा। इस तरह योजना की घोषणा होते ही तमाम लोगों ने बच्चे के लिये प्रार्थनापत्र दे दिया। सरकार को कहीं से भनक लग गई। उसे लगा कि इससे एक तो देश पर अरबों खरबों बरबाद होंगे, दूसरे देश की जनसंख्या भ्रष्टाचार की तरह बेतहाशा बढ़ जायेगी। यही सब सोचते हुये उसने योजना वापस ले ली।

कुछ लोग कहते हैं कि योजना के निरस्त होने के पीछे किसी अनुवादक का है। अनुवाद के दौरान उसने भार्गव डिक्शनरी देखकर लैपटाप का अनुवाद किया गोद + लट्टू। बोला सरकार का विचार है कि हर पैदा हुये बच्चे को एक गोद मिलेगी तथा एक लट्टू। अब चूंकि गोद तो सरकार पहले से ही उपलब्ध कराती है तथा लट्टू की तरह तो हर भारतीय बच्चा नाचता है। सो जब दोनों जरूरतें पहले से ही पूरी की जा रही हैं तो फालतू में पैसा खर्च करके क्या फायदा? यही सोचकर सरकार ने घोषणा वापस ले ली।

रमण पूछते हैं कि बॉलीवुड वाले जो हिन्दी की रोटी खाते हैं, हिन्दी बोलने से क्यों कतराते हैं?

 

बेहतर अभिव्यक्ति के प्रयास में हीरोइन अपने पूरे शरीर को ही लैंग्वेज में झोंक देती है।

इसके पीछे आर्थिक मजबूरी मूल कारण हैं। असल में तीन घंटे के सिनेमा में काम करने के लिये हीरो-हीरोइनों को कुछेक करोड़ रुपये मात्र मिलते हैं। हिंदी फिल्मों में काम करते समय तो डायलाग लिखने वाला डायलाग लिख देता है वो डायलाग इन्हें मुफ्त में मिल जाते हैं सो ये बोल लेते हैं। एक बार जहां सिनेमा पूरा हुआ नहीं कि लेखक लोग हीरो-हीरोइन को घास डालना बंद कर देते हैं। इनके लिये डायलाग लिखना भी बंद कर देते हैं। अब इतने पैसे तो हर कलाकार के पास तो होते नहीं कि पैसे देकर जिंदगी भर के लिये डायलाग लिखा ले। पचास खर्चे होते हैं उनके। माफिया को उगाही देना होता है, पहली बीबी को हर्जाना देना होता है, एक फ्लैट बेच कर दूसरा खरीदना होता है। हालात यह कि तमाम खर्चों के बीच वह इत्ते पैसे नहीं बचा पाता कि किसी कायदे के लेखक से डायलाग लिखा सके। मजबूरी में वह न चाहते हुये भी अपने हालात की तरह टूटी-फूटी हिंदी-अंग्रेजी बोलने पर मजबूर होता है।

अब हिंदी चूंकि वह थोड़ी बहुत समझ लेता है लिहाजा उसे पता लग जाता है कि कितनी वाहियात बोल रहा है। लिहाजा वह घबराकर अंग्रेजी बोलना शुरू कर देता है। अंग्रेजी में यह सुविधा होती है चाहे जैसे बोलो, असर करती है। आत्मविश्वास के साथ कुछ गलत बोलो तो कुछ ज्यादा ही असर करती है। बोलचाल में जो कुछ चूक हो जाती है उसे ये लोग अपने शरीर की भाषा (बाडी लैन्गुयेज) से पूरा करते हैं। बेहतर अभिव्यक्ति के प्रयास में कोई-कोई हीरोइने तो अपने पूरे शरीर को ही लैंग्वेज में झोंक देती हैं। जिह्वा मूक रहती है, जिस्म बोलने लगता है। अब हिंदी लाख वैज्ञानिक भाषा हो लेकिन इतनी सक्षम नहीं कि ज़बान के बदले शरीर से निकलने लगे। तो यह अभिनेता हिंदी बोलने से कतराते नहीं। उनके पास समुचित डायलाग का अभाव होता है जिसके कारण वे चाहते हुये भी हिंदी में नहीं बोल पाते है।