खुद को पत्नी माना ही नहीं कभी
November 4, 2006 |
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कथाकार व उपन्यासकार मैत्रेयी पुष्पा समकालीन महिला हिंदी लेखन की सुपरस्टार हैं। पिछले दिनों हंस के एक अंक में संपादक राजेंद्र यादव ने मैत्रेयी की तुलना मरी हुयी गाय से की, इस पर साहित्य जगत में काफी हलचल हुयी। यह और अन्य अनेक बिंदुओं को लेकर वरिष्ठ कथाकार अमरीक सिंह दीप ने मैत्रेयी पुष्पा से विस्तार से बातचीत की।
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सुपरमैन और अंडरवियर
April 9, 2005 |
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अगर आपकी पूर्व प्रेमिका अपने बच्चों को आपसे उनके मामा तौर पर मिलवाये तो आप क्या करेंगे? अगर सुपरमैन इतना बुद्धिमान है तो फिर अंडरवियर अपनी पैंट के ऊपर क्यों पहनता है? कहते हैं कि पैदल चलने और जॉगिंग करने से वजन कम होता है। तो क्या उल्टे पैर चलने से वजन बढ़ सकता है? ऐसे ही टेड़े सवालों के मेड़े जवाब दे रहे हैं हाजिर जवाब फुरसतिया!
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टेरापैड: ब्लॉगिंग से आगे की सोच?

टेरापैड कुछ ऐसी सेवाओं व विशेषताओं को आपके लिए लेकर आया है जो आपकी पारंपरिक चिट्ठाकारी की दशा व दिशा को बदल सकता है। जानिये रविशंकर श्रीवास्तव क्या कहते हैं इस नये ब्लॉग प्लैटफॉर्म के बारे में।
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कोई भला चिट्ठा क्यों लिखना चाहेगा?
April 9, 2005 |
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चिट्ठाकारी आसान है और नियमित चिट्ठा लेखकों को पुस्तक प्रकाशन के अनुबंध या स्वतंत्र लेखन कार्य द्वारा अर्थलाभ मिलना भी कोई असंभव काम नहीं है। सारांश में पढ़ें बिज़ स्टोन की पुस्तक "हू लेट द ब्लॉग्स आउट" से एक चुने हुये लेख "वाई वुड एनीवन वाँट टू ब्लॉग?" का रमण कौल द्वारा किया हिन्दी रूपांतर।
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बलॉगिंग विथ परपस
March 29, 2005 |
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जिह्वा ने जब अपना प्रसिद्ध चिट्ठा बंद किया तो उनकी उकताहट छुपती न थी। क्या चिट्ठाकार मूलतः अपने मेट्रिक्स में कैद आत्ममुग्ध अंर्तमुखी लेखक ही हैं बस? क्या वे समाज के सत्य से रूबरू ही नहीं होना चाहते? नज़रिया स्तंभ में पढ़िये संपादक की कलम से निरंतर का परिचय और चिट्ठा जगत पर नुक्ता चीनी के साथ पाईए परिचय आमुख कथा का।
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भारतीय ब्लॉगिंग: टिप्पिंग प्वाईंट पर
March 29, 2005 |
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विचार, संदेश और व्यवहार उसी तरह फैलते हैं जैसे कि कोई वायरस। दीना मेहता मानती हैं कि भारतीय ब्लॉगिंग मैल्कम ग्लैडवेल द्वारा पारिभाषित "टिप्पिंग प्वाइंट" की कगार पर है और अनुमान लगा रही हैं कि इसका भविष्य कैसा होगा।
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क्या आप टैगिंग करते हैं?
May 23, 2005 |
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टैगिंग जानकारी की जमावट और लोगों को जोड़ने का एक नया क्राँतिकारी माध्यम है जो अराजकता से व्यवस्था की सृष्टि कर मानवीय भावनाओं का प्रतीक भी बन चला है। देबाशीष चक्रवर्ती के आलेख द्वारा प्रवेश कीजिये कीवर्ड के साम्राज्य में और अंदाज़ा लगाईये टैगिंग के भविष्य का।
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अमृता इमरोज़: रूहानी रिश्तों की बयानी
July 12, 2008 |
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उमा त्रिलोक ने अपनी किताब में इमरोज़ और अमृता की रूहानी मोहब्बत के जज़्बे को तो खूबसूरती से अभिव्यक्त किया ही है, साथ ही अमृता प्रीतम के जीवन के आखिरी लम्हों को भी अपनी कलम से बख़ूबी बटोरा है। पढ़िये पुस्तक अमृता इमरोज़ की रविशंकर श्रीवास्तव व रंजना भाटिया द्वारा समीक्षायें।
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पहले मुर्गी आयी या अन्डा
May 23, 2005 |
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जितेन्द्र के बचपन के दोस्त सुक्खी बहुत ही सही आइटम हैं। उनकी जिन्दगी में लगातार ऐसी घटनायें होती रहती हैं जो दूसरों के लिये हास-परिहास का विषय बन जाती है। हास परिहास में पढ़िए सुने अनसुने लतीफ़े और रजनीश कपूर की नई कार्टून श्रृंखला "ये जो हैं जिंदगी"। साथ ही "शेर सवाशेर" में नोश फ़रमायें गुदगुदाते व्यंजल।
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