ब्लॉग नहीं, यूज़नेट से बढ़ेगी हिन्दी
April 9, 2005 |
6 Comments

यूनिकोड हिन्दी का प्रयोग करने वाले कम ही होंगे जिन्होंने मुफ्त यूनिकोड एडिटर तख्ती के बारे में न सुना हो। पर इसकी रचना करने वाले हेमंत शर्मा को शायद ही ज्यादा लोग जानते हों। हनुमान जी के भक्त हेमंत उन्हीं का नाम आगे रखते रहे हैं। संवाद के अंतर्गत पढ़िये हेमंत से निरंतर की विस्तृत बातचीत।
लेख पढ़ें »
कम्पयूटर स्त्रीलिंग है या पुर्लिंग?
March 29, 2005 |
1 Comment

घर, दफ्तर, सड़क हर जगह मुसीबतें आतीं हैं, सेंकड़ों सवाल उठ खड़े हो जाते हैं। अब सर खुजलाते खुजलाते हमारे रडार पर एक महारथी की काया दिखी तो उम्मीद कि किरणें जाग उठीं। प्रश्न चाहे किसी भी विषय पर हों, साहित्यिक हों या हों जीवन के फलसफे पर, सरल हो या क्लिष्ट, नॉटी हो या शिष्ट, विषय बादी हों या मवादी, कौमार्य हो या शादी, पूछे जायेंगे बेझिझक फुरसतिया से!
लेख पढ़ें »
ट्रैफ़िक जाम और सपने
August 1, 2005 |
Leave comment

सारांश में इस बार एक महिला लेखिका के प्रथम उपन्यास के अंश प्रकाशित करते हुए हमें हर्ष है। सामयिक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित सुषमा जगमोहन के इस प्रयास "ज़िंदगी ई-मेल" का 28 जुलाई, 2005 को दिल्ली में विमोचन हुआ। सुषमा पेशे से पत्रकार हैं और उनकी रचनायें हंस, मधुमती व सखी जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
लेख पढ़ें »
धौंस नहीं सहेंगे चिट्ठों के सिपाही
April 9, 2005 |
1 Comment

आंदोलन का प्रतीक माने जाने वाले अखबार कार्पोरेट्स के हाथों अपना ज़मीर बेच चुके हैं। ऐसे में ब्लॉग्स का ईमानदार स्वर आशाएं जगाता है। पढ़िये ब्लॉग्स पर मीडिया मुगलों की दादागिरी पर निरंतर का दो टूक संपादकीय।साथ ही पढ़ें याहू द्वारा फ्लिकर के अधिग्रहण और याहू 360° के पर्दापण पर निरंतर द्वारा बदलते परिदृश्य का आंकलन, "बड़े खिलाड़ी के आने से बड़ा हुआ खेल"।
लेख पढ़ें »
भारतीय ब्लॉगिंग: टिप्पिंग प्वाईंट पर
March 29, 2005 |
1 Comment

विचार, संदेश और व्यवहार उसी तरह फैलते हैं जैसे कि कोई वायरस। दीना मेहता मानती हैं कि भारतीय ब्लॉगिंग मैल्कम ग्लैडवेल द्वारा पारिभाषित "टिप्पिंग प्वाइंट" की कगार पर है और अनुमान लगा रही हैं कि इसका भविष्य कैसा होगा।
लेख पढ़ें »
क्या आप टैगिंग करते हैं?
May 23, 2005 |
Leave comment

टैगिंग जानकारी की जमावट और लोगों को जोड़ने का एक नया क्राँतिकारी माध्यम है जो अराजकता से व्यवस्था की सृष्टि कर मानवीय भावनाओं का प्रतीक भी बन चला है। देबाशीष चक्रवर्ती के आलेख द्वारा प्रवेश कीजिये कीवर्ड के साम्राज्य में और अंदाज़ा लगाईये टैगिंग के भविष्य का।
लेख पढ़ें »
घसीटा या दीप
May 23, 2005 |
Leave comment
"उसका नाम दीप था। घसीटा या भूरा नहीं। विकास के नाम पर क्या इतना काफी नहीं? घसीटा से भी ज्यादा घसीटे गए अर्धकिशोर बालक का नाम एकदम साहित्यिक। पर उसे देख मैं यही सोचती, काश इसका नाम घसीटा होता, हो सकता है महादेवी जी की आत्मा जीवन्त हो उठती।" पढ़िये डॉ रति सक्सेना रचित मार्मिक संस्मरण।
लेख पढ़ें »
विशेषज्ञ बिन सब सून
April 9, 2005 |
Leave comment
जीवन के हर क्षेत्र में विशेषज्ञों की घुसपैठ जारी है। व्यक्ति के जन्म लेने से पहले ही विशेषज्ञों का रोल चालू हो जाता है। कटाक्ष कर रहे हैं रविशंकर श्रीवास्तव।
लेख पढ़ें »