आई.आई.टी से देश का कोई फायदा नहीं

दुनिया के जिस किसी भी मंच पर महात्मा गांधी की बात होती तो उनकी जीवनी "पहला गिरमिटिया" की बात जरूर होती है। पढ़िये "पहला गिरमिटिया" के रचयिता, साहित्यकार, गिरिराज किशोर से अनूप शुक्ला की बातचीत।
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आस्था की तुष्टि से संतोष मिलता है
May 23, 2005 |
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रात के बाद सबेरा होता है या सबेरे के पहले रात? आजकल हसीनों में शर्मोहया क्यों नहीं है? पूजा के समय भगवान को प्रसाद व भोग चढ़ाया जाता है, यह जानते हुये भी कि अंतत: खाना इन्सान को ही है। आखिर क्यों? ऐसे ही टेड़े सवालों के मेड़े जवाब दे रहे हैं हाजिर जवाब फुरसतिया!
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मोबाइल फ़ोन तेरे कितने रूप?
May 29, 2007 |
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मोबाइल फ़ोन डिजिटल कैमरा, एमपी3 प्लेयर, एफ़एम रेडियो के पर्याय तो थे ही। अब आप इसका इस्तेमाल क्रेडिट कार्ड के विकल्प के रूप में भी कर सकते हैं। रवि रतलामी बता रहे हैं दो इसी तरह की सेवाओं के बारे में, पहला एसएमएस आधारित पे-मेट तथा दूसरा मोबाइल एप्लीकेशन आधारित एम-चेक।
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ट्रैफ़िक जाम और सपने
August 1, 2005 |
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सारांश में इस बार एक महिला लेखिका के प्रथम उपन्यास के अंश प्रकाशित करते हुए हमें हर्ष है। सामयिक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित सुषमा जगमोहन के इस प्रयास "ज़िंदगी ई-मेल" का 28 जुलाई, 2005 को दिल्ली में विमोचन हुआ। सुषमा पेशे से पत्रकार हैं और उनकी रचनायें हंस, मधुमती व सखी जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
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बलॉगिंग विथ परपस
March 29, 2005 |
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जिह्वा ने जब अपना प्रसिद्ध चिट्ठा बंद किया तो उनकी उकताहट छुपती न थी। क्या चिट्ठाकार मूलतः अपने मेट्रिक्स में कैद आत्ममुग्ध अंर्तमुखी लेखक ही हैं बस? क्या वे समाज के सत्य से रूबरू ही नहीं होना चाहते? नज़रिया स्तंभ में पढ़िये संपादक की कलम से निरंतर का परिचय और चिट्ठा जगत पर नुक्ता चीनी के साथ पाईए परिचय आमुख कथा का।
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मुक्त बाज़ार के महात्मा कब आयेंगे?
May 23, 2005 |
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राजनैतिक आज़ादी की अभिजात संकल्पना को गाँधीजी ने सरल रूप देकर जन आंदोलन बनाया और देश को आजादी दिलाई। नितिन पई मानते हैं कि एक शताब्दी पश्चात भारत को आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये हमें महात्मा गाँधी की दुबारा ज़रुरत है।
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ओपन आईडीः ताले अनेक, चाबी सिर्फ एक
February 9, 2007 |
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जितने जालस्थल उतने लॉगिन, अपने यूज़रनेम और पासवर्ड की जोड़ी याद रखना सरदर्दी है। शुक्र है कि सिंगल साईन आन की तर्ज़ पर अंतर्जाल पर भी एक प्रणाली आकार ले रही है, जिसका नाम है ओपन आईडी। निधि में पढ़ें आईडेन्टिटी 2.0 और ओपन आईडी की जानकारी देता देबाशीष चक्रवर्ती का आलेख।
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डंडे का जोर
June 1, 2005 |
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बचपन में गुरु जी के डंडे की मार खाने के डर से गणित का पहाड़ा याद करने वाले लोगों को डंडे की महत्ता तब उतनी पता नहीं चली होगी, जितनी जिंदगी की जद्दोजहद के दौरान अब पता चलती है। अच्छे अच्छों की हवा निकालने में सक्षम होते हैं ये, उनको अपनी औक़ात और नानी तक याद दिला सकते हैं, चुटकी ले रहे हैं रवि रतलामी।
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वर्डप्रेस की सर्च-इंजनों में हेरफेर?

क्या वर्डप्रेस ने सर्च इंजनों में हेरा फेरी की? क्या अमरीकी चिट्ठों को शक की नज़र से देखते हैं? सिक्स अपार्ट और अडोब मिल कर कौन सी खिचड़ी पका रहे हैं? और गूगल ने जीमेल में कौन सी नई तकनीक जोड़ी है? इन सवालों का जवाब पाने के लिये पढ़ें हमारा स्तंभ हलचल जिसमें पेश कर रहे हैं माह की चुनिंदा खबरें।
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विशेषज्ञ बिन सब सून
April 9, 2005 |
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जीवन के हर क्षेत्र में विशेषज्ञों की घुसपैठ जारी है। व्यक्ति के जन्म लेने से पहले ही विशेषज्ञों का रोल चालू हो जाता है। कटाक्ष कर रहे हैं रविशंकर श्रीवास्तव।
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