खुद को पत्नी माना ही नहीं कभी
November 4, 2006 |
5 Comments

कथाकार व उपन्यासकार मैत्रेयी पुष्पा समकालीन महिला हिंदी लेखन की सुपरस्टार हैं। पिछले दिनों हंस के एक अंक में संपादक राजेंद्र यादव ने मैत्रेयी की तुलना मरी हुयी गाय से की, इस पर साहित्य जगत में काफी हलचल हुयी। यह और अन्य अनेक बिंदुओं को लेकर वरिष्ठ कथाकार अमरीक सिंह दीप ने मैत्रेयी पुष्पा से विस्तार से बातचीत की।
लेख पढ़ें »
आस्था की तुष्टि से संतोष मिलता है
May 23, 2005 |
Leave comment

रात के बाद सबेरा होता है या सबेरे के पहले रात? आजकल हसीनों में शर्मोहया क्यों नहीं है? पूजा के समय भगवान को प्रसाद व भोग चढ़ाया जाता है, यह जानते हुये भी कि अंतत: खाना इन्सान को ही है। आखिर क्यों? ऐसे ही टेड़े सवालों के मेड़े जवाब दे रहे हैं हाजिर जवाब फुरसतिया!
लेख पढ़ें »
मोबाइल फ़ोन तेरे कितने रूप?
May 29, 2007 |
2 Comments

मोबाइल फ़ोन डिजिटल कैमरा, एमपी3 प्लेयर, एफ़एम रेडियो के पर्याय तो थे ही। अब आप इसका इस्तेमाल क्रेडिट कार्ड के विकल्प के रूप में भी कर सकते हैं। रवि रतलामी बता रहे हैं दो इसी तरह की सेवाओं के बारे में, पहला एसएमएस आधारित पे-मेट तथा दूसरा मोबाइल एप्लीकेशन आधारित एम-चेक।
लेख पढ़ें »
वेबलॉग नीतिशास्त्र
March 29, 2005 | Comments Off on वेबलॉग नीतिशास्त्र

सारांश में पेश करते हैं पुस्तकाँश या पुस्तक समीक्षा। निरंतर के पहले अंक में हमें प्रसन्नता है रेबेका ब्लड की पुस्तक "द वेबलॉग हैन्डबुक" के अंश का हिन्दी रूपांतर प्रस्तुत करते हुए। रेबेका 1996 से अंर्तजाल पर हैं, उनका ब्लॉग रेबेकाज़ पॉकेट खासा प्रसिद्ध है।
लेख पढ़ें »
धौंस नहीं सहेंगे चिट्ठों के सिपाही
April 9, 2005 |
1 Comment

आंदोलन का प्रतीक माने जाने वाले अखबार कार्पोरेट्स के हाथों अपना ज़मीर बेच चुके हैं। ऐसे में ब्लॉग्स का ईमानदार स्वर आशाएं जगाता है। पढ़िये ब्लॉग्स पर मीडिया मुगलों की दादागिरी पर निरंतर का दो टूक संपादकीय।साथ ही पढ़ें याहू द्वारा फ्लिकर के अधिग्रहण और याहू 360° के पर्दापण पर निरंतर द्वारा बदलते परिदृश्य का आंकलन, "बड़े खिलाड़ी के आने से बड़ा हुआ खेल"।
लेख पढ़ें »
पानी का अभाव – धारणाएँ, समस्याएँ और समाधान
August 1, 2005 |
Leave comment

जल मनुष्य की बुनियादी ज़रूरत है, इसे मानवाधिकार का दर्जा भी दिया जाता है। इसके बावजूद दुनिया भर में लगभग 100 करोड़ लोगों के पास शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं होता। कहा जाता है कि सन् 2025 तक विश्व की 50 फीसदी आबादी भयंकर जल संकट झेलने को मजबूर होगी। इस संकट की जड़ क्या है? इस से मुकाबला कैसे किया जाये ताकि "सबके लिये पानी" का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके? प्रस्तुत है इन सारे विषयों और जल से जुड़े अन्य मुद्दों पर विहंगम दृष्टि डालता चंद्रिका रामानुजम व राजेश राव का आलेख।
लेख पढ़ें »
IDN करेंगे हिन्दी का नाम रोशन
July 15, 2008 |
2 Comments

जब जालपृष्ठ हिन्दी में है तो भला डोमेन नाम हिन्दी में क्यों नहीं? अन्तरराष्ट्रीय डोमेन नाम (IDN) द्वारा ग़ैर-अंग्रेज़ी भाषी इंटरनेट प्रयोक्ताओं को इसका हल तो मिला ही है, भविष्य में संपूर्ण डोमेन नाम अपनी भाषा में लिख सकने के मार्ग भी प्रशस्त हो रहे हैं। पढ़िये आइडीएन के बारे में विस्तृत जानकारी देता वरुण अग्रवाल का लिखा, रमण कौल द्वारा अनूदित लेख।
लेख पढ़ें »
जापानी हायकू का उल्लेखनीय भावानुवाद
February 9, 2007 |
Leave comment
जापानी साहित्य की एक प्रमुख विधा हायकू तीन पंक्तियों में लिखी जाने वाली कविता है। कुल सत्रह अक्षरों में पूर्ण अर्थ संप्रेषित करना हायकू की कसौटी होती है। अनूप शुक्ला ने हाल ही में श्रीमती डा.अंजलि देवधर द्वारा किये मूल जापानी से अंग्रेजी में अनुदित 32 महत्वपूर्ण कवियों की 100 उत्कृष्ट हायकू कविताओं के हिंदी में उल्लेखनीय अनुवाद पढ़ा और काफी प्रभावित हुये।
लेख पढ़ें »
विशेषज्ञ बिन सब सून
April 9, 2005 |
Leave comment
जीवन के हर क्षेत्र में विशेषज्ञों की घुसपैठ जारी है। व्यक्ति के जन्म लेने से पहले ही विशेषज्ञों का रोल चालू हो जाता है। कटाक्ष कर रहे हैं रविशंकर श्रीवास्तव।
लेख पढ़ें »