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बातचीत

मनोचिकित्सा से फ़िल्म निर्देशन तक

डॉ परवेज़ इमाम ने चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई पूरी कर मनोचिकित्सक का पेशा अपनाया पर अस्पताल की बजाय उनकी कर्मभूमि बनी वृतचित्र यानि डाक्यूमेंट्री फ़िल्मों की दुनिया। टीवी कार्यक्रम टर्निंग प्वाईंट से शुरुवात कर उन्होंने अब तक अनेकों पुरस्कृत वृत्तचित्रों का निर्माण किया है। संवाद में पढ़ें परवेज़ के जीवन और अनुभव पर डॉ सुनील दीपक से हुई उनकी बातचीत।

HIW: खुद कंप्यूटर सीखते हैं बच्चे

"होल इन द वॉल" द्वारा एनआईआईटी के सुगाता मित्रा ने सिद्ध किया कि बच्चे बिना औपचारिक प्रशिक्षण के स्वयं कंप्यूटर सीख सकते हैं। कम कीमत में करोड़ों भारतियों तक सूचना प्रोद्योगिकी पहुंचाना अब कोई दिवास्वप्न नहीं। निरंतर ने डॉ मित्रा से जानकारी ली इस अनूठे प्रयोग के बारे में।

लड़कर वही निर्मल ज़माना लाना होगा

पर्यावरणविद् व चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा पिछले दिनों जनशिक्षण मंच में पर्यावरण विषय पर व्याख्यान देने रतलाम आये। इस अवसर पर निरंतर के लिए पर्यावरण न अन्य विषयों पर रविशंकर श्रीवास्तव ने उनसे बातचीत की। संवाद में प्रस्तुत है उसी वार्तालाप के अंश।

खुद को पत्नी माना ही नहीं कभी

कथाकार व उपन्यासकार मैत्रेयी पुष्पा समकालीन महिला हिंदी लेखन की सुपरस्टार हैं। पिछले दिनों हंस के एक अंक में संपादक राजेंद्र यादव ने मैत्रेयी की तुलना मरी हुयी गाय से की, इस पर साहित्य जगत में काफी हलचल हुयी। यह और अन्य अनेक बिंदुओं को लेकर वरिष्ठ कथाकार अमरीक सिंह दीप ने मैत्रेयी पुष्पा से विस्तार से बातचीत की।

मुझे है आस कल की…

डॉक्टर कुलदीप सुंबली "अग्निशेखर" के व्यक्तित्व के कई पहलू हैं — कवि, लेखक, विचारक और विस्थापित कश्मीरियों के नेता। पनुन कश्मीर, जिसके वे अगुआ रहे हैं, को वे सेक्युलरिज़्म की नर्सरी मानते हैं। निरंतर संपादक रमण कौल ने जम्मू में अग्निशेखर से साहित्य, पनुन कश्मीर जैसे अनेक विषयों पर चर्चा की। संवाद स्तंभ में पढ़िये अग्निशेखर का साक्षात्कार।

Latest Posts

मैं बोरिशाइल्ला : भीड़ से अलग

बांग्लादेश की मुक्ति-गाथा पर केंद्रित "मैं बोरिशाइल्ला" महुआ माजी का पहला उपन्यास है जो चर्चित भी हुआ और सम्मानित भी। रवि कहते हैं  कि थोड़ा बोझिल होने के बावजूद यह अलग सा उपन्यास अपने प्रामाणिक विवरण के कारण बांग्ला जनजीवन को जानने समझने वाले और इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों को दिलचस्प लगेगा।

सफल-असफल बनने की सत्य तथाकथा

रवि रतलामी सफ़ल बनना चाहते थे, महान बनना चाहते थे। और खोजते खोजते उनका हाथ वो नुस्ख़ा लग ही गया जिससे वे महान ही नहीं, महानतम बन गये। तो देर किस बात की? आप भी बन जाइये उन के अनुयायी।

कितना बोलती हो सुनन्दा!

वातायन के काव्य प्रभाग में पढ़िये युवा कवि गौरव सोलंकी की कविता।

देख तमासा

समस्या पूर्ति निरंतर का ऐसा स्तंभ है जहाँ आप अपनी रचनात्मकता परख सकते हैं। स्तंभ में दिये चित्र व शीर्षक के आधार पर रच डालिये कोई कविता, छंद या हाईकू। सर्वश्रेष्ठ रचना को मिलेगा आकर्षक पुरस्कार।

असली भारत के लिये असली शिक्षा

हमारी शिक्षा पद्धति में बच्चे भारी बैग लिये फिरते हैं, जोर रहता हैं रटन विद्या और परीक्षाओं पर। यहाँ पाठ्यक्रम में बाहर से अर्जित ज्ञान, हुनर और काबलियतों को स्थान नहीं मिलता। शिक्षाविद व राष्ट्रीय शोध प्रोफेसर यश पाल मानते हैं कि आधुनिक औपचारिक शिक्षा तंत्र में प्रकृति और जीवन से सीखे हुनर को शामिल करना भी ज़रूरी है।